26.2.23

“क्या मूर्ति-पूजा त्याज्य है अथवा मूर्तिपूजक काफिर है?”



मूर्ति पूजा और मूर्ति पूजा को को लेकर एक विचित्र सा वातावरण उत्पन्न कर दिया गया है। यह वातावरण इस्लाम के प्रसार के साथ बहुत अधिक तेजी से निर्मित हुआ। मंदिरों में तोड़फोड़ करना उन्हें जमींदोज करना एक मिशन बन गया था। मोहम्मद गजनवी से पहले भी ऐसी वारदातें होती रहे हैं। भारत में  वास्तुकला एवं मूर्ती-कला  का विकास पूर्व वैदिक काल तथा वैदिक काल में ही हो गया था। परंतु मूर्तिकला का विस्तार मिलते ही कई शिल्पकार वास्तु एवं शिल्प संरचना के लिए सक्रीय हो गये.  शिल्प एवं मूर्तिकला के विकास के सहारे किसी भी  सभ्यता के विकास को अस्वीकार नहीं की जा सकती. अर्थात सभ्यता के विकास लिए शिल्प एवं मूर्तिकला के विकास को एक घटक मानना चाहिए. सुर-असुर कथानकों को पर ध्यान दें तो... हम पातें हैं कि असुरों ने बड़े बड़े ऐसे किलों का निर्माण कराया जिससे सुर-समूह  से सुराक्षा  मिल सके. इंद्र को पुरंदर की पदवी असुरों  के दुर्ग ध्वस्त करने के कारण ही प्राप्त थी.

आइये अब हम विचार करतें हैं... मूर्ति-कला के विस्तार की वजह क्या है. वास्तव में मूर्तिकला जब बड़े पैमाने पर जनता द्वारा अपनाई जाने लगी तब उसे राजाश्रय भी मिला. राजाश्रय से कला का तीव्रता से विकास हुआ .भारतीय नदी-घाटी सभ्यताओं में  यूनानी सभ्यताओं तथा हर सभ्यताओं में रहने वाली नस्लों ने अपनी संस्कृति में कला तत्वों के मौजूदगी के प्रमाण दिए हैं.  भारतीय सन्दर्भ में देखा जाए तो वेदों में भले ही पूजन प्रणाली देवी-देवताओं को यज्ञ में हव्य (समिधा)  डालकर आहूत किया जाता रहा है  किन्तु कालान्तर में शिव पूजन के लिए अनाकृत-मूर्तियों का पूजन प्रारम्भ हो गया . कालान्तर में ईश्वर / ईश्वर के स्वरूपों एवं देवताओं को आकृति के रूप में पूजा जाने लगा.

मूर्तिकला के विकास के साथ साथ कला के सम्मान को चिर-स्थायित्व देने के लिए उसे पूजा प्रणाली का अनिवार्य हिस्सा समकालीन भारतीय सामाजिक व्यवस्था द्वारा बनाया गया. इस क्रम में यह उल्लेख अनिवार्य है कि-“भारतीय सभ्यता में बुद्ध के पूर्व आंशिक रूप से मूर्ति-आराधना का शुभारंभ हो गया था.” परन्तु बुद्ध के बाद मठों में मूर्ती-पूजा अधिक विस्तारित हुई. इसी क्रम में सिन्धु-घाटी सभ्यता में मूर्ति पूजा के प्रमाण मिलें हैं. मध्यप्रदेश के पचमढ़ी क्षेत्र एवं मंदसौर  में मिले गुफा चित्रों एवं कप्स की खोज  वाकणकर जी ने खोजकर गुफा कालीन 70 हज़ार साल पुरानी मानव प्रजाति की विक्सित होती  सभ्यता के विकास में कला की मौजूदगी का प्रमाण दिया था. जो मूर्तिकला का अत्यंत प्राथिक प्रमाण था. 7000 हज़ार वर्ष-पूर्व रामायण काल  में तथा 5000 साल प्राचीन महाभारत काल में  शिव की पूजन के दो उदाहरण मिलते हैं. रामेश्वरम में शिव लिंग की श्री राम द्वारा तथा गंधार (कंधार) में गांधारी द्वारा की साधना का विवरण उल्लेखनीय है. कामोबेश प्रारम्भ में भगवान शिव की क्षवियों की पूजन का उल्लेख मिलता है. आदिवासी प्रतीकात्मक रूप से शिवाराधना करते रहे हैं . आज भी वे बड़ा-देव के स्वरुप पूजित हैं.

तदुपरांत बुद्ध एवं जैन मतों  के विस्तार के साथ अखंड भारत में उतर पश्चिमी भू-भाग अफगानिस्तान से लेकर सम्पूर्ण भारत में बौद्ध,जैन सहित सभी सम्प्रदायों क्रमश: वैष्णव, शाक्त, ने भी अपनी अपनी आराधना प्रणालियों में मूर्ति-पूजन को शामिल किया. निर्गुण ब्रह्म के उपासकों ने  भी ब्रह्म के  प्रतीकात्मक स्वरूपं चित्रों, मूर्तियों की आराधना स्वीकृत की . यह एक सांस्कृतिक बदलाव था. ब्रह्म के स्वरुप का लौकिक अवतरण कराया गया. चोल पांड्य आदि नें दक्षिण भारत से मध्यप्रांत तक तथा समुद्रीमार्ग से जिन जिन द्वीपों पर राज्य स्थापित किये वहा भी पवित्र मंदिरों का निर्माण कराया . मार्तंड सूर्य मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी ईस्वी में कर्कोटा राजवंश के तहत कश्मीर के तीसरे महाराज ललितादित्य मुक्तापिदा द्वारा किया गया था ।

 चंदेल राजाओं ने दसवीं से बारहवी शताब्दी तक मध्य भारत में शासन किया। खजुराहो के मंदिरों का निर्माण 950 ईसवीं से 1050 ईसवीं के बीच इन्हीं चन्देल राजाओं द्वारा किया गया। मंदिरों के निर्माण के बाद चन्देलों ने अपनी राजधानी महोबा स्थानांतरित कर दी। लेकिन इसके बाद भी खजुराहो का महत्व बना रहा।

इसके अतिरिक्त काश्मीर के  शारदा-पीठ, के बारे में तो आप सभी जानते हैं . इसके अतिरिक्त 51 शक्ति पीठों का विवरण निम्नानुसार विकी पीडिया तक में उपलब्ध है.

1. किरीट शक्तिपीठ : पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के लालबाग कोट तट पर स्थित है। किरात यानी सिराभूषण या सती माता का मुकुट वहां गिराया गया था। मूर्तियाँ विमला (शुद्ध) के रूप में देवी हैं और संगबर्ता के रूप में शिव हैं।

2. कात्यायनी शक्तिपीठ : मथुरा के वृंदावन में भूतेश्वर में स्थित है, जहां सती के केश गिरे थे। देवी शक्ति का प्रतीक हैं जबकि भैरव भूतेश (जीवों के भगवान) का प्रतीक हैं।

3. कृवीर शक्तिपीठ : महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित है। देवी की तीन आँखें वहाँ गिरी थीं। मूर्तियाँ महिषमर्दिनी के रूप में देवी और क्रोधीश के रूप में शिव हैं।

4. श्री पर्वत शक्तिपीठ :   कुछ विद्वानों का मानना ​​है कि यह लद्दाख में स्थित है तो कुछ का मानना ​​है कि यह असम के सिलहट में है। मूर्तियाँ श्री सुंदरी के रूप में देवी हैं और सुंदरानंद के रूप में शिव हैं।

5. विशालाक्षी शक्तिपीठ : यहां देवी के कुंडल (कुंडल) गिरे थे और यह वाराणसी के मीराघाट पर स्थित है, जो  देवी के रूप में विश्वलक्ष्मी और शिव कला के रूप में हैं।

6. गोदावरी तट शक्तिपीठ : आंध्र प्रदेश के गोदावरी तट के कब्बूर में स्थित है। देवी का बायाँ गाल यहाँ गिरा था और मूर्तियाँ विश्वेश्वरी (जगत की माँ) और शिव दंडपाणि के रूप में हैं।

7. शुचिन्द्रम शक्तिपीठ: भारत के सबसे दक्षिणी सिरे के पास, तमिलनाडु में कन्याकुमारी स्थित है। देवी के ऊपरी दाँत यहाँ गिरे थे और मूर्तियाँ नारायणी के रूप में देवी और संघर के रूप में शिव हैं।

8. पंचसागरशक्ति: इस पीठ का सही स्थान ज्ञात नहीं है, लेकिन देवी के निचले दांत यहां गिरे थे और मूर्तियाँ बरही के रूप में देवी और महारुद्र के रूप में शिव हैं।

9. ज्वालामुखी शक्तिपीठ : हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित है। देवी की जीभ यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ अम्बिका के रूप में देवी और उन्मत्त के रूप में शिव हैं। 

10. भैरव पर्वत शक्तिपीठ :   इसके स्थान को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ लोग गिरिनगर, गुजरात में होने का तर्क देते हैं, जबकि कुछ मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के पास होने का तर्क देते हैं, जहाँ देवी के ऊपरी होंठ गिरे थे। मूर्तियाँ अवंती के रूप में देवी और लम्बकर्ण के रूप में शिव हैं। हरसिद्धि मंदिर

11. अट्टाहस शक्तिपीठ :   पश्चिम बंगाल के निकट लाभपुर में है। देवी के निचले होंठ यहां गिरे थे और मूर्तियाँ फुलरा के रूप में देवी और भैरव विश्वेश के रूप में शिव हैं।

12. जनस्थान शक्तिपीठ: महाराष्ट्र के नासिक में पंचवटी में स्थित है। देवी की ठोड़ी यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ भ्रामरी के रूप में देवी और विक्रमाटक के रूप में शिव हैं।

13. कश्मीर या अमरनाथ शक्तिपीठ :   जम्मू कश्मीर के अमरनाथ में है। देवी की गर्दन यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ महामाया के रूप में देवी और त्रिसंध्यास्वर के रूप में शिव हैं।

14. नंदीपुर शक्तिपीठ :   पश्चिम बंगाल के सांथ्य में स्थित है। देवी का हार यहां गिरा था और मूर्तियां नंदिनी के रूप में देवी और नंदकिशोर के रूप में शिव हैं।

15. श्री शैल शक्तिपीठ :   कुरनूल, आंध्र प्रदेश के पास। यहां देवी के गले का हिस्सा गिरा था। मूर्तियाँ महालक्ष्मी के रूप में देवी और शम्बरानंद के रूप में शिव हैं।

16. नलहटी शक्तिपीठ :   पश्चिम बंगाल के बोलपुर में है। देवी की मुखर नली यहां गिरी थी और मूर्तियां कालिका के रूप में देवी और योगेश के रूप में शिव हैं।

17. मिथिला शक्तिपीठ : इसका स्थान अभी अज्ञात है। स्थान तीन स्थानों पर माना जाता है, नेपाल के जनकपुर में और बिहार के समस्तीपुर और सहरसा में, जहाँ देवी का बायाँ कंधा गिरा था। मूर्तियाँ महादेवी के रूप में देवी और महोदरा के रूप में शिव हैं।

18. रत्नावली शक्तिपीठ : स्थान अज्ञात है, चेन्नई, तमिलनाडु के पास स्थित होने का सुझाव दिया। देवी का दाहिना कंधा यहाँ गिरा था और मूर्तियाँ कुमारी के रूप में देवी और भैरव के रूप में शिव हैं।

19. अंबाजी शक्तिपीठ : गुजरात की गिरनार पहाड़ियों में स्थित है। देवी का पेट यहां गिरा था और मूर्तियां चंद्रभागा के रूप में देवी और वक्रतुंड के रूप में शिव हैं।

20. जालंधर शक्तिपीठ : पंजाब के जालंधर में स्थित है। देवी के बाएं स्तन यहाँ गिरे थे और मूर्तियाँ त्रिपुरमालिनी के रूप में देवी और भिसन के रूप में शिव हैं।

21. रामगिरी शक्तिपीठ :   सटीक स्थान ज्ञात नहीं है, चित्रकूट, यूपी में कुछ बहस करते हैं जबकि अन्य मेहर, मध्य प्रदेश में बहस करते हैं। देवी के दाहिने स्तन यहाँ गिरे थे और मूर्तियाँ शिवानी के रूप में देवी और चंदा के रूप में शिव हैं।

22. वैद्यनाथ शक्तिपीठ : झारखंड के गिरिडीह, देवघर में स्थित है। देवी का दिल यहां गिर गया और मूर्तियां देवी के रूप में जयदुर्गा और शिव वैद्यनाथ के रूप में हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां सती का अंतिम संस्कार किया गया था।

23. वक्रेश्वर शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के सांथ्य में स्थित है। देवी का मन या भौंहों का केंद्र यहां गिरा था और मूर्तियां महिषमर्दिनी के रूप में देवी और वक्रनाथ के रूप में शिव हैं।

24. कन्याकाश्रम कन्याकुमारी शक्तिपीठ :   कन्याकुमारी के तीन सागरों हिन्द महासागर, अरब सागर में स्थित तथा बंगाल की खाड़ी, तमिलनाडु के संगम पर स्थित है। देवी की पीठ यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ देवी के रूप में शरवानी और शिव निमिषा के रूप में हैं।

25. बहुला शक्तिपीठ: कटवा, वीरभूम में स्थित, डब्ल्यूबी देवी की बाईं भुजा यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ बहुला के रूप में देवी और भीरुक के रूप में शिव हैं।

26. उज्जयिनी शक्तिपीठ: मध्य प्रदेश के उज्जैन में पवित्र क्षिप्रा के दोनों किनारों पर स्थित है। देवी की कोहनी यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ मंगलचंडी के रूप में देवी और कपिलंबर के रूप में शिव हैं।

27. मणिवेदिका शक्तिपीठ : राजस्थान के पुष्कर में स्थित है। गायत्री मंदिर का दूसरा नाम है। देवी की हथेलियों के बीच या दोनों कलाइयां यहां गिरी थीं और मूर्तियाँ गायत्री के रूप में देवी और सर्वानंद के रूप में शिव हैं।

28. प्रयाग शक्तिपीठ : इलाहाबाद में स्थित यूपी देवी की दस अंगुलियां यहां गिरी थीं और मूर्तियां ललिता और शिवा भाव के रूप में देवी हैं।

29. विरजक्षेत्र, उत्कल शक्तिपीठ: उड़ीसा के पुरी और याजपुर में स्थित है। देवी की नाभि यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ देवी के रूप में विमला और शिव जगन्नाथ के रूप में हैं।

30. कांची शक्तिपीठ:  तमिलनाडु के कांचीवरम में स्थित है। देवी का कंकाल यहां गिरा था और मूर्तियां देवगर्भ के रूप में देवी और रुरु के रूप में शिव हैं।

31. कलमाधव शक्तिपीठ: सटीक स्थान ज्ञात नहीं है। लेकिन देवी के दाहिने कूल्हे यहाँ गिरे और मूर्तियाँ काली के रूप में देवी और असितानंद के रूप में शिव हैं।

32. सोना शक्तिपीठ : बिहार में स्थित है। देवी के बाएं कूल्हे यहाँ गिरे थे और मूर्तियाँ नर्मदा के रूप में देवी और वाड्रासेन के रूप में शिव हैं।

33. कामाख्या शक्तिपीठ : असम के कामगिरी की पहाड़ियों में स्थित है। देवी की योनी या योनि यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ कामख्या के रूप में देवी और उमानंद के रूप में शिव हैं।

34. जयंती शक्तिपीठ: जयंतिया हिल्स, असम में स्थित है। देवी की बायीं जंघा यहां गिरी थी और मूर्तियाँ जयंती के रूप में देवी और भैरव के रूप में शिव हैं ??क्रमदीश्वर।

35. मगध शक्तिपीठ : बिहार के पटना में स्थित है। देवी की दाहिनी जांघ यहां गिरी थी और मूर्तियां देवी के रूप में सर्वानंदकारी और शिव व्योमकेश के रूप में हैं।

36. त्रिस्तोता शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल में जलपाईगुड़ी जिले के शालबारी गाँव में तिस्ता नदी के तट पर स्थित है। देवी के बाएँ पैर यहाँ गिरे थे और मूर्तियाँ भ्रामरी के रूप में देवी और ईश्वर के रूप में शिव हैं।

37. त्रिपुरा सुंदरी शक्तित्रीपुरी शक्तिपीठ : त्रिपुरा के किशोर ग्राम में स्थित है। देवी का दाहिना पैर यहां गिरा था और मूर्तियां त्रिपुरसुंदरी के रूप में देवी और त्रिपुरेश के रूप में शिव हैं।

38. विभाष शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के तमलुक में स्थित है। देवी का बायाँ टखना यहाँ गिरा था और मूर्तियाँ भीमारूपा के रूप में देवी और सर्वानंद के रूप में शिव हैं।

39. देवीकुप पीठ कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ: हरियाणा के कुरुक्षेत्र जंक्शन में द्वैपायन शक्ति के पास झील के पास स्थित है। देवी का दाहिना टखना यहाँ गिरा था और मूर्तियाँ सावित्री या स्थाणु के रूप में देवी और अश्वनाथ के रूप में शिव हैं।  देवीकूप पीठ कुरुक्षेत्र

40. युगद्य शक्तिपीठ, क्षीरग्राम शक्तिपीठ: पश्चिम बंगाल के खिरग्राम में स्थित है। देवी का दाहिना पैर का अंगूठा यहां गिरा था और मूर्तियां देवी के रूप में योगदया और शिव को खिरकंठ के रूप में हैं।

41. अंबिका विराट शक्तिपीठ : राजस्थान के जयपुर में वैराटग्राम में स्थित है। देवी के पैरों के छोटे पैर यहां गिरे थे और मूर्तियाँ अंबिका के रूप में देवी और अमृता के रूप में शिव हैं।

42. कालीघाट शक्तिपीठ : पश्चिम बंगाल के कलकत्ता में कालीघाट में स्थित है। कालीमंदिर के नाम से भी जाना जाता है। उनके दाहिने पैर से देवी के चार छोटे पैर यहाँ गिरे थे और मूर्तियाँ काली के रूप में देवी और नकुलेश या नकुलेश्वर के रूप में शिव हैं।

43. मनसा शक्तिपीठ: मानसरोवर झील, तिब्बत के निकट स्थित है। देवी का दाहिना हाथ या हथेली गिर गई और मूर्तियाँ देवी के रूप में दखचायनी और शिव अमर के रूप में हैं।

44. लंका शक्तिपीठ :  श्रीलंका में स्थित है। देवी के पैरों की घंटियाँ (नूपुर) यहाँ गिरी थीं और मूर्तियाँ देवी के रूप में इन्द्रकशी और शिव को राक्षसेश्वर के रूप में हैं।

45. गंडकी शक्तिपीठ : नेपाल के मुक्तिनाथ में स्थित है। देवी का दाहिना गाल यहाँ गिरा था और मूर्तियाँ गंडकीचंडी के रूप में देवी और चक्रपाणि के रूप में शिव हैं।

46. ​​गुह्येश्वरी शक्तिपीठ: नेपाल के काठमांडू में पशुपतिनाथ मंदिर के पास स्थित है। देवी के दो घुटने यहाँ गिरे थे और मूर्तियाँ महामाया के रूप में देवी और कपाली के रूप में शिव हैं।

47. हिंगलाज शक्तिपीठ: पाकिस्तान के हिंगुला में स्थित है। देवी का मन या मस्तिष्क यहाँ गिर गया और मूर्तियाँ कोटरी के रूप में देवी और भीमलोचन के रूप में शिव हैं।

48. सुगंधा शक्तिपीठ: बांग्लादेश के खुलना में नदी के तट पर स्थित है। देवी की नाक यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ सुनंदा के रूप में देवी और त्रयंबक के रूप में शिव हैं।

49. कार्तोयागत शक्तिपीठ: बांग्लादेश के करोतोआ तट पर स्थित है। देवी की बाईं सीट या उनके कपड़े यहां गिरे थे और मूर्तियाँ अपर्णा के रूप में देवी और भैरव के रूप में शिव हैं।

50. छत्तल शक्तिपीठ : बांग्लादेश के चटगाँव में स्थित है। देवी की दाहिनी भुजा यहाँ गिरी थी और मूर्तियाँ भवानी (देवी) के रूप में देवी और चंद्रशेखर के रूप में शिव हैं।

51. यशोर शक्तिपीठ: बांग्लादेश के जेस्सोर में स्थित है। देवी के हाथों का केंद्र यहां गिरा था और मूर्तियां चंदा के रूप में जशोरेश्वरी और शिव हैं।

[स्रोत:- डिवाइन इंडिया  https://www.thedivineindia.com/51-shakti-peeths/5918]

प्राचीन पौराणिक-टेक्स्ट के अनुसार समाजं एवं राजाओं द्वारा मंदिरों का निर्माण कराया. इसके अलावा जैन तीर्थों, बौद्ध-मठों, पगोडाओं, में मूर्तियाँ स्थापित हैं. जिनकी आराधना पूर्ण पवित्रता के साथ करना बंधन कारी है. यह एक सामाजिक सांस्कृतिक परम्परा है. जिसे कोई कुछ भी कहे पर सनातन में इन सार्वजनिक आराधना स्थलों के अलावा आदि शंकराचार्य द्वारा प्रेरित “आराधना-सरलीकरण” व्यवस्था में घर के दीवाले अर्थात देवालय में पंचायतन के रूप में पूजा जाना एक पवित्र परम्परा है.

मूर्तिपूजा तब गलत मानी जा सकती थी जब कि-“इससे जीवों के विरुद्ध संघातिक यातनाएं दीं जातीं हों अथवा यह  मानवता के अस्तित्व के लिए खतरा हो . ऐसा नहीं है तो फिर क्यों –“ मूर्ति-पूजा त्याज्य हो अथवा  मूर्तिपूजक काफिर कहे जावें ? ”

 

 

11.2.23

दक्षिण एशिया का बदनाम देश : पाकिस्तान

 


आर्थिक बदहाली, गिरते जीवन-समंक, स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा , लोकशाही की दुर्दशा , बन्दूक की नोक पर चकाघिन्नी होती डेमोक्रेसी, आतंक का एपी-सेंटर, 14 अगस्त 1947 को ब्रिटिश-इंडिया से आज़ाद हुए जिन्ना के नापाक इरादों, एवं जयचंदों की मदद से पैदा पाकिस्तान अब दक्षिण एशिया का सबसे बदनाम देश हो चुका है.विश्व मानता है कि इस देश के नागरिकों की साख भी संदिग्ध हो गई है. किल मिलाकर  पाकिस्तानी पासपोर्ट की इज्ज़त नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई है.

समाज विज्ञानी एवं रक्षा क्षेत्र के विद्वानों का मानना है कि-“भारत के खिलाफ इस्लामिक  कार्ड खेलने के किसी भी अवसर को नहीं चूकने वाले इस देश ने अपनी नस्लों को जो इतिहास पढ़ाया जाता है कि –“हिन्दू, सिख, यहूदी और हर गैर इस्लामिक एवं बुत-परस्त काफिर हैं वे हमारे दुश्मन हैं. !”.. इसके आगे क्या क्या सिखातें हैं हम सब जानते हैं विश्व भी जानता है . आज हम इस मुल्क यानी पाकिस्तान की एक और करतूत उजागर करते हैं , जिस पर विश्व खासतौर पर यूरोप 9/11 के बावजूद खामोश है. जी हाँ हम बलोच सिन्धु, पश्तूनों की आज़ादी के दीवानों के मानवाधिकारों की बात करतें हैं......  

ऐसी स्थिति में वहाँ की युवा जनसंख्या दिशा-भ्रमित है. किशोर अवस्था तक इस्लामिक जेहाद को सर्वोपरी मान बैठता है. 1971 में आज़ाद हुए  

बलूचिस्तान , पाकिस्तान  का पश्चिमी प्रान्त है जिसकी जनसंख्या 2 करोड़ के आसपास है.। बलूचिस्तान  ईरान के सिस्तान एवं बलूचिस्तान”  तथा अफ़गानिस्तान के सटे हुए क्षेत्रों में बँटा हुआ है, बलोचिस्तान की राजधानी क्वेटा  है । यहाँ के लोगों की प्रमुख भाषा बलूच या बलूची   है 

1944 में बलूचिस्तान को स्वतन्त्रता देने के लिए ब्रिटिश इंडिया के एक जनरल मनी ने किया था .  पाकिस्तान के संस्थापक और प्रथम गवर्नर-जनरल मोहम्मद अली जिन्ना ने अंतिम स्वाधीन बलूच शासक मीर अहमद यार खान को पाकिस्तान में शामिल होने के समझौते पर कुरआन की क़सम देकर समझौते दस्तखत करने के लिए मजबूर किया था 

यह कार्य 11 अगस्त 1947 को ब्रिटिश एवं यूरोपीयन देशों के  इशारे पर इसे जिन्ना ने पाकिस्तान में शामिल कर लिए गए बलूचिस्तान में 1970 के दशक से प्रो-आर्मी पाकिस्तानी डेमोक्रेसी एवं प्रशासनिक सामाजिक भेदभाव से दु:खी होकर बलोच-राष्ट्रवाद का अभ्युदय हुआ.इस प्रांत की जनसंख्या 78 लाख से अधिक एवं क्षेत्रफल  347190 वर्ग कि.मी.  (1,34,050 वर्गमील) है. जो पाकिस्तान का 44% भू-भाग है.

पाकिस्तान में बलूचिस्तान,सिंध,केपीके में मौजूद प्राकृतिक-संपदा एवं व्यापारिक दृष्टि से अन्य प्रान्तों से अपेक्षाकृत अधिक है परन्तु वहां की जनता की बदहाली  (स्वास्थ्य,शिक्षा, रोज़गार,) चिंताजनक है. सारी सुख-सुविधाएं  पाकिस्तानी पंजाब सूबे के पास जाती है.  बलूचिस्तान,सिंध,केपीके की जनता बेहद गरीब हैं. उनका जिनोसाईट किया जाता है. हाल ही में स्पेस में बलोचों नें बताया –“2 हज़ार महिलाओं को लापता कर दिया गया. ताहिर बलोच, हनी बलोच, मिराब्ल बलोच ने बताया कि-हमारे पढ़ने लिखने वाले बच्चों, महिलाओं, तक  को कंसंट्रेशन-कैम्पस में रखा जा रहा है.

2015 में  जिनेवा में आयोजित कांफ्रेंस जिसका विमर्श एजेंडा था  'बलूचिस्तान इन द शैडोज' , कांफ्रेंस का सारांश , "बलूचिस्तान में मानवाधिकारों की स्थिति बुरी तरह से खराब हो रही है। नागरिकों को सुरक्षा देने और कानून का राज कायम रखने के बुनियादी कर्तव्य में क्षेत्र की प्रांतीय एवं राष्ट्रीय सरकार नाकाम साबित हुई हैं वहां केवल सेना और उनकी बन्दूक वाला विधान चलता है.

  1948-49 से अब तक पाकिस्तान के विरुद्ध अब तक  ब्लोचों द्वारा पांच बार सशस्त्र क्रांतिकारी आन्दोलन की गई है. वर्तमान में बलोच-सिन्धुदेश-केपीके की आज़ादी के लिए सोशल-मीडिया पर अंतर्राष्ट्रीय-नैरेटिव लगातार जारी है.  

 मशहूर बलूच कार्यकर्ता नाएला कादरी ने एक प्रेस मीटिंग में कहा था कि- 'राजनैतिकलोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष स्वतंत्रता संघर्ष को दबाने के लिए पाकिस्तान नरंसहार कर रहा है।यह भी उनके द्वारा ही  कहा था-बीते एक दशक में लाख बलूचियों को मार डाला गया है। 25000 पुरुष एवं  महिलाएं  लापता हुई हैंजिनमें पाकिस्तान की सेना का हाथ रहा है। वो लोग नरंसहार की पहचान के लिए निर्धारित संयुक्त राष्ट्र के सभी आठ संकेतों पर अमल कर रहे हैं और इसमें अमानवीयकरणध्रुवीकरणविनाश और अस्वीकार भी शामिल हैं 

 

 

8.2.23

भारतीय मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार की पड़ताल

भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता को लेकर जो भी प्रयास किए गए चाहे वह साहित्यकारों ने किया हो या इतिहासकारों ने जहां मुझे गलत समझ में आया मैंने उसका प्रतिकार करने की सौगंध खाई है। इस कृति में आप नदी घाटियों के तट पर विकसित होने वाली सभ्यता और संस्कृति के बिंदुओं को समझ पाएंगे। यह कृति मां भारती को समर्पित है । मुझे आशा नहीं करनी चाहिए बल्कि विश्वास करना चाहिए कि आप सब तथाकथित प्रगतिशील दस्तावेजों के व्यामोह से स्वयं को मुक्त पाएंगे इस कृति को पढ़ने के बाद। खुलकर कहना खुल कर लिखना पराशक्ति प्रदत्त समर्थ के बिना मुझ अकिंचन के लिए संभव न था। यह कृति आप शीघ्र ही फ्लिपकार्ट अमेजॉन तथा अन्य ऑनलाइन मार्केट से प्राप्त कर सकते हैं। मुझे विश्वास है कि आप भारत को भारत के दृष्टिकोण से जानना चाहेंगे। मुझे यह भी विश्वास है कि आप इंपोर्टेड आईडियोलॉजी के चंगुल से मुक्त होना चाहते हैं। यह पुस्तक शायद कारगर साबित हो। मैं आव्हान करता हूं उन लेखकों कवियों शब्द शिल्पीयों का जिन्हें भारतीय दर्शन सनातनी व्यवस्था एवं भारतीय सभ्यता संस्कृति के प्रति सकारात्मक चिंतन नहीं है वह वापस इस नजरिए से जो विशुद्ध भारतीय है भारत को देखें और लिखें। यह पुस्तक किसी पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्ति के उद्देश्य से नहीं लिखी गई है। बल्कि उन तमाम स्थापित मंतव्य को ध्वस्त करने के लिए लिखी गई है जो भारत की सभ्यता और संस्कृति को कमजोर सिद्ध करने के प्रयास के रूप में स्थापित हैं। सुधि पाठक गण मैक्स मूलर ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को केवल ईशा के 1500 वर्ष पूर्व से स्थापित किया है। ऐसे भ्रामक नैरेटिव को जम्बूदीप जैसे जागृत देश के लोग मौन स्वीकृति देते रहें लेखकों के लिए शर्म की बात है। प्रतीक्षा कीजिए सब कुछ साफ होने जा रहा है

28.1.23

क्या 90 दिनों के बाद पाकिस्तान को पानी मिलना बंद हो जाएगा?


28 जन॰ 2023

सिंधु जल संधि: 90 दिन में समाप्त हो जाएगी..?

सिन्धु जल संधि, नदियों के जल के वितरण के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच हुई एक संधि है। इस सन्धि में विश्व बैंक (तत्कालीन 'पुनर्निर्माण और विकास हेतु अंतरराष्ट्रीय बैंक') ने मध्यस्थता की। इस संधि पर कराची में 19 सितंबर, 1960 को भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे।
इस समझौते के अनुसार, तीन "पूर्वी" नदियों — ब्यास, रावी और सतलुज — का नियंत्रण भारत को, तथा तीन "पश्चिमी" नदियों — सिंधु, चिनाब और झेलम — का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया। हालाँकि अधिक विवादास्पद वे प्रावधान थे जिनके अनुसार जल का वितरण किस प्रकार किया जाएगा, यह निश्चित होना था। क्योंकि पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियों का प्रवाह पहले भारत से होकर आता है, संधि के अनुसार भारत को उनका उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन हेतु करने की अनुमति है। इस दौरान इन नदियों पर भारत द्वारा परियोजनाओं के निर्माण के लिए सटीक नियम निश्चित किए गए। यह संधि पाकिस्तान के डर का परिणाम थी कि नदियों का आधार (बेसिन) भारत में होने के कारण कहीं युद्ध आदि की स्थिति में उसे सूखे और अकाल आदि का सामना न करना पड़े।( विकिपीडिया से साभार)
उपरोक्त समस्त बिंदु पब्लिक डोमेन में उपलब्ध हैं। इधर भारत में सिंधु वॉटर ट्रीटी यानी सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार करने का मन बना लिया है।
   भारत सरकार इस समझौते पर पुनर्विचार करना चाहती है। यह सही वक्त है जब पाकिस्तान को घुटनों पर लाया जा सके । परंतु इस समझौते का एक पक्ष है अंतरराष्ट्रीय बैंक जिसे हम विश्व बैंक के नाम से जानते हैं। यद्यपि इस समझौते रिव्यु के लिए समझौते में ही बिंदु मौजूद थे। भारत सरकार इस पर क्या निर्णय लेती है और किस तरह से पाकिस्तान को अपने आतंकी स्वरूप से बाहर आने की बात कहती है यह अलग बात है परंतु सिंधुदेश बलूचिस्तान केपीके और पश्तो डोगरा आबादी के अधिकांश लोग जाते हैं कि किसी भी स्थिति में एक बूंद भी पानी पाकिस्तान को ना दिया जाए।
   भारत एक मानवतावादी देश है शायद यह ना कर सकेगा। परंतु आजादी के चाहने वाले बलोच एक्टिविस्ट चाहते हैं कि यदि मानवता को आधार बनाया जाता है तो पाकिस्तान ने हजारों बच्चों को युवाओं को अगवा करके उनकी लाशें बाहर फेंक दी हैं ऐसे देश के लिए  मानवीयता के आधार पर छूट देना ठीक नहीं है। इस समय बलूचिस्तान एवं सिंधुदेश के एक्टिविस्ट खुलेआम कहते हैं कि-" भारत एक ऐसा राष्ट्र बन चुका है जिसकी आवाज विश्व समझ रहा है सुन रहा है, अगर भारत सिंधु देश एवं बलूचिस्तान केपीके एवं पश्तो लोगों के मानव अधिकार को संरक्षित करते हैं तो विश्व में एक नई मिसाल कायम होगी।
  पाकिस्तान की जर्जर हालत देखते हुए मदद करने की इच्छा तो सभी की होती है परंतु पाकिस्तान की चरित्रावली पर नजर डालें तो इस देश ने केवल टेररिस्ट पैदा किए हैं, दक्षिण एशिया में चीन की सहायता से अस्थिरता पैदा करने के लिए इस देश अर्थात पाकिस्तान ने सबसे आगे रहकर काम किया है।
   भारत के पास दो विकल्प हैं
[  ] समझौता रद्द कर दिया जाए
[  ] समझौता सिंधु देश तथा बलूचिस्तान केबीके पीओके मुजाहिर, पश्तो सहित तमाम अल्पसंख्यकों एवं गैर मुस्लिम के अलावा गैर पंजाबियों के मानव अधिकार की गारंटी मांग कर समझौता रिन्यू किया जाए
भारत दोनों ही एक्शन ले सकता है जैसा कि बलूचिस्तान के एक्टिविस्ट कहते हैं। दोनों की परिस्थिति में भारत का विश्व स्तर पर सम्मान बढ़ना स्वाभाविक है।
    इस संबंध में एक्टिविस्टों की सकारात्मक उम्मीद है।

25.1.23

असहमति मैत्री को खंडित करने का आधार नहीं है


  असहमति मैत्री को खंडित नहीं करती। ऐसा किसने कह दिया कि कोई किसी के विचार से सहमत हो वह साथ नहीं रह सकता?
बहुतेरे लोग ऐसे होते हैं, जो असहमति के आधार पर परिवार तक तोड़ देते हैं।
  
वेदांत का सार है सत्संग विमर्श और आपसी विचार विनिमय। क्या आपने इस एंगल से सोचा है?
सनातन में हजारों वर्ष पहले शास्त्रार्थ को मान्यता मिली है। पश्चिमी विद्वान वाल्टेयर ने असहमति को भलीभांति परिभाषित किया है। असहमति का अर्थ आपसी द्वंद्व नहीं है।
सहमति के साथ सह अस्तित्व बेहद प्रभावशाली आध्यात्मिक दार्शनिक बिंदु  है।
कई लोग असहमति को आधार बनाकर बेहद संवेदनशील हो जाते हैं। इससे संघर्ष भी पैदा हो जाता है। वास्तव में असहमति का संघर्ष से कोई लेना देना नहीं है। संघर्ष एक मानसिक उद्वेग है जो शारीरिक या बौद्धिक रूप से नकारात्मकता को जन्म देता है। इससे उलट असहमति एक तात्कालिक या दीर्घकालिक परिस्थिति भी हो सकती है। परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि कोई भी असहमति को आधार बनाकर युद्ध करने लगे।
   स्वस्थ समाज में स्वस्थ मस्तिष्क के लोग अक्सर आपस में असहमत होने के बावजूद एकात्मता के साथ रहते हैं। ठीक उसी तरह जैसे कि शक्कर की बरनी छोटे या बड़े शक्कर के दाने होने से शक्कर की मूल प्रवृत्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता।
मित्रों कभी मेरी किसी भी मित्र के साथ  असहमति  होती है अथवा हो गई हो तो मुझ पर क्रोधित मत होना क्योंकि मैं असहमति के आधार पर द्वंद के जन्म से सहमत नहीं रहता। मेरे एक पूज्य वरिष्ठ अधिकारी हैं जो बेहद करुणा भाव से मुझे देखते हैं उनसे कई मुद्दों पर वैचारिक असहमति या हैं परंतु उनका इसने मुझ पर सदा बरसता है। यही महात्मा गांधी महात्मा गौतम बुद्ध महावीर स्वामी भगवान श्री राम जैसे महान व्यक्तियों द्वारा बताया गया मार्ग है। भारतीय जीवन दर्शन जीवंत दर्शन है। भारतीय जीवन दर्शन की शुचिता के लिए हर असहमति के प्रति सम्मान व्यक्त करने से हमारा जीवन सुदृढ़ एवं पवित्र हो जाता है। यही हर मुमुक्षु के लिए सनातनी संदेश है। हाल के दिनों में हम सब  सहमति और असहमति के साथ दो भागों में विभक्त हैं।  एक व्यक्ति लोगों के माइंड को पढ़कर एक पर्ची पर कुछ लिख देता है। और उसे ईश्वर की कृपा कहकर स्वयं को उस प्रक्रिया से ही अलग कर लेता है। दूसरी ओर एक युवा लड़की माइंड रीडिंग करके अपने हुनर को जादूगरी की श्रेणी में रखती है। दोनों में फर्क यह है कि एक अपनी माइंड रीडिंग की योग्यता रखते हुए भी अस्तित्व को ब्रह्म के आशीर्वाद को महान बताता है जबकि दूसरी ओर वही युवा बालिका अपने आप को मैजिशियन बताती है। एक टीवी चैनल इससे धजी का सांप बनाकर पेश करता है। इससे दर्शक और पाठक भ्रमित हो जाते हैं। जबकि इसका अर्थ यह है कि अगर यह जादू होता इसे बहुत से लोग आसानी से सीख लेते परंतु सवा सौ करोड़ से अधिक जनसंख्या में से मात्र कुछ ही लोग इस तरह की क्रिया प्रदर्शित कर पाते हैं। कुल मिलाकर आस्तिक लोग इसे ईश्वर की कृपा मानते हैं जबकि नास्तिक ऐसी प्रक्रियाओं को पाखंड कहते हैं अथवा जादूगरी मान लेते हैं। अगर मैं हर असहमत व्यक्ति से दूरी बनाने लगे अथवा दुश्मनी पालूँ तो मुझसे बड़ा मूर्ख कौन होगा भला?
वर्तमान युग में यही एक बहुत बड़ी कमी है।
   यही योग अहंकार और स्वयं को सिद्ध करते रहने का युग है। इस युग में हम सोचते हैं कि जो कर रहे हैं वह हम ही कर रहे हैं। ऐसी अवधारणा लोकायत विचारकों अर्थात नास्तिकों की होती है। नास्तिक जिनको ब्रह्मा के अस्तित्व पर तनिक भी भरोसा नहीं होता मान लिया जाए कि ब्रह्म नहीं है तब कि अगर हम इतना सा भरोसा करने तो हमारे मन में बसा हुआ है अहंकार तुरंत तिरोहित हो जाएगा। परंतु हम तो सोचते हैं कि यह कार्य मैंने किया इसका श्रेय मुझे मिलना चाहिए। तथाकथित प्रगतिशील साहित्य में ऐसी ही कहानियां कविताएं देखने पढ़ने को मिलती हैं। वैचारिक रूप से स्वस्थ मस्तिष्क यही सब करते नजर आते हैं। परंतु आस्तिक लोग वास्तव में ऐसे विचारकों से भिन्न होते हैं को से भिन्न होते हैं। एक बार की सत्य घटना में आपको बताता हूं किसी व्यक्ति पर मुझे अनायास क्रोध आ गया। कुछ अप्रिय वार्ता और कार्य किया था उसने। परंतु दूसरे ही पल मुझे यह महसूस हुआ कि-" जो मैं कर रहा हूं वह मैं नहीं कर रहा हूं यह ईश्वर द्वारा किया गया कार्य है।" तब तुरंत ही मैंने महसूस किया-" तब फिर उस व्यक्ति ने जो किया है वह उसने नहीं बल्कि ईश्वर की इच्छा के अनुकूल हुआ है।" ऐसा सोचते ही मस्तिष्क पूरी तरह से सामान्य हो गया। फलस्वरूप न तो मैं हिंसक बन पाया और न ही हिंसा करने के लिए मुझे मेरे शारीरिक संवेग ने प्रेरित किया। एक अनुचित हिंसा करने से मैं बच गया।
   सच मायने में यह घटना असामान्य हो सकती है। क्योंकि अपराधी को अपराध का दंड मिलना चाहिए था। परंतु मेरे विचार से मैंने यह कार्य ईश्वर पर छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद वही व्यक्ति बेहद दीन हीन स्थिति में मेरे सामने आया। मैं समझ चुका था कि यह व्यक्ति ईश्वरीय दंड का भागी हो चुका है। जो व्यक्ति अहंकारी है वह निश्चित तौर पर धन पद प्रतिष्ठा और सत्ता का अधिकारी होता है। अगर वह इन सबके होते हुए भी अहंकार से मुक्त रहता है तो वह सबसे पवित्र मुमुक्षु बनता है । इस प्रकार अहंकार आत्म प्रदर्शन और स्वयं को श्रेष्ठ करते रहने के लिए रास्ते बनाता है। इन रास्तों में आए किसी भी अवरोध के विरुद्ध वह व्यक्ति सक्रिय हो जाता है। स्थिति तो यहां तक आ जाती है कि अगर कोई व्यक्ति उस व्यक्ति की बात से सहमत है तो उसे रास्ते से हटा तक दिया जाता है। ठीक उसी तरह जैसे दारा शिकोह को औरंगजेब ने हाथी के पैरों से कुचलवा दिया था। ठीक वैसे ही जैसे हिटलर और स्टालिन ने भी ऐसा ही कुछ किया। मित्रों रावण के चरित्र को ध्यान से देखिए असहमति के कारण उसने अपने छोटे भाई को लात मारकर लंका से बाहर कर दिया। मित्रों आप सोचिए हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से भिन्न होता है। उसकी पसंद भिन्न होती है उसकी आदतें भिन्न होती है उसका चिंतन भी भिन्न होता है। परंतु इस आधार पर अगर संघर्ष होने लगे तो पृथ्वी पर मानवता समाप्त हो जाएगी।
   हो सकता है आप मेरे विचारों से सहमत हूं आपकी असहमति का सम्मान करते हुए मैं आपको प्रणाम करता हूं
*ॐ श्री राम कृष्ण हरि:*

22.1.23

पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने सिद्ध कर दिया कि सनातन विज्ञान भी है


एक अजीबोगरीब सी परेशानी झेल रहे हैं जो सनातन के संबंध में हमेशा नकारात्मक भावना रखते हैं। इन सब का कारण बन गए हैं पंडित धीरेंद्र शास्त्री, मात्र 27 वर्ष की उम्र में विश्व में चर्चित होने तथा हनुमान जी के अमर होने का प्रमाण बन चुके, शास्त्री जी उनके पूर्वजों द्वारा स्थापित अथवा व्यवस्थित किए गए हनुमान मंदिर के संदर्भ में उल्लेखनीय भी बन चुके हैं। 1996 में जन्मे इस युवा आध्यात्मिक व्यक्तित्व ने दुनिया में बहुत ही कम समय में सनातन के पक्ष में अद्भुत वातावरण तैयार कर दिया है। रामायण को काल्पनिक तथा रामायण के पात्रों को कथा का काल्पनिक पात्र मान लेने वाले लोगों के लिए बड़ा सरदर्द बन चुके हैं।
धीरेंद्र शास्त्री क्या करते हैं..?
युवा कथावाचक शास्त्री जी एक पर्चे पर सामने आए हुए व्यक्ति जीवन से जुड़े कुछ मुद्दों को सामने रखते हैं। और उसे अभिव्यक्त भी करते हैं उतना ही अभिव्यक्त करते हैं जिससे व्यक्ति की निजता समाप्त ना हो। लोग उनके पास अपनी समस्या लेकर जाते हैं।  धीरेंद्र शास्त्री के सामने खड़ा हुआ व्यक्ति उनसे सहमत हो जाता है। जितने भी प्रकरण अब तक देख पाया हूं किसी भी अर्जी लगाने वाले ने उनकी बातों पर अविश्वास प्रगट नहीं किया।
  धीरेंद्र जी जो करते हैं उसका मतलब क्या है?
वीरेंद्र एक सामान्य व्यक्ति हैं जो अतिंद्रीय परीक्षण करने में सक्षम है। वह किसी के मस्तिष्क में क्या चल रहा है इस तथ्य का भली-भांति मूल्यांकन कर लेते हैं अगर इसे हम धर्म से न भी जोड़े तो यह एक अतींद्रिय विज्ञान है। कुछ दिनों पहले कुछ वीडियो देखें जो एक युवा लड़की के थे। वह सुहानी शाह  बालिका किसी भी व्यक्ति के फोन नंबर इत्यादि का विवरण सामने रख देती थी। यहां तक कि वह उसके मस्तिष्क में चल रहे विचारों को भी सामने प्रस्तुत कर देती थी। उसे महाराष्ट्र के कई पुलिस अधिकारियों के सामने प्रदर्शन हेतु बुलाया जाता रहा है। उनके कई शो होते हैं. इन दौनों सुहानी और धीरेन्द्र जी , सूक्ष्म रूप से परकाया में अवस्थित मष्तिष्क में प्रवेश करतें हैं और उसमे चल रहे विचार-प्रवाह को पढ़ लेते हैं.  
   साइकोलॉजिकल परीक्षण करने में सक्षम थी। इसे ईश्वर की कृपा या एक साइक्लोजिकल अरेंजमेंट यह आपके ऊपर है।
  जहां तक धीरेंद्र जी का प्रश्न है उनको उनके ईष्ट हनुमान जी के भक्त होने के कारण नकारा जाना किस हद तक उचित है।
केवल विज्ञान ही सर्वोपरि है तब हमारे मस्तिष्क में अच्छे बुरे विचारों का प्रवाह कहां से होता है?
इस बिंदु पर विचार करने पर महसूस होता है कि जो हमें अंतस की प्रेरणा जिसे अंग्रेजी में इनट्यूशन कहते हैं कैसे मिलती है?
     मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि हमारे मस्तिष्क में प्रतिदिन 2000 से अधिक विभिन्न प्रकार के विचारों का प्रवाह होता है। हम जब कविता लिखते हैं तब रचना प्रक्रिया के दौरान हमारे मस्तिष्क में जो भी कुछ उत्पादित होता है उसे हम अपने शब्दों के साथ सामने रख देते हैं । यह सत्य है कि-" हमारे मस्तिष्क में प्रवाहित सारे विचार काल्पनिक भी होते हैं जो संयोगवश कभी सत्य हो जाते हैं और कभी असत्य रह जाते हैं।"
लेकिन बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री के किसी भी तथ्य में गलती नहीं होती। और वह स्वीकारते हैं कि वह सक्षम नहीं है ईश्वर उन्हें प्रेरित करते हैं। और जो वह कहते हैं वही सत्य हो जाता है। लोगों से वार्ता के दौरान पता चला कि बागेश्वर धाम के पंडित युवा विद्वान शास्त्री भले ही अंग्रेजी न जाने परंतु इस अतिंद्रीय सनातन विज्ञान से भली-भांति परिचित है। एक रिटायर्ड आईएएस अफसर उन पर अवैध भूमि कब्जे की बात कर रहे हैं। उनका आरोप हो सकता है सही है परंतु इसका निराकरण मीडिया ट्रायल पर नहीं किया जा सकता है इसका निराकरण प्रशासनिक व्यवस्था द्वारा किया जा सकता है। एक रिटायर्ड आईएएस का यह कहना कि उनके द्वारा भूमि अतिक्रमण की गई है तो मेरा यह प्रश्न है कि किन कारणों से प्रशासन उस पर ध्यान नहीं दे रहा। वास्तव में यह एक तरह से उस प्रतिभाशाली  देवदूत के विरुद्ध षड्यंत्र कारी वक्तव्य है। 
    कोशिश की जाए तो हम ऐसी अतिंद्रीय शक्तियां सनातन में वर्णित साधनों से कर सकते हैं। और अधिक लोग ऐसा कर सकते हैं. 
       सुहानी शाह अज्ञानता वश ईश्वरीय सत्ता से किनारा कर रही हैं. जबकि धीरेन्द्र सरीखे लोग आस्था को  प्रबल बना रहे हैं. सुहानी लोकायती है और धीरेन्द्र विश्वासी . ठीक वैसे ही जैसे मेरा चपरासी कहता है कि -साहब आप मेरे मालिक हो आप मुझे वेतन देते हो. जबकि मैं उससे कहता हूँ वेतन तुमको और मुझको सरकार देती है, मैं केवल माध्यम हूँ.  
इन दौनों सुहानी और धीरेन्द्र जी में फर्क क्या है...?

इन दौनों सुहानी और धीरेन्द्र जी में फर्क क्या है...?

1. सुहानी : स्वयम को मैजीशियन कहती है

2. धीरेन्द्र : स्वयम को शून्य मानते हैं. ईश्वर को श्रेय देते हैं

3. सुहानी : पैसा लेकर शो करती है.

4. धीरेन्द्र : धीरेन्द्र ऐसा नहीं करते .

5. सुहानी : सुहानी नंबरों/अक्षरों/नामों पर केन्द्रित हैं  

6. धीरेन्द्र : धीरेन्द्र, नंबरों/अक्षरों/नामों के साथ साथ विवरणात्मक तथ्य रखतें हैं. 

7. सुहानी एवं धीरेन्द्र में टेलीपैथिक-संवेग के संचार  की क्षमता है.

8. दौनों ही साय्क्लोज़िष्ट नहीं हैं.  

इस मुद्दे पर एक तथ्य है और स्पष्ट है कि बागेश्वर के इन युवा योगी माइंड रीडिंग के ही नहीं बल्कि परिस्थितियों का भी अवलोकन कर लेते हैं। वे लंबे-लंबे स्टेटमेंट लिख कर दर्शनार्थियों को देते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि सुहानी अथवा इसी तरह के काम करने वाले माइंड रीडर मैजिशियन के सवालों का संक्षेप में उत्तर देते हैं।

सामान्य माइंड रीडर वैकल्पिक रेमेडीज पर विचार नहीं कर पाते जबकि वे ऐसा करते हैं। क्योंकि वह मेडिसिन अथवा अन्य किसी तरह के विकल्प नहीं बता सकते अतः बागेश्वर महाराज जी केवल ईश्वर आराधना मंत्र जाप इत्यादि के संबंध में जानकारी देते हैं। जो ठीक है इस आधार पर अंधविश्वास फैलाने का मामला कैसे बन सकता है?

 

   

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