8.2.23

भारतीय मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार की पड़ताल

भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता को लेकर जो भी प्रयास किए गए चाहे वह साहित्यकारों ने किया हो या इतिहासकारों ने जहां मुझे गलत समझ में आया मैंने उसका प्रतिकार करने की सौगंध खाई है। इस कृति में आप नदी घाटियों के तट पर विकसित होने वाली सभ्यता और संस्कृति के बिंदुओं को समझ पाएंगे। यह कृति मां भारती को समर्पित है । मुझे आशा नहीं करनी चाहिए बल्कि विश्वास करना चाहिए कि आप सब तथाकथित प्रगतिशील दस्तावेजों के व्यामोह से स्वयं को मुक्त पाएंगे इस कृति को पढ़ने के बाद। खुलकर कहना खुल कर लिखना पराशक्ति प्रदत्त समर्थ के बिना मुझ अकिंचन के लिए संभव न था। यह कृति आप शीघ्र ही फ्लिपकार्ट अमेजॉन तथा अन्य ऑनलाइन मार्केट से प्राप्त कर सकते हैं। मुझे विश्वास है कि आप भारत को भारत के दृष्टिकोण से जानना चाहेंगे। मुझे यह भी विश्वास है कि आप इंपोर्टेड आईडियोलॉजी के चंगुल से मुक्त होना चाहते हैं। यह पुस्तक शायद कारगर साबित हो। मैं आव्हान करता हूं उन लेखकों कवियों शब्द शिल्पीयों का जिन्हें भारतीय दर्शन सनातनी व्यवस्था एवं भारतीय सभ्यता संस्कृति के प्रति सकारात्मक चिंतन नहीं है वह वापस इस नजरिए से जो विशुद्ध भारतीय है भारत को देखें और लिखें। यह पुस्तक किसी पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्ति के उद्देश्य से नहीं लिखी गई है। बल्कि उन तमाम स्थापित मंतव्य को ध्वस्त करने के लिए लिखी गई है जो भारत की सभ्यता और संस्कृति को कमजोर सिद्ध करने के प्रयास के रूप में स्थापित हैं। सुधि पाठक गण मैक्स मूलर ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति को केवल ईशा के 1500 वर्ष पूर्व से स्थापित किया है। ऐसे भ्रामक नैरेटिव को जम्बूदीप जैसे जागृत देश के लोग मौन स्वीकृति देते रहें लेखकों के लिए शर्म की बात है। प्रतीक्षा कीजिए सब कुछ साफ होने जा रहा है

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