आर्थिक बदहाली, गिरते जीवन-समंक, स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा , लोकशाही की दुर्दशा , बन्दूक की नोक पर चकाघिन्नी होती डेमोक्रेसी, आतंक का एपी-सेंटर, 14 अगस्त 1947 को ब्रिटिश-इंडिया से आज़ाद हुए जिन्ना के नापाक इरादों, एवं जयचंदों की मदद से पैदा पाकिस्तान अब दक्षिण एशिया का सबसे बदनाम देश हो चुका है.विश्व मानता है कि इस देश के नागरिकों की साख भी संदिग्ध हो गई है. किल मिलाकर पाकिस्तानी पासपोर्ट की इज्ज़त नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई है.
समाज
विज्ञानी एवं रक्षा क्षेत्र के विद्वानों का मानना है कि-“भारत के खिलाफ इस्लामिक कार्ड खेलने के किसी भी अवसर को नहीं चूकने
वाले इस देश ने अपनी नस्लों को जो इतिहास पढ़ाया जाता है कि –“हिन्दू, सिख, यहूदी और
हर गैर इस्लामिक एवं बुत-परस्त काफिर हैं वे हमारे दुश्मन हैं. !”.. इसके आगे क्या
क्या सिखातें हैं हम सब जानते हैं विश्व भी जानता है . आज हम इस मुल्क यानी
पाकिस्तान की एक और करतूत उजागर करते हैं , जिस पर विश्व खासतौर पर यूरोप 9/11 के
बावजूद खामोश है. जी हाँ हम बलोच सिन्धु, पश्तूनों की आज़ादी के दीवानों के
मानवाधिकारों की बात करतें हैं......
ऐसी स्थिति
में वहाँ की युवा जनसंख्या दिशा-भ्रमित है. किशोर अवस्था तक इस्लामिक जेहाद को
सर्वोपरी मान बैठता है. 1971 में आज़ाद हुए
बलूचिस्तान , पाकिस्तान का पश्चिमी प्रान्त है जिसकी
जनसंख्या 2 करोड़ के आसपास है.। बलूचिस्तान ईरान के “सिस्तान एवं बलूचिस्तान” तथा अफ़गानिस्तान के सटे हुए क्षेत्रों में बँटा हुआ है, बलोचिस्तान की राजधानी क्वेटा है । यहाँ
के लोगों की प्रमुख भाषा बलूच या बलूची है ।
1944 में बलूचिस्तान को
स्वतन्त्रता देने के लिए ब्रिटिश इंडिया के एक जनरल मनी ने किया था . पाकिस्तान
के संस्थापक और प्रथम गवर्नर-जनरल मोहम्मद अली जिन्ना ने अंतिम स्वाधीन बलूच शासक
मीर अहमद यार खान को पाकिस्तान में शामिल होने के समझौते पर कुरआन की
क़सम देकर समझौते दस्तखत करने के लिए मजबूर किया था ।
यह कार्य
11 अगस्त 1947 को ब्रिटिश एवं यूरोपीयन देशों के इशारे पर
इसे जिन्ना
ने पाकिस्तान में शामिल कर लिए गए
बलूचिस्तान में 1970 के दशक से प्रो-आर्मी
पाकिस्तानी डेमोक्रेसी एवं प्रशासनिक सामाजिक भेदभाव से दु:खी होकर
बलोच-राष्ट्रवाद का अभ्युदय हुआ.इस
प्रांत की जनसंख्या 78 लाख से अधिक एवं क्षेत्रफल 347190 वर्ग कि.मी. (1,34,050 वर्गमील) है. जो पाकिस्तान का 44% भू-भाग है.
पाकिस्तान
में बलूचिस्तान,सिंध,केपीके में मौजूद
प्राकृतिक-संपदा एवं व्यापारिक दृष्टि से अन्य प्रान्तों से अपेक्षाकृत अधिक है
परन्तु वहां की जनता की बदहाली (स्वास्थ्य,शिक्षा,
रोज़गार,) चिंताजनक है. सारी सुख-सुविधाएं
पाकिस्तानी पंजाब सूबे के पास जाती है. बलूचिस्तान,सिंध,केपीके की जनता बेहद गरीब हैं. उनका जिनोसाईट
किया जाता है. हाल ही में स्पेस में बलोचों नें बताया –“2
हज़ार महिलाओं को लापता कर दिया गया. ताहिर बलोच, हनी बलोच,
मिराब्ल बलोच ने बताया कि-“हमारे पढ़ने लिखने
वाले बच्चों, महिलाओं, तक को
कंसंट्रेशन-कैम्पस में रखा जा रहा है.”
2015 में जिनेवा
में आयोजित कांफ्रेंस जिसका विमर्श एजेंडा
था 'बलूचिस्तान इन द शैडोज' , कांफ्रेंस का सारांश , "बलूचिस्तान में
मानवाधिकारों की स्थिति बुरी तरह से खराब हो रही है। नागरिकों को सुरक्षा देने और
कानून का राज कायम रखने के बुनियादी कर्तव्य में क्षेत्र की प्रांतीय
एवं राष्ट्रीय सरकार नाकाम साबित हुई हैं वहां केवल सेना और उनकी बन्दूक वाला विधान चलता है.
1948-49
से अब तक पाकिस्तान के विरुद्ध अब तक ब्लोचों
द्वारा पांच बार सशस्त्र क्रांतिकारी
आन्दोलन की गई है. वर्तमान में बलोच-सिन्धुदेश-केपीके की आज़ादी के लिए सोशल-मीडिया
पर अंतर्राष्ट्रीय-नैरेटिव लगातार जारी है.
मशहूर
बलूच कार्यकर्ता नाएला कादरी ने एक प्रेस
मीटिंग में कहा था कि- 'राजनैतिक, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष स्वतंत्रता संघर्ष को दबाने के लिए पाकिस्तान
नरंसहार कर रहा है।' यह भी उनके द्वारा ही कहा था-बीते
एक दशक में 2 लाख बलूचियों को मार डाला गया है। 25000 पुरुष एवं महिलाएं लापता
हुई हैं, जिनमें पाकिस्तान की सेना का हाथ रहा
है। वो लोग नरंसहार की पहचान के लिए निर्धारित संयुक्त राष्ट्र के सभी आठ संकेतों
पर अमल कर रहे हैं और इसमें अमानवीयकरण, ध्रुवीकरण, विनाश और अस्वीकार भी शामिल हैं ।