8.2.23
भारतीय मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार की पड़ताल
28.1.23
क्या 90 दिनों के बाद पाकिस्तान को पानी मिलना बंद हो जाएगा?
28 जन॰ 2023
सिंधु जल संधि: 90 दिन में समाप्त हो जाएगी..?
इस समझौते के अनुसार, तीन "पूर्वी" नदियों — ब्यास, रावी और सतलुज — का नियंत्रण भारत को, तथा तीन "पश्चिमी" नदियों — सिंधु, चिनाब और झेलम — का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया। हालाँकि अधिक विवादास्पद वे प्रावधान थे जिनके अनुसार जल का वितरण किस प्रकार किया जाएगा, यह निश्चित होना था। क्योंकि पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियों का प्रवाह पहले भारत से होकर आता है, संधि के अनुसार भारत को उनका उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन हेतु करने की अनुमति है। इस दौरान इन नदियों पर भारत द्वारा परियोजनाओं के निर्माण के लिए सटीक नियम निश्चित किए गए। यह संधि पाकिस्तान के डर का परिणाम थी कि नदियों का आधार (बेसिन) भारत में होने के कारण कहीं युद्ध आदि की स्थिति में उसे सूखे और अकाल आदि का सामना न करना पड़े।( विकिपीडिया से साभार)
उपरोक्त समस्त बिंदु पब्लिक डोमेन में उपलब्ध हैं। इधर भारत में सिंधु वॉटर ट्रीटी यानी सिंधु जल संधि पर पुनर्विचार करने का मन बना लिया है।
भारत सरकार इस समझौते पर पुनर्विचार करना चाहती है। यह सही वक्त है जब पाकिस्तान को घुटनों पर लाया जा सके । परंतु इस समझौते का एक पक्ष है अंतरराष्ट्रीय बैंक जिसे हम विश्व बैंक के नाम से जानते हैं। यद्यपि इस समझौते रिव्यु के लिए समझौते में ही बिंदु मौजूद थे। भारत सरकार इस पर क्या निर्णय लेती है और किस तरह से पाकिस्तान को अपने आतंकी स्वरूप से बाहर आने की बात कहती है यह अलग बात है परंतु सिंधुदेश बलूचिस्तान केपीके और पश्तो डोगरा आबादी के अधिकांश लोग जाते हैं कि किसी भी स्थिति में एक बूंद भी पानी पाकिस्तान को ना दिया जाए।
भारत एक मानवतावादी देश है शायद यह ना कर सकेगा। परंतु आजादी के चाहने वाले बलोच एक्टिविस्ट चाहते हैं कि यदि मानवता को आधार बनाया जाता है तो पाकिस्तान ने हजारों बच्चों को युवाओं को अगवा करके उनकी लाशें बाहर फेंक दी हैं ऐसे देश के लिए मानवीयता के आधार पर छूट देना ठीक नहीं है। इस समय बलूचिस्तान एवं सिंधुदेश के एक्टिविस्ट खुलेआम कहते हैं कि-" भारत एक ऐसा राष्ट्र बन चुका है जिसकी आवाज विश्व समझ रहा है सुन रहा है, अगर भारत सिंधु देश एवं बलूचिस्तान केपीके एवं पश्तो लोगों के मानव अधिकार को संरक्षित करते हैं तो विश्व में एक नई मिसाल कायम होगी।
पाकिस्तान की जर्जर हालत देखते हुए मदद करने की इच्छा तो सभी की होती है परंतु पाकिस्तान की चरित्रावली पर नजर डालें तो इस देश ने केवल टेररिस्ट पैदा किए हैं, दक्षिण एशिया में चीन की सहायता से अस्थिरता पैदा करने के लिए इस देश अर्थात पाकिस्तान ने सबसे आगे रहकर काम किया है।
भारत के पास दो विकल्प हैं
[ ] समझौता रद्द कर दिया जाए
[ ] समझौता सिंधु देश तथा बलूचिस्तान केबीके पीओके मुजाहिर, पश्तो सहित तमाम अल्पसंख्यकों एवं गैर मुस्लिम के अलावा गैर पंजाबियों के मानव अधिकार की गारंटी मांग कर समझौता रिन्यू किया जाए
भारत दोनों ही एक्शन ले सकता है जैसा कि बलूचिस्तान के एक्टिविस्ट कहते हैं। दोनों की परिस्थिति में भारत का विश्व स्तर पर सम्मान बढ़ना स्वाभाविक है।
इस संबंध में एक्टिविस्टों की सकारात्मक उम्मीद है।
25.1.23
असहमति मैत्री को खंडित करने का आधार नहीं है
असहमति मैत्री को खंडित नहीं करती। ऐसा किसने कह दिया कि कोई किसी के विचार से सहमत हो वह साथ नहीं रह सकता?
बहुतेरे लोग ऐसे होते हैं, जो असहमति के आधार पर परिवार तक तोड़ देते हैं।
वेदांत का सार है सत्संग विमर्श और आपसी विचार विनिमय। क्या आपने इस एंगल से सोचा है?
सनातन में हजारों वर्ष पहले शास्त्रार्थ को मान्यता मिली है। पश्चिमी विद्वान वाल्टेयर ने असहमति को भलीभांति परिभाषित किया है। असहमति का अर्थ आपसी द्वंद्व नहीं है।
सहमति के साथ सह अस्तित्व बेहद प्रभावशाली आध्यात्मिक दार्शनिक बिंदु है।
कई लोग असहमति को आधार बनाकर बेहद संवेदनशील हो जाते हैं। इससे संघर्ष भी पैदा हो जाता है। वास्तव में असहमति का संघर्ष से कोई लेना देना नहीं है। संघर्ष एक मानसिक उद्वेग है जो शारीरिक या बौद्धिक रूप से नकारात्मकता को जन्म देता है। इससे उलट असहमति एक तात्कालिक या दीर्घकालिक परिस्थिति भी हो सकती है। परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि कोई भी असहमति को आधार बनाकर युद्ध करने लगे।
स्वस्थ समाज में स्वस्थ मस्तिष्क के लोग अक्सर आपस में असहमत होने के बावजूद एकात्मता के साथ रहते हैं। ठीक उसी तरह जैसे कि शक्कर की बरनी छोटे या बड़े शक्कर के दाने होने से शक्कर की मूल प्रवृत्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता।
मित्रों कभी मेरी किसी भी मित्र के साथ असहमति होती है अथवा हो गई हो तो मुझ पर क्रोधित मत होना क्योंकि मैं असहमति के आधार पर द्वंद के जन्म से सहमत नहीं रहता। मेरे एक पूज्य वरिष्ठ अधिकारी हैं जो बेहद करुणा भाव से मुझे देखते हैं उनसे कई मुद्दों पर वैचारिक असहमति या हैं परंतु उनका इसने मुझ पर सदा बरसता है। यही महात्मा गांधी महात्मा गौतम बुद्ध महावीर स्वामी भगवान श्री राम जैसे महान व्यक्तियों द्वारा बताया गया मार्ग है। भारतीय जीवन दर्शन जीवंत दर्शन है। भारतीय जीवन दर्शन की शुचिता के लिए हर असहमति के प्रति सम्मान व्यक्त करने से हमारा जीवन सुदृढ़ एवं पवित्र हो जाता है। यही हर मुमुक्षु के लिए सनातनी संदेश है। हाल के दिनों में हम सब सहमति और असहमति के साथ दो भागों में विभक्त हैं। एक व्यक्ति लोगों के माइंड को पढ़कर एक पर्ची पर कुछ लिख देता है। और उसे ईश्वर की कृपा कहकर स्वयं को उस प्रक्रिया से ही अलग कर लेता है। दूसरी ओर एक युवा लड़की माइंड रीडिंग करके अपने हुनर को जादूगरी की श्रेणी में रखती है। दोनों में फर्क यह है कि एक अपनी माइंड रीडिंग की योग्यता रखते हुए भी अस्तित्व को ब्रह्म के आशीर्वाद को महान बताता है जबकि दूसरी ओर वही युवा बालिका अपने आप को मैजिशियन बताती है। एक टीवी चैनल इससे धजी का सांप बनाकर पेश करता है। इससे दर्शक और पाठक भ्रमित हो जाते हैं। जबकि इसका अर्थ यह है कि अगर यह जादू होता इसे बहुत से लोग आसानी से सीख लेते परंतु सवा सौ करोड़ से अधिक जनसंख्या में से मात्र कुछ ही लोग इस तरह की क्रिया प्रदर्शित कर पाते हैं। कुल मिलाकर आस्तिक लोग इसे ईश्वर की कृपा मानते हैं जबकि नास्तिक ऐसी प्रक्रियाओं को पाखंड कहते हैं अथवा जादूगरी मान लेते हैं। अगर मैं हर असहमत व्यक्ति से दूरी बनाने लगे अथवा दुश्मनी पालूँ तो मुझसे बड़ा मूर्ख कौन होगा भला?
वर्तमान युग में यही एक बहुत बड़ी कमी है।
यही योग अहंकार और स्वयं को सिद्ध करते रहने का युग है। इस युग में हम सोचते हैं कि जो कर रहे हैं वह हम ही कर रहे हैं। ऐसी अवधारणा लोकायत विचारकों अर्थात नास्तिकों की होती है। नास्तिक जिनको ब्रह्मा के अस्तित्व पर तनिक भी भरोसा नहीं होता मान लिया जाए कि ब्रह्म नहीं है तब कि अगर हम इतना सा भरोसा करने तो हमारे मन में बसा हुआ है अहंकार तुरंत तिरोहित हो जाएगा। परंतु हम तो सोचते हैं कि यह कार्य मैंने किया इसका श्रेय मुझे मिलना चाहिए। तथाकथित प्रगतिशील साहित्य में ऐसी ही कहानियां कविताएं देखने पढ़ने को मिलती हैं। वैचारिक रूप से स्वस्थ मस्तिष्क यही सब करते नजर आते हैं। परंतु आस्तिक लोग वास्तव में ऐसे विचारकों से भिन्न होते हैं को से भिन्न होते हैं। एक बार की सत्य घटना में आपको बताता हूं किसी व्यक्ति पर मुझे अनायास क्रोध आ गया। कुछ अप्रिय वार्ता और कार्य किया था उसने। परंतु दूसरे ही पल मुझे यह महसूस हुआ कि-" जो मैं कर रहा हूं वह मैं नहीं कर रहा हूं यह ईश्वर द्वारा किया गया कार्य है।" तब तुरंत ही मैंने महसूस किया-" तब फिर उस व्यक्ति ने जो किया है वह उसने नहीं बल्कि ईश्वर की इच्छा के अनुकूल हुआ है।" ऐसा सोचते ही मस्तिष्क पूरी तरह से सामान्य हो गया। फलस्वरूप न तो मैं हिंसक बन पाया और न ही हिंसा करने के लिए मुझे मेरे शारीरिक संवेग ने प्रेरित किया। एक अनुचित हिंसा करने से मैं बच गया।
सच मायने में यह घटना असामान्य हो सकती है। क्योंकि अपराधी को अपराध का दंड मिलना चाहिए था। परंतु मेरे विचार से मैंने यह कार्य ईश्वर पर छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद वही व्यक्ति बेहद दीन हीन स्थिति में मेरे सामने आया। मैं समझ चुका था कि यह व्यक्ति ईश्वरीय दंड का भागी हो चुका है। जो व्यक्ति अहंकारी है वह निश्चित तौर पर धन पद प्रतिष्ठा और सत्ता का अधिकारी होता है। अगर वह इन सबके होते हुए भी अहंकार से मुक्त रहता है तो वह सबसे पवित्र मुमुक्षु बनता है । इस प्रकार अहंकार आत्म प्रदर्शन और स्वयं को श्रेष्ठ करते रहने के लिए रास्ते बनाता है। इन रास्तों में आए किसी भी अवरोध के विरुद्ध वह व्यक्ति सक्रिय हो जाता है। स्थिति तो यहां तक आ जाती है कि अगर कोई व्यक्ति उस व्यक्ति की बात से सहमत है तो उसे रास्ते से हटा तक दिया जाता है। ठीक उसी तरह जैसे दारा शिकोह को औरंगजेब ने हाथी के पैरों से कुचलवा दिया था। ठीक वैसे ही जैसे हिटलर और स्टालिन ने भी ऐसा ही कुछ किया। मित्रों रावण के चरित्र को ध्यान से देखिए असहमति के कारण उसने अपने छोटे भाई को लात मारकर लंका से बाहर कर दिया। मित्रों आप सोचिए हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से भिन्न होता है। उसकी पसंद भिन्न होती है उसकी आदतें भिन्न होती है उसका चिंतन भी भिन्न होता है। परंतु इस आधार पर अगर संघर्ष होने लगे तो पृथ्वी पर मानवता समाप्त हो जाएगी।
हो सकता है आप मेरे विचारों से सहमत हूं आपकी असहमति का सम्मान करते हुए मैं आपको प्रणाम करता हूं
*ॐ श्री राम कृष्ण हरि:*
22.1.23
पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने सिद्ध कर दिया कि सनातन विज्ञान भी है
धीरेंद्र शास्त्री क्या करते हैं..?
युवा कथावाचक शास्त्री जी एक पर्चे पर सामने आए हुए व्यक्ति जीवन से जुड़े कुछ मुद्दों को सामने रखते हैं। और उसे अभिव्यक्त भी करते हैं उतना ही अभिव्यक्त करते हैं जिससे व्यक्ति की निजता समाप्त ना हो। लोग उनके पास अपनी समस्या लेकर जाते हैं। धीरेंद्र शास्त्री के सामने खड़ा हुआ व्यक्ति उनसे सहमत हो जाता है। जितने भी प्रकरण अब तक देख पाया हूं किसी भी अर्जी लगाने वाले ने उनकी बातों पर अविश्वास प्रगट नहीं किया।
धीरेंद्र जी जो करते हैं उसका मतलब क्या है?
वीरेंद्र एक सामान्य व्यक्ति हैं जो अतिंद्रीय परीक्षण करने में सक्षम है। वह किसी के मस्तिष्क में क्या चल रहा है इस तथ्य का भली-भांति मूल्यांकन कर लेते हैं अगर इसे हम धर्म से न भी जोड़े तो यह एक अतींद्रिय विज्ञान है। कुछ दिनों पहले कुछ वीडियो देखें जो एक युवा लड़की के थे। वह सुहानी शाह बालिका किसी भी व्यक्ति के फोन नंबर इत्यादि का विवरण सामने रख देती थी। यहां तक कि वह उसके मस्तिष्क में चल रहे विचारों को भी सामने प्रस्तुत कर देती थी। उसे महाराष्ट्र के कई पुलिस अधिकारियों के सामने प्रदर्शन हेतु बुलाया जाता रहा है। उनके कई शो होते हैं. इन दौनों सुहानी और धीरेन्द्र जी , सूक्ष्म रूप से परकाया में अवस्थित मष्तिष्क में प्रवेश करतें हैं और उसमे चल रहे विचार-प्रवाह को पढ़ लेते हैं.
साइकोलॉजिकल परीक्षण करने में सक्षम थी। इसे ईश्वर की कृपा या एक साइक्लोजिकल अरेंजमेंट यह आपके ऊपर है।
जहां तक धीरेंद्र जी का प्रश्न है उनको उनके ईष्ट हनुमान जी के भक्त होने के कारण नकारा जाना किस हद तक उचित है।
केवल विज्ञान ही सर्वोपरि है तब हमारे मस्तिष्क में अच्छे बुरे विचारों का प्रवाह कहां से होता है?
इस बिंदु पर विचार करने पर महसूस होता है कि जो हमें अंतस की प्रेरणा जिसे अंग्रेजी में इनट्यूशन कहते हैं कैसे मिलती है?
लेकिन बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री के किसी भी तथ्य में गलती नहीं होती। और वह स्वीकारते हैं कि वह सक्षम नहीं है ईश्वर उन्हें प्रेरित करते हैं। और जो वह कहते हैं वही सत्य हो जाता है। लोगों से वार्ता के दौरान पता चला कि बागेश्वर धाम के पंडित युवा विद्वान शास्त्री भले ही अंग्रेजी न जाने परंतु इस अतिंद्रीय सनातन विज्ञान से भली-भांति परिचित है। एक रिटायर्ड आईएएस अफसर उन पर अवैध भूमि कब्जे की बात कर रहे हैं। उनका आरोप हो सकता है सही है परंतु इसका निराकरण मीडिया ट्रायल पर नहीं किया जा सकता है इसका निराकरण प्रशासनिक व्यवस्था द्वारा किया जा सकता है। एक रिटायर्ड आईएएस का यह कहना कि उनके द्वारा भूमि अतिक्रमण की गई है तो मेरा यह प्रश्न है कि किन कारणों से प्रशासन उस पर ध्यान नहीं दे रहा। वास्तव में यह एक तरह से उस प्रतिभाशाली देवदूत के विरुद्ध षड्यंत्र कारी वक्तव्य है।
इन दौनों सुहानी और धीरेन्द्र जी में फर्क क्या है...?
1.
सुहानी
: स्वयम को मैजीशियन कहती है
2. धीरेन्द्र : स्वयम को शून्य मानते हैं. ईश्वर को श्रेय
देते हैं
3. सुहानी : पैसा लेकर शो करती है.
4. धीरेन्द्र : धीरेन्द्र ऐसा नहीं करते .
5. सुहानी : सुहानी नंबरों/अक्षरों/नामों पर केन्द्रित
हैं
6. धीरेन्द्र : धीरेन्द्र, नंबरों/अक्षरों/नामों के साथ साथ विवरणात्मक तथ्य रखतें हैं.
7. सुहानी एवं धीरेन्द्र में टेलीपैथिक-संवेग के संचार
की क्षमता है.
8.
दौनों
ही साय्क्लोज़िष्ट नहीं हैं.
इस मुद्दे पर एक तथ्य है और स्पष्ट है कि बागेश्वर के इन युवा योगी माइंड रीडिंग के ही नहीं बल्कि परिस्थितियों का भी अवलोकन कर लेते हैं। वे लंबे-लंबे स्टेटमेंट लिख कर दर्शनार्थियों को देते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि सुहानी अथवा इसी तरह के काम करने वाले माइंड रीडर मैजिशियन के सवालों का संक्षेप में उत्तर देते हैं।
सामान्य माइंड रीडर वैकल्पिक रेमेडीज पर विचार नहीं कर पाते जबकि वे ऐसा करते हैं। क्योंकि वह मेडिसिन अथवा अन्य किसी तरह के विकल्प नहीं बता सकते अतः बागेश्वर महाराज जी केवल ईश्वर आराधना मंत्र जाप इत्यादि के संबंध में जानकारी देते हैं। जो ठीक है इस आधार पर अंधविश्वास फैलाने का मामला कैसे बन सकता है?
15.1.23
अपने आप से सवाल करिए- मैं कौन हूं?
प्रश्न के उत्तर में बहुत कुछ मिल जाएगा। अक्सर हम अपने आप को जो दिखते हैं वह समझ लेते हैं। यह एक हद तक सहज हो सकता है परंतु वास्तविकता यह नहीं है।
बुल्ले शाह जब इस सवाल को नहीं हल कर पाते तो उनका ह्रदय इस सवाल को एक गीत में पूरी करुणा के साथ सामवेदी करुणामय गीत के रूप में अगुंजित हो जाता है- बुल्ले की जाणा मैं कौन..?
लौकिक कृष्ण मथुरा से द्वारका तक विभिन्न लीलाओं के साथ यात्रा करते हैं यही जानने के लिए न मैं कौन हूं?
राम को भी नहीं मालूम था कि वे नर नहीं नारायण है ऐसा कुछ लोग कहते हैं। सत्य जो भी हो अद्वैत सिद्ध कर देता है कि हम नारायण अर्थात ब्रह्मांश ही तो हैं।
Then why do wars happen?
यह सवाल भी ठीक है। हम संघर्ष क्यों करते हैं? वास्तव में हम बार-बार भूल जाते हैं कि हम ब्रह्म है। अद्वैत यही तो कहता है न?
किसी भी तत्व चिंतक दृष्टा के मस्तिष्क में सबसे पहला एकमात्र सवाल यही होता है कि मैं कौन हूं..?
अपने मामा जी एवं साहित्यकार श्री राजेंद्र शर्मा जी से चर्चा करने पर उन्होंने बताया-"एक किशोर वय का बालक, श्री भगवदपाद के तपस्या स्थल पर खड़ा गुरु की प्रतीक्षा कर रहा था।
तपस्या की विश्राम में गुरु ने पूछा -"कौन हो बालक?
शंकर ने कहा यही तो मैं जानना चाहता हूं?
यह लघु प्रश्नोत्तरी सामान्य नहीं थी। इसमें विराट का बोध होता है। पर कभी-कभी चकित हो जाते हैं हम सब जब विराट का सारांश निकालना कठिन हो जाता है। जबकि युवा शंकर ने बहुत जल्द ही तत्व ज्ञान प्राप्त कर लिया। विभिन्न विचारों मतों संप्रदायों में विभक्त भारतीय जीवन क्रम को एकीकृत किया और हमें एक पंचायतन आराधना के लिए सौंप दी। पंचायतन जानते हैं न जी हां जो आपके घर में पूजा स्थल पर लगा होता है। आर्थिक क्षमता अनुसार कोई लोहे का सिहासन बनवा ता है तो कोई सोने या चांदी का बनवा लेता है। उसमें अपने सभी प्रभु को बैठा देता है। हर सनातन प्रवाह में बहने वाला व्यक्ति उसका परिवार अपने पंचायतन में शिव विष्णु शक्ति लड्डू गोपाल आदि आदि अपने मनचाहे स्वरूप में स्थापित कर उनकी आराधना करते हैं। लोकायत इसे आडंबर कहता है। आर्य समाजी इसे अस्वीकार्य करता है। आयातित संप्रदाय तो बिल्कुल पसंद नहीं करता। ऐसे में सामुदायिक एकात्मता की परिकल्पना किस तरह की जाए यह विचार करने योग्य है।
लोकायत परंपरा हमें ब्रह्म से भी मुक्त कर देती है। ब्रह्म के अस्तित्व को अस्वीकार करना लोकायत का मूल आधार है । सब एक ब्रह्म का उद्घोष करते हैं परंतु हर एक का अपना-अपना अलग-अलग ब्रह्म है। कोई ब्रह्म से मिलकर आ जाता है। अद्वैत की माने तो ब्रह्म से मिलना सहज नहीं है, और कठिन भी नहीं। पर जो ब्रह्म से मिलकर आते हैं, अगर लोकायत भाषा में मैं प्रश्न करूं तो भी घबरा सकते हैं! ऐसी कोई कठिन प्रश्न नहीं करूंगा। क्योंकि सद्गुरु स्वामी श्रद्धानंद नाथ कहते हैं कि -"अलख निरंजन" यह कोई साधु या भिक्षुक द्वारा उच्चारित उद्घोष नहीं है। यह विस्तृत अध्यात्म का उद्घाटन है। आंख में आज लेने के बाद काजल किसे दिखा है? ब्रह्म वही है आंख में आंजना आना चाहिए न..?
मैं अगर कहता हूं कि -"जब कभी बुद्ध से भेंट होती है तो बुद्ध मुझे उपनिषदों के अनु गायक से प्रतीत होते हैं।" तो गलत क्या कहता हूं। बार-बार कबीर कठोरता से ब्रह्म तत्व का परिचय देते हैं, तो भी समझ में नहीं आता। हम उलझते जाते हैं प्रक्रियाओं को धर्म मान लेते हैं और स्वर्ग नरक जैसे काल्पनिक शब्दों के खोजते रहते हैं या उसकी परिकल्पना करते रहते हैं।
अरे भाई, रुको जरा रुको पहले समझ तो लोग अनहलक का अर्थ क्या है, अलख निरंजन के बारे में कभी चिंतन किया है? कभी ध्यान से सुना है की महात्मा बुद्ध क्या कह रहे हैं?
संभवत है अभी तक इस दिशा में सोचा ही नहीं। कभी किसी के विचारों को तू कभी किसी प्रक्रिया को या किसी डॉक्ट्रिन को धर्म कह दिया या किसी पंथ के नारे को धर्म कह दिया? यह क्या हो रहा है? पहली बात तो बुल्ले शाह को नहीं सुना कि बुल्ले शाह क्या पूछ रहे हैं?
ध्यान से सुनो बुद्ध ने कहा था -अप्प दीपो भव:, अपनी जान गवा देने वाला सूफी अन हलक का उद्घोष कर रहा था। ब्रह्म को लोकायत परंपरा तर्क से परीक्षित करती रहे, चार्वाक और जावली कुछ भी करें हमें उनसे कोई शिकायत नहीं क्योंकि वह जिसे धर्म समझ बैठे वह प्रक्रिया थी वह अनुशासनिक व्यवस्था रही। आत्मिक विकास के लिए तो सनातन अध्यात्म की उपयोगिता को नकारने की क्षमता किसी में नहीं है। एक थे प्रोफेसर रजनीश कहते हैं वह भगवान बन गए फिर वह समुद्र बन गए बस भगवान समुद्र इतनी ही यात्रा है क्या? यात्रा तो बहुत बड़ी है, इस यात्रा पर निकलने वाला जानता है और गाता है.."निर्गुण रंगी चादरिया जो उड़े संत सुजान"
ब्रह्म के अस्तित्व को नकारो स्वीकारो, इससे ब्रह्म को क्या फर्क पड़ने वाला है। तुम का कैसा भी विरूपण करो कोई फर्क नहीं पड़ता। एक बार आत्म योग मुद्रा में बैठो हजारों हजार संदेश मस्तिष्क पर मिलेंगे इसमें किसी मीडियेटर की भी जरूरत नहीं है। बस कुछ विचार जो इन संदेशों को रोकते हैं उनसे जरा सा दूर हो जाओ। उदाहरण के तौर पर मैं एक मनुष्य हूं तुम भी एक मनुष्य हो मैं सिर्फ तुम्हारे बारे में सोचते हुए तुम्हारी गलतियां कमियां त्रुटियां अपराध आदि का विश्लेषण करता रहूं या तुम मेरी तरह ऐसा ही करो इससे तुम्हारे मस्तिष्क में आने वाली वायरलेस संदेश अवरुद्ध हो जाते हैं।
फिर तुम किसी के पीछे पीछे भागते हो और उस व्यक्ति से मदद लेकर ब्रह्म से मिलना चाहते हो। ऐसा न हुआ है न होगा और सुना ही हो रहा है।
श्री राम कृष्ण हरि
8.1.23
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