8.1.23
समाज सुधारक बनाम इंजीनियर मिस्त्री और चेला
25.12.22
11.12.22
टाइम मशीन से समय यात्रा की परिकल्पना केवल एक फेंटेसी है
आईए देखते हैं उनके आर्टिकल में क्या लिखा गया है
"आज जिस बिंदु पर चर्चा करना चाहता हूँ वो सनातन शब्द –नेति नेति या नयाति नयाति ... अर्थात ये भी नहीं अरे भाई ये नहीं और ये भी नहीं !
कई दिनों से एक बात कहनी थी परन्तु सोचता था कि – संभव है कि आगे आने वाले और बीते समय की यात्रा की जा सकती हो.
फिर चिंतन करके पाया वास्तव में यह एक असत्य थ्योरी ही है. जिसे मानवीय मनोरंजन के लिए गढ़ा गया है .
ये अलहदा तथ्य है कि “आर्टीशियल इंटेलिजेंस में असीमित संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता कि AI की मदद से हम प्राचीन समय यानी बीते पल या समय का रिक्रिएशन कर सकते हैं।
इतना ही नहीं हम आने वाले समय को प्री-क्रिएट भी कर सकते हैं...
पर यह सत्य है कि ऐसे रिक्रिएशन और प्री क्रिएशन आभासी ही होंगे इनका भौतिक अस्तित्व नहीं होगा ।
इन दृश्यों में वास्तविकता कतई नहीं होगी।
पराशक्तियाँ भी ऐसा कुछ करा सकतीं हैं. फिर भी पराशक्तियां कुछ कर या करा सकतीं हैं तो ... केवल इतना कि आपको बीता समय हूबहू दिखा दे। इससे अधिक भविष्य की झलक किसी स्वप्न के रूप में दिखा देंगी ।
भविष्य से भी आपको पर शक्तियां रूबरू कर सकती हैं। ध्यान रहे फिर भी यह सब केवल आभासी होगा .
*किशोरावस्था में अनेकों बार मैंने महसूस किया था कि- "मैं सायकल और बाइक चला रहा हूँ. ऐसा अनुभव जागते हुए तो कदापि नहीं केवल स्वप्न में यह संभव था ।*
*जबकि मुझे जानने वाले सभी जानते हैं कि ऐसा संभव कदापि नहीं है. क्योंकि मेरे दाएं अंग में पोलियो से ग्रसित है, मसल्स हैं ही नहीं ।
शरीर यंत्र का संचलन असामान्य एवं अतिरिक्त गैजेट्स अर्थात सहायक-उपकरण पर निर्भर है ।
सुधि जन जानें कि फिर भी यदि मैं दावा करूँ कि मैंने सायकल चलाई है तो केवल केवल आभासी विवरण मात्रा होगा।.
इसी प्रकार मेरा एक और मत यह भी है कि जो घटना भविष्य में आकार लेगी उसका अनुमान मात्र लगाया जा सकता है तथा उसे वर्चुअल रूप से महसूस किया जा सकता है या उसका रीक्रिएशन किया जा सकता है न कि उस तक भौतिक रूप से ।
एक मित्र ने दावा किया कि - "समय यात्रा संभव है ..!"
बिना विरोध किये मैंने पूछा कि- अगर मेरा जन्म 1963 में हुआ है 2050 में मेरी उम्र क्या होगी ...?
मित्र ने सटीक गणना करते हुए बताया कि जिस माह एवं तारीख में तुम्हारा जन्म हुआ है 2050 के उस माह और तारीख पर तुम 87 वर्ष के हो जाओगे.
मेरा अगला सवाल था कि तुम मुझसे दूर कहीं रहकर 2050 में टाइम मशीन के ज़रिये समय यात्रा { time-tour } कर मिल सकते हो ?
मित्र जो टाइम मशीन के ज़रिये समय की यात्रा को मानता था ने उत्साहित होकर कहा – अवश्य . मेरा उत्तर था कि टाइम-मशीन के ज़रिये तुम अकेले 2050 में गए हो न कि मैं..! अर्थात टाइम मशीन या कोई एडवांस तकनीकी से केवल आभासी दृश्य को आप देख सकते हैं न कि उसे तोवास्तविकता के साथ महसूस कर सकते हैं।
किसी भी व्यक्ति ने कॉविड-19 के कालखंड की कल्पना नहीं की होगी। हां इस घटना के आधार पर भविष्य की परिकल्पना अवश्य की जा सकती है। इल्यूजन हो सकते हैं परंतु यथार्थ नहीं।
इस बात से सहमत अवश्य हूँ कि मेरी आवाज़ जो तरंगें बन कर खुले आकाश में अन्य तरंगों से मिल जातीं हैं । उनको विशेष यांत्रिक सहायता से री – क्रियेट किया जा सकता है.
घटनाएं घटित हो जाने के बाद भौतिक रूप से न तो शेष रहतीं हैं जिन तक किसी मशीन के सहारे जाया ही जा सकता है न ही वे घटित होने के पूर्व किसी को नजर नहीं आ सकतीं .
मित्र ने कहा कि- "फिर तुम नेति-नेति पर भरोसा क्यों करते हो ..?"
ब्रह्मांड बहुत विशाल है, ब्रह्मांड में कई गैलक्सी है, गैलेक्सी में हजारों लाखों तारामंडल है, आज तारीख का एक सिस्टम है एक परिवार है, जैसे हमारे सूर्य का सोलर सिस्टम .
अब आप ब्रह्मांड में कितनी गैलेक्सियां खोजेंगे , कितने सितारे देखेंगे, कितने सौरमंडल से परिचित होंगे। यहाँ नेति नेति अर्थात नयाति नयाति का अर्थ यही है .
टाइम-ट्रेवल की अवधारणा को प्रचारित करने का कारण केवल हबर्ट जार्ज वेल्स के उपन्यास द टाइम मशीन और उस पर आधारित बनी फिल्मों के लिए दर्शक जुटाना मात्र था.
टाइम-ट्रेवल को या टाइम टूर को लेकर तार्किक आधार पर पूरी ज़िम्मेदारी के साथ इस अवधारणा को खारिज करता हूँ.
यात्रा का अर्थ समझने के पूर्व सभी समझते ही हैं कि यात्रा एक भौतिक क्रिया है . जिसकी दिशा, गति, उद्देश्य, माध्यम, और यात्री सब कुछ तय शुदा है. ये तय करने वाला शरीरी होता है जिसे यात्री कहा जाता कि उसे किस दिशा, गति, उद्देश्य, माध्यम, से यात्रा करनी है. आइये आगे टाइम-ट्रेवल की थ्यौरी की विवशाताओं को दिशा, गति, उद्देश्य, माध्यम, आदि के साथ-साथ कर लेते हैं
दिशा :- हर यात्रा की दिशा तय है अर्थात किसी भी डायरेक्शन में कोई कहीं भी जा सकता है.
तय जाने वाले को करना है कि वह किस डायरेक्शन में जावेगा।.
समय की कोई दिशा तय नहीं होती . दूसरे शब्दों में कहें तो समय हर दिशा में विस्तारित है।
आज 3 जुलाई 2018 है कल 2 जुलाई 2018 थी. मुझे बीते कल के 12:45 बजे में जाना है तो कौन सी दिशा तय करूंगा ? समय-यात्रा का सिद्धांत यहाँ विवश है .
[ ] गति :- मेरी गति क्या होनी चाहिए ? समय यात्रा का सिद्धांत यहाँ भी मौन ही होगा .
[ ] उद्देश्य :- सामान्य यात्राओं एवं समय यात्रा दौनों के उद्देश्य निर्धारित हो सकते हैं परंतु क्या समय यात्रा में पिछले दिन की घटना की छवि वास्तविक अच्छा भौतिक रूप में रनज़र आ सकती है..? यकीनन आपका उत्तर न में ही होगा .....
सामान्य यात्रा के लिए माध्यम होता है अर्थात यात्रा किसी साधन से की जाती है जैसे- रेल, बस, कार, वायुयान, आदि आदि . जिनके उपयोग से एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाया जा सकता है। परंतु समय की यात्रा के मामले में ऐसा कैसे संभव है।
आभासी यात्रा का साधन आभासी ही होगा जैसे स्वप्न, यह काल्पनिक दृश्य। अर्थात रात्रि अथवा दिवस में किसी बीते समय से पीछे या आगे जाने के लिए किसी मशीन की कल्पना ही आधारहीन सोच है.
अगर मशीन बन भी गई तो वह आपको बेहोश करने की मशीन होगी जिसकी वज़ह से आप अन्य मुद्दों के लिए बेहोश हो जाएंगे और केवल भूत और भविष्य की काल्पनिक घटनाओं में खोते चले जाएंगें जैसे आप सपने देख रहे हो
भौतिक रूप से आप मशीन में समाधि अवस्था में होते हैं।
मष्तिष्क के साथ साथ केवल आपकी देखने एवम महसूस करने की प्रणाली ठीक ई काम करेगी
यह प्रणाली स्वप्न देखने की प्रणाली है। अब बताओ भला स्वप्न देखने के लिए भी कोई मशीन आवश्यक होती है। सपने देखने के लिए केवल किसी मशीन की ज़रूरत होती है तो वह है आपका सूक्ष्म और स्थूल शरीर ।
4.12.22
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14.11.22
भारत में आरक्षण : सामाजिक इंजीनियरिंग का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण
हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक आधार पर सवर्णों को आरक्षण देने के संबंध में जो परदेस पारित किए हैं उससे स्पष्ट है कि हमारी न्याय व्यवस्था भी वंचित वर्ग के लिए पूरी तरह से सहानुभूति पूर्वक दृष्टिकोण अपना रही है। सामाजिक इंजीनियरिंग का जीता जागता उदाहरण आरक्षण माना जा सकता है। यद्यपि बहुत से विचारक जातिगत आरक्षण के विरुद्ध हैं। क्योंकि जब योग्यता का प्रश्न उठता है तो आरक्षित संवर्ग एक फॉर्मेट के तहत कम योग्यता धारित करने के बावजूद किसी अधिक योग्य व्यक्ति के समकक्ष होता है। यह अकाट्य सत्य है। परंतु सत्य यह भी है कि आरक्षण का कारण अपलिफ्टमेंट ऑफ द वीकर सेक्शन Upliftment of the Weaker Section ही है। सुप्रीम कोर्ट का यह कहना कि आरक्षण वैयक्तिक हितों को साधने का कारण नहीं होना चाहिए। यह सामाजिक इंजीनियरिंग के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश भी है। जहां तक शासकीय सेवाओं में आरक्षण का प्रश्न है मेरे हिसाब से आरक्षण का अवश्य केवल एक बार दिया जाना ठीक होता है। जबकि पदोन्नति में आरक्षण को लेकर सबकी अपनी अपनी राय हो सकती है। लेकिन सामाजिक इंजीनियर के परिपेक्ष में यह एक तरह से अनुचित ही है। वैसे व्यक्तिगत राय पर सभी सहमत होंगे ऐसा कदापि मेरी अपेक्षा नहीं है।
संक्षेप में हम सवर्ण आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की सहमति के संबंध में देखें तो... सुप्रीम कोर्ट ने केवल जाति के आधार पर आरक्षण के विरुद्ध न होते हुए आर्थिक आधार पर आरक्षण की समीक्षा की गई है।
केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को दिए गए आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण को वैध बताते हुए, इससे संविधान के उल्लंघन के सवाल को नकार दिया। हालांकि, चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच संदस्यीय बेंच ने 3-2 से ये फैसला सुनाया है। इससे यह साफ हो गया कि केंद्र सरकार ने 2019 में 103वें संविधान संशोधन विधेयक के जरिए जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को शिक्षा और नौकरी में 10 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था की थी, संविधान का उल्लंघन नहीं है।
याचिकाकर्ता द्वारा सवर्ण आरक्षण को असंवैधानिक करार देने की याचना की थी। परंतु सामाजिक इंजीनियरिंग के परिपेक्ष्य में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी बेहद प्रासंगिक और अनुकूल है। आप गंभीरता से विचार कीजिए तो आप पाएंगे कि सामाजिक समरसता और एकात्मता के लिए सामाजिक न्याय सर्वोच्च प्राथमिकता वाला कंपोनेंट है। वर्तमान संदर्भ में देखा जाए तो विगत 10 वर्षों में सामाजिक जातिगत व्यवस्था समाप्त होती नजर आ रही है। पहले तो वैवाहिक संदर्भों में केवल अपनी बिरादरी में ही विवाह को मान्यता प्राप्त होती थी परंतु अब अधिसंख्यक वैवाहिक अनुष्ठान अंतर्जातीय विस्तार ले चुके हैं। और आने वाले समय में जातिगत व्यवस्था लगभग समाप्त हो जाएगी।
आरक्षण समतामूलक समाज की अवधारणा पर आधारित व्यवस्था है। भारतीय व्यवस्था में socio-economic पहलुओं पर विचार करना आगामी समय के लिए सुव्यवस्थित करने की योजना बनाना हम सबका सामाजिक दायित्व है। दीर्घकाल में जातिगत सामाजिक व्यवस्था पूर्णत: समाप्त हो सकती है। वर्तमान में एक नए तरह के भारत ने आकार लिया है। सामाजिक संरचना के प्रतिमानों में बदलाव आ रहा है, परंपराएं भी बदली जा रही हैं या कुछ परंपराएं स्वयं ही बदल गई हैं। बदलते परिवेश में सामाजिक परिस्थितियों में बदलाव ठीक वैसा ही है जैसे- ईसा पूर्व गौतम बुद्ध का अभ्युदय होना। गौतम बुद्ध ने समतामूलक समाज की स्थापना की बुनियाद रखी थी। उनके संदेश आर्थिक समानता के लिए जितने प्रभावी रहे हैं उससे कहीं अधिक सामाजिक समानता और एकात्मता के पक्षधर थे। महात्मा बुद्ध के अधिकांश उपदेशों में एकात्मता समरसता एवं शांति के उन समस्त बिंदुओं को समावेशित किया गया है जिन बिंदुओं पर भारतीय दर्शन में उपनिषदों में मार्ग स्थापित किया था। भारतीय सनातनी व्यवस्था समतामूलक समाज की व्यवस्था के प्रति सतर्क और सजग रही है। भारत में जैनमत, बुद्धिज़्म,शैव,शाक्त, वैष्णव, चार्वाक, सूफी, यहां तक कि विदेशों से आए इस्लाम और क्रिश्चियनिटी को भी मान्यता मिली। जातिवादी व्यवस्था को समाप्त करने की दिशा में अगर जातिगत आरक्षण एक उत्प्रेरक है तत्व है तो दूसरी ओर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश सामाजिक इंजीनियरिंग के लिए महत्वपूर्ण घटक सिद्ध होगा। कुल मिलाकर कल्याणकारी राज्य की कल्पना को आकार देने के लिए माननीय न्यायालय का नजरिया प्रत्येक नागरिक के बीच सामाजिक आर्थिक राजनीतिक परिपेक्ष्य में बेहद प्रभावशाली फैसला है। यह भारत संदर्भ में टर्निंग प्वाइंट सिद्ध होगा।
6.11.22
कुंठा विध्वंसक ही होती है..?
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