31.8.21

बलोच युवाओं के लापता का सवाल पर यू एन ओ की रहस्यमयी चुप्पी.....!

       सिंध देश और बलूचिस्तान के नागरिक इन दिनों पाकिस्तान के आर्मी प्रशासन से बेहद परेशान और दुखी हैं। आर्मी प्रशासन जब देखो तब इन समुदायों को बिना किसी अपराध के घर से उठाकर

  ले जाता है और बरसो उनकी कोई खोज खबर नहीं मिलती  भी है तो किसी सड़क के किनारे क्षत-विक्षत मृत देह के रूप में या कमजोर शरीर वाले ना पहचान में आने वाले व्यक्ति के रूप में। जब यह पूछा गया कि क्या आप ऐसे ही कोई फिगर शेयर कर सकते हैं जिससे हम अनुमान लगा सके कि बलोच युवाओं को टॉर्चर किया जा रहा है ?
बलूच एक्टिविस्ट ने बताया कि-" जब से तालिबान संकट प्रारंभ हुआ है 3000 से अधिक डेड बॉडी बरामद हुई हैं तथा लापता युवाओं की संख्या 50000 से अधिक  है।

Text Box: दक्षिण-पश्चिम पाकिस्तान, ईरान के दक्षिण-पूर्वी प्रांत सिस्तान तथा बलूचिस्तान और अफगानिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत तक फैला हुआ है, लेकिन इसका अधिकांश इलाका पाकिस्तान के कब्जे में है, जो पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का लगभग 44 प्रतिशत हिस्सा है। इसी इलाके में अधिकांश बलूच आबादी रहती है। यह सबसे गरीब और उपेक्षित इलाका भी है। सीधी भाषा में कहें तो बलूचिस्तान के दक्षिण-पूर्वी हिस्से पर ईरान, दक्षिण-पश्चिमी हिस्से पर अफगानिस्तान और पश्चिमी भाग पर पाकिस्तान ने कब्जा कर रखा है। सबसे बड़ा हिस्सा तकरीबन पाकिस्तान के कब्जे में है। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस संपूर्ण क्षेत्र में यूरेनियम, गैस और तेल के भंडार पाए गए हैं।सामरिक दृष्टि से बलूचिस्तान का ग्वादर बंदरगाह ईरान, अफगान और भारत को टारगेट करने के लिए अच्छा बेस बन सकता है।
(साभार विश्ववार्ता के आलेख ‘अखंड भारत’ के गांधार ‘बलूचिस्तान’ में मानवाधिकारों का योजनाबद्ध उल्लंघन लेखक डा. राधेश्याम द्विवेदी
)


   बलोच एक्टिविस्ट यह मानते हैं कि पाकिस्तान की अदालतों में उनके परिजनों को जिन्हें घर से उठाया जाता है के संबंध में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं फाइल की जातीं हैं परंतु उन पर बहुत धीमी गति से निर्णय आते हैं और निर्णय कुछ इस तरह आते हैं कि पाकिस्तान आर्मी उन्हें नियमों के आधार पर प्रस्तुत करें।
और जो अपील है संयुक्त राष्ट्र संघ के मानव अधिकार कार्यालय को प्रस्तुत की गई है उस पर संयुक्त राष्ट्र संघ का मानव अधिकार कार्यालय बहुत धीमी गति से विमर्श करता है तथा यह भी उल्लेखनीय है कि प्रक्रिया इतनी जटिल है अगर  प्रॉपर प्रक्रिया का पालन किए बिना कोई यह सूचना देता है कि अमुक व्यक्ति को पाकिस्तानी आर्मी ने अगवा कर लिया है तथा पाकिस्तानी पुलिस ने एफ आई आर लिखने तक से इनकार कर दिया है तो वह पर्याप्त नहीं है इसके लिए यूनाइटेड नेशन द्वारा प्रक्रिया गत कारणों से विचार नहीं किया जाता नाही उस पर किसी तरह का एक्नॉलेजमेंट भेजा ही जाता है।
बलोच और सिंध देश के एक्टिविस्ट यह मानते हैं कि विश्व का कोई भी देश उनके समस्या को गंभीरता से नहीं ले रहा है। जब उनसे यह प्रश्न किया गया कि क्या मुस्लिम उम्मा जैसे फैक्टर के चलते हुए भी आपको कभी किसी इस्लामिक राष्ट्र ने सपोर्ट नहीं किया इस पर बलोच एक्टिविस्ट का कहना था कि- हमने अपनी स्वतंत्रता के लिए कभी भी ना तो संप्रदाय का सहारा लिया है और ना ही भविष्य में कभी लेंगे इस कारण से ही हमें किसी भी मुस्लिम राष्ट्र ने सपोर्ट नहीं किया।



बलूचिस्तान के और सिंध के एक्टिविस्ट भारतीय व्यवस्था और जनता के समर्थन की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देखते हैं। यूनाइटेड नेशन के मानवाधिकार कार्यालय बलूच एवं सिंध मानव अधिकार पर प्राप्त आवेदनों पर विचार ना करना चिंता का विषय है। यूएन की इस रहस्यमई चुप्पी का अर्थ क्या हो सकता है यह तो यूनाइटेड नेशंस ही जाने परंतु यह तय होना बहुत कठिन नहीं है कि यूनाइटेड नेशन उनके खिलाफ किस्तों में हो रहे घातक आक्रमण को जिनोसाइट का दर्जा नहीं देते ! किसी भी एक एक्स्ट्रा जुडिशल किलिंग को मॉसकिलिंग का दर्जा देना एक सही कदम होता है। परंतु पाकिस्तान को इतना अभयदान क्यों मिलता है यह समझ से परे है।


उनका कहना यह भी है कि जब से सीपैक का मामला चल रहा है तब से पाकिस्तान की आर्मी बलोच आवाम के मुखालिफ है। हाल में कुछ आक्रमणकारियों ने चीनी कंपनियों के एक वाहन पर हमला किया था और उस संदेह में मासूम बलोची युवाओं को बंदी बनाया गया है।
  एक्टिविस्ट मानते हैं कि उन्हें (चीनियों को) गिरफ्तार युवाओं को मार कर  दिखा देंगे और फिर उनसे भीख में डॉलर हासिल कर लेंगे।
कुल मिलाकर मानवता खतरे में है और मानवता के विरुद्ध कदम उठाने वाली पाकिस्तान आर्मी के सामने पाकिस्तान की तथाकथित डेमोक्रेटिक सरकार यहां तक की न्याय व्यवस्था भी बेहद दीन हीन सिद्ध हो रही है।
   स्पेस में सिंध देश के एक्टिविस्ट एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी यह कहते सुने गए कि हम भारत की शरण में आना चाहते हैं। तो दूसरी ओर बलोच लोगों का कहना है कि हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से प्रभावित है हम आपके ही अंग हैं। ऐसी स्थिति में देखना है कि भारत के बुद्धिजीवी पत्रकार योजनाकार और सामाजिक मानवतावादी विचारक क्या सोचते हैं जहां तक मेरी व्यक्तिगत राय है मुझे लगता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ को किसी भी देश में हो रहे मानव अधिकार अतिक्रमण पर ऐसे निर्णय बहुत जल्दी देने चाहिए ताकि संबंधित सरकार को समझ में आ जाएगी निरीह अजंता का भी कोई शुभचिंतक है।
   (यह आर्टिकल ट्विटर पर जारी स्पेस में सुने वक्तव्य एवं विचारों पर आधारित है )

18.8.21

अफगानिस्तान की महिलाओं और बच्चों का ईश्वर ही मालिक है...

अफगानिस्तान में अमेरिका की फौज वापसी से साबित हो गया है कि अमेरिका ने बहुत जल्दबाजी की है अफगानिस्तान को छोड़ने में। अमेरिका को अफगानिस्तान छोड़ने से पहले मित्र राष्ट्रों जैसे नाटो संधि में संबद्ध राष्ट्रों भारत सहित दक्षिण एशियाई राष्ट्रों से वार्ता अवश्य करनी थी। समय सीमा सुनिश्चित होने के बाद अमेरिका को अपने साजो सामान के साथ वापसी करनी थी ना कि हेलीकॉप्टर एयरक्राफ्ट और बंदूक इत्यादि छोड़कर। अगर अमेरिका ने यह तय ही कर लिया था कि उसे अफगानिस्तान में केवल उन्हें निशाना बनाना है जो कि 9/11 के जिम्मेदार हैं ... तो उन्हें ओसामा बिन लादेन की हत्या के उपरांत तुरंत ही अफगानिस्तान छोड़ देना था। जो गार्डन का यह फैसला चिंतन योग्य नहीं होकर चिंता के लायक है।

[  ] कहा जाता है कि आज उन महिलाओं ने प्रोटेस्ट किया जो अफगानिस्तान में रह गई हैं इसमें कोई शक नहीं कि महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए तालिबान की मनसा संदिग्ध है।
[  ] महिलाओं को काम करने की आजादी देने वाला तालिबान एक शर्त लगाता है की महिलाओं को वही कार्य करने की अनुमति होगी जो शरिया के अनुकूल हो ।
[  ] आपने कुछ ऐसे दृश्य देखे होंगे कि तालिबान इस तरह से महिलाओं के पोस्टरों पर काला रंग पूछ रहे थे इससे सिद्ध होता है कि महिलाओं के अधिकारों के लिए तालिबान कितने सजग हैं।
[  ] तालिबान का चिंतन एक संप्रदाय विशेष का चिंतन है और रवीश कुमार जैसे पत्रकार मोदी जी और आम भारतीय जनता से कह रहे हैं कि हम भारतीय हिंदू मुस्लिम एकात्मता के खिलाफ वातावरण निर्माण कर रहे हैं। ग्राउंड रियलिटी कुछ और है जो एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार के दृष्टिकोण से बिल्कुल मैच नहीं करती।
[  ] रवीश कुमार ने अपने वक्तव्य नुमा रिपोर्ट में यह पूछा है कि-"मोदी जी अथवा भारत सरकार तालिबान को अब आतंकवादी कहेगी या नहीं.. ?" एक पत्रकार का ऐसा बौद्धिक चिंतन बौद्धिक स्तर को परिभाषित करने में सक्षम है। जब अंतरराष्ट्रीय संवेदनशील परिस्थितियां हो तब बुद्धिमान पत्रकार को इस तरह के सवाल नहीं करने चाहिए जो उनके किसी अन्य प्रकार के नैरेटिव को विकसित करने की तथा उसे स्थापित करने की कोशिश के रूप में देखा जाए।
[  ] इस बीच आज यानी 17-18 अगस्त 2021 को भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी ने स्पष्ट कर दिया है कि हम सिख और हिंदू अफगानीयों को शरण देंगे साथ ही वे अपने अफगानी भाइयों बहनों को सहयोग करेंगे।
[  ] विगत दो दिवसों से जिन दृश्यों को हमने टेलीविजन के जरिए देखा उसमें महत्वपूर्ण दृश्य एक यह भी है कि दिल्ली में निवास करने वाले काबुली वाले आंसू बहा रहे हैं और अपने परिवार अपने वतन को याद कर रहे हैं मुझे भी वह गीत याद आ रहा है जो शायद आप भी गुनगुन आएंगे ए मेरे प्यारे वतन ऐ मेरे बिछड़े चमन तुझपे दिल कुर्बान।
[  ] इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अफगानिस्तान की स्थिति सामान्य होने की कल्पना कोई भी नहीं कर सकता। कम से कम मैं तो नहीं बावजूद इसके कि तालिबान प्रवक्ता भले ही कितना दावा करें कि वह सामान्य जनजीवन बाहर करने का वादा करते हैं विश्वास योग्य नहीं है। इस यूट्यूब वीडियो में एक पुराना वीडियो जो सोशल मीडिया पर ताजा वीडियो के रूप में बताया गया है प्रस्तुत कर रहा हूं वह भी इस उद्देश्य से की तालिबानी सोच को विश्व को समझने की जरूरत है।
हमें भारत सरकार पर और हमारे नेतृत्व पर कम से कम वर्तमान में विश्वास करना ही होगा और करना चाहिए

16.8.21

और अमेरिकी राष्ट्रपति वीकेंड अवकाश पर हैं

और जो बाइडन अवकाश पे हैं..!

अमेरिकन रक्षा मंत्री लायड जेंमस ऑस्टिन आज इसलिए अमेरिका में आकस्मिक बैठक में शामिल हुए क्योंकि जो बायडन अवकाश पर हैं । और इधर काबुल से राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति अपना देश छोड़कर बाहर चले गए। कहां गए कैसे गए इन समाचारों के आने तक कल शायद फिलहाल यह कहा जा रहा है कि वी तजाकिस्तान के दुशांबे शहर चले गए हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि उनकी फैमिली भारत में आई है खैर जल्दबाजी होगा इस पर कोई टिप्पणी करना।

सौहेल शाहीन जो तालिबान के प्रवक्ता  है ने स्पष्ट कर दिया है कि चीन के साथ तालिबान के संबंध है वे TV9 के संवाददाता दिनेश गौतम के साथ बात कर रहे थे। शाहीन बताते हैं कि तालिबान एट्रोसिटी के खिलाफ है। पर वे इस्लामिक अफगानिस्तान को बनाना चाहते हैं। वह महिलाओं को मुसलमानी संस्कारों के अनुकूल ही अधिकार देने के पक्ष में भी नजर आते हैं। बच्चों के लिए वे कमिटेड होने का दावा कर रहे हैं। वे भारत की सराहना करते हुए नजर आए स्ट्रक्चरल डेवलपमेंट के संदर्भ में। तालिबान का कहना है कि हम शांतिप्रिय हैं हम किसी के खिलाफ नहीं है। हमारा पाकिस्तान से कोई लेना देना नहीं है। अगर यह तालिबान का आधिकारिक बयान है तो यह देखना होगा कि पाकिस्तान में  बाकी गई मिठाइयों का अर्थ क्या है ?

   तालिबान प्रवक्ता शाहीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रों से शांतिपूर्वक सह अस्तित्व को दर्जी देने की बात दोहराई है।
   अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होना अलग मुद्दा है। मुद्दा यह है कि अमेरिकन एडमिनिस्ट्रेशन और स्वयं राष्ट्रपति जो बाइडन सप्ताहांत अवकाश पर है। इसी स्थिति से स्पष्ट होता है कि-"बाइडन प्रशासन 20 साल तक अजीबोगरीब स्थिति में एक तरह से अफगान पर शासन करते रहे हैं तथा उन्होंने वहां की मिलिट्री को अपनी रक्षा के काबिल भी नहीं बनाया। स्पष्ट है कि अमेरिका की तालिबान नीति बहुत स्पष्ट नहीं रही। खैर इन सब बातों से अलग हम देखें कि इस समय तालिबान के आने से अफगानिस्तान की जनता अपने मानव अधिकार के लिए बेहद चिंतित और परेशान है। प्राप्त सूचनाओं से स्पष्ट होता है कि लगभग 8000 शरणार्थी कनाडा में शरण दिए जाएंगे भारत भी 20 से 25 हजार शरणार्थियों को शरण दे सकता है । यद्यपि भारतीय विदेश मंत्रालय क्या तय करता है उसके आधिकारिक बयान का सबको इंतजार है।
   9/11 के घटनाक्रम के बावजूद अमेरिकी प्रशासन का दृष्टिकोण विचारणीय है। अगर वे तालिबान को छूट देते हैं तो अप्रत्यक्ष रूप से यह संदेश जा रहा है कि- हिंसा और आतंक के खिलाफ अमेरिका ने कबूतर की तरह आंख बंद कर ली है।
इस क्रम में आप यह जानकर चकित हो जाएंगे कि - "अमेरिका के विदेश मंत्री ब्लिंकेन ने अफगान सेना को वर्तमान स्थिति का जिम्मेदार ठहराया है..!"
   इससे यह सिद्ध हो जाता है कि - "अमेरिका कहीं न कहीं अपनी अफगान पॉलिसी के क्रियान्वयन में असफल साबित हुए हैं !"
   यूएस एम्बेसडर काबुल छोड़ना कम से कम यही साबित करता है।
   आज अर्थात 15 अगस्त 2021 के घटनाक्रम में हामिद करजई ने अपनी तीन बेटियों के साथ ही वीडियो संदेश जारी करते हुए अफगानी जनता की सुरक्षा की गुजारिश की है। साथ ही काबुल एयरपोर्ट पर अफरा तफरी का माहौल शाम तक जारी रहा है।
वर्तमान में तालिबान के प्रवक्ता शाहीन जो भी कहें उनके कथन से ना तो विश्व समुदाय और नाही स्वयं अफगानी जनता सहमत है।
   उधर नाटो ने भी इस बात को गंभीरता से लिया है। क्योंकि पेंटागन ने स्पष्ट कर दिया है तालिबान से उसी भाषा में बात की जाएगी जिस भाषा में तालिबान चाहता है। हम सबको याद रखना होगा दोहा के साल भर पूर्व अमेरिका की सैन्य वापसी की सहमति के बाद आखरी तिथि 30 सितंबर 2021 तक सेना वापस करने के प्रोसेस के दौरान ही तालिबान ने 3 जुलाई 2021 को यूएस सेना के बग्राम एयरवेज को खाली करते ही अपनी काबुल यात्रा प्रारंभ कर दी थी। 3 जुलाई 2021 से 15 अगस्त 2021 तक तालिबान के लड़ाकों का सत्ता अभियान से अफगानी  जनता तालिबान से ज्यादा कहीं अफगान सेना से और अशरफ गनी प्रशासन से नाराज नजर आए।
उधर भारत की विदेश नीति सफल होती नजर आ रही है कि किसी के फटे में टांग क्यों डालना। पर तारिक फतेह इसी नीति से खासा खीझे हुए नजर आए ।
   तारिक फतेह को यह समझना चाहिए कि पाकिस्तान और चीन की शह पर तालिबान की काबुल यात्रा एक तरह से भारत के हस्तक्षेप योग्य नहीं है। भारत अनावश्यक अपने हथियार और सैनिकों को सूली पर नहीं चढ़ाएगा। लेकिन भारत इस मुद्दे पर शांत है ऐसा नहीं है भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर अमेरिका जाएंगे इस समाचार फ़्लैश होते ही समझ में आ जाना चाहिए कि भारत भारत के हित में जो  होगा वह कदम उठाएगा।
कुछ महत्वपूर्ण बिंदु
[  ] तालिबान ने 22,000 से अधिक हमले किए
[  ] इन हमलों में 5587 आम नागरिक मारे गए जिनमें 650 महिलाएं और 925 बच्चे भी शामिल है
[  ] 15 अगस्त के पूर्व तक लगभग 11500 से अधिक अफगानी नागरिकों ने अफगान से पलायन किया
[  ] तालिबान ने सबसे पहले पाकिस्तान ईरान और चीन बॉर्डर पर अपना दबदबा कायम किया। यहां चाणक्य की उस नीति का अनुपालन किया जिसमें चाणक्य ने दूसरी बार नंद साम्राज्य को बॉर्डर से समाप्त करने की कोशिश की।
[  ] विश्व समुदाय अमेरिका के कदम से असहमति इसलिए है क्योंकि अमेरिका ने बिना किसी व्यवस्थित तरीके के तालिबान की जनता को दुखी और बेसहारा छोड़ दिया। परंतु यूरोप से इस संबंध में कोई खास रिएक्शन नजर नहीं आया है।
[  ] तालिबान के साथ चीन का अवसरवादी रिश्ता बावजूद यह जानते हुए कि चीन में मुसलमानों की स्थिति क्या है वहां उईगर मुस्लिम संकट में हैं । इस घटना से मुस्लिम उम्मा के कॉन्सेप्ट को टूटते हुए आप देख सकते हैं।
[  ] मुस्लिम समुदाय के रहनुमा होने का दावा करने वाले तुर्की के राष्ट्र प्रमुख एर्दोगान, की चुप्पी कई सारे सवाल खड़ा करती है ।
[  ] ओआईसी राष्ट्रों ने ना तो अफगान की पीड़ित मानवता के लिए कोई खास कदम उठाए और ना ही तालिबान को मुस्लिम समुदाय के हित में काम करने को कहा। यह अलग बात है कि स्वयं तालिबान अफगान जनता के खिलाफ बहुत अधिक हिंसक इस बार नजर नहीं आए। कुछ हद तक तालिबान बदला बदला नजर अवश्य आया है परंतु उसके बदलाव का स्थायित्व अविश्वसनीय है उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
        

9.8.21

पेड़ों को राखी बाँधे हम इस रक्षाबंधन पर

#सप्तसूत्रीय_रक्षाबंधन पर्यावरण की जागरूकता के लिए
💐💐💐💐
आयोजन का नाम
#सप्तसूत्रीय_रक्षाबंधन 
दिनांक 22 अगस्त 2021
स्थान आपके द्वारा चिन्हित कोई भी स्थान
💐💐💐💐
आपसे अनुरोध है कि दिनांक 22 अगस्त 2021 को रक्षाबंधन के अवसर पर सात रंग के रेशमी अथवा सूती धागों से एक राखी बनाकर कम से कम एक वृक्ष को अवश्य बांधने का कार्य कीजिए। यह राखी पर्यावरण के प्रति जागरूकता तथा ऑक्सीजन देने वाले पेड़ों के लिए हमारा आभार व्यक्त करने का एक तरीका होगा । 
तथा #सप्तसूत्रीय_रक्षाबंधन लिख कर अपना वीडियो या सेल्फी वीडियो, अथवा सेल्फी फोटो विभिन्न सोशल मीडिया माध्यम पर पोस्ट कीजिए। इस आह्वान को जन जन तक पहुंचाइए 
💐💐💐💐
भारतीय दर्शन एवं सनातन संस्कृति  में 7 का बड़ा  महत्व है। उदाहरण के तौर पर
रेशम के सात रंगों के सूत्र से बना रक्षा सूत्र पृथ्वी की भौगोलिक अवस्था में भारत जिसे सप्तसेंधव कहा है, वैदिक सात-ऋषि एवं तारामंडल के सप्तऋषि, सूर्य की सप्त रश्मियां जिन्हें हम सूर्य के साथ घोड़े कहते हैं, सामवेद अनुसार सप्तस्वर , तारसप्तक, सतरंग, सातदिन,  का बोध देने वाली रक्षा बंधन का आव्हान है। 
  रक्षाबंधन एक आध्यात्मिक पर्व है। यह केवल भाई बहनों के लिए ही नहीं बल्कि उन सबके प्रति विश्वास पैदा करने वाला पर्व है जो रक्षक के रूप में चिन्हित होते हैं । जैसे राजा देवता शस्त्र घर पति पत्नी आदि। परंपराओं के अनुसार रक्षाबंधन राजा को पुरोहित द्वारा यजमान के ब्राह्मण द्वारा, भाई के बहिन द्वारा और पति के पत्नी द्वारा दाहिनी कलाई पर किया जाता है। संस्कृत की उक्ति के अनुसार
जनेन विधिना यस्तु रक्षाबंधनमाचरेत। स सर्वदोष रहित, सुखी संवतसरे भवेत्।।
अर्थात् इस प्रकार विधिपूर्वक जिसके रक्षाबंधन किया जाता है वह संपूर्ण दोषों से दूर रहकर संपूर्ण वर्ष सुखी रहता है। रक्षाबंधन में मूलत: दो भावनाएं काम करती रही हैं। प्रथम जिस व्यक्ति के रक्षाबंधन किया जाता है उसकी कल्याण कामना और दूसरे रक्षाबंधन करने वाले के प्रति स्नेह भावना। इस प्रकार रक्षाबंधन वास्तव में स्नेह, शांति और रक्षा का बंधन है। इसमें सबके सुख और कल्याण की भावना निहित है। सूत्र का अर्थ धागा भी होता है और सिद्धांत या मंत्र भी। पुराणों में देवताओं या ऋषियों द्वारा जिस रक्षासूत्र बांधने की बात की गई हैं वह धागे की बजाय कोई मंत्र या गुप्त सूत्र भी हो सकता है। धागा केवल उसका प्रतीक है।
रक्षासूत्र बाँधते समय यह श्लोक भी पढ़ने की परम्परा है.....
ओम यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं, शतानीकाय सुमनस्यमाना:। तन्मSआबध्नामि शतशारदाय, आयुष्मांजरदृष्टिर्यथासम्।। 
कोविड-19 के दूसरे दौर में हमें ऑक्सीजन का संकट हुआ है। और वर्तमान में ऑक्सीजन का संकट संपूर्ण पृथ्वी पर छाया हुआ है। पृथ्वी में ऑक्सीजन की मात्रा धीरे धीरे कम हो रही है। इसका मूल कारण है कि हम प्रकृति के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं। वनों का कम होना ऑक्सीजन की कमी का मुख्य आधार है। आइए इस वर्ष हम इसे एक ऐसे संस्कार के रूप में अपने मस्तिष्क में सम्मिलित करने का प्रयास करेंगे कि हम  जंगल और वृक्ष के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करें। इस वर्ष 22 अगस्त 2021 को रक्षाबंधन का यह पवित्र धार्मिक आध्यात्मिक एवं सामाजिक पर्व है। इस दिन हमें केवल सात रंगों के रेशमी अथवा सूती धागों से रक्षाबंधन तैयार करना है। इसका आकार घर में लगी तुलसी अथवा किसी भी उपयुक्त पेड़ के अनुकूल होना चाहिए। ऐसे *सप्तसूत्रीय रक्षाबंधन* को हम सबसे पहले अपने आराध्य को चढ़ाने के बाद पौधों वृक्षों को जाकर बांधे। यह कोई कठिन कार्य नहीं है बल्कि यह कार्य एक संदेश देगा कि हम पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण के प्रति मानसिक रूप से समर्पित हैं। तो आइए इस सामाजिक आध्यात्मिक एवं धार्मिक इवेंट को बनाए तथा वृक्ष या पौधे को रक्षाबंधन बांधते हुए अपनी फोटो अथवा वीडियो अपने सोशल मीडिया आईडी जैसे फेसबुक टि्वटर इंस्टाग्राम यूट्यूब कू लिंक्डइन आईडी से #सप्तसूत्रीय_रक्षाबंधन के साथ प्रस्तुत करें। यह कार्य ना तो कठिन है नाही वर्जित है। किसी भी संप्रदाय के लोग भी जो पेड़ और पर्यावरण के प्रति आस्थावान है वे स्वैच्छिक रूप से यह कार्य कर सकते हैं। बच्चों बुजुर्गों भाइयों बहनों अथवा कोई भी व्यक्ति इस कार्य को सकते हैं।

Rejections Acceptance and Success

    
तुम्हें उस  माउंट एवरेस्ट पर देखना चाहता था ,शिखर पर चढ़ने के दायित्व को  बोझ समझने की चुगली तुम्हारा बर्ताव कर देता है।
     इस चोटी पर चढ़ना है  रास्ता आसान नहीं है और तो और अवरोधों से भी अटा पड़ा है । कभी किसी पर्वतारोही से पूछो..... वह बताएगा कि  बेस कैंप से बाहर निकलो और पूछो कि मैं तुम्हारी चोटी पर आना चाहता हूं । तो पर्वत बताता है कि नहीं लौट जाओ यह आसान नहीं है। पर्वतारोही बताता है कि
- दशरथ मांझी ने तो ऐसे घमंडी पर्वत को बीच से चीर दिया था याद है ना...!
   दशरथ मांझी को कोई कंफ्यूजन नहीं था एवरेस्ट पर चढ़ने वालों को कोई कंफ्यूजन नहीं होता। और जो कंफ्यूज होते हैं उनके संकल्प नहीं होते बल्कि वे खुद से मजाक करते नजर आते हैं।
   जो लोग दुनिया को फेस करना जानते हैं वही सफलता का शिखर पा सकते हैं। *एक्सेप्टेंस और रिजेक्शन* में ही सफलता के राज छिपे हुए हैं । रिजेक्शन सबसे पहला पार्ट है। सबसे पहले हम खुद को रिजेक्ट करते हैं फिर दो चार लोग फिर एक लंबी भी आपको रिजेक्ट करती है। तब कहीं जाकर भीड़ से कोई आकर कहता है - "*वाह क्या बात है..!*"
    आइए मैं अपने आप को आपके सामने खोल देता हूं। रिजेक्टेड माल हूँ... कब एक्सेप्ट हो गया पता नहीं कुछ दिन तक किया था फिर भूल गया। हुआ यूं था कि बीकॉम सेकंड ईयर में कॉलेज के किसी लड़के ने अपनी एग्जामिनेशन डेस्क बदलने के लिए इन्वेंजुलेटर से निवेदन किया।
वीक्षक ने जब यह पूछा-" भाई तुम्हें क्या तकलीफ है क्या यहां लाइट नहीं आ रहा है या यह डेस्क खुरदुरी है..? गिरीश क्या तुम्हें भी परेशानी है..?
नहीं मुझे कोई परेशानी नहीं है मैंने कहा था । और उसने कहा था-" गिरीश ही मेरी समस्या है..!"
   अब तक में संदिग्ध हो चुका था वीक्षक की नजर में। वीक्षक को लगा कि मैं उस साथी की नकल कर रहा हूं या उसे डिस्टर्ब कर रहा हूं।
   उस लड़के ने जो कहा वह मेरी आंखों से गंगा जमुना बहाने के लिए पर्याप्त था ।
   जानते हैं क्या कहा जी तो नहीं  चाह रहा था कहने को पर कहना इसलिए पड़ेगा कि कोई भी किसी को रिजेक्ट करने के पहले समझने की कोशिश करें ।
  हां तो उसने एक तर्क दिया था कि गिरीश को पोलियो है इसके साथ बैठने से मुझे भी यह बीमारी लग जाएगी और मुझे इसके साथ नहीं बैठना है मुझे यह पसंद नहीं है।
   ऐसा रिजेक्शन मेरी कल्पना से बाहर था। हां इसके पहले भी हुआ था तब जबकि पॉलिटेक्निक कॉलेज में मैं अपनी मार्कशीट लेकर गया। तब एडमिशन करने वाला व्यक्ति मुझे कह रहा था देखो बहुत तुम डिप्लोमा इंजीनियर बनकर क्या करोगे तुमसे तो वह काम होंगे नहीं जो एक डिप्लोमा इंजीनियर को करने होते हैं।
  बिना किसी को कुछ बताएं मैंने यह तय कर लिया था कि अब किसी भी कॉलेज में एडमिशन लेने की जरूरत नहीं भगवान नामक तत्व मुझे मदद करेगा। भगवान कौन है क्या है मुझे क्या मालूम कैसा दिखता है यह भी नहीं जानता। पर आस्तिक जरूर हूं आज भी उतना ही।
   घर के सामने दुबे जी जो डीएन जैन कॉलेज में सेकंड ईयर के स्टूडेंट थे ने मुझे बबन भैया से मिलाया पवन भैया स्टूडेंट यूनियन के नेता थे नेता तो दुबे जी भी थे शायद ज्वाइंट सेक्रेट्री थे । और मुझे जबरदस्ती डीएन जैन कॉलेज ले जाया गया। और कहा तुम्हें एडमिशन नहीं लेना है कॉलेज में बैठा हूं फर्स्ट ईयर में सारे प्रोफेसर से पहचान करा दी प्रिंसिपल साहब से मिलवा दिया और मुफ्त में मैं बैठने लगा।
     एक रिजेक्शन के बाद मिला एक्सेप्टेंस फर्स्ट ईयर प्राइवेट करने के बाद सेकंड ईयर में मैंने एडमिशन जरूर ले लिया वातावरण मेरे अनुकूल हो गया था । पर कुछ रिजेक्शन अभी भी थे एक प्रोफेसर क्यों व्यक्तिगत रूप से मुझसे नफरत करते थे वजह क्या थी मुझे नहीं मालूम पर मुझे पता चला कि वह बाकी प्रोफ़ेसर्स द्वारा मुझे पसंद करने के कारण मुझसे चिढ़ते हैं ।
    हां तो वह स्टूडेंट जिसने नई जगह मांगी थी उसे  वीक्षक ने बुरी तरह डपट दिया और मुझे एक बहुत बेहतर जगह दी।
   रिजेक्शन के साथ एक्सेप्टेंस अगर तुरंत मिल जाता है तो शायद उत्साह दुगुना हो जाता है और साहस भी आत्म साहस में बदल जाता है। उधर सबको मुझ पर संवेदनाएं लुटाते हुए देख मैंने सब से यह अनुरोध किया कि मुझे यह भी रिजेक्शन की तरह ही लगता है तुम सब मुझे दोस्त के नजरिए से देखो। हुआ भी वही दोस्त बना दोस्तों का और फिर मित्रों को लीड भी किया। यहां पूरी कहानी बताने का अर्थ यह है कि भाई शिखर पर चढ़ने के लिए रिजेक्शन मिले तो भी कोशिश करना मत छोड़ना। और आज भी जब कोई रिजेक्शन मेरे पास आता है तो हिम्मत दुगनी बढ़ जाती है। कैसा लगा मेरा जीवन अनुभव यह क्या तुम्हारी आंखों में आंसू अरे भाई इतना तो मैं भी नहीं रोया रोने की जरूरत ही क्या है रिजेक्ट तो तुम्हें भी किया होगा किसी ने पर ध्यान रहे स्वीकृत भी बहुत लोग करते हैं और शिखर पर चढ़ने का एकमात्र यही तरीका है दूसरा कोई नहीं।
  

8.8.21

नीरज चोपड़ा की जीत से सबा नक्वी को तकलीफ हुई है...!

एक शर्मनाक और दिल को चोट पहुंचा देने वाली टिप्पणी की है सबा नक्वी ने। जी हां और कोई मुद्दा होता तो शायद इन्हें क्षमा भी कर दिया जाता परंतु सबा नक्वी ने नीरज चोपड़ा की जीत खासकर गोल्ड मेडल जीतने पर एक बड़ी अभद्र टिप्पणी की है .
देखेंगे क्या लिखती हैं
Just the way we are all celebrating one gold shows how starved we were for it..
वे मानती हैं कि हम गोल्ड मेडल के सोने के लिए कितने लालची हैं तभी तो हम जश्न मना रहे हैं। एक पत्रकार टिप्पणीकार विचारक का यह अशोभनीय ट्वीट देख कर बहुत दुख हुआ।

  और दूसरी और मैं बहुत खुश हूं इस वतन की हर एक उस इंसान के साथ जो सिर से पांव तक गौरव का अनुभव कर रहा है। हर हिंदुस्तानी के मन में नीरज के लिए सम्मान जाग उठा है। ऐसी हजारों लाखों प्रतिभाएं भारत की गली कूचे मोहल्लों में अब तक अवसर न मिलने के कारण जब जाया करती थी लेकिन आप कुछ वर्षों से उस सुबह का आगाज हो चुका है जो सुबह अपनी उजली किरणों से भारत को रोशन करती है . अवसर तो अब मिल रहे हैं पर समूचे देश में एक प्रभावी खेल नीति की भी जरूरत है। आज सुबह सुबह ट्विटर के स्पेस में चर्चा चल रही थी कि दक्षिण एशियाई देशों में स्वर्ण पदक कम क्यों आते हैं ?
  संवादों से निकले निष्कर्ष थे...
[  ] अखंड भारत महा क्षेत्र में भारत को छोड़कर अन्य किसी देश में खेलों के प्रति सकारात्मक वातावरण नहीं है
[  ] लोगों का यह भी मानना था कि प्रत्येक देश की अपनी प्राथमिकताएं हैं और प्रतिभाओं के संरक्षण और प्रोत्साहन जैसे मुद्दे उनकी प्राथमिकताओं में छिप जाती है या कम है।
[  ] कैनेडियन वक्ता ने कहा कि-" भारत को छोड़ दिया जाए तो शेष दक्षिण एशियाई देश न केवल इकोनॉमिकली कमजोर हैं बल्कि उनकी बौद्धिक क्षमता भी कमजोर है। "
[  ] एक पाकिस्तानी मूल के वक्ता ने अपने देश की प्रतिभाओं को ना पहचानने के लिए वहां के समाज और सरकारी दोनों पक्षों को दोषी करार दिया है।
मित्रों यह बात सही है कि भारत का लोकतंत्र बेहद प्रभावी और परिपक्व होता नजर आ रहा है परंतु बाहरी यानी आयातित विचार शैली के कारण जनता के मन मानस में भटकाव है।
   सुधि पाठको.... भारत के युवा अब सम्मान के महत्व को समझने लगे हैं और वह अपने राष्ट्र के सम्मान के लिए सजग होते जा रहे हैं। उसी का परिणाम है कि टोक्यो ओलंपिक 2020 जो अपने समय से 1 वर्ष बाद यानी 2021 में खेला जा रहा है में भारत के युवा खिलाड़ियों ने एक स्वर्ण दो रजत और चार कांस्य पदक हासिल किए हैं। भारत के प्रधानमंत्री ने जीते हुए खिलाड़ियों को जहां एक और बधाई दी वहीं दूसरी ओर उन्होंने पदक ना पानी वाली टीम के मनोबल को बढ़ाने के लिए उन से टेलीफोन पर बातचीत की उन्हें ढांढस बंधाया ताकि वे भविष्य में निराशा के अंधेरे में अपने लक्ष्य से ना भटक जाएं। और दूसरी ओर मेजर ध्यानचंद के नाम पर राष्ट्रीय खेल पुरस्कार देने के मुद्दे पर राजनीति की परोपकारों और राष्ट्र के प्रति नकारात्मक भाव रखने वाली सबा नक्वी जैसे व्यक्तियों के सीने पर सांप भी लोटा है ।
मित्रों जब देश की सेना एयर स्ट्राइक करती है तो उनसे सबूत मांगा जाता है ऐसे अविश्वास फैलाने वाली ताकतों और अपने गलत नैरेटिव को स्थापित करने वाली ताकतों की मस्तिष्क को खोलने की जरूरत है। उन्हें समझाना होगा कि वे जिस थाली में भोजन करें कम से कम उसमें छेद तो ना करें। समूचे भारत को बधाई स्वर्ण रजत कांस्य पदक विजेताओं को हार्दिक शुभकामनाएं

2.8.21

चाणक्य की अर्थवत्ता लेखक श्री नमः शिवाय अरजरिया

【 लेखक श्री नमः शिवाय अरजरिया, मध्यप्रदेश शासन में संयुक्त कलेक्टर के पद पर जबलपुर में कार्यरत हैं । उनकी फेसबुक वॉल से साभार आपकी समीक्षा आर्टिकल प्रस्तुत है ] 

चाणक्य नाम मन:पटल पर आते ही मौर्ययुगीन आचार्य विष्णुगुप्त या कौटिल्य का चित्र उभर कर सामने आता है। चणक ऋषि के पुत्र होने के कारण आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य कहलाए। चाणक्य का शाब्दिक अर्थ प्रतीति कराता है- जो चार नीतियों का विशेषज्ञ हो। बुंदेलखंड में आज भी चतुर लोगों को कहते हैं- बड़ा चणी आदमी है। यद्यपि शब्दकोश में इस प्रकार का अर्थ नहीं मिलता परंतु जबलपुर जिले के संस्कृत के प्रकांड पंडित आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी से जब चर्चा की उन्होंने भी चाणक्य के शाब्दिक अर्थ को मेरे मतानुसार पुष्ट किया। अतः इससे यह तो तय होता है कि "चा" यानि चार तथा "नक्य" यानी नीति। इस प्रकार चाणक्य चार नीतियों के विशेषज्ञ के रूप में ही प्रकट होते हैं। चार नीतियां हैं- साम, दाम, दंड एवं भेद। यहां साम का तात्पर्य विनय या प्रार्थना से है। दाम का अर्थ प्रलोभन या लालच से लिया जाता है। गोस्वामी तुलसीदास मानस में लिखते है- "बहु दाम संवारहिं धाम जती" अर्थात दाम से अनेकों धाम भी संवर जाते है और कहीं न कहीं वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था में सर्वाधिक उपक्रम इसी नीति पर आधारित है। दंड का अर्थ सजा देना है एवं भेद की पृष्ठभूमि मन से संबंधित है। यह नीति का ऐसा प्रयोग है जिसमें मनभेद कर दूसरे के प्रति एक स्थाई भाव मन में उतपन्न किया जाता है। भेद नीति को रहस्योद्घाटन के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। इसके द्वारा किसी प्रिय या संबंधी के प्रति मन में विद्वेष उत्पन्न किया जाता है।
इतिहास के पन्ने पलटने पर आचार्य विष्णुगुप्त चारों नीतियों के विशिष्ट विद्वान दिखाई देते हैं। परंतु आचार्य विष्णुगुप्त के पूर्व भी यह नाम अस्तित्व में था बिलकुल वैसे ही जैसे राम के पूर्व जामदग्नेय परशुराम भी राम के रूप में जाने जाते थे। तो क्या आचार्य विष्णुगुप्त को चारों नीतियों का एकमात्र ज्ञाता या श्रेष्ठ आचार्य मान लिया जाए?? मन इसे स्वीकारने को तैयार नहीं था। आज अचानक सुंदरकांड पढ़ते हुए दशानन एवं हनुमान जी के सुंदर संवाद पर विशेष ध्यान गया, तो पाया कि आचार्य विष्णुगुप्त तो पृथक-पृथक समय पर चारों नीतियों का प्रयोग करते थे, परंतु नीतिवान श्रीराम के दूत मतिमान हनुमान तो एक ही समय एवं स्थान पर इन नीतियों का प्रयोग करने में पूर्ण दक्ष एवं कुशल थे।
सुंदरकांड के 21वें दोहे में वह श्री राम की प्रभुता का वर्णन करने के साथ-साथ लंकेश से पृथम नीति विनय का प्रयोग करते हैं। जब दशानन विनय से आंजनेय की बात नहीं मानता है तो वह श्रीराम की शरण में आने के परिणाम बताते हुए कहते हैं कि- लंकेश यदि तुम प्रभु श्री राम की शरण में आते हो तो वह तुम्हें क्षमा कर देंगे। इसके उपरांत तुम लंका में अविचल राज्य करना। इस प्रकार हनुमान जी दाम नीति के तहत अविचल राज्य का प्रलोभन देते हैं। जब दशानन इन नीतियों के प्रभाव में नहीं आता है तो वह दंड नीति का प्रयोग करते हुए श्री राम के बल का वर्णन करते हुए दशग्रीव को राम से युद्ध के परिणाम के रूप में कहते हैं, कि राम के विमुख होने पर हजारों विष्णु, शंकर एवं ब्रह्मा भी तुम्हें नहीं बचा सकते। हनुमान जी केवल दंड का उपदेश ही नही देते अपितु अतुलित बल के स्वामी जगदीश्वर श्री राम के दूत या अतुलित बल के धाम होने के कारण दंड का प्रयोग कर लंका विध्वंस भी कर डालते हैं। रामदूत की चतुरता इसी में है कि वह दंड नीति के प्रयोग के पूर्व ही विभीषण से अपने पक्ष की बात कहलवाकर रावण के मन में भेद नीति का बीजारोपण कर देते हैं।
इस प्रकार मतिमान हनुमान एक ही स्थान एवं समय में चारों नीतियों का प्रयोग कर चाणक्य शब्द को वास्तविक अर्थवत्ता प्रदान करते हैं।
देखें-
1- बिनती करउँ जोरि कर रावन।
    सुनहु मान तजि मोर सिखावन।।( साम नीति)

2- राम चरण पंकज उर धरहु।
   लंका अचल राज तुम्ह करहूं।।
(दाम नीति)

3- संकट सहस विश्नु अज तोहि।
    सकहिं न राखि राम कर द्रोही।।
               अथवा 
    उलट-पुलट लंका सब जारी।
    कूद परा पुन सिंधु मझारी।।
(दंड नीति)

4- नाय सीस करि विनय बहूता।
    नीति विरोध न मारिअ दूता।।
    आन दंड कछु करिअ गोसाईं।
    सवहीं कहा मंत्र भल भाई।।
(भेद नीति)

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