18.7.21

इमरान को आर एस एस का खौफ ................?


  


 फ्रांस के राष्ट्रपति ने जब यह कहा था कि टेररिज्म इस्लाम के लिए खतरा है तो टर्की ने उससे अपने राजनयिक संबंध तोड़ दिए और इसी क्रम में इमरान साहब ने भी ऐलान कर दिया कि हम भी राजनयिक संबंध तोड़ते हैं। पाकिस्तान के इस पढ़े लिखे नासमझ प्राइम मिनिस्टर को यह जानकारी नहीं थी कि उसके राजनीति संबंध और राजदूत दोनों ही फ्रांस में नहीं है। ऐसे नासमझ प्राइम मिनिस्टर से उम्मीद भी क्या की जा सकती है। आर एस एस को लेकर जिस तरह से पाकिस्तानी प्राइम मिनिस्टर का बयान आया है वह किसी चंडूखाने से आई खबर के आधार पर दिए गए बयान से ज्यादा कुछ नहीं है। 
   सुधी पाठकों कोई बात का अच्छी तरह से ज्ञान होगा कि पाकिस्तान के प्राइम मिनिस्टर का ज्ञान और उन्हें जो सूचना दी जाती है उसमें आदमी और आई एस आई का इनपुट होता है। इसी आधार पर वहां का प्रधानमंत्री अपनी बात कहता है। जहां तक इमरान का सवाल है वे आर्मी द्वारा पाले गए तोते से ज्यादा हैसियत नहीं रखते हैं।
   पाकिस्तान ने हालिया दौर में जिस तरह से तालिबान का समर्थन शुरू किया है वह उनकी साइकोलॉजी को स्पष्ट करने के लिए काफी है। और यही बॉडी लैंग्वेज भारत में रह रहे स्लीपर सेल्स और अलगाववादी लोगों की है जिसका खुलासा हमने अपने पिछले आर्टिकल में कर दिया था।
    मित्रों आपको बता दें कि जिस देश में गृह युद्ध होता है उस देश में संयुक्त राष्ट्र संघ किसी ऐसे राष्ट्र को उसका ट्रस्टी बना देता है जो उसके करीब है। भौगोलिक दृष्टि से पाकिस्तान अफगानिस्तान के बहुत करीब है किंतु पाकिस्तान स्वयं तालिबान युद्ध सामग्री मुहैया कराता है पिछले दो-तीन दिनों अर्थात 16-17 जुलाई 2021 से यह बात पब्लिक डोमेन में आ चुकी है। इसके पहले कुछ झूठी अफवाह है ट्विटर के माध्यम से फैलाई जा रही थी कि भारत ने तालिबान के विरोध में लड़ने के लिए वेपन अफगानिस्तान की सरकार को दिए हैं। वैसे तो यह सच नहीं है इससे उलट पाकिस्तान तालिबान लड़ाकों के लिए औरतें भी प्रोवाइड करने पर यस सर वाले फार्मूले पर आ गया है । और अगर भारत ने निर्वाचित सरकार के लिए हथियार दिए हैं तो मानवता की रक्षा के लिए ऐसा करना गलत नहीं है ।

     आइए हम एक वीडियो भी देखते हैं जिसमें स्पष्ट तौर पर तालिबान द्वारा औरतों के ह्यूमन राइट का सरेआम उल्लंघन किया जा रहा है । 

Taliban trying to destroy social fabric of Afghanistan but Imran Khan

 
यहां मलाला यूसुफजई पर पिछले दिनों हुए हमलो के पीछे तालिबानी आईडियोलॉजी ही काम कर रही थी।
     विश्व के इतिहास में यह सबसे दुखद और क्रूरता घटनाओं की पुनरावृत्ति है।

17.7.21

दानिश को मारना तालिबान की सबसे बड़ी भूल है रवीश जी लानत गोली पर भेज रहे हैं

*दानिश को श्रद्धांजलि*
दानिश सिद्दीकी की तालिबान कल हत्या कर दी जो दुखद पहलू है। उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना है।
   मित्रों सबको अपनी बात कहने का हक़ है यह सवाल ठीक है और दानिश अपनी बात नहीं कह पाए इसका मलाल उन सभी को भी होना चाहिए जो भारत में अपने अधिकारों को लेकर कुछ ज्यादा ही सेंसिटिव है।
जहां मानवता का प्रश्न है वहां दानिश की मौत पर सारी मानवीय संवेदना उनके साथ हैं। और रहेंगे क्योंकि भारतीय संदर्भ हमेशा हमें संवेदनाओं और मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं। मैं उन लोगों से असहमत हूं जो दानिश की हत्या पर अजीबोगरीब टिप्पणी कर रहे हैं।
यह मेरी व्यक्तिगत राय है। दानिश की हत्या अलावा कुछ दिनों से अर्थात पिछले 1 हफ्ते से तालिबान लड़ाकू की साइकोलॉजी और विश्व में लोगों के मस्तिष्क में कुछ सवाल खड़े हो रहे हैं। इन्हें अब समझने की जरूरत है तो आइए वह सवाल कौन से हैं जानते हैं हम
[  ] क्या तालिबान लड़ाके किसी मानवतावादी व्यवस्था के पोषक होंगे..? - स्पष्ट रूप से नहीं परंतु तालिबान इन दिनों कितने हिस्सों में बटा हुआ है जो आपस में ही आने वाले समय में आपसी रंजिश ओं का शिकार हो सकेंगे।
[  ] क्या अफगान तालिबानियों के प्रति सकारात्मक सोच रखता है। इस मसले पर लोगों का कहना है कि तालिबान और उनके सिद्धांतों को तालिबान की जनता सिरे से खारिज करती नजर आती है।
           डूरंड लाइन पर तालिबान विश्वास ही नहीं करते इससे पाकिस्तान की स्थिति बेहद कमजोर और डरी हुई है। अभी आपने देखी लिया कि किस तरह से पाकिस्तान की सेना पर तालिबान ने आक्रमण किया और सैनिकों को मौत के घाट उतारा है। आपको याद होगा तालिबान ने पाकिस्तान को डिक्टेट ना करने का भी आदेश दिया है... साथ ही साथ तालिबान टर्की को भी भाव नहीं दे रहा है यह एक आश्चर्यचकित कर देने वाली स्थिति है।
     टि्वटर पर स्पेस चलाने वाली वानी रफत ने ऐलान किया था कि अब तालिबान से कोई नहीं बच सकता और वह तालिबान के पक्ष में सक्रिय वातावरण निर्मित कर रही थी। चकित कर देने वाली बात यह है कि वानी रफत और उसके समर्थक कश्मीरी स्लीपर सेल है जो वैचारिक रूप से भारत का भला नहीं चाहते। एक बहुत छोटा सा उदाहरण है परंतु यह बहुत जरूरी सूचना भी है खुफिया तंत्रों के लिए कि इस तरह के भारत विरोधी मंतव्य बनाने के प्रयासों को सोशल मीडिया पर खास तौर पर ट्विटर पर भारत के अंदर को प्रतिबंधित कर ही देना चाहिए।
मित्रों अब हम आते हैं मूल विषय पर।
    दक्षिण एशियाई देशों में ऐसी स्थिति ना केवल चिंतनीय है बल्कि इस पर भारत सरकार को और भारतीय जनता को सतर्क रहने की जरूरत है जहां तक भारत सरकार का सवाल है उस पर हमें किसी भी तरह का मैं तो संडे करना चाहिए ना ही किसी भी प्रकार से कोई मंतव्य स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। ऐसी स्थिति में भारत सरकार क्या करेगी यह सब भारतीय रक्षा व्यवस्था के भीतर इनबिल्ट है।
   इस वक्त हमें सरकार पर ही निर्भर रहना होगा। क्योंकि भविष्य में कभी भी तालिबान भारत के भीतर तक आने की क्षमता नहीं रखते और न ही रख सकेंगे ।
    कश्मीर वैली के संदर्भ में एक तथ्य समझना जरूरी है कि भारत में अलगाववादी विचार अभी मौजूद है लेकिन उनकी संख्या इतनी नगण्य है वे कश्मीर की शांति को समाप्त करने की क्षमता नहीं रखते। हां यह सच है कि वे लोग प्रयास करते रहेंगे जैसा कि ट्विटर पर वाणी रफत ने किया। और आतंकियों के कनेक्शन अभी समाप्त हुए हो ऐसा भी नहीं लगता क्योंकि लगातार आतंकवादी घटनाएं घटित होती जा रही है.... भले ही इनकी आवृतियों में कमी आई हो .
   पाकिस्तान और अलगाववादी दोनों ही तालिबान के फिर से सिर उठाने पर आशान्वित अवश्य है परंतु अब उनके लिए कन्फ्यूजन की स्थिति स्वयं तालिबानी पैदा कर रहे हैं।
    जानकारों की बातों से मैं सहमत हूं कि शायद यूरोप यह नहीं चाहता कि दक्षिण एशिया में शांति बनी रहे। अगर यूरोपीय चाहता तो जो-बायडन  एडमिनिस्ट्रेशन अफगान से वापसी के बारे में ना सोचता । परंतु लोग यह भी मानते हैं कि भविष्य में उन्हें नेटो देश और क्वार्ड इस संकट का हल खुद ही लेंगे। इन सवालों के उत्तर भी भविष्य में ही मिल सकते हैं फौरी तौर पर कुछ कहना या मंतव्य बना लेना जल्दबाजी है।
     चीन की भूमिका सदैव हर मामले की तरह तालिबान मुद्दे पर भी संदिग्ध ही रहेगी ऐसा मेरा मानना है।
    वैसे एक बात स्पष्ट है कि दक्षिण एशिया में हिंदूकुश से लेकर दक्षिण एशिया के पश्चिमी देशों तक शांति और विकास भारत की परिकल्पना है जो देर सबेर पूर्ण होगी क्योंकि भारत का जियोपोलिटिक्स में राजनीतिक वजूद कमजोर नहीं है।

“वेनेजुएला की तरह भारत को भोगना पड़ सकता है मुद्रा प्रसार का दर्द....यदि हम न माने तो !”

“वेनेञ्जुला की तरह भारत को  भोगना पड़ सकता है मुद्रा प्रसार का दर्द....यदि हम न माने तो !” : गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”      

 वेनेजुएला दक्षिण अमेरिका के उत्तर में स्थित है; भूगर्भीय, इसकी मुख्य भूमि दक्षिण अमेरिकी प्लेट पर स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल 916,445 किमी2 (353,841 वर्ग मील) और भूमि क्षेत्र 882,050 किमी2 (340,560 वर्ग मील) का है, जिससे वेनेज़ुएला दुनिया का 33वां सबसे बड़ा देश है। इस देश की राजधानी करासस है।

इस देश की वर्तमान में आर्थिक, राजनैतिक  परिस्थितियाँ जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और हाइपर-इंफ्लेशन के जानकार स्टीव हैंक के मुताबिक़ पिछले 12 महीनों में वेनेज़ुएला में महंगाई 65000 फ़ीसदी तक बढ़ गई है. यह “अति-तीव्र-मुद्रा-प्रसार” का मौजूदा उदाहरण है ।  



इस क्रम में उदय कोटक ने भारत सरकार को  एक सलाह दी ...!                   

        दूसरे विश्व युद्ध में औपनिवेशिक भारत को जिन आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था । और उसके बाद अधिकांश देश मुद्रा प्रसार के शिकार हो गए थे। विश्व के कई देशों का का आर्थिक सदमे में जाना विश्व समुदाय के लिए और नागरिकों के लिए संकट का सबसे खतरनाक दौर था।

    कोविड-19 के बाद ऐसे ही परिस्थितियां बन रहे हैं मूल्यों में वृद्धि 20% से 30% तक देखी जा रही है जो कमोबेश मुद्रा प्रसार की ओर अर्थव्यवस्था को ले जाने का रास्ता निर्मित कर रहा है। दूसरा विश्व युद्ध के साथ-साथ महामारी और अकाल विश्व के हर छोटे बड़े देश के लिए मानो नर्क की स्थिति निर्मित कर रही थी। यह वह दौर था जब विकसित राष्ट्र भी अपनी अर्थव्यवस्था को लेकर टेंशन में थे। ब्रिटेन की हालत तो सबसे ज्यादा खराब थी और उसने अपनी कालोनियां ट्रांसफर ऑफ पावर के जरिए उन देशों की जनता को सौंपना प्रारंभ कर दिया जो उनकी कॉलोनी के रूप में पहचाने जाते थे। मित्रों यह वही दौर था जब भारत ने जन्म लिया था और पाकिस्तान तथा चीन भारत को मरा हुआ जानवर समझ कर चील की तरह हमलावर थे। लेकिन हम वही भारतीय हैं जिन्होंने वेनेजुएला की तरह अपने आप को विकास के रास्ते पर चलने को प्रेरित किया। एक बौने कद के बड़े विचारक प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी के भाषण आज भी आप विभिन्न वेबसाइट पर जाकर सुन सकते हैं। 1 दिन का व्रत भारत को महान संदेश दे गया। परंतु वर्तमान परिस्थिति में भारत में शास्त्री की उस आवाज को फिर से समझने के बजाय भारतीय लोग आयातित विचारधारा से प्रभावित होकर सब्सिडी आधारित उत्पादों के संयमित उपभोग के लिए बेचैन हैं ।



   मित्रों किसी भी देश की अर्थव्यवस्था पर मुद्रा प्रसार  ऐसा घातक परिणाम देता है जो राजनैतिक, सामाजिक, व्यापारिक रूप से उस देश को दुगने वेग से वापस भेज देता है उन परिस्थितियों में जहां से उसने यात्रा शुरू की थी।

वेनेजुएला की परिस्थिति भी ऐसी ही है। वेनेजुएला के लोग एक बहुत बड़े घमंड के साथ स्वयं को प्रस्तुत कर रहे थे कि उनके देश में तेल का अक्षय भंडार है और उस अक्षय भंडार से वे कभी भी किसी से पीछे नहीं हो सकते।

        वर्तमान में देश की मुद्रा स्थिति 2665 प्रतिशत है और यह देश 1000000 बुलीवर के नोट छापने के लिए तैयार है । जितेंद्र सिंह राणा  को आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर वह 39 का बिल बनाते हैं तो कोई भी वेनेजुएला का पर्यटक 10 लाख बुलीवर का नोट दे सकता है। स्थिति साफ है की मुद्रास्फीति वेनेजुएला में अपने चरम पर है। उसके क्या कारण है

[  ] सन 1999 राष्ट्रपति मादुरो ने जब सत्ता संभाली तब वेनेजुएला दक्षिण अमेरिका का एकमात्र ऐसा देश था जहां अकूत मात्रा में पेट्रोल पाया गया।

[  ] तब वेनेजुएला की आर्थिक स्थिति नागरिकों को विश्व की श्रेष्ठतम सुविधाएं देने के लायक थी। परंतु सत्ता में बने रहने की लालच ने मादुरो ने लाखों घर मुफ्त में बनवा कर जनता को दिए

[  ] पेट्रोल पर सब्सिडी आज भी दे रहा है

[  ] पेट्रोल उत्पादक कंपनी को अनावश्यक रूप से कर्मचारियों को भर्ती करने की प्रक्रिया प्रारंभ की जो अब तक जारी है। इससे सरकार को अतिरिक्त वित्तीय प्रबंधन करना पड़ा

[  ] 1999 में कच्चे तेल की कीमत बहुत अधिक थी किंतु ओपेक की सक्रियता एवं पेट्रोलियम कच्चे तेल की कीमतों को रेगुलेट करने की क्षमता के कारण कीमतों में आशा के विपरीत गिरावट आई।

[  ] यह देश सोशल विजनरी देश नहीं है बल्कि यहां के लोग उन भारतीयों की तरह ही है जो पेट्रोल की कीमत बढ़ने पर मातमी जुलूस निकालने लगते हैं। ना तो इस देश की सरकार उन्हें अन्य उत्पादन कार्यों में लगा पाई और ना ही इस देश के नागरिक अन्य किसी काम के लायक रहे। जानकार कहते हैं कि वेनेजुएला की आबादी केवल शासकीय योजनाओं का लाभ उठाकर जीने वाली आबादी बनकर रह गई। और उस आबादी का विकास तो बिल्कुल भी नहीं होता जो घर बैठकर खाती हो।

[  ] भारत में यह प्रवृत्ति धीरे-धीरे तेज होने लगी है। सब्सिडी किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए दीमक से हटकर और कुछ नहीं।

[  ] वेनेजुएला की सरकार हर हालत में तेल का उत्पादन स्वयं अपनी कंपनी से कराती है। आप बेहतर तरीके से समझ सकते हैं कि प्राइवेट प्लेयर अगर किसी व्यवसाय को नहीं कर पाए तो उस देश की अर्थव्यवस्था नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है। और ऐसा ही हुआ है वेनेज़ुएला के साथ । इधर भारत में हाल के दौर में जब भारत में सरकारी कंपनियों में पूंजी की सहभागिता बढ़ाई गई तब लोगों ने हंगामा खड़ा कर दिया।

[  ] डब्ल्यूटीओ के समझौते के अनुसार विश्व की सरकारों को सब्सिडी और सरकारी नियंत्रण में कमी लाने की शर्त सबसे प्रभावी शर्त है । भारत में अत्यधिक सब्सिडी की शिकायत कनाडा की अगुवाई में डब्ल्यूटीओ के दफ्तर में कई बार पहुंची है। यूरोपीय देशों ने 2018 से 2019 तक भारत के खिलाफ नकारात्मक वातावरण बना दिया था।  दुर्भाग्यवश कोविड-19 पेंडामिक की स्थिति में सभी को प्रभावित कर दिया है। वरना यूरोपीय संघ भारत के व्यापारिक एवं उत्पादन क्षमता के विरुद्ध तेजी से सक्रिय था।

[  ] वैश्विक महामारी के चलते विश्व के कई देशों को मुद्रा संकट का सामना करना पड़ रहा है भारत की स्थिति भी वही है अगर भारत कोटक की सलाह मान ले ऐसी स्थिति में भारत गंभीर मुद्रा संकट से घिर सकता है ।


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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...