17.7.21

दानिश को मारना तालिबान की सबसे बड़ी भूल है रवीश जी लानत गोली पर भेज रहे हैं

*दानिश को श्रद्धांजलि*
दानिश सिद्दीकी की तालिबान कल हत्या कर दी जो दुखद पहलू है। उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना है।
   मित्रों सबको अपनी बात कहने का हक़ है यह सवाल ठीक है और दानिश अपनी बात नहीं कह पाए इसका मलाल उन सभी को भी होना चाहिए जो भारत में अपने अधिकारों को लेकर कुछ ज्यादा ही सेंसिटिव है।
जहां मानवता का प्रश्न है वहां दानिश की मौत पर सारी मानवीय संवेदना उनके साथ हैं। और रहेंगे क्योंकि भारतीय संदर्भ हमेशा हमें संवेदनाओं और मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं। मैं उन लोगों से असहमत हूं जो दानिश की हत्या पर अजीबोगरीब टिप्पणी कर रहे हैं।
यह मेरी व्यक्तिगत राय है। दानिश की हत्या अलावा कुछ दिनों से अर्थात पिछले 1 हफ्ते से तालिबान लड़ाकू की साइकोलॉजी और विश्व में लोगों के मस्तिष्क में कुछ सवाल खड़े हो रहे हैं। इन्हें अब समझने की जरूरत है तो आइए वह सवाल कौन से हैं जानते हैं हम
[  ] क्या तालिबान लड़ाके किसी मानवतावादी व्यवस्था के पोषक होंगे..? - स्पष्ट रूप से नहीं परंतु तालिबान इन दिनों कितने हिस्सों में बटा हुआ है जो आपस में ही आने वाले समय में आपसी रंजिश ओं का शिकार हो सकेंगे।
[  ] क्या अफगान तालिबानियों के प्रति सकारात्मक सोच रखता है। इस मसले पर लोगों का कहना है कि तालिबान और उनके सिद्धांतों को तालिबान की जनता सिरे से खारिज करती नजर आती है।
           डूरंड लाइन पर तालिबान विश्वास ही नहीं करते इससे पाकिस्तान की स्थिति बेहद कमजोर और डरी हुई है। अभी आपने देखी लिया कि किस तरह से पाकिस्तान की सेना पर तालिबान ने आक्रमण किया और सैनिकों को मौत के घाट उतारा है। आपको याद होगा तालिबान ने पाकिस्तान को डिक्टेट ना करने का भी आदेश दिया है... साथ ही साथ तालिबान टर्की को भी भाव नहीं दे रहा है यह एक आश्चर्यचकित कर देने वाली स्थिति है।
     टि्वटर पर स्पेस चलाने वाली वानी रफत ने ऐलान किया था कि अब तालिबान से कोई नहीं बच सकता और वह तालिबान के पक्ष में सक्रिय वातावरण निर्मित कर रही थी। चकित कर देने वाली बात यह है कि वानी रफत और उसके समर्थक कश्मीरी स्लीपर सेल है जो वैचारिक रूप से भारत का भला नहीं चाहते। एक बहुत छोटा सा उदाहरण है परंतु यह बहुत जरूरी सूचना भी है खुफिया तंत्रों के लिए कि इस तरह के भारत विरोधी मंतव्य बनाने के प्रयासों को सोशल मीडिया पर खास तौर पर ट्विटर पर भारत के अंदर को प्रतिबंधित कर ही देना चाहिए।
मित्रों अब हम आते हैं मूल विषय पर।
    दक्षिण एशियाई देशों में ऐसी स्थिति ना केवल चिंतनीय है बल्कि इस पर भारत सरकार को और भारतीय जनता को सतर्क रहने की जरूरत है जहां तक भारत सरकार का सवाल है उस पर हमें किसी भी तरह का मैं तो संडे करना चाहिए ना ही किसी भी प्रकार से कोई मंतव्य स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। ऐसी स्थिति में भारत सरकार क्या करेगी यह सब भारतीय रक्षा व्यवस्था के भीतर इनबिल्ट है।
   इस वक्त हमें सरकार पर ही निर्भर रहना होगा। क्योंकि भविष्य में कभी भी तालिबान भारत के भीतर तक आने की क्षमता नहीं रखते और न ही रख सकेंगे ।
    कश्मीर वैली के संदर्भ में एक तथ्य समझना जरूरी है कि भारत में अलगाववादी विचार अभी मौजूद है लेकिन उनकी संख्या इतनी नगण्य है वे कश्मीर की शांति को समाप्त करने की क्षमता नहीं रखते। हां यह सच है कि वे लोग प्रयास करते रहेंगे जैसा कि ट्विटर पर वाणी रफत ने किया। और आतंकियों के कनेक्शन अभी समाप्त हुए हो ऐसा भी नहीं लगता क्योंकि लगातार आतंकवादी घटनाएं घटित होती जा रही है.... भले ही इनकी आवृतियों में कमी आई हो .
   पाकिस्तान और अलगाववादी दोनों ही तालिबान के फिर से सिर उठाने पर आशान्वित अवश्य है परंतु अब उनके लिए कन्फ्यूजन की स्थिति स्वयं तालिबानी पैदा कर रहे हैं।
    जानकारों की बातों से मैं सहमत हूं कि शायद यूरोप यह नहीं चाहता कि दक्षिण एशिया में शांति बनी रहे। अगर यूरोपीय चाहता तो जो-बायडन  एडमिनिस्ट्रेशन अफगान से वापसी के बारे में ना सोचता । परंतु लोग यह भी मानते हैं कि भविष्य में उन्हें नेटो देश और क्वार्ड इस संकट का हल खुद ही लेंगे। इन सवालों के उत्तर भी भविष्य में ही मिल सकते हैं फौरी तौर पर कुछ कहना या मंतव्य बना लेना जल्दबाजी है।
     चीन की भूमिका सदैव हर मामले की तरह तालिबान मुद्दे पर भी संदिग्ध ही रहेगी ऐसा मेरा मानना है।
    वैसे एक बात स्पष्ट है कि दक्षिण एशिया में हिंदूकुश से लेकर दक्षिण एशिया के पश्चिमी देशों तक शांति और विकास भारत की परिकल्पना है जो देर सबेर पूर्ण होगी क्योंकि भारत का जियोपोलिटिक्स में राजनीतिक वजूद कमजोर नहीं है।

कोई टिप्पणी नहीं:

Wow.....New

धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...