21.12.20

भारतीय योगा की नाव : पतवार डॉलर और यूरो की...!



मेरे एक परम सम्मानीय मित्र स्वामी अनंत बोध चेतन इन दिनों लिथुआनिया मैं योगा स्टूडियो चला रहे हैं । दो विषय में स्नातकोत्तर डिग्री और योग तथा दर्शन में पीएचडी अंग्रेजी संस्कृत हिंदी के जानकार स्वामी अनंतबोध चैतन्य भारत से 6000 किलोमीटर दूर लिथुआनिया में सनातन की धारा को जीवंतता दे रहे हैं। लिथुआनिया के बारे में जान लीजिए ... कभी इतिहास में एक बड़ा देश हुआ करता था यूएसएसआर शामिल लिथुआनिया 1990 की सोवियत संघ की टूटने पर सबसे पहले आजाद हो गया ।

पूर्वी यूरोप का इस देश की आबादी लगभग 29 लाख है साथ हीी देश अब यूरोपीय यूनियन का तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था वाला देश है। इस देश को बाल्टिक टाइगर भी कहा जाता है। स्वामी अनंत बोध बताते हैं कि वे सनातन संस्कृति के विस्तार के लिए  लिथुआनिया में है जहां भारतीय हिंदुओं की संख्या  लगभग दशमलव 0•06% है। इस देश में इंटरनेट सिस्टम सबसे तेज है और यहां सभी नागरिक इंटरनेट की यूजर हैं। 
  
सांसद ( योनोवा ) Eugenijus Sabutis के साथ योगी अनन्त बोध
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से  पीएचडी की डिग्री लेकर गए इन युवा योगी को भारत की पीएचडी डिग्री होने के बावजूद योगा एलाइंस नामक एक संस्थान से हजारों यूरो देकर योगा स्टूडियो चलाने की अनुमति प्राप्त हुई। यूरोप में अधिकांश घर स्टूडियो के नाम से किराए पर मिलते हैं। और जहां योगा सिखाया जाता है वह योगा स्टूडियो के नाम से प्रसिद्ध हो जाता है। यूरोपियनस व्यवसाई बुद्धि देखें तो आप दांतो तले उंगली दबा लेंगे !
  भारत का पीएचडी होल्डर जिसने दर्शन और योग में पीएचडी की हो को भी उक्त सर्टिफिकेट हासिल करना पड़ा। विश्व के अधिकांश देशों में बाबा रामदेव के पतंजलि संस्थान से योग की शिक्षा हासिल करने वालों को योग सिखाने का लाइसेंस हासिल हो जाता है। ऐसे कुछ संस्थान और भी हो सकते हैं परंतु योगी अनंत बोध और मुझे इतना ही मालूम है ।

मित्रों विश्व के मानचित्र पर जहां भी योगा को स्वीकार किया गया है इनकी अपनी नियमावली है लेकिन यूरोप एक ऐसा महाद्वीप है जहां भारतीय योग के लिए यूरोपीय संस्थानों से संबद्धता और प्रशिक्षण लेना जरूरी है। चलते-चलते आपको बता दूं कि- लिथुआनिया राष्ट्र की बेरोजगारी अब मात्र 9% तथा वह बोली जाने वाली भाषा लिथुआनियाई है। और यह सबसे प्राचीन बोली जाने वाली भाषा संस्कृत की समकालीन या उसके आसपास की है। लिथुआनिया में बायोटेक्नोलॉजी वहां की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाती है।
 एक खास बात और विश्व की तरह पाकिस्तान जैसे देशों के नागरिकों को वहां वीजा और जॉब नहीं मिलता  है । कारण मत पूछिए । जबकि भारत के प्रति उनका आकर्षण अद्भुत है ।

19.12.20

कविता कब लौटेगी, बीते दिन की मेरी तेरी राम कहानी ।।

वो किवाड़ जो खुल जाते थे, 
पीछे वाले आंगन में
गिलकी लौकी रामतरोई , 
मुस्कातीं थीं छाजन में ।
हरी मिर्च, और धनिया आलू, अदरक भी तो  मिलते थे-
सौंधी साग पका करती थी , 
मिटटी वाले बासन में ।।

वहीं कहीं कुछ फुदक चिरैया, कागा, हुल्की आते थे-
अपने अपने गीत हमारे, 
आँगन को दे जाते थे ।।
सुबह सकारे दूर कहीं से 
सुनके लमटेरों की  धुन
जितना भी हम समझे 
दिन 
भर राग लगाके गाते थे ।। 

कुत्ते के बच्चे की कूँ कूँ, 
तोते ने रट डाली थी
चिरकुट बिल्ली घुस चौके में, 
दूध मलाई खाती थी ।
वो दिन दूर हुए हमसे अब, 
नैनों में छप गई कथा
चने हरे भुनते, खुश्बू से , 
भीड़ जमा हो जाती थी ।।

गांव पुराने याद पुरानी, 
दूर गांव की गज़ब कहानी ।
कब लौटेगी, बीते दिन की 
मेरी तेरी राम कहानी ।।
शाम ढले गुरसी जगती थी, 
सबके घर की परछी में-
दादी हमको कथा सुनाती, 
एक था राजा एक थी रानी ।।
गिरीश बिल्लोरे मुकुल

15.12.20

मानसिक संवाद एक रहस्यमयी घटना भाग -दो

अचानक एक रात वही बेचैनी से जिसे उसकी पत्नी अनिद्रा रोग कहती थी से खुद को बिस्तर पर रोक न सका । थोड़ा बहुत कोशिश की कि नींद आ है पर संतोष को नींद न आई । स्लीपिंग पिल्स लेता न था कि वह सो जाता । पूरी रात करवटें बदलता इससे उम्दा तरीका यह था कि वह अब बस जागता रहे पर क्या करता शरीर अजीब से उत्पीड़न से निढाल सा होने लगा कि अचानक लैंडलाइन पर घण्टी बजने से उसकी वेचैनी और बढ़ गई । फोन पर बात न हो सकी । उन दिनों मोबाइल फोन न था । सो संतोष अल्ल सुबह गांव निकला उसे लगा शायद घर जाकर कुछ शांति मिले ?
  विचारों में घुलनशील हो रहीं कुशंकाएं उसको भयंकर परेशानी में डाल रहीं थीं । शहर से गांव की दूरी कम न थी । 150 किलोमीटर दूर आवागमन के संसाधनों में अनिश्चतता की संभावना के चलते उसने मित्र से उन दिनों चलने वाली लूना उधार ली । फुल टैंक फ्यूल और अलग से दो लीटर कुप्पी में पेट्रोल डलवाकर गांव पहुंचा । 
घर के आंगन में पिता की अर्थी देख सब कुछ साफ होने लगा था कि उसे कौन तेज़ी से याद कर रहा था। चाचा ने बताया बीती रात जब पिता मृत्यु शैया पर थे तो तुमको बहुत याद कर रहे थे। 
संतोष के कज़िन ने उसे पोस्टमास्टर की मिन्नतें कर रात तीन बजे तक फोन लगाने की कोशिशें नाक़ाम रहीं । पर सभी उसे ही याद कर रहे थे । 
   इसे टेलीपैथी कहा जा सकता है । शहर में रहने वाला युवा एक पल भी घर में न रुक सका था सुबह होते ही वह गांव के लिए निकला । ऐसी घटनाएं अक्सर देखने सुनने में आतीं हैं । पर यहां भी फ्रीक्वेंसी वाला फैक्टर काम कर रहा था । सन्देश का सटीक रिसीवर तक डिलीवर होना वर्ना बेचैन और कई रिश्तेदार हो सकते थे । 
    इस घटना में संतोष और गांव तथा मुख्यरूप से पिता के अंतिम समय के संवाद की फ्रीक्वेंसी मैच कर रही थी । यह अलग बात थी कि संदेश स्पष्ट नहीं था । पर उसे भाँप लिया था रिसीवर ने । 
   मित्रो, यहां हम सामान्य व्यक्तियों के संवाद सम्प्रेषण की बात कर रहे हैं । हम किसी भी प्रकार से योगाभ्यास करने वालों की बात नहीं कर रहे हैं । एक तथ्य यह भी कि -"जब कोई आपको दुःख या विछोह की स्थिति में याद करता है तो आप संतोष की तरह व्याकुल हो जाते हैं । 
क्रमशः जारी...
   

14.12.20

मानसिक संवाद एक रहस्यमयी घटना भाग -एक

रहस्य रोमांच और आध्यात्म
आप संवाद कर सकतें हैं बिना किसी उपकरण के हज़ारों मील दूर आश्चर्य हो रहा है ना कि आप से यह कहा जा रहा है कि हजारों किलोमीटर दूर बिना किसी यंत्र के संवाद कर सकते हैं। जी हां यह यथार्थ है और संभव भी कि आप अपने से हजारों किलोमीटर दूर ऐसे लोगों से संवाद कर सकते हैं जिनको नाम जानते हो ना ही आपका उनसे कोई परिचय हो।
   यह प्रक्रिया इस घटना से समझी जा सकती है
घटना साई बाबा के जीवन से जुड़ी है
एक समय की बात है कि साईं बाबा मस्जिद में बैठे हुए अपने भक्तों से वार्तालाप कर रहे थे| उसी समय एक छिपकली ने आवाज की, जो सबने सुनी और छिपकली की आवाज का अर्थ अच्छे या बुरे सकुन से होता है| उत्सुकतावश उस समय वहां बैठे एक भक्त ने बाबा से पूछा - "बाबा यह छिपकली क्यों आवाज कर रही है? इसका क्या मतलब है? इसका बोलना शुभ है या अशुभ?"
बाबा ने कहा - 'अरे, आज इसकी बहन औरंगाबाद से आ रही है, उसी खुशी में यह बोल रही है " उस भक्त से सोचा - 'यह तो छोटा-सा जीव है..!
उसी समय औरंगाबाद से एक व्यक्ति घोड़े पर सवार होकर बाबा के दर्शन करने आया ।  बाबा उस समय नहाने गये हुए थे । इसलिए उसने सोचा कि जब तक बाबा आते हैं तब तक मैं बाजार से घोड़े के लिए चने खरीद कर ले आता हूं| ऐसा सोचकर उसने चने लाने का जो थैला कंधे पर रखा हुआ था, धूल झाड़ने के उद्देश्य से झटका तो उसमें से एक छिपकली निकली - और फिर देखते-देखते वह तेजी से दीवार पर चढ़ते हुए पहली वाली छिपकली के पास पहुंच गयी ।  फिर दोनों खुशी-खुशी लिपटकर दीवार पर इधर-उधर घूमती हुई नाचने लगीं । यह देखकर सब लोग आश्चर्यचकित रह गये । यह कहना बाबा की सर्वव्यापकता का सूचक था ।  वरना कहां शिरडी और कहां औरंगाबाद..!
इस कथानक के तीन बिंदु अति महत्वपूर्ण हैं । दो छिपकलियाँ और उनके सन्देश को  इंटरसेप्ट करने वाले साईं बाबा ।  साईं ने उस फ्रीक्वेंसी को पकड़ लिया जिसे एक छिपकली ने दूसरी को  आगमन की सूचना के रूप में भेजा गया था या रिसीव किया था । यह अगर काल्पनिक लगती है...?
   1943 में दूसरे विश्वयुद्ध के समय एक गरीब दम्पति का बेटा ब्रिटिश भारत के सैनिक के रूप में बर्मा फ्रंट पर तैनात था ।  उसके माता-पिता फतेहगढ़  में रह रहे थे । एक शाम अचानक नीम करौली बाबा उन वृद्ध दंपत्ति के घर पहुँचते हैं ।  वृद्ध दंपत्ति उनको भोजन कराते हैं और  बाबा एक बिस्तर पर सो जाते हैं । रातभर दंपत्ति इस बैचैनी में सो न पाए कि बाबा को हम उचित सम्मान न दे सके । पर उनने देखा बाबा रात भर कराहते कसमसाते रहे । स-रो-पा कंबल में ढंके बाबा ने सुबह उठकर उनको वही कंबल सौंपा । और आदेश दिया कि -"इसे गंगा में विसर्जित कर आओ रास्ते में खोलना मत । और हाँ तुम्हारा पुत्र एक माह में लौट आएगा !"
    कंबल अपेक्षाकृत भारी था उसमें  कुछ धातुओं की आवाज़ आ रही थी । पर भक्त दम्पत्ति ने गुरुदेव के आदेश के अनुसार चाह कर भी न देख सके ।
     एक माह पश्चात जब पुत्र लौटा तो उसने युद्ध की दास्तां बयाँ की । और बताया कि वह किस प्रकार जापानी सेना की गोलियों की बौछार से घिरा था । पर एक भी कारतूस उसे छू न सका । उस तक आने वाली हर गोली कभी दाएं से तो कभी बाएं से निकल जाती ।
    निश्चित ही मृत्यु के निकट होने पर माता-पिता को अन्तस् से याद करने वाले युवा ने करुणा भाव से माता-पिता को याद किया होगा । शायद पुकारा भी हो ?
   सुधि पाठकों यह सत्य है कि उस संदेश को इंटरसेप्ट करने वाले नीम करौली के बाबा ही थे ।
   कैसे होता है यह कम्युनिकेशन
ऐसे संदेश मानसिक ऊर्जा से प्रसारित होते हैं । आप बिना किसी पावर के न तो फोन चला सकते न अन्य कोई यंत्र । फोन रिसीवर एवम ब्रॉडकास्टर दौनों कार्य ऊर्जा और निर्धारित फ्रीक्वेंसी पर सक्रिय होता है । आपका मन और मस्तिष्क विचारों को हाई फ्रीक्वेंसी पर विस्तार देते हैं । अक्सर हम अपने स्नेही जन को जब याद करते हैं तब वह भी आपको तुरन्त याद करता है । शायद आपका फोन उसी समय के आसपास बज उठे और स्नेहीजन कह दे कि -"मुझे तुम्हारी याद आ रही थी , सो कॉल कर लिया । आप ने अवश्य ही कहा होगा कि -"और मुझे भी..!"
     हम ऐसी घटनाओं को हल्के में लेते हैं । जबकि यह एक प्रणाली है। इसके आधार पर आप को हमको सबको सिखाया जाता है कि-"ईश्वर को अंतर-आत्मा से याद करो, वे अवश्य ही मदद करेंगे ।"
   होता भी यही है । हमारा परिवार गोसलपुर में पिता जी के साथ रहता था । और जब भी कोई कठिनाई होती तब ब्रह्मलीन मूलानंद जी ब्रह्मचारी आ जाते थे । ब्रह्मलीन स्वामी शिवदत्त महाराज तो हमारे सरकारी आवास के चक्कर लगाया करते थे । 
   मित्रो, यह सब संभव है योग क्रिया से । योगी तो लाखों किलो मीटर दूर तक संवाद कर लेते हैं । पक्षी भी इसी प्रकार से संवाद कर सकते हैं । रामायण महाभारत काल में तो यह सब सहज सम्भव था । दक्षिण का राजा रावण उत्तर के राम के साम्राज्य के हर पहलू से भिज्ञ था । राम के वंश के राजाओं को भी वैश्विक जानकारी थीं । तब जब कि न सड़के उम्दा रहीं थीं कि कोई हरकारा सन्देश शीघ्र ही लाए । फिर क्या था कम्यूनिकेशन प्लान ? मेरे हिसाब से केवल "मानसिक-सन्देश सम्प्रेषण"  और यह सब ध्यान योग से ही सम्भव है । 
   एक क्रिया मैं करता हूँ । जिससे मिलना है उसे ध्यानस्त होकर तीव्रतम उत्कंठा के साथ स्मरण किया करता हूँ । इसका परिणाम उसका या तो फोन आ जाता है या प्रत्यक्ष भेंट । तीन दिन पूर्व एक एस एल आर श्री ललित ग्वालवंशी का अचानक ही स्मरण हो आया । हम कई दिनों से कोविड की वजह से नहीं मिल सके । आज इस आलेख के लिखते समय शाम को उनका स्वयम फोन आ गया । 
    हममें और योगियों में यही अंतर है । हम स्मरण करते हैं । वे पूर्ण संवाद किया करते हैं । 
   यह आर्टिकल क्यों लिख रहा हूँ मुझे नहीं ज्ञात होता है । न ही समझ पा रहा हूँ । परन्तु एक ब्रह्म सत्य यह है कि मुझे बार बार यही महसूस हुआ कि कोई कहता है कि इस विषय पर लिखो। सुबह से लगा हूँ पर अब पूर्ण हुआ लेखन एक नींद के बाद किसी की आवाज़ ने उठा कर इसे पूर्ण कराया । प्रातः के 4 बजने को हैं । आर्टीकल सुप्रभात के साथ सादर प्रस्तुत है । 



    

10.12.20

पहाड़ पर लालटेन थे मंगलेश डबराल


आजादी के  1 साल बाद 16 मई  1948 को जन्मे मंगलेश डबराल का जन्म टिहरी गढ़वाल प्ले हुआ और आज 9 दिसंबर 2020 को मंगलेश जी  परम यात्रा पर निकल गए। मंगलेश डबराल को भाषित करने के लिए यह वक्त नहीं है लेकिन उनके मोटे तौर पर किए गए कार्य की चर्चा करना जरूरी है। उनके 1981 में कविता संग्रह पहाड़ पर लालटेन घर का रास्ता 1988 तथा हम जो दिखते हैं 1995 आवाज भी एक जगह है नए युग में शत्रु यह । मंगलेश डबराल जी को ओमप्रकाश स्मृति सम्मान 1982 श्रीकांत वर्मा सम्मान 1989 साहित्य अकादमी का पुरस्कार 2000 प्राप्त हुआ है खास यह बात थी कि ऐसी कोई खबर इनके जीवन वृत्त में  दर्ज नहीं है कि उन्होंने असहिष्णुता पूर्व सम्मान को लौटाया हो। मंगलेश डबराल  के एक कविता संग्रह है आवाज भी एक जगह है का इटली भाषा में अनुवाद अनखीला वह चाहिए उन लोगों को तथा अंग्रेजी में 20 नंबर डज नॉट एक्जिस्ट प्रकाशित हुई डबराल जी  के दो कविता संग्रह 2 भाषाओं में अनुवाद किए गए किंतु खुद डबराल जी ने पाब्लो नेरुदा के अलावा आधे दर्जन से अधिक लोगों की कविताएं अनुवादित की
आइए आज हम उनकी कृति पहाड़ पर लालटेन की कविता लेते हैं अत्याचारी की थकान शीर्षक से लिखी गई इस कविता में उन्होंने जो लिखा है बेशक बेहद जीवन रेखा चित्र है। अत्याचारी जब थक कर चूर हो जाते हैं चलिए आप खुद ही पढ़ लीजिए इस कविता को जिसका रचनाकाल 1980 था-

अत्याचार करने के बाद

अत्याचारी निगाह डालते हैं बच्चों पर

उठा लेते हैं उन्हें गोद में

अपने जीतने की कथा सुनाते हैं

कहते हैं

बच्चे कितने अच्छे हैं

हमारी तरह नहीं हैं वे अत्याचारी

बच्चॊं के पास आकर

थकान मिट जाती है उनकी

जो पैदा हुई थी करके अत्याचार ।

 उनके निधन को व्यक्तिगत क्षति इसलिए मानता हूं कि उनकी कविता बहुत जटिल और पेचीदा नहीं होती थी जो स्पष्ट कर देती हैं कि व्यक्ति जिससे मैं कविता में मिल रहा हूं कितना सुकुमार और सच-सच बयां करने वाला होता है। मित्रों मेरा पथ अलग है उनका पंथ अलग है फिर भी मैं उनके काव्य शिल्प का प्रशंसक है और उनका विद्यार्थी मान लीजिए। मैं अपनी परंपराओं के अनुसार डबराल जी को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं शत शत नमन
प्रगतिशील कविता कभी-कभी इतनी जटिल हो जाती है कि वह कविता जैसी तो कदापि नहीं लगती परंतु पूज्य मंगलेश जी की फुटकर में भी पढ़ी है ।

7.12.20

WhatsApp DP | Short Film | Indie Routes Films | Reaction YouTube film

##WhatApp_DP By Indie Routes Films 
Staring *ing Abha Joshi #Ravindr_Joshi

मर्मस्पर्शी यूट्यूब वीडियो है . 
यह एक सार्वभौमिक सत्य है कि रोजगार के लिए यात्रा करनी पड़ती है । भारत से पिछले 25 वर्ष में बहुत सारे बच्चे विदेशों में गए। इन बच्चों की वापसी अब असंभव है। आपके पूर्वज एक ही पहले पिता माता जब गांव से शहर आए तो वापस फिर कभी नहीं गए उन गांवों में जहां उनके जन्म के नाम के लड्डू बांटे गए थे। उसके बाद आपके बच्चे मेट्रो दिल्ली मुंबई गुड़गांव चेन्नई पुणे हैदराबाद यानी भाग्यनगर में साइबर मजदूरी करने लगे तो वे भी वापस आने में आनाकानी कर रहे हैं।मेट्रो से निकलकर अमेरिका, कैनेडा  आस्ट्रेलिया  इंग्लैंड इटली जर्मनी फ्रांस नीदरलैंड, आदि  देशों में गए हैं वे क्या खाक आपका कस्बा नुमा शहर जबलपुर जैसे शहरों को पसंद करेंगे जहां आज भी गाने गा गा कर कचरा इकट्ठा किया जा रहा हो। इस फिल्म में एक डायलॉग है वहां इंडियन डायसपोरा केवल अपने ही हुजूम के साथ रहता है। उसे उस देश की आबादी में स्वीकार्य नहीं किया है। 10 से  15 साल पहले वैश्वीकरण के उपरांत पड़ने वाले प्रभाव को टेक केयर नाटक में बखूबी प्रदर्शित किया गया था शहीद स्मारक में आयोजित विवेचना #अविभाजित नाट्य समारोह में यह नाटक हृदय पर गंभीर रूप से चोट कर रहा था।
उसके कुछ सालों बाद हमने एक सत्य कथा सुनी की एक मां अपने फ्लैट में मरने के बाद सूखी हुई ढांचे के रूप में बेटे के इंतजार में पड़ी रही।
मायानगरी के पॉश इलाके 
लोखंडवाला के वेल्सकॉड टावर की दसवीं मंजिल पर स्थित एक बंद फ्लैट में रविवार को 63 वर्षीय महिला का कंकाल मिलने से सनसनी फैल गई। पुलिस ने बताया कि महिला का बेटा डेढ़ साल बाद रविवार को दोपहर जब भारत आया तो मां के फ्लैट का दरवाजा अंदर से बंद था, जिसे तोड़ने के बाद अंदर जाने पर उसने मां का कंकाल बेड पर देखा। महिला की पहचान आशा केदार साहनी के रूप में हुई, जिसका बेटा रितुराज साहनी यूएसए में आईटी इंजिनियर हैं। 
भारतीय मध्यम वर्ग भी डालर्स के मोहपाश में बंध गया..?
जी हां भारत का मध्यवर्ग डॉलर के जाल में फंसा नजर आ रहा है ।  मध्य वर्ग एक ऐसी खतरनाक भूल करने जा रहा है जिससे उसकी पारिवारिक और कौटुंबिक आकृति में बदलाव बहुत करीब दिखाई देने वाला है। क्योंकि भारत का मध्य वर्ग भारत के आर्थिक विकास रीढ़ की हड्डी है । और इस वर्ग से निकले हुए बच्चे भारत के लिए विदेशी मुद्रा कमाने  की योग्यता  में अब  सबसे आगे नजर आते हैं ।  फिल्म निर्माता एवं अभिनेता श्री रवि जोशी जी  से आज चर्चा हुई  उनका  मानना है कि -"भारत का मध्य वर्ग अपने बच्चों को विदेश भेज अवश्य देता है किंतु बच्चों के सिर पर हाथ फेरने के लिए तरसता भी है"
फिल्म में एक दृश्य है जिसमें नायिका यूएस में बसे हुए बेटे और उसकी संतान तथा बहू के विषय में चर्चा करते समय नायक के मित्र का फोन आता है तो वह अपने पुत्र की जबरदस्त तारीफ करता है। जबकि संवाद  बोलते समय नायक के चेहरे पर वह कसक स्पष्ट नजर आती है जो संतान से मिलने के लिए एक पिता के चेहरे से झलकती है । दिल्ली मुंबई और नए-नए महानगरों में ऐसे बुजुर्ग बहुत मिल जाएंगे जो मॉर्निंग वॉक के समय विदेश में बस रहे अपने बच्चों के बारे में बड़े गर्व से बताते हैं। सुधि पाठकों भारत का सारा टैलेंट मल्टी नेशंस के शिकंजे में है क्योंकि ना तो भारत और ना ही भारत की परिस्थितियां उस योग्यता को समझ पा रही हैं । 
  अक्सर मैं यूएस और फिर कनाडा में बसे अपने भतीजे की पुत्री से बात करता हूं...ताकि उसे अपने से बांध कर रख सकूं। शायद वह जब भारत आए तो हमारी मुलाकात अजनबीयों की तरह ना हो ..!
    
फाह्यान और वास्को डी गामा जो पूरब के भारत को तलाशते हुए भारत आई थी वोल्गा से गंगा तक संस्कृति के चार अध्याय को समझना चाहते थे अपुष्ट जानकारी के मुताबिक एक पंथ के प्रवर्तक का भारत आना हुआ था। उन तीनों भारत का दर्शन अध्यात्म सामाजिक सांस्कृतिक वैभव विज्ञान कला राजनैतिक ज्ञान का अक्षय भंडार माना जाता था। उसी भारत के लोग डॉलर की तलाश में साइबर लेबर बनके विश्व के चक्कर लगा रहे हैं और आत्मिक अंतर्संबंध प्रॉपर्ली सिंक्रोनाइज नहीं हो पा रहे है। मित्रों कृषि प्रधान भारत में आत्मनिर्भरता जैसी योजना का लाना यही सिद्ध करता है कि हमारे विश्व की ओर प्रवाहित बौद्धिक संपदा को वापस लाया जा सके परंतु क्या करें..?  यह बच्चे भारत में लौट कर नहीं आने वाले। लेकिन हां हर मध्यवर्गीय पिता माता और विदेश जाने वाला युवा दक्षिण भारत के गांवों के बारे में गूगल करें तो उसे स्पष्ट हो जाएगा कि भारत और विश्व के किसी भी कोने से रिटायर्ड चपरासी से लेकर आईएएस आईएएस आईपीएस की अंतिम इच्छा गांव में वापस लौटना ही होती है बहुत सारे लोगों को आप दक्षिण भारत में मस्त रिटायर्ड लाइफ जीते देख सकते हैं। पर सच तो यह भी है कि अब भारत की डस्ट और गंदगी प्रवासी परिंदों को पसंद नहीं आती । 
आगे आने वाले दौर की पीढ़ीयाँ भी यही सब करेगी हां सच है कि वह लौटेंगे नहीं। 
इस फिल्म को मैं पांच सितारे भी दूं तो कम है।
         यूट्यूब के  इंडी रूट्स फिल्म  चैनल पर प्रस्तुत इस वीडियो में एक कमेंट भी है जिसमें एक व्यक्ति ने लिखा है कि यह मेरी कहानी है । 
इस आप पढ़ना ना भूलें । 
    मित्रों मेरे एक मित्र अनुराग त्रिवेदी ने बताया की जब फुदक चिरैया गीत को  स्थानीय नईदुनिया ने गौरैया बचाओ अभियान के तहत छापा तो उनके परिचित रिश्तेदार उसे पढ़ कर रोने लगे थे - उनके भावुक होने का कारण गीत की ये पंक्तियां थी
जंगला साफ़ करो न साजन
चिड़िया का घर बना वहां ..!
जो तोड़ोगे घर इनका तुम
भटकेंगी ये कहाँ कहाँ ?
अंडे सेने दो इनको तुम – अपनी प्यारी गौरैया ...!!
हर जंगले में जाली लग गई
आँगन से चुग्गा भी गुम...!
बच्चे सब परदेश निकस गए-
घर में शेष रहे हम तुम ....!!
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https://m.youtube.com/channel/UCCOt2wDuIe7Szx4PPQ7Jc5Q
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3.12.20

अन्नदाता कृषक भी भारतीय नागरिक है

कृषि कार्य में उन्नत तकनीकी अजमानी की जोखिम बहुत कम किसान उठा पाते हैं चित्र में हरदा जिले के कृषक श्री राजेंद्र गुहा अपने एमबीए किसान पुत्र के साथ नजर आ रहे हैं

 वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन ने भारत सहित 164 देश संधिबद्ध हैं..!
      मित्रों मैं किसान आंदोलन के प्रारंभिक दिनों से ही आंदोलन को फॉलो कर रहा हूं। किंतु उसके पहले आपको बता दूं कि WTO एवम विश्व व्यापार पर भी निरंतर मेरा अध्ययन जारी है ।
         विश्व व्यापार संगठन  के 1 जनवरी  1995 के पूर्व  विश्व व्यापार का रेगुलराइजेशन आपसी अस्थाई समझौता के तहत हुआ करता था । इसे सामान्य समझौता ट्रेड एवं टैरिफ कहा जा गया था। अंग्रेजी में इसे general agreement on trade and tariff संक्षेप में  GATT  कहा गया जो सन 1986 से 94 प्रभावी रहा । इस पर आधारित समझौते अस्थाई और अनुबंध तोड़ भी दिए जाते थे और इसी कारण से विश्व व्यापार संगठन की स्थापना की गई जिसे हम डब्ल्यूटीओ के नाम से जानते हैं
डब्ल्यूटीओ अति महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संस्था है जो विश्व मैं व्यापारी व्यवस्था को विनियमित यानी रेग्युलेट  करती है। 
आइये हम चर्चा करते हैं कनाडा की ! इस अचानक चर्चा की वजह है । 
कनाडा विश्व के लिए यूरोप का एक बहुत महत्वपूर्ण राष्ट्र है । जो कि नाटो, जी-20 और जी-7 सहित कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों एवं संगठनों का हिस्सा भी है। भारत में  सब्सिडी एवं एमएसपी के विरुद्ध  2014 में जस्टिन ट्रूडो ने लीड लेते हुए डब्ल्यूटीओ के प्रमुख वोबर्डो अज़वेडो के समक्ष भारत के विरुद्ध और विश्व व्यापार में अपने हितों के पक्ष में जबरदस्त  दबाव बनाने के लिए ब्राजील और न्यूजीलैंड के साथ लिखित मांग पत्र प्रस्तुत किया। भारतीय व्यापार व्यवस्था से जिन तीन राष्ट्रों को खासी समस्या होने वाली है उनमें कनाडा ब्राजील और न्यूजीलैंड है।
ब्राजील के प्रधानमंत्री मोदी जी के साथ
 न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री मोदी जी के साथ
भारत से समस्या तो चीन को भी है किंतु कृषि के मामले में जिस तेजी से भारत  कृषि उत्पादों के निर्यात में 2014 से कोविड-19 के पूर्व के समय तक जिस  चुनौती दे रहा था उसका सीधा सीधा प्रभाव केनेडा ब्राजील और न्यूजीलैंड पर पड़ रहा था । कृषि प्रधान पंजाब से गए लगभग वहां की आबादी के 5% सिख समुदाय अब वहां अपनी मेहनत के बूते अपना लोहा मनवा चुके हैं । 
आप यह जानकर आश्चर्य करेंगे कि जस्टिन ट्रूडो भारत के लिए अपनी नेगेटिव नैरेटिव के लिए विश्व में जाने जाते हैं ।  सबूत के तौर पर आप याद कीजिए इनकी 2018 की भारत यात्रा तब कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो इन्हें वर्ष 2018 में शाहरुख भाई जान से स्वागत करा कर ही वापस लौटना पड़ा था।
और बाद में खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे की स्थिति में उनने एक इंटरव्यू में कहा कि-"मुझे भारत यात्रा याद नहीं ।" 
  वास्तव में यह सत्य भी है भारत की ओर से इन्हें इनके बर्ताव के चलते प्रोटोकॉल के अनुरूप सम्मान हासिल नहीं हो सका था ।


विश्व व्यापार संधि के अनुसार विश्व के सभी राष्ट्र उत्पादन लागत को स्थिर रखेंगे और सामान्यत: में वैश्विक बाजार में विक्रय की मूल्य में बहुत अधिक अंतर नहीं होना चाहिए।

मित्रों भारत बहुत गरीब देश है । जहां पर जनसंख्या का अधिकांश कृषि से जुड़े व्यक्ति भूस्वामी कृषक ना हो कर कृषि मजदूरों की संख्या के रूप में चयनित होते हैं।
  खेती को उत्तम मानने वाला भारत का सामाजिक ढांचा कृषि को अब उद्योग के रूप में नहीं देखता । साथ ही तकनीकी रूप से किसान का सुविधा संपन्न ना होना सबसे बड़ी समस्या है। भारत में सहकारिता कृषि का भी कांसेप्ट नहीं है।
भारतीय किसान  स्वयं को कंजरवेटिव मानते हुए पूंजी संचय के सापेक्ष प्राप्त आय को व्यक्तिगत खर्चों अनुत्पादक मदों पर खर्च करना अधिक पसंद करते हैं । कैश क्रॉप और अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने की प्रबंधन क्षमता भी अपेक्षाकृत कृषक के पास कम है। 1951 से वर्तमान तक कृषि उत्पादन में मात्र 4 गुना वृद्धि हुई है जबकि  इसमें कम से कम 10 गुना वृद्धि होनी चाहिए थी ।
   भारत में कृषि योग्य भूमि का सही दोहन करने में कृषक असफल रहते हैं। कृषि क्षेत्र में भूमि के सापेक्ष उत्पादन भी अन्य देशों की अपेक्षा बहुत कम है। इसे समझने के लिए आप यह समझने की कोशिश कीजिए जैसे एक दम्पत्ति  अपने बच्चों को बेहतर बनाने में असफल रह जाते हैं  ठीक उसी तरह भूस्वामी किसान भी केवल अधिकतम 5 से 10 गुना फसल ही प्राप्त रहे हैं।
अभी भी भारत में उन्नत तरीके से कृषि कार्य करने में भारत का किसान कमजोर ही साबित हुआ है।
*इसलिए भारत सरकार को एवं राज्य सरकारों को लागत हेतु कैपिटल निर्माण के लिए सब्सिडी देती है ताकि लागत और विक्रय एवं उसके अंतर अर्थात लाभ  में सकारात्मक वृद्धि हो...*
सब्सिडी और बोनस का भरपूर विरोध लिखित रूप में डब्ल्यूटीओ के सामने जस्टिन ट्रूडो रहे अन्य दोनों देशों ब्राजील एवं न्यूजीलैंड के राष्ट्र अध्यक्षों ने हस्ताक्षर करके 2014 में  ही सौंप दिया था।
ब्राज़ील और न्यूजीलैंड के राष्ट्राध्यक्ष को छोड़ दिया जाए तो यहां सबसे संदिग्ध भूमिका में कैनेडियन प्राइम मिनिस्टर जस्टिन नज़र आते हैं। जस्टिन भारत को नागरिक आंदोलनों के संदर्भ में गैर जरूरी अर्थात  अप्रासंगिक सलाह दी कि हमें नागरिक आंदोलन का सम्मान करना चाहिए। फिर याद दिलाता हूँ कि  जस्टिन  वही राष्ट्राध्यक्ष है जिनके अन अपेक्षित भारत प्रवास वर्ष दो 2018 में भारत सरकार को उनके लायक ट्रीटमेंट देना पड़ा था।
  "इस शिकायती पत्र को WTO ने कचरे के डब्बे में डाला माना जाता है। अगर कोई कार्रवाई WHO करता भी तो भारत अपने किसानों को MSP एवम सब्सिडी नहीं रोकी जाती । "

पाठकों कनाडा जैसे महत्वपूर्ण राष्ट्र के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो  इस वक्त राजनीतिक दबाव में अधिक हैं और उन्हें अपनी सत्ता में बने रहने के लिए सांसदों की जरूरत है । साथ ही एक वित्तीय घोटाले में उनके रिश्तेदारों व स्वयम जस्टिन के विरूद्ध कथित रूप से आरोप भी हैं । 
कैनेडा में पाकिस्तान डायस्पोरा के कैनेडियन नागरिकों से चुने गए सांसदों एवं खालिस्तान समर्थित भारतीय डायस्पोरा से चुने गए सांसदों के समर्थन की जरूरत है साथ ही सियासत के लिए धन भी ?
      परंतु अंतरराष्ट्रीय दबाव और भारतीय प्रशासन के संभावित तीखे तेवर के भय से वह केवल नागरिक आंदोलन के अधिकार के सम्मान की बात कह पाए ।
*इससे सिद्ध होता है कि कीमतों का निर्धारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार और डब्ल्यूटीओ संधि के आधार पर ही सामान्यतः होता है। भारत के किसान को पैसा मिलते ही सारा धन सोना चांदी जैसी बहुमूल्य वस्तुओं अथवा गैर उत्पादक कार्यों पर खर्च करने की परंपरागत आदत है। जबकि वर्तमान में कृषि एक औद्योगिक रूप से विकसित होने वाला सेक्टर है..!*

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