अचानक एक रात वही बेचैनी से जिसे उसकी पत्नी अनिद्रा रोग कहती थी से खुद को बिस्तर पर रोक न सका । थोड़ा बहुत कोशिश की कि नींद आ है पर संतोष को नींद न आई । स्लीपिंग पिल्स लेता न था कि वह सो जाता । पूरी रात करवटें बदलता इससे उम्दा तरीका यह था कि वह अब बस जागता रहे पर क्या करता शरीर अजीब से उत्पीड़न से निढाल सा होने लगा कि अचानक लैंडलाइन पर घण्टी बजने से उसकी वेचैनी और बढ़ गई । फोन पर बात न हो सकी । उन दिनों मोबाइल फोन न था । सो संतोष अल्ल सुबह गांव निकला उसे लगा शायद घर जाकर कुछ शांति मिले ?
विचारों में घुलनशील हो रहीं कुशंकाएं उसको भयंकर परेशानी में डाल रहीं थीं । शहर से गांव की दूरी कम न थी । 150 किलोमीटर दूर आवागमन के संसाधनों में अनिश्चतता की संभावना के चलते उसने मित्र से उन दिनों चलने वाली लूना उधार ली । फुल टैंक फ्यूल और अलग से दो लीटर कुप्पी में पेट्रोल डलवाकर गांव पहुंचा ।
घर के आंगन में पिता की अर्थी देख सब कुछ साफ होने लगा था कि उसे कौन तेज़ी से याद कर रहा था। चाचा ने बताया बीती रात जब पिता मृत्यु शैया पर थे तो तुमको बहुत याद कर रहे थे।
संतोष के कज़िन ने उसे पोस्टमास्टर की मिन्नतें कर रात तीन बजे तक फोन लगाने की कोशिशें नाक़ाम रहीं । पर सभी उसे ही याद कर रहे थे ।
इसे टेलीपैथी कहा जा सकता है । शहर में रहने वाला युवा एक पल भी घर में न रुक सका था सुबह होते ही वह गांव के लिए निकला । ऐसी घटनाएं अक्सर देखने सुनने में आतीं हैं । पर यहां भी फ्रीक्वेंसी वाला फैक्टर काम कर रहा था । सन्देश का सटीक रिसीवर तक डिलीवर होना वर्ना बेचैन और कई रिश्तेदार हो सकते थे ।
इस घटना में संतोष और गांव तथा मुख्यरूप से पिता के अंतिम समय के संवाद की फ्रीक्वेंसी मैच कर रही थी । यह अलग बात थी कि संदेश स्पष्ट नहीं था । पर उसे भाँप लिया था रिसीवर ने ।
मित्रो, यहां हम सामान्य व्यक्तियों के संवाद सम्प्रेषण की बात कर रहे हैं । हम किसी भी प्रकार से योगाभ्यास करने वालों की बात नहीं कर रहे हैं । एक तथ्य यह भी कि -"जब कोई आपको दुःख या विछोह की स्थिति में याद करता है तो आप संतोष की तरह व्याकुल हो जाते हैं ।
क्रमशः जारी...