9.5.20

"तेरे हाथ की तरकारी याद आती है अम्मा ओ अम्मा"

"मदर्स डे के अवसर पर भावात्मक एलबम अम्मा यूट्यूब पर जारी "

"तेरे हाथ की तरकारी याद आती है अम्मा ओ अम्मा"
*बहुत कम बोलते हैं बाल नायक मृगांक, सब कुछ कहा करतीं आँखें...!*
मदर्स डे 10 मई 2020 के 2 दिन पूर्व यानी 8 मई 2020 को Indie Routes ने एलबम अम्मा रिलीज़ कर दिया रिलीज के आधे घंटे के भीतर इस एल्बम 1000 दशकों तक पहुंच गया। इस बार आभाष-श्रेयस जोशी ने फिर एक बार रविंद्र जोशी के शब्दों को गुनगुनाया है । इन पंक्तियों के लिखे जाने तक एल्बम को देखने वाले दर्शकों की संख्या 4000 से ज़्यादा हो गई है। फीडबैक से पता चला है कि एक ओर बेतरीन निर्देशन संगीत और लिरिक्स की वजह से एलबम स्तरीय है वहीं माँ और पुत्र के कैरेक्टर्स का अभिनय बांधता भी है भिगोता भी है । 
इस एलबम में जबलपुर के बाल कलाकार मृगांक उपाध्याय ने आंखों को भिगो देने वाला काम किया है । माँ की भूमिका में श्रीमती ज्योति आप्टे नज़र आईं 
वीडियो एल्बम के गीत का लेखन रविंद्र जोशी ने निर्माण एवं निर्देशन श्रीमती हर्षिता जोशी ने किया। इस एल्बम में स्वर एवं संगीत श्री श्रेयस जोशी एवं आभास जोशी का है । 
डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी हरि नाथ गोविंदन विष्णु की सिनेमेटोग्राफी ने एलबम बेहद प्रभावी बन गया है ।

Mrugank is my favourite student in Bal Bhavan jabalpur
😊😊😊😊😊😊😊😊
Name - Mrugank upadhyay 
Dob-5/10/2007 
School -- St Aloysius school polipather, Jabalpur MP Class--8th, 
performing art --tabla 3rd year in BalBhavan Jabalpur MP 
Contact - please call me on 7999380094 or mail me 
girishbillore@gmail.com 

https://youtu.be/d2IvZLKA8vs 
💐💐💐💐💐

7.5.20

गुलाबी चने, यूएफओ किचन, गोसलपुरी लब्दा और लोग डाउन 3.0


लॉक डाउन के तीसरे पार्ट में Udan Tashtari यानी जबलपुरिया कनाडा वाले भाई समीर लाल से जानिए एक ऐसी रेसिपी जो शाम को आप चाय के साथ जरूर ले सकते हैं । इसके लिए आपको काले चने बनाने के आधे घंटे पहले पानी में भिगो लेना और बाकी क्या करना है समीर लाल से जानी है.. समीर लाल जी के चैनल को सब्सक्राइब कर लीजिए अरे भाई किसी दिन मुझसे कोई चूक हो गई तो मुश्किल होगा ना आप तक नई रेसिपी पहुंचेगी कैसे।
याद होगा जब हम स्कूल जाते थे तो उबले हुए चने इसमें नमक मिर्च वाह और हां सूखे हुए उबले बेर का लब्दा बहुत बढ़िया लगता था। सुबह वाले स्कूल में लगभग नो 9:30 बजे लंच ब्रेक होता था। और तब गोसलपुर में स्कूल के सामने इमली के पेड़ के नीचे #लब्दा वाली बऊ दस्सी पंजी की उधारी भी हो जाती थी पर चने वाला दादा बहुत दुष्ट था उधार नहीं देता था। जेब खर्च में मिले चार आने बहुत होते थे भाई। आधे रुपए में यानी अठन्नी में तो बिल्कुल दादा के दुकान नुमा घर में बैठकर चटपटी चाट खा लेते थे। खास बात यह थी कि चाट के साथ पानी भी मिल जाता था। आधी छुट्टी के बाद श्रीवास्तव मशाल अंग्रेजी पढ़ाने आते थे। जो कभी आते ही ना थी। कहां रहते थे क्या होता था उन्हें अंग्रेजी आती भी थी कि नहीं ऊपरवाला जाने। तो क्लास रूम में पहुंचने में किसी भी तरह का डर नहीं था। बड़कुल दादा की होटल जो घर ही था में कितनी भी भीड़ हो बेफिक्री से नाश्ता किया जा सकता था। और हां अगर दो या तीन रुपए का जुगाड़ हो गया तो समझो कि हमसे बड़ा राजकुमार आसपास नजर ही नहीं आता। तो मित्रो बात निकली और दूर तक चली गई चुपचाप इस रेसिपी को याद कर लीजिए। अच्छा कई लोगों को याद भी नहीं रहता तो कोई बात नहीं ऐसा कीजिए भाभी से कहिए किचन में ना घुसे और यूट्यूब पर मौजूद इस वीडियो को चालू करके बना लीजिए चटपटा चना। और एक बात कान में सुन लीजिए सुन रहे हो अब तो आपके अमृत रस की दुकानें भी खुल चुकी हैं उन दुकानों से मंगा लीजिए एक बोतल आधी बोतल अगर आपको शौक है तो और चखने के तौर पर चटपटे काले चने के साथ मिर्जा गालिब बन जाए ध्यान रहे ज्यादा नहीं उतनी ही जितनी रोजिना लेते हो

ग़ालिब ' छुटी शराब , पर अब भी कभी-कभी
पीता हूँ रोज़े-अब्रो-शबे-माहताब में ।
और फिर गुनगुनाए मेरे चंद शेर अरे चलिए पूरी ग़ज़ल की सही यह रही वो ग़ज़ल ताज़ा है -
कुछ और दे ना दे मुझको शराब तो दे दे ।
वह भी न दे खरीदने को माल'ओ असबाब तो दे दे ।।
एहसास ए समंदर हूं, तेरे वज़ूद का -
तू है कहीं, मुझे भी कोई एहसास तो दे दे ।।

मंदिर के ताले बंद हैं, सनम है मिरे घर में ,
तू भी इन्हें कुछ ऐसे ही एहसास तो दे दे ।।

है घुप्प अंधेरा, उसे जाना है बहुत दूर,
तू साथ है उसके, ये ऐसा
आभास तो दे दे ।।

मांगा नहीं है तुझसे कभी, पसारे नहीं हैं हाथ ।
दाता है मुकुल सबको, यह एहसास तो दे दे।
https://youtu.be/Trtd-esCymc

2.5.20

कोटा : एजुकेशनल स्टेटस सिंबल धराशाही / इंजीनियर सौरभ पारे



महामारी के इन कठिन दिनों में एक नया विचार मन में आ रहा है।
कोटा शहर के कोचिंग संस्थानों में पढ़ने गए बच्चे बड़ी मशक्कत और कष्ट सहने के बाद अपने गृह-ज़िले में पहुँचे हैं।
प्रश्न यह है कि क्या बच्चों को अपने से दूर भेजना ज़रूरी था क्या?
क्या हम अपने शहर में ही बच्चों को पढ़ा नहीं सकते?

हमारे बच्चे का खयाल *हमसे* अच्छा कोई नहीं रख सकता।

कोई भी परीक्षा का परिणाम किसी बच्चे के जीवन से बढ़ कर तो नहीं!

अभी लॉकडाउन खुलने के पश्चात फ़िर ये प्रक्रिया होने वाली है,
"महाविद्यालयों में होने वाले एडमिशन"।
हमारी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा एडमिशन की लाइन में लगेगा, जिसके कंधों पर अपने परिवार के सपनों का बोझ होगा।

हम सभी यह सोचते हैं कि बड़े बड़े महानगरों के बड़े कॉलेजों में अपने बच्चों को पढ़ाएंगे, बड़े महानगर में बच्चे का भविष्य सुरक्षित होगा...
अपने से व घर से दूर रह कर उनका भविष्य उज्ज्वल होगा,अच्छा भविष्य चाहिए तो घर से दूर रहना जरूरी है, यह सोच सर्वथा अनुचित है।

आज समय की मांग है कि बच्चों को घर से इतनी दूर न भेजा जाए कि ऐसी प्रतिकूल परिस्तिथी में वे चाह कर भी अपने घर नहीं आ सकें।

हम सभी सदा अपने से दूर के संसाधनों को उत्तम तथा अपने आसपास स्थित संसाधनों को दोयम दर्ज़े का समझते हैं, परंतु असल में ऐसा होता नहीं है। आज आपके शहर में स्थित महाविद्यालय में पढ़े हुए बच्चे, दुनिया में नाम कमा रहें है, कोई व्यवसाय के क्षेत्र में अग्रणी हो रहा है,
कोई यहां पढ़ने के बाद उन महानगरों में बहुत अच्छी नौकरी कर रहा है, तो कोई विदेशों में भारत का नाम रोशन कर रहा है। यह आपके शहर के या आसपास के ही शिक्षण संस्थान में पढ़े हुए बच्चे हैं, जिन्हें हम दोयम कह कर नकार देते थे।

जब यह सब अपने घर के आस पास रह कर पढ़ाई करे हुए बच्चे कर सकते हैं, तो उन्हें अपने से दूर क्यों भेजा जाए?

अंत में, अब यह सोचने का समय आ गया है कि हमारी आंख के तारों को क्या हमें इतनी दूर भेजना उचित है,
या तकनीक के इस दौर में अपने शहर के ही महाविद्यालयों में बच्चों का एडमिशन करवाना। इससे हमें हमारे बच्चों की भविष्यत की चिंता भी नहीं रहेगी तथा उनपर सदा आपकी नजर भी रहेगी।

28.4.20

उत्तरकांड और कुमार विश्वास की जबरदस्त अभिव्यक्ति

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 कुमार विश्वास कि इस अभिव्यक्ति से से पूरी तरह सहमत हूं...! मैं यहां तक सहमत हूं की बहुत सारी चीजें पोट्रेट की गई है राम के खिलाफ। और उसे मुखर होकर अभिव्यक्त भी किया गया है जो इस संस्कृति का दुर्भाग्य है। मेरा मानना है कि राम एक ऐसे व्यक्तित्व के धनी है जो है तो मानव किंतु देवांश है। यह तो देवांश हम सब है अद्वैत मत को अगर आपने पढ़ा है तो देवांश है। यह कथानक बहुत जटिल नहीं है। कथानक बहुत सहज और सरल है। यह कथानक इसलिए भी अत्यधिक लोकप्रिय है क्योंकि हमारा नायक राम है करुणानिधान राम मर्यादा पुरुषोत्तम राम। दुर्भाग्य यह है कि किसी को भी नेगेटिव पोट्रेट करने की युग युग से परंपरा रही है।
*कुमार अध्ययन शील व्यक्ति हैं*
लेकिन सिर्फ अध्ययन शील ही नहीं मर्म को समझते हैं इसमें कोई शक नहीं कि वे यह जान चुके हैं कि कोई किसी को भी कुछ भी पोट्रेट कर सकता है। भारत एक असहिष्णु सनातन प्रणाली पर आधारित व्यवस्था है। उससे अफवाह फैलाने वाले और झूठी चुगली करके वातावरण निर्मित करने वाले आहत लोगों को बल भी मिला है।
राम के बारे में एक स्पष्ट तथ्य यह है कि वे किसी भी हालत में रावण को मारना नहीं चाहते थे राम का उद्देश्य था रक्ष संस्कृति को समाप्त करने का।
राम ने रावण को क्यों मारा इस विषय पर एक आर्टिकल आप गूगल करके देख लीजिए स्पष्ट हो जाएगा सूर्यवंश ने रक्ष संस्कृति के समापन का संकल्प लिया था। यह भी सत्य है कि भगवान श्री राम भक्तवत्सल अर्थात करुणानिधान थे। यह एक राजनीतिक घटना थी स्वयं दशरथ ने राम को रावण को सत्ता से अलग करने का आदेश दिया था। उनकी योग्यता पर रखने के लिए उन्हें किसी भी तरह का सहयोग नहीं दिया। अर्थात वे चाहते थे की राम स्वयं अपनी संगठनात्मक शक्ति का प्रयोग करते हुए एक स्ट्रैटेजिक प्लान करें और रक्ष संस्कृति के पुरोधा को सत्ता से पृथक कर दें। राम ने जिस मार्ग को चुना उस मार्ग में बहुत सी ऐसी प्रजातियां थी जिनमें युवाओं की संख्या उनकी सैन्य आवश्यकता के अनुरूप थी । ना राम के शिष्य वानर थे न रीछ थे ना पशु थे। हां अभी शब्द वानर थे। वानर शब्द का विश्लेषण 2 तरह से किया गया है *वन के नर*
और *युवा नर*
जी हां राम ने ही
उन्हें सुगठित कर उन्हीं की क्षमता युद्ध ज्ञान और योग्यता को सुव्यवस्थित कर स्वयं को युद्ध के अनुरूप ढाला।
यह राम की संगठनात्मक क्षमता का एक परिचय है ।  यह स्थिति का उल्लेख इसलिए किया जा रहा है क्योंकि राम  एक कुशल राजनीतिक भी थे। उन्होंने रक्ष संस्कृति का उन्मूलन किया और रावण के द्वारा कैद किए गए सारे वैज्ञानिक चिकित्सक अर्थशास्त्री सभी को मुक्त कराया। यहां विस्तार से लिखा जाना मुश्किल है ( रक्ष संस्कृति और उसकी कार्यप्रणाली पर कभी पृथक से आलेख दे सकूंगा) अब सोचिए ऐसा व्यक्ति क्या सीता को पुनः वन भेजने का आदेश दे सकते हैं
अथवा जो प्रेम मगन शबरी के झूठे बेर खा सकते हैं वे शंबूक का वध कर सकते हैं ?
कदापि नहीं ।
राम ने बाली को पेड़ की आड़ से मारा इस पर भी बहुत बार प्रश्न तर्क वादियों और वामपंथियों ने किए हैं ? प्रश्न कर्ता यह नहीं जानते के रामायण कालीन समय में प्रयुक्त तीर का स्वरूप क्या था। ट्रेन में मुझे डीआरडीओ के एक युवा वैज्ञानिक से मिलने का असर मिला। वैज्ञानिक वैज्ञानिक से पूछा कृपया यह संभव है कोई  ऐसाे वेपन रामायण काल में बाली के पास रहा होगा जो उसकी ओर आने वाले वेपन की क्षमता को निष्प्रभावी कर दे। उस युवा वैज्ञानिक ने बताया कि यह पूर्ण तरह संभव है कि कोई ऐसा वेपन भी हो सकता है जो न केवल राम के पास उपलब्ध वेपन को निष्क्रिय करें और लक्ष्य तक घात कर उसे नुकसान पहुंचाए। अर्थात सामने वाले योद्धा आयुध  शक्ति को कम कर सकने वाला वेपन तब विकसित कर लिया होगा ।
तर्क वादी और वामपंथी लोग  रामायण काल्पनिक मानते हैं कवियों ने राम कथा को लोक रंजक बनाया उसमें तुलसीदास भी शामिल है। उनका उद्देश्य यह था की राम को सामान्य से सामान्य बौद्धिक क्षमता वाली जनता में नायक के रूप में स्थापित किया जा सके।

अत्यधिक लोकेषणा के शिकार हैं हम


सूचना क्रांति के युग में हम सब लोकेशणा के अत्यधिक शिकार हो गए हैं।
  गलती हमारी नहीं है।
  गलती हमारी तब मानी जाती जबकि हम बुद्धि का इस्तेमाल बुद्धि के होते हुए ना कर पाते। इस पंक्ति का अर्थ स्वयं ही  निकलता जाएगा... आलेख में आ गई पढ़ते जाइए और आईने में खुद को निहारिए। हम अपना चेहरा देखकर खुद डर जाएंगे।
   पूज्य गुरुदेव स्वामी श्रद्धानंद कहते थे नाटक बनो मत इससे उलट हम नाटक बन जाते हैं।
एक अंगुली दुख समीक्षा ग्रंथ सी
यह हमारी वृत्ति है। इसका एक दूसरा स्वरूप भी है हम जरा सा करते हैं और उसे बहुत बड़ा प्रचारित करने की कोशिश करते हैं।
बहुत सारे फोटो आते हैं पत्रकारों के पास  यह अच्छे-अच्छे फोटो आते हैं । इन फोटो में लॉक डाउन और सोशल डिस्टेंस का पालन किए बिना फोटो के एंगल पर विशेष ध्यान दिया जाता है। कभी-कभी तो पीछे से फोन दिया जाता है भैया नाम वाम देख लेना ज़रा ?
ईश्वर की आराधना का डॉक्यूमेंटेशन
कुछ लोग ऑनलाइन होकर कथित तौर पर अपनी साधना का विज्ञापन दे रहे हैं इतना ही नहीं उसकी विज्ञप्ति बनाकर भी भेज रहे हैं। प्रेस के पास जगह है छाप भी रहा है। यह प्रेरक गतिविधि नहीं है यह आत्मा प्रदर्शन का एक तरीका है। लोगों को यह सोचना चाहिए कि- " हमने ईश्वर की आराधना की हमारी और ईश्वर के बीच के अंतर संबंधों के लिए यह बहुत उपयुक्त प्रैक्टिक अथवा प्रक्रिया है। बहुत लोग आराधना कर रहे हैं चिंतन कर रहे हैं ध्यान कर रहे हैं अच्छा लग रहा है पर कुछ एक लोग विज्ञप्ति बनाकर अखबारों में भेज रहे हैं। सेवा और आराधना करने का डॉक्यूमेंटेशन करना इन संदर्भों में उचित है यह प्रश्न  है ?
जबकि हिमालय की कंदराओं में तपस्या करने वाले योगी गण अखबार में विज्ञप्ति देते फिरते हैं क्या या कोई कैमरामैन ले जाते हैं अपने साथ। सोचिए ईश्वर की आराधना पर केंद्रित खबर अखबारों में छपी और उस आराधना की खबर की कटिंग प्रभु के पास भेजी जा सकती है ना ही गरीबों को भोजन कराने की सेल्फी सूचना मां अन्नपूर्णा को पृष्ठांकित की जा सकती है । 
सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें जमके डाली जा रही है। और खुद कोई और डाले तो कहानी समझ में आती है कि चलिए इनके काम से प्रभावित होकर किसी ने तस्वीर पोस्ट कर दिया घटना का जिक्र कर दिया अच्छा लगता परंतु यह क्या। जबलपुर कलेक्टर जो 12 से 14 घंटे कार्य कर रहे हैं अपनी टीम के साथ इसके अतिरिक्त वे लोग जो दिनभर खटतें चाहे डॉक्टर सफाई कर्मी सरकारी कर्मचारी हूं राजस्व विभाग के अधिकारियों उनको कभी भी हमने अपनी तस्वीर शेयर करते नहीं देखा। परंतु जो घर में बैठे हैं वह जरूर इस दौड़ में शामिल है कि कैसे हमारा नाम पब्लिक जानने लगे और किस तरह मौके का फायदा उठा कर माइलेज लिया जाए।
  मेरे दो मित्र हैं प्रतिदिन लगभग  ₹700 का घास पशुओं को खिलाते हैं वहीं कुछ आंगनवाड़ी कार्यकर्ता घर से रोटियां बना कर गली के कुत्तों को खिलाती है यह सब बात जब मुझे पता चली तो मैंने कहा इन सबसे बढ़िया समाचार बनाया जा सकता है उन्होंने कहा बिल्कुल नहीं क्योंकि ड्यूटी के साथ अगर हम यह कर रहे हैं तो यह ईश्वर का काम है और इसे प्रचारित करना हमारे काम की कीमत को कम कर देगा। जनता की शुभकामनाएं जरूर मिलेंगी लेकिन सर हमें तो ईश्वर का आशीर्वाद चाहिए हम चाहते हैं कि ईश्वर आशीर्वाद स्वरुप हमें इस कठिन समय से से मुक्त कर दें।
     हमने कहा भाई हम बिना नाम के भेज देते हैं ताकि और लोग प्रेरित हो पर फोटो तो चाहिए फोटो भी भेजना जरूर विवरण तो हमने नोट कर लिया था उन अधिकारियों ने फोटो भेजें जिसमें उनका चेहरा नहीं था। यही है सच्चे वारियर हैं ।
            हम घर में बैठे बैठे अनुमान नहीं लगा सकते कि भारत कितना बदल रहा  है कितना आध्यात्मिक हो गया है जीवन का सच हमको लोकेषणा  से दूर रहना होगा फोटो इज अवर मोटो से बचना होगा इस आध्यात्मिक सोच को आगे बढ़ाइए। क्योंकि अखबार की कटिंग ईश्वर तक भेजने के लिए कोई साधन नहीं है और  न ही ईज़ाद  हुआ है।
              😢😢😢😢😢
कुंठित लोग मेरे विचार से क्रुद्ध हैं
आज़ एक  मजेदार बात हुई इस आलेख को मैंने अपने समाज के एक समूह में पेश कर दिया । दो लोग तत्काल नाराज हो
 गए और  स्वभाविक  था नाराज होना क्योंकि उन्होंने भी कुछ ऐसा ही किया था। शाम होते-होते पूरी गैंग एक्सपोज हो गई। अब बताइए ईश्वर की आराधना का प्रचार करना कहां तक उचित है। कुंठित लोगो  से तो बाद में ने निपटता रहूंगा आपको एक बात अवश्य बता देता हूं दान और आराधना तुरंत महत्वहीन हो जाती है जब इसका प्रयोग आप आत्म प्रदर्शन के लिए करें।
              😢😢😢😢😢
मित्रों अब पर्याप्त समय है टाइम मिलता है लिखने का मन भी करता है शुभ कल रात को यह आलेख लिखा है आप अपनी नाराजगी कमेंट बॉक्स में व्यक्त कर दीजिए
☺️😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊

24.4.20

रहस्यमई जबलपुर शहर : भयंकर आपदा में भी सुरक्षित रहता है

मग्गा बाबा और स्वामी शिवदत्त जी
महाराज गोसलपुर वाले
ओशो के शब्दों में मग्गा बाबा की कहानी मुझे याद आ गई तो सोचा क्यों ना ऐसे ही रीड कर लिया जाए। मैं मग्गा बाबा वाला किस्सा पढ़ रहा था तब मुझे सारे शरीर में शहर अंशी हो रही थी रोंगटे भी खड़े हुए। और मुझे एहसास हो गया कि इस शहर को ध्वस्त होने से बचाने वाले 2 लोग हैं एक मशीन वाले बाबा जिन्होंने जबलपुर को भूकंप से बचाया अपने सीने पर लिया वह कष्ट। और उससे कई वर्ष पूर्व मग्गा बाबा थे ।
मशीन वाले बाबा को तो आप सब जानते ही हैं। पर मग्गा बाबा को जानने के लिए खुद आचार्य रजनीश को आना पड़ता था। यह तो मग्गा बाबा और आचार्य रजनीश के बीच के आध्यात्मिक अंतर्संबंध की बात है और दोनों खगो की भाषा वे दोनों ही जानते थे । आचार्य रजनीश ओशो पद धारण करने के बाद बताया कि मग्गा बाबा कोई और नहीं मोजेज थे ?
यह वह दो विभूतियां हैं जो जबलपुर को सुरक्षित रखें हुए हैं अब तक। 3 ओर से पर्वतों से घिरा हुआ शहर जैसा डॉ प्रशांत कौरव ने बताया आग्नेय कोण पर अवस्थित है इस शहर को कोई नहीं तोड़ सकता इसका नुकसान उतना नहीं होगा जितना की अन्य शहरों में हुआ है। आप देख रहे होंगे कि शहर में कोरोना से मौत कम ही हुई। आप जानते हैं कि जब भूकंप ने जबलपुर में कहर मचाया था तब एक योगी जिसे मशीन वाले बाबा कहते हैं ने अपने सीने पर वह तकलीफ रिसीव कर ली थी । घटना होना तय था इस कारण घटना हुई पर उस घटना से जो नुकसान होता है वह कम होगा। उस रात में जबलपुर में नहीं था मेरी पोस्टिंग थी टिमरनी में। मेरी बेटियां बहुत छोटी थी पूरा परिवार जबलपुर में था रात को मैं जबलपुर में था सोते समय गहरी नींद वाले सपने में अपने शहर को देख रहा था अजीब सा माहौल नजर आ रहा था । मुझे लग रहा था कि सब कुछ हिल रहा है रहस्योद्घाटन आज कर रहा हूं तभी सपने मुझे दो साधु मुझे दिखे जिन्हें मैं नहीं पहचानता और वह चेहरे पर गंभीर तनाव लिए हुए थे।
अर्ध निद्रा अवस्था थी। मेरे जीजाजी और बाजू में सो रहे और भाइयों ने बताया कि भाई देखिए यहां भी भूकंप के झटके महसूस हुए । सारा कस्बा सड़कों पर उतर आया हम भी अपने अपने बिस्तर से हटकर बाहर आ गए तभी किसी ने बताया कि उनकी जबलपुर में फोन पर बात हुई और जबलपुर में भयंकर भूकंप आया। जबलपुर फोन लगाकर बात करने की कोशिश की परंतु संभव नहीं हो सका तब लैंडलाइन फोन चला करते थे मोबाइल नहीं थे घर की कोई खबर नहीं मिल पा रही थी। सुबह-सुबह लगभग 4:30 बजे फिर एक बार गहरी नींद आ गई। नींद में फिर वही स्वप्न एक साधु शरीर का व्यक्ति जिसके चेहरे पर तनाव था किंतु अपना पंजा दिखाकर मानो कह रहा हो कि सब ठीक है सब ठीक है। मैं पूछना चाह रहा था बाबा हमारे घर में क्या स्थिति है ? बाबा वैसा ही हाथ दिखाते रहे इन इशारों में मुझे समझ पाया कि सब ठीक है।
और दूसरे दिन अखबारों दूरदर्शन और रेडियो के समाचारों से शहर का हाल मिला टेलीफोन पर बहुत देर बाद यानी चौथे पांचवें दिन बात हो सके ।
*जबलपुर में 14 बरस पुराना हनुमान मंदिर भी है क्यों बदलती यह है कि उस मंदिर में स्वयं तुलसीदास जी आए थे मंदिर की स्थापना के लिए। सत्यता क्या है इस पर विमर्श किया जा सकता है खोज भी की जा सकती है। यह भी मान्यता है कि इस प्रसिद्ध मंदिर में शनिदेव् की जीवंत मौजूदगी है । यहां राजशेखर द्वारा विभिन्न पूजा ग्रहों का निर्माण कराया गया और उनमें से एक शनि मंदिर तिलवारा के पास भी है। जिस शहर में शनिदेव का आशीर्वाद होता है वहां की प्रशासनिक व्यवस्था हमेशा चुस्त और दुरुस्त ही होती है इस हिसाब से इस शहर में काम करने वाले शीर्ष अधिकारी सदा ही शहर के प्रति स्वयं को ही जवाबदार समझने लगते हैं इसके हजारों उदाहरण आप महसूस कर सकते हैं।
जहां तक जबलपुर से कटनी मार्ग तक की स्थिति है उसे देखने वाले स्वामी शिवदत्त महाराज है। जिनकी समाधि गोसलपुर रेलवे स्टेशन के पीछे स्थित है और दद्दा जी की सशरीर मौजूदगी भी इस शहर को और उसकी पेरिफेरी को सुरक्षित और संरक्षित रखे हुए हैं। अधिकांश जबलपुर वासी अपने शहर की कीमत नहीं पहचान सके हैं। आध्यात्मिक दृष्टिकोण जाबालि ऋषि की भूमि भृगु की तपोभूमि बहुत ही महत्वपूर्ण और सुरक्षित है।
इन सब बातों को कि अलावा आप तो जानते हैं की नर्मदा के तट पर विकसित शहर या गांव कस्बे कभी भी अभागे नहीं होते ।
इन सब बातों को बताते हुए शहर वासियों को एक चेतावनी भी है शनि देव अनुशासन के देवता होते हैं कानून और न्याय के संरक्षक माने गए हैं। मित्रों मेरी बात समझ रहे हैं ना कभी भी राज आज्ञा का उल्लंघन करने की कोशिश करना व्यक्तिगत रूप से घातक होगा इसलिए कोशिश यह की जाए कि राजा क्या का उल्लंघन ना करें। वरना परिणाम बहुत जल्दी सामने आएंगे। आप अभी कोरोना संक्रमण के बारे में गंभीर नहीं है तो अब हो जाएं। आप सदा अमरत्व प्राप्त हनुमान एवं शनि देव से संरक्षित नर्मदा से आशीर्वाद प्राप्त भले ही हैं परंतु अगर आपने राज आज्ञा का उल्लंघन किया तो दंड स्वयमेव प्राप्त होगा भले ही आप राजदंड से बच जाए।

23.4.20

जिओ के साथ फेसबुक के आने का रहस्य

जिओ फेसबुक फ्रेंडशिप

पृथ्वी दिवस के अवसर पर अचानक की खबर आती है कि फेसबुक ने मात्र 9.99 प्रतिशत ठेकेदारी के लिए एक बड़ी रकम जिओ को सौंप दी है . . ?
इसके कई राजनीतिक एवं अन्य मायने निकाले जा रहे हैं। जब गंभीरता से पर विचार किया और परिस्थितियों का अवलोकन किया तो पता चलता है कि फेसबुक ने एक और चैट सर्विस से पहले हाथ मिला लिया...और वह सर्विस है हमारी सर्वाधिक लोकप्रिय सर्विस व्हाट्सएप . उधर 22 अप्रैल 2020 को फेसबुक ने जिओ को 43,574 करोड़ रुपए देखकर अपनी रिश्तेदारी पक्की कर ली है ।
बाकी सारे आंकड़े आपने अखबार में पढ़ ही लिए हैं उस पर ज्यादा विचार करना या उसे यहां पुनः लिखना अर्थहीन है। पर हम आपको बता दें कि यह एक ऐसी ट्रिनिटी संधि है जिसमें सब एक दूसरे का हाथ पकड़कर चलेंगे। फेसबुक जिओ और व्हाट्सएप। यहां तक तो बात बिल्कुल साफ है कि ऐसा अक्सर व्यवसाय में चलता है , यह नई बात तो है नहीं। पर इसमें नया एंगल क्या है ऐसा फेसबुक ने क्यों किया ?
यही सवाल सोच रहे हैं ना आप ।
तो समझिए के अब फेसबुक एक तरह से किसी ऐसे व्यवसाय में कूदना चाहता है जो उसे आने वाले समय में एक विकल्प के रूप में खड़ा कर दे और वह व्यवसाय हो सकता है ऑनलाइन मार्केटिंग ।
वर्तमान में इसके 3 बड़े खिलाड़ी है अलीबाबा अमेजॉन और फ्लिपकार्ट । भारत एक विशाल बाजार है। यह आप सब जानते हैं यद्यपि बता दिया। बाजार की नब्ज पकड़ना बहुत जरूरी है और नब्ज ट्रेडिशनल तरीकों से पकड़नी मुश्किल होगी।
फेसबुक बहुत ही अधिक चिंतित रहता है आपके बारे में उसे मालूम है कि आज आपके मित्र से 5 साल पहले मित्रता हुई थी। फेसबुक ना केवल मित्रता की याद दिलाएगा और आपकी एक्टिविटी के आधार पर हो सकता है कि आपको यह बता दे आपके मित्र को अमुक वस्तु ऑनलाइन गिफ्ट की जा सकती है। हो सकता है आपको मेरे सोचने पर हंसी आ जाए। लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी का मतलब भी यही है आप भले ही अपना डाटा किसी को ट्रांसफर ना करें फिर भी आपको क्या पसंद है इसका अनुमान इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी के जरिए पता लगाया जा सकता है। हमारा सबसे करीबी रिश्तेदार सोशल मीडिया फोरम है। चाइना के चित्र देखकर हमें हंसी आ जाया करती थी एक कैरीकेचर में कार्टूनिस्ट ने दर्शाया था कि चीन के रेलवे स्टेशन पर प्रत्येक हाथ में सेलफोन था। और सारी भीड़ सिर झुकाए खड़ी हुई थी। ट्रेन आती है प्रतीक्षारत यात्रियों की निगाहें दरवाजे तक पहुंचते-पहुंचते भी लगभग सेल फोन पर होती है।
इस तरह हम अत्यधिक हमारे व्यवहार से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को परिचित करा रहे होते हैं। और आपकी यह जानकारी यानी ट्रेंड का उपयोग आप को परोसे जाने वाले कंटेंट, को सुनिश्चित करता है। लेकिन अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी कुछ कदम आगे और बढ़ रही है आपकी रुचि और आवश्यकता का आकलन करते हुए आपके सामने वह प्रोडक्ट रखा जाएगा जो लगभग आपकी रुचि के अनुकूल है। मित्रों अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें जियो से फेसबुक को क्या फायदा होगा ?
इससे फेसबुक जब अपना व्यवसाय विस्तारित करेगा तो वह निश्चित तौर पर डाटा सर्विस पर सर्वाधिक निर्भर करेगा और जिओ डाटा नेटवर्क के ग्राहक भरपूर मात्रा में जिओ के पास मौजूद है । चलिए देखते हैं आने वाले समय में क्या होता है कैसी लगी जानकारी आपको पसंद आए तो आप इसे शेयर कीजिए

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विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...