29.3.18
26.3.18
कैंसर से जूझ रहे गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर परिकर जी का मार्मिक सन्देश
फेसबुक पर सदानंद गोडबोले जी की पोस्ट जो मूलत
पूर्व रक्षा मंत्री और गोवा के मुख्यमंत्री जी का मूल मराठी सन्देश :: अनुवादक पुखराज सावंतवाडी
की प्रस्तुति कुमार निखिल द्वारा की जा रही है .
मनोहर परिकर जी कैंसर से जूझ रहे हैं, अस्पताल के विस्तर से उनका यह संदेश बहुत मार्मिक है, आप भी पढ़ें...
मनोहर परिकर जी कैंसर से जूझ रहे हैं, अस्पताल के विस्तर से उनका यह संदेश बहुत मार्मिक है, आप भी पढ़ें...
"मैंने राजनैतिक क्षेत्र में सफलता के अनेक शिखरों को छुआ :::
दूसरों के नजरिए में मेरा जीवन और यश एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं :::;::;
फिर भी मेरे काम के अतिरिक्त अगर किसी आनंद की बात हो तो शायद ही मुझे कभी प्राप्त हुआ :::
आखिर क्यो ?
तो जिस political status जिसमें मैं आदतन रम रहा था ::: आदी हो गया था वही मेरे जीवन की हकीकत बन कर रह गई::;
इस समय जब मैं बीमारी के कारण बिस्तर पर सिमटा हुआ हूं, मेरा अतीत स्मृतिपटल पर तैर रहा है ::: जिस ख्याति प्रसिद्धि और धन संपत्ति को मैंने सर्वस्व माना और उसी के व्यर्थ अहंकार में पलता रहा::: आज जब खुद को मौत के दरवाजे पर खड़ा देख रहा हूँ तो वो सब धूमिल होता दिखाई दे रहा है साथ ही उसकी निर्थकता बड़ी शिद्दत से महसूस कर रहा हूं::;
दूसरों के नजरिए में मेरा जीवन और यश एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं :::;::;
फिर भी मेरे काम के अतिरिक्त अगर किसी आनंद की बात हो तो शायद ही मुझे कभी प्राप्त हुआ :::
आखिर क्यो ?
तो जिस political status जिसमें मैं आदतन रम रहा था ::: आदी हो गया था वही मेरे जीवन की हकीकत बन कर रह गई::;
इस समय जब मैं बीमारी के कारण बिस्तर पर सिमटा हुआ हूं, मेरा अतीत स्मृतिपटल पर तैर रहा है ::: जिस ख्याति प्रसिद्धि और धन संपत्ति को मैंने सर्वस्व माना और उसी के व्यर्थ अहंकार में पलता रहा::: आज जब खुद को मौत के दरवाजे पर खड़ा देख रहा हूँ तो वो सब धूमिल होता दिखाई दे रहा है साथ ही उसकी निर्थकता बड़ी शिद्दत से महसूस कर रहा हूं::;
आज जब मृत्यु पल पल मेरे निकट आ रही है, मेरे आस पास चारों तरफ हरे प्रकाश से टिमटिमाते जीवन ज्योति
बढ़ाने वाले अनेक मेडिकल उपकरण देख रहा हूँ । उन यंत्रों से निकलती ध्वनियां भी
सुन रहा हूं : इसके साथ साथ अपने आगोश में लपेटने के लिए निकट आ रही मृत्यु की
पदचाप भी सुनाई दे रही है::::
अब ध्यान में आ रहा है कि भविष्य के लिए आवश्यक पूंजी जमा
होने के पश्चात दौलत संपत्ति से जो अधिक महत्वपूर्ण है वो करना चाहिए। वो शायद रिश्ते
नाते संभालना सहेजना या समाजसेवा करना हो सकता है।
निरंतर केवल राजनीति के पीछे भागते रहने से व्यक्ति अंदर से
सिर्फ और सिर्फ पिसता :: खोखला बनता जाता है ::: बिल्कुल मेरी तरह।
उम्र भर मैंने जो संपत्ति और राजनैतिक मान सम्मान कमाया वो
मैं कदापि साथ नहीं ले जा सकूंगा ::;
दुनिया का सबसे महंगा बिछौना कौन सा है, पता है ? ::: "बीमारी का बिछौना" :::
गाड़ी चलाने के लिए ड्राइवर रख सकते हैं :: पैसे कमा कर
देने वाले मैनेजर मिनिस्टर रखे जा सकते हैं परंतु :::: अपनी बीमारी को सहने के लिए
हम दूसरे किसी अन्य को कभी नियुक्त नहीं कर सकते हैं:::::
खोई हुई वस्तु मिल सकती है । मगर एक ही चीज ऐसी है जो एक
बार हाथ से छूटने के बाद किसी भी उपाय से वापस नहीं मिल सकती है। वो है :::: अपना
"आयुष्य" :: "काल" ::: "समय"
ऑपरेशन टेबल पर लेटे व्यक्ति को एक बात जरूर ध्यान में आती
है कि उससे केवल एक ही पुस्तक पढ़नी शेष रह गई थी और वो पुस्तक है "निरोगी
जीवन जीने की पुस्तक" ;::::
फिलहाल आप जीवन की किसी भी स्थिति- उमर के दौर से गुजर रहे
हों तो भी एक न एक दिन काल एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है कि सामने नाटक का
अंतिम भाग स्पष्ट दिखने लगता है :::
स्वयं की उपेक्षा मत कीजिए::: स्वयं ही स्वयं का आदर कीजिए
::::दूसरों के साथ भी प्रेमपूर्ण बर्ताव कीजिए :::
लोग मनुष्यों को इस्तेमाल ( use ) करना सीखते हैं और पैसा संभालना सीखते हैं। वास्तव में पैसा
इस्तेमाल करना सीखना चाहिए व मनुष्यों को संभालना सीखना चाहिए ::: अपने जीवन की
शुरुआत हमारे रोने से होती है और जीवन का समापन दूसरो के रोने से होता है:::: इन
दोनों के बीच में जीवन का जो भाग है वह भरपूर हंस कर बिताएं और उसके लिए सदैव
आनंदित रहिए व औरों को भी आनंदित रखिए :::"
(स्वादुपिंड के) कैंसर से पीड़ित अस्पताल में जीवन के लिए
जूझ रहे मनोहर पर्रिकर का आत्मचिंतन ::::
24.3.18
फिल्म रेड की पटकथा में लेखक की भूल
फिल्म रेड की पटकथा में लेखक ने
आयकर छापे के नियम को देखा नहीं ये तो नहीं मालूम पर अगर आप आयकर अधिनियम
की पूरी जानकारी नहीं रखते तो मुश्किल अवश्य हो सकती है. अगर छापा पडा तो .. भगवान
न करे की हम आप आयकर छिपाएं और छापे की
नौबत आए.,. पर मिडिल क्लास .. नंगा क्या नहाएगा क्या निचोये गा साब ... ?
1.आयकर अधिकारी बिक्री के लिए रखे गए माल को
जब्त नही कर सकते हैं बल्कि वे केवल इसको अपने दस्तावेजों में नोट जरूर कर सकते
हैं, साथ ही स्टॉक में रखे माल की भी सिर्फ एंट्री कर
सकते हैं. यह राहत घोषित और अघोषित दोनों तरह के स्टॉक के लिए लागू होती है.
2. आयकर अधिकारी किसी ऐसी नकदी को जब्त
नही कर सकते हैं जिसका पूरा लेखा जोखा उस कंपनी या आदमी के पास मौजूद है.
3. आभूषण जो कि स्टॉक के रूप में रखे गए
हैं और संपत्ति कर रिटर्न में उनको जोड़ा गया है तो उन्हें भी जब्त नही किया जा
सकता है.
4. यदि कोई करदाता सम्पत्ति कर जमा नही
कर रहा है तो हर विवाहित स्त्री 500 ग्राम सोना रख सकती है, हर अविवाहित स्त्री 250 ग्राम सोना और हर आदमी 100 ग्राम तक सोना अपने
पास रख सकते हैं. यदि इस सीमा के भीतर सोना आयकर विभाग
को छापे के दौरान प्राप्त होता है तो वह उसे भी जब्त नही कर सकती है.
आयकर छापे के दौरान व्यक्तियों/कंपनियों के अधिकार इस
प्रकार हैं:
1. आयकर अधिकारियों के पास मौजूद वारंट और उनके पहचान पत्रों की
जाँच करने का अधिकार
2. यदि आयकर टीम महिलाओं की तलाशी भी लेना चाहती है तो ऐसा
सिर्फ महिला आयकर कर्मी ही कर सकती है और वह भी पूरी इज्ज़त और सम्मान के साथ.
3. व्यक्तियों/कंपनियों को गवाहों के तौर पर मोहल्ले के दो सम्मानित लोगों को बुलाने
का अधिकार है.
4. आपातकाल की दशा में डॉक्टर को बुलाने का अधिकार है.
5. बच्चों का स्कूल बैग चेक कराकर उनको स्कूल भेजने का अधिकार
है.
6. लोगों को अपने नियत समय पर खाना खाने का अधिकार है.
7. जिस दिन खाते की किताबों (books
of account) को जब्त
किया गया था उससे 180 दिन के अन्दर किताबें वापस पाने का अधिकार.
8. व्यक्ति द्वारा दिए गए वक्तव्य (statement)
की एक प्रति मांगने का अधिकार है क्योंकि यह
वक्तव्य उस व्यक्ति के खिलाफ इस्तेमाल किया जायेगा.
9. पंचानमा की एक प्रति मांगने का अधिकार है।
आयकर दाताओं या
कंपनियों के निम्न कर्तव्य हैं?
1. छापा परिसर (घर या ऑफिस) में बिना किसी बाधा और विरोध के
आयकर अधिकारियों को घुसने देने का कर्तव्य.
2. छापा परिसर में किसी भी अनधिकृत व्यक्ति के प्रवेश की
अनुमति या प्रोत्साहन ना दें.
3. ऑफिस या घर में मौजूद सभी लोगों से अपने रिश्तों के बारे
में बताना.
4. संपत्तियों के स्वामित्व और लेखा किताब के बारे में
अधिकारियों के सवालों का सही सही जबाब देना.
5. जिन किताबों में संपत्तियों का विवरण लिखा है उनको
अधिकारियों को सौंपना और यदि जरुरत पड़े तो तिजोरियों इत्यादि की चाबी भी सौंप
देना.
6. प्राधिकृत अधिकारी के सूचना या ज्ञान के बिना जांच से
सम्बंधित किसी भी दस्तावेज को मिटायें या फाड़ें नही.
7. अगर कोई व्यक्ति झूठे वक्तव्य देता हैं तो वह भारतीय दंड
संहिता (IPC) की धारा 181 के तहत कारावास, दंड या दोनों के लिए दंडनीय होगा.
8. व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह खोज के पूरे समय में शांति
बनाए रखे और जांच अधिकारियों के साथ सभी मामलों में सहयोग करे ताकि पूरी जाँच
जल्दी से जल्दी शांतिपूर्ण तरीके से समाप्त हो जाए.
21.3.18
रेड फिल्म की दादी पुष्पा जोशी की जिंदादिली से चमका उनका सितारा ....!!
किसी ख़ास मुकाम पर पहुँचने के लिए कोई ख़ास उम्र, रंग-रूप, लिंग, जाति, धर्म, वर्ग का होना ज़रूरी नहीं जिसके सितारे को जब बुलंदी हासिल होनी होती है तब यकबयक हासिल हो ही जाती है. ये बात साबित होती है जबलपुर निवासी होसंगाबाद में सामान्य से परिवार जन्मी 85 वर्षीय बेटी श्रीमती पुष्पा जोशी के जीवन से . हुआ यूं कि उनके मुंबई निवासी पुत्र रवीन्द्र जोशी { जो कवि संगीतकार, एवं कहानीकार हैं, तथा हाल ही में बैंक से अधिकारी के पद से रिटायर्ड हुए हैं} की कहानी ज़ायका से . श्री जोशी की कहानी “ज़ायका” उनकी पुत्र वधु हर्षिता श्रेयस जोशी, ने निर्देशित कर तैयार की जिसे आभास-श्रेयस यूँ ही यूट्यूब पर पोस्ट कर दी. एक ही दिन में ३००० से अधिक दर्शकों तक यूट्यूब के ज़रिये पंहुची फिल्म को बेहतर प्रतिसाद मिला. उसी दौरान फिल्म रेड की निर्माता कम्पनी के सदस्यों ने देखी . और जोशी परिवार को खोज कर रेड में अम्मा के किरदार के निर्वहन की पेशकश की . दादी यानी श्रीमती जोशी जो जबलपुर से मायानगरी बैकबोन में दर्द का इलाज़ कराने पहुँची थी ने साफ़ साफ़ इनकार कर दिया. निर्माता राजकुमार गुप्ता एवं परिवार के समझाने पर बमुश्किल राजी हुईं . मुंबई से लखनऊ फिर लखनऊ से सडक मार्ग दो घंटे की दूरी पर स्थित रायबरेली जनपद में स्थित शिवगढ़ के किले तक का सफर कर 15 दिनों तक शूटिंग के दौरान श्रीमती जोशी की मृदुल मुस्कान बरबस टीम की ज़रूरत सी बन गई थी. कुछ दिनों में वे छोटे टीम सदस्यों से लेकर अजय देवांगन तक की अम्मा जी बन गईं . अपनी सादगी और सहज बर्ताव घर में भी ठीक ऐसा ही है. सामाजिक पारिवारिक कार्यों में पुष्पा जी की मौजूदगी और उनके चुटीले संवाद बरसों से सब को मुस्कुराने के लिए मज़बूर कर देतें हैं.
उनकी एक पौत्री निष्ठा बताती है कि- हमारे मित्र मिलने हमसे आते हैं पर मिलते बतियाते दादी से हैं. युवाओं के साथ युवा बच्चों के साथ बच्चे की तरह ढलने वाली दादी नार्मदीय ब्राह्मण समाज से सम्बंधित हैं जहां उनको बेहद सम्मान दिया जाता है.
किटी पार्टी की शान हैं – नार्मदीय ब्राह्मण समाज की महिलाओं की किटीपार्टी में उम्रदराज़ दादी की गैरमौजूदगी से इस समाज की बहूएँ परेशान हैं.. श्रीमती सुलभा बिल्लोरे बतातीं हैं कि पूरे उत्साह के साथ वे हमारे समागम में शामिल हुआ करतीं हैं. उनका सेन्स ऑफ़ ह्यूमर, चुटीले अंदाज़ में जीवन के मूल्यों को समझाना उनकी एक और विशेषता है.
सत्यसाई सेवा समिति, जबलपुर की सक्रीय कार्यकर्ता के रूप में वे गुरुद्वारे में लंगर, वृद्धाश्रम कुष्ठाश्रम, एवं विक्टोरिया हॉस्पिटल में भेजने के लिए खुद जब तक हिम्मत थी भोजन बना कर भेजतीं रहीं.उनके हाथों बने लड्डू, नारायण-सेवा { भोजन वितरण जिसे समिती की भाषा में नारायण-सेवा कहा जाता है } की खासियत है.
श्रीमती जोशी के पति स्वर्गीय श्री बी आर जोशी (रिटायर्ड उप जिलाध्यक्ष ) का तबादला हर तीन चार साल में प्रदेश में कई स्थानों में हुआ करता था बच्चों के भविष्य को बनाने वे स्थाई रूप से 1971 से जबलपुर में ही रहीं. उनकी सभी 06 संतानें कला साधक एवं उच्च शिक्षित एवं उच्च पदस्थ हैं.
इंटरनेट पर रोज़ प्रसारित होने वाले मूवी रिव्यू में हीरो अजय देवांगन इलिना , सौरभ शुक्ला , अमित की भूमिकाओं की सराहना के साथ 85 वर्षीय अम्मा जी को विशेष सराहा जा रहा है.
19.3.18
चेहरा नहीं दिल बोलता है ....!!
चेहरा नहीं दिल बोलता है ....!!
और दिल
जब भी... दिल से बोलता है ...
तब बुत मुस्कुरातें हैं ...
तितलियाँ मंडरातीं हैं...
हज़ारों हज़ार स्वर लहरियां ...
वीणा तारों से
छिटककर
बिखरतीं .........
पुरवैया – पछुआ हवाओं में ..
घुल जातीं हैं ...!!
हाँ तब जब
चेहरा नहीं दिल बोलता है ....!!
दिल जब बोलता है
बरसों के दबे कुचले
छिपे छिपाए एहसासों का ज्वालामुखी
फूटता है ...
कहते हुए कि- अब और नहीं ...
अब और नहीं ...!!
ठहर जाते हैं
आघाती हाथ ...
क्रूर आँखें डर जाती हैं...!
"तख़्त-ओ-ताज़" सम्हालते हाथ ..
चेहरा नहीं दिल बोलता है ....!!
22.2.18
आलिम-ए-दीन मौलाना साहब दुनिया-ए-फ़ानी से रुख़सत फ़रमा गए....... ज़हीर अंसारी
मुफ़्ती-ए-आज़म मध्यप्रदेश मौलाना मो. महमूद अहमद क़ादरी साहब आज 22 फ़रवरी को इस दुनिया-ए- फ़ानी से रुख़सत फ़रमा गए। आप 90 साल के थे। आप उम्र के जिस पड़ाव पर पहुँच गए थे उसकी वजह से जिस्मानी तौर पर थोड़ा कमज़ोर हो गए थे लेकिन उनका दिमाग़ी तवाजन आख़री वक़्त तक मज़बूत रहा। यह उनकी दीनदारी का सिला था। अभी जनवरी माह में ही ईदमिलादुंनबी के मुबारक मौक़े पर आपने तक़रीर की और जुलूस-ए- मोहम्मदी में शामिल लोगों को मुल्क और अमन परस्ती का समझाईश दी। आप जितने बड़े आलिम-ए-दीन थे उतने बड़े ही इंसानियत के पैरोकार। बेशक आप अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त और अल्लाह के नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (सअव) की हिदायतों पर ताउम्र क़ायम रहे। आपको क़ुरान-ए-मजीद और सभी हदीश शरीफ़ का गहरा इल्म था।
मौलाना साहब ने अपने दादा हज़रत अब्दुल सलाम साहब और वालिद हज़रत मौलाना जनाब बुरहानुल हक़ जी से जो दीनी और मज़हबी तालीम मिली उसका आपने पूरा ख़्याल रखा। आप उम्र भर इंसानियत और अमन के झंडाबरदार बने रहे। जब भी शहर में दो कौमों के बीच गहमा-गहमी हुई या फ़साद की नौबत आई तो आप सबसे पहले आगे आए और अपनी क़ौम को समझाईश देकर शासन-प्रशासन की मदद की। आप की इसी ख़ूबी का ऐहतराम दीगर क़ौम के लोग भी करते थे। अन्य धर्म के साधु-संतों के साथ मंच साझा किया ताकि शहर के अमन-चैन और भाई-चारे को कोई आँच न आ सके। ईदुल फितर हो या ईदुज्जुहा या फिर ईदमिलादुंनबी हर मज़हबी त्योहार पर मुल्क परस्ती, भाई-चारा, अमन, इंसानियत और तालीम-तरबियत की सीख दी। आप अपने उसूलों से कभी डिगे नहीं।
माशाअल्लाह आपका दीनी-दुनियावी इल्म, क़द-काठी, रंग-रूप और रुआब ऐसा था कि कोई भी देखने वाला मूतासिर हो जाए। ऐसे नेक दिल और अहले सुन्नत के अज़ीम पेशवा अब हमारे बीच नहीं रहे। आपकी रहनुमाई से क़ौम का भरोसा क़ायम रहा। अब आपकी रुख़सती से ख़ालीपन क़ौम को कचोटता रहेगा।
हम नाचीज़ अल्लाह की बारगाह में सिर्फ़ यही दुआ कर सकते हैं कि ‘या अल्लाह मौलाना साहब जैसे दीनदार और नेक दिल इंसान को अपने हबीब के सदके में जन्नतुल फिरदौस में आला से आला मुक़ाम अता फ़रमाना। (आमीन)
इंशाहअल्लाह कल 23 फ़रवरी को बाद नमाज़ जुमा ईदगाह कलाँ रानीताल में आपको सुपुर्देख़ाक किया जाएगा।
O
जय हिन्द
ज़हीर अंसारी
मौलाना साहब ने अपने दादा हज़रत अब्दुल सलाम साहब और वालिद हज़रत मौलाना जनाब बुरहानुल हक़ जी से जो दीनी और मज़हबी तालीम मिली उसका आपने पूरा ख़्याल रखा। आप उम्र भर इंसानियत और अमन के झंडाबरदार बने रहे। जब भी शहर में दो कौमों के बीच गहमा-गहमी हुई या फ़साद की नौबत आई तो आप सबसे पहले आगे आए और अपनी क़ौम को समझाईश देकर शासन-प्रशासन की मदद की। आप की इसी ख़ूबी का ऐहतराम दीगर क़ौम के लोग भी करते थे। अन्य धर्म के साधु-संतों के साथ मंच साझा किया ताकि शहर के अमन-चैन और भाई-चारे को कोई आँच न आ सके। ईदुल फितर हो या ईदुज्जुहा या फिर ईदमिलादुंनबी हर मज़हबी त्योहार पर मुल्क परस्ती, भाई-चारा, अमन, इंसानियत और तालीम-तरबियत की सीख दी। आप अपने उसूलों से कभी डिगे नहीं।
माशाअल्लाह आपका दीनी-दुनियावी इल्म, क़द-काठी, रंग-रूप और रुआब ऐसा था कि कोई भी देखने वाला मूतासिर हो जाए। ऐसे नेक दिल और अहले सुन्नत के अज़ीम पेशवा अब हमारे बीच नहीं रहे। आपकी रहनुमाई से क़ौम का भरोसा क़ायम रहा। अब आपकी रुख़सती से ख़ालीपन क़ौम को कचोटता रहेगा।
हम नाचीज़ अल्लाह की बारगाह में सिर्फ़ यही दुआ कर सकते हैं कि ‘या अल्लाह मौलाना साहब जैसे दीनदार और नेक दिल इंसान को अपने हबीब के सदके में जन्नतुल फिरदौस में आला से आला मुक़ाम अता फ़रमाना। (आमीन)
इंशाहअल्लाह कल 23 फ़रवरी को बाद नमाज़ जुमा ईदगाह कलाँ रानीताल में आपको सुपुर्देख़ाक किया जाएगा।
O
जय हिन्द
ज़हीर अंसारी
3.2.18
बेदी पर चढ़ता मध्यवर्ग
मध्यम वर्ग का आकार भारत की जनसंख्या में सबसे महत्वपूर्ण होते हुए भी सबसे नकारात्मक नज़रिए का शिकार है इन दिनों । मध्यवर्ग के लगभग 36 करोड़ सरों पर विकास, की ज़िम्मेदारी है जिसका निर्वहन कर भी रहा है मध्यवर्ग पर जब उसके हित की बारी आती है तो ताक में रखने से उसे कोई नहीं चूकता । भारत में इस मध्यवर्ग को केवल इस्तेमाल किया जाता है उसके खिलाफ प्रगतिशील चिंतन तो था ही अब सारे विचारक भी हैं जो आर्थिक सामाजिक सियासी मुद्दों से वास्ता रखते हैं ।
ऐसा क्यों है इसकी पड़ताल करने पर पता लगता है कि शासक वर्ग यानी रोज़गार प्रदाता स्वयंभू सर्वशक्तिशाली होता जा रहा है । उसे राजाश्रय प्राप्त है । पिछले दिनों रेलयात्रा में जब मैंने देखा कि दो बेटियां भोपाल रेलवे स्टेशन पर अपनी जबलपुर तक की सुरक्षित यात्रा के लिए मुझसे सहायता मांगने आईं तो मेरे रोंगटे खड़े हो गए मुझे लगा कि मध्यवर्ग की ये बेटियाँ जिस परिस्थिति में सहायता मांग रहीं हैं वो केवल एक्स्ट्रा प्रीमियम तत्काल कोटे से टिकट न खरीद पाने से हट कर और कुछ भी नहीं हो सकती । भोपाल कांड के बाद मेरे मन पर गहरा भय है सो उन बेटियों को अपनी बेटी की बर्थ देना मुझे उचित लगा ।तत्काल एवम एक्स्ट्रा प्रीमियम तत्काल कोटे से टिकट बेचना रेलवे की व्यापारिक सोच है उनके 70 वेटिंग के टिकट कन्फर्म हो सकते थे अगर प्रबंधन का नज़रिया मानवीय होता तो !
मित्रो देश का मिडिल क्लास जो क्लर्क है चपरासी है या शिक्षक है प्राइवेट कंपनी में 25 हज़ार तक (अधिकतम) कमाता है उसकी 20 से 30 या 31वीं तारीख बेहद कठिन होती है । उसकी ज़िन्दगी सब्सिडाइज नहीं होती । जब देखो तब मिडिल क्लास के लोग ईश्वर से केवल एक ही दुआ माँगतें हैं कि घर में कोई बीमार न हो जाए ।
शिक्षा , स्वास्थ्य , ट्रांसपोर्टेशन , किराया आदि का मंहगा होना , बीमा कंपनीयों के लुभावने ऑफर में फंसने के बाद लाभहीन प्रीमियम, कीमतों में उतार चढ़ाव इस वर्ग सबसे अधिक प्रभावित करता है ।
इस वर्ग के पास अब पूंजी निर्माण के लिए वो सब कुछ मौके नहीं हैं जिनका ज़िक्र मोदी जी ने मेडिसन स्क्वैर में किया था । उनने कहा था कि वे व्यक्तिगत सैक्टर को बढ़ावा देंगें !
मध्यवर्ग उससे प्रभावित हुआ होगा खुश भी था परन्तु तीव्र आर्थिक विकास के प्रवाह में व्यक्तिगत सैक्टर गुमशुदा है । कम से कम मध्यवर्ग ज़रा सी भी पूंजी जमा न कर पाया । उधर क्रेडिट एक्सपानशन के की मौजूदगी से उसे ऊँची दरों पर ब्याज वाले ऋण लेकर अपनी ज़रूरतें पूरी करनी पड़ती है ।
बैंकों का दुष्प्रबंधन अपने घाटों को पूरा करने अपने इसी वर्ग को शिकार बनातीं नज़र आ रहीं हैं ।
गली गली इंजीनियर 15 से 20 हजार की पगार पर काम करते नज़र आ जाएंगे आपको....साथ ही मौका लगते वे क्लर्क तो क्या प्यून की की पोज़ीशन पर जाने को भी तैयार हैं ।
मध्यवर्ग का युवा वर्ग बेहद कन्फ्यूज है । अगर वो अनारक्षित श्रेणी का है तो फिर केवल मल्टी नेशनल कम्पनी के लिए काम करने के लिए आमादा है । जहां उसे उतना ही मिलेगा जितना उसके पिता को मिला करता था । यानी काम चलाऊ । जी हां सत्य है अमेरिका में भी आपका बेटा या बेटी खुश नहीं है वो आपको खुश होने का एहसास दिलातें है क्योंकि आपकी खुशी इस बात में है कि आपकी संतान एब्रॉड में हैं जो आपके लिए एक स्टेटस सिंबल है पर आप भीतर से कितना सुबकतें हैं अब सभी को पता है । आपकी संतानें #सुंदर_पिचाई नहीं हैं वहां ये आपको अच्छी तरह से मालूम है । पर आप की मजबूरी है वो भारत में कुछ डॉलर भेजता है जो रुपया बन के आपके हाथ आते है विदेशी मुद्रा आना सरकार के लिए ठीक है पर आपकी आंखों का नम रहना समाज के लिए दुःखद है ।
11.1.18
संवेदनशील किन्तु सख्त सख्शियत : आई पी एस आशा गोपालन
आशा जी के दौर में मैं हितकारणी ला कालेज से जॉइंट सेक्रेटरी का चुनाव लड़ रहा था . मुझे उनके मुझसे मेरी बैसाखियाँ देख पूछा था- "आप क्यों इलेक्शन लड़ रहे हो..?"
मेरा ज़वाब सुन बेहद खुश हुईं मातहत अधिकारियों को मेरी सुरक्षा के लिए कहा.. ये अलग बात है..... एक प्रत्याशी के समर्थक ने कट्टा अड़ाया मित्र #प्रशांत_श्रीवास्तव को .. और मित्र अपनी छोटी हाईट का फ़ायदा उठा भाग निकले थे ...... इस न्यूज़ ने वो मंजर ताज़ा कर दिया..
वे मुझे जान चुकीं थी । एक्जामिनेशन के दौरान एक रात हम कुछ मित्र पढ़ते हुए चाय पीना तय करतें हैं किन्तु स्टोव में कैरोसिन न होने से ये तय किया कि चाय मालवीय चौक पर पीते हैं । दुर्भाग्य से सारी दुकानें बंद थीं । बात ही बात में पैदल हम सब मोटर स्टैंड ( यही कहते थे हम सब बस अड्डे को जबलपुर वाले ) जा लगे । चाय पी पान तम्बाकू वाला दबाए एक एक जेब में ठूंस के वापस आ रहे थे तब मैडम आशा गोपालन जी की गाड़ी जो नाइट गस्त पर थीं इतना ही नहीं आईपीएस अधिकारी एम्बेसडर की जगह टी आई की जीप पर सवार थीं ।
टी आई लार्डगंज भी मुझे पहचानते थे सुजीत ( वर्तमान #बीजेपी_नेता ) अजीत ( वर्तमान टी आई ) मेरे मानस भांजों की वजह से लार्डगंज पुलिसकर्मियों के परिवार में मुझे मामाजी के नाम से जाना जाता था । टी आई जी ने पूछा - मामाजी कहाँ घूम रहे हैं । आशा गोपालन जी ने भी समझाया कि आप रात में न घूमें चलिए हम सबको गाड़ी में बिठा कर सुपर मार्केट के सामने छोड़ा दूसरों को तो मैडम कई किलोमीटर्स दूर छोड़ दिया करतीं थीं ।
ऐसे लोकरक्षकों को कौन भूलेगा जो सख्त तो हैं पर उससे अधिक संवेदनशील ।
मेरा ज़वाब सुन बेहद खुश हुईं मातहत अधिकारियों को मेरी सुरक्षा के लिए कहा.. ये अलग बात है..... एक प्रत्याशी के समर्थक ने कट्टा अड़ाया मित्र #प्रशांत_श्रीवास्तव को .. और मित्र अपनी छोटी हाईट का फ़ायदा उठा भाग निकले थे ...... इस न्यूज़ ने वो मंजर ताज़ा कर दिया..
वे मुझे जान चुकीं थी । एक्जामिनेशन के दौरान एक रात हम कुछ मित्र पढ़ते हुए चाय पीना तय करतें हैं किन्तु स्टोव में कैरोसिन न होने से ये तय किया कि चाय मालवीय चौक पर पीते हैं । दुर्भाग्य से सारी दुकानें बंद थीं । बात ही बात में पैदल हम सब मोटर स्टैंड ( यही कहते थे हम सब बस अड्डे को जबलपुर वाले ) जा लगे । चाय पी पान तम्बाकू वाला दबाए एक एक जेब में ठूंस के वापस आ रहे थे तब मैडम आशा गोपालन जी की गाड़ी जो नाइट गस्त पर थीं इतना ही नहीं आईपीएस अधिकारी एम्बेसडर की जगह टी आई की जीप पर सवार थीं ।
टी आई लार्डगंज भी मुझे पहचानते थे सुजीत ( वर्तमान #बीजेपी_नेता ) अजीत ( वर्तमान टी आई ) मेरे मानस भांजों की वजह से लार्डगंज पुलिसकर्मियों के परिवार में मुझे मामाजी के नाम से जाना जाता था । टी आई जी ने पूछा - मामाजी कहाँ घूम रहे हैं । आशा गोपालन जी ने भी समझाया कि आप रात में न घूमें चलिए हम सबको गाड़ी में बिठा कर सुपर मार्केट के सामने छोड़ा दूसरों को तो मैडम कई किलोमीटर्स दूर छोड़ दिया करतीं थीं ।
ऐसे लोकरक्षकों को कौन भूलेगा जो सख्त तो हैं पर उससे अधिक संवेदनशील ।
10.1.18
अदेह से संदेह प्रश्न
अदेह से सदेह प्रश्न
कौन गढ़ रहा कहो
गढ़ के दोष मेरे सर
कौन मढ़ रहा कहो ?
***********
बाग में बहार में, ,
सावनी फुहार में !
पिरो गया किमाच कौन
मोगरे के हार में !!
पग तले दबा मुझे कौन बढ़ गया कहो...?
********
एक गीत आस का
एक नव प्रयास सा
गीत था अगीत था !
या कोई कयास था...?
गीत पे अगीत का वो दोष मढ़ गया कहो..
*****************
तिमिर में खूब रो लिये
जला सके न तुम दिये !
दीन हीन ज़िंदगी ने
हौसले डुबो दिये !!
बेवज़ह के शोक गीत कौन गढ़ रहा कहो.
***************
अलख दिखा रहे हो तुम
अलख जगा रहे हो तुम !
सरे आम जो भी है -
उसे छिपा रहे हो तुम ?
मुक्तिगान पे ये कील कौन जड़ रहा कहो ?
😊😊😊😊😊😊😊
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*
6.1.18
सिविल सर्विसेस की तैयारी कर रहे 97% युवा डीआरडीओ क्या है नहीं जानते
रिपुसूदन अग्रवाल यंग इसरो साईंटिस्ट विद ग्रेट जबलपुरियन एक्टिविस्ट
|
आज वाट्सएप के एक समूह में में ग्रेट जबलपुरियन एक्टिविस्ट भाई अनुराग त्रिवेदी ने एक पोस्ट डाली पोस्ट हालांकि वे मुझे बता चुके थे बालभवन में आकर की सिविल सर्विसेस की तैयारी कर रहे 97% युवा डीआरडीओ क्या है नहीं जानते . मुझे भी ताज्जुब हुआ था पर मुझे मालूम है कि और लोगों की तरह गप्पाष्टक नहीं सुनाते . सो उनकी पोस्ट उनकी शैली में ही यथावत पोस्ट कर के मुझे भीषण तनाव के बीच सुखानुभूति हो रही है . सुधीजन जानें तो कि जबलपुर का जबलपुर ही रह जाना कितना चिंता एवं चिन्तन का मामला है ............... तो ये रही अनुराग जी की व्यथा .. कल अग्रवाल स्टेशनर्स में आगामी आयोजित ईवेंट के फॉर्म प्रिंट करवा रहा था। दूकान में संचालक युवा के साथ लम्बा दुबला सा हल्के बाल बिखरे से बेहद शालीन विनम्र बच्चा सहयोग कर रहा दूकान संचालन में । प्रिंट फॉर्म होते होते बँटने भी लगे।
ठंड जोरदार थी पर मार्कट में देर रात 11 बजे तक स्टेशनरी की ही दूकान बस खुली। लोग हाथों में ऊनी ग्लब्ज़ कानों में पट्टी उस पर ऊनी टोपे के उपर मफलर
भी दटाये थे।
वह बच्चा सहज था पतली सी जैकट पहने और संचालक
तो हाफ स्वेटर पहने।
-" टेम्प्रेचर छः के नीचे पहुँच गया लगता !" उस लडके ने
संचालक को बोला।
मुझे इक डाक्यूमेंट फ़ाइल बनानी थी। लैप टॉप
पर फ़ाइल खोल टाइप करने लगा। असहज होने के कारण सेल फ़ोन पर ड्राफ्ट करने लगा तभी
अंकित (दुकान संचालक ने कहा -" अनुराग भैया मैं बता रहा था न कि मेरा इक
क्लोज फ्रैंड इसरो में है ।"
-" हूँ ....तो ?" सर नीचे किये मैंने जबाब में कहा क्योंकि ध्यान पूरा
टेक्स्ट फॉर्मेट में था।
-" ये वही है !"
सुनते ही मैं अदब से उठा और हाथ मिला कर उसे
उपर से नीचे देखा। लगभग घंटे भर से तो देख ही रहा था कि वह मुझे हुए व्यावसायी की
तरह सबसे विनम्र हो कर डील कर रहा जबकि इसको पहले कभी नहीं देखा अंकित की दूकान
में।
-" great to see you sir !" मेरे मुंह से निकला और फिर
कहा -" कुछ दिन पहले जबलपुर में सौ स्टूडेंट को एक्स डीआरडीओ चेयरमैन से मिलवाया और जानकार
शर्मिंदा हुए कि सिविल सर्विसेस की तैयारी कर रही पीढी डीआरडीओ क्या है नहीं
जानती । पूछने पर सिर्फ तीन हाथ उठे।"
उस युवा को देखकर मैं लगभग भीतर से गुदगुदाने
सा अनुभव कर रहा था। उसी खुशी में कहा -"मैं कैसे इस्तकबाल करूं आपका सर ? आप तो मरी हुई आशा को जन्म दे रहे। क्योंकि
..कहीं न कहीं लग रहा था जबलपुर सचमुच चेतना शून्य है।" मुझे लगा ज्यादा
गम्भीर बात कह दी वह तो सन्दर्भ भी न समझा हो। पर पल भर को रुक कर पूछा
-"आपने तवा देखा डोसा बनाने वाले का?"
उसने सहमती में मुंडी हाँ में हिलाई।
-" गर्म हुआ या नहीं जैसे कुक छींटे मारता है न ..वैसे ही आपने
छींटे मार कहा है उम्मीद इतनी भी नहीं मरी। ..क्या नाम है आपका?"
-" रिपु ...जी.. रिपुसूदन अग्रवाल !"
-"9 जनवरी तक हो जबलपुर में ?"
-" नहीं ...मैं 7 जनवरी
को जा रहा हूँ ...क्यूँ ?"
पेपर बढाते हुए। ईवेंट का अनूठा प्रारूप
बतलाते कहा
-" इस ईवेंट में कई बच्चे और बहुत सारे अभिभावकों को आमंत्रित
किया आप जैसे प्रतिभावान युवा न केवल बच्चों बल्कि उनके पेरेंट्स के लिए प्रेरणा
के स्रोत हो सकते।"
मैंने उसे समझाते कहा -" मेरा मानना है interaction ढेरों reference देते जो goal determination में help करते ऐसे stand !"
-" जी मॉडल हाई का पढ़ा हूँ । अपनी स्कूल जाता हूँ और बच्चों से
मिलता हूँ । उनसे बातें करता हूँ।" मेरी बात को बीच में रोकते उसने जबाब
दिया। सुनते ही मन ही मन दुआएं उसके और उसके पेरेंट्स के लिए निकली । मुझे लगा वो
मुझसे अब रूहानियत में बेहद बड़ा है।
रिपु ने कहा -" बच्चे अक्सर सोचते कि जो
पढ़ रहे उसका कोई use नहीं। मैं उनसे कहता कुछ
भी पूछो मैं practical daily
routine में
उसका use बताऊँगा।"
मैंने भी उससे कई प्रश्न पूछे और उसने समझाना
लगभग किसी परिपक्व शिक्षक की तरह शुरू किया।
असल ऋण चुकता यदि किसी को करना इससे बेहतर
इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता। नगर जिधर नकली दबंगाई के अभ्यास युवाओं को देता
फिरता और कुर्ताधारी, टीकाधारी चालीस पचास
युवाओं को पीछे लिए घूमते।
नगर की होटलों पान की दुकानों आहतों में जो
यारों की यारियाँ फिकरे कसते मिलती वो दशकों पीछे धकेल रहे नगर को प्रदेश को देश
को।
ऐसी गैरजिम्मेदार नागरिकता कभी स्मार्ट नहीं
हो सकती किन्तु रिपुसुदन अग्रवाल ( युवा साइंटिस्ट) सुधीश मिश्रा ( डायरेक्टर ब्रह्मोस , डीआरडीओ) चन्द्रशेखर
विश्वकर्मा( पूर्व प्रचार्य,
मिलट्री
कालेज देहरादून) रजवंत बहादुर सिंह ( पूर्व अध्यक्ष कर्मिक प्रतिभा प्रबंधन विभाग, डीआरडीओ) के साथ युवा रुद्राक्ष पंकज अभिनव सारांश वीरेंद्र प्रदीप
हनुमान यशा कविता इन्द्री पूजा शुभेन्दु अनुराग चतुर्वेदी विवेक शर्मा से अनगिनत
उदाहरण जो अलग विधाओं में लगे पड़े।
मुझे देश पर भाषण सुनने देने में दिलचस्पी न
रही न रहेगी क्योंकि साफ दिख रहा असल नगर की प्रबुद्धता तो आत्मप्रशंसा
आत्ममुग्धता में माटी पलित किये भविष्य को। जीवट कर्मठ व्यक्तित्व और सकारत्मक
ऊर्जा से भरे ये लोग जो बिन किसी बड़े गाजे बाजे मंच प्रपंच माला विमला के अपना काम
करते।
सोशल मीडिया में झाडू पकड़े या गाय को चारा
खिलाते पतलून में सिलवट भी न पड़े क्रीज भी खराब न हो और विश्वास दिलाते समाज सेवा
हो रही तो यह स्वच्छता का ढिंढोरा कर्जों में लाद देगा।
मुझे माँ रेवा के वे भक्त सच्चे हिन्द लगेंगे
जो आटे की लुई लिये बेठें न कि वो जो आरती कर घर की पूजा हवन कचरा का विसर्जन
आस्था से करने माँ नर्मदा के गाल पर तमाचा जड़ने आते।
अनुराग त्रिवेदी एहसास
लेखक एक्टिविस्ट
1.1.18
2018 के लिए नए संकल्प लेने होंगे
बीते बरस की कक्षा में बहुत कुछ सीखने को मिला इस साल अपने जन्मपर्व 29 नवम्बर 1963 से अब तक जो भी कुछ सीखा था वो सब 0 सा लगा इस साल ने मुझे बताया कि - हर सवाल ज़वाब आज देना ज़रूरी नहीं है कुछ ज़वाब अगले समय के लिए छोड़ना चाहिए कोई कितनी भी चुभते हुए आरोप लगाएं मुझे मंद मंद मुस्कुराकर उनको नमन करने की आदत सी हो गई । मुझे पता लगा कि आरोप लगाने वालों को जब समय जवाब देता है तो वे आरोप लगाने के अभ्यास से मुक्त हो जाएगा ।
यूँ तो सबसे असफल मानता हूँ खुदको पर आत्मनियंत्रण और उद्विग्नता से मुक्ति पिछले कई सालों से व्यक्तिगत ज्ञान संपदा के कोषागार को बेपनाह भर रही है । साथ ही सत्य के लिए संघर्षशीलता की शक्ति भी मिल रही है वर्ष कितना कुछ दे जाता है कभी सोचके तो देखिए
*बीते साल में यश्चवन्त होना एक उपलब्धि थी कोई मुझे अस्वीकारता तो दुःखी न होता क्योंकि वो उसका अधिकार है किसे स्वीकारे किसे न स्वीकारे किसी के अधिकार पर अतिक्रमण करना मेरा कार्य नहीं !*
*इस बरस मुझे एहसास हुआ कि मैं रक्तबीज हूँ मुझे काटो मारो मेरी उपेक्षा करो सार्वजनिक रूप से आहत करो हराने की चेष्ठा करो मेरा रक्त माथे पर पसीने सा चुहचुहा के भूमि पर टपकेगा और मुझे और अधिक शक्ति से जीवित कर देगा सत्य के उदघोष के लिए !
वैमनस्यता वो बोएं और मैं काटूँ सनातन संस्कृति में यह जायज़ नहीं है इसके कई मामले मेरे सामने आए एक पल आक्रोश से भरा दूसरे पल ही मानस में उमड़ते आध्यात्मिक ज्ञान ने रोका कहा - "तुम शांत रहो चिंतन और आत्म निरीक्षण करो देखो शायद कोई कमी हो तुममें ? कई बार पाया कि हाँ में गलत था कई बार दूसरे गलत थे खुद को सुधारने की सफल कोशिश की दूसरों को ईश्वर के भरोसे छोड़ा ! बीते वर्ष ने यही सिखाया अच्छी थी सीख ।
*फिर भी मुझसे जो गलतियाँ हुईं हों उसके लिए मुझे क्षमा कीजिये इस विराट में मैं बहुत छोटा हूँ आप सब विशाल मेरी भूलों को माफ़ करने का आपमें मुझसे अधिक सामर्थ्य है ।
भारत के विशाल एवम विविद्वतापूर्ण समाज के लिए खतरा कुछ नहीं है उसका सांस्कृतिक वैभव और सामर्थ्य अक्षुण्ण है चेतना में सकारात्मकता की अक्षय ऊर्जा भरी पड़ी है । बस 100 बरस में विचारधाराओं के आक्रामक आघात से लोग चिंतन हीं हो गए हैं । महात्मा अम्बेडकर के कुछ स्वयंभू अनुयायियों के मन में कुण्ठा का प्रवेश वामधर्मी विचारकों ने भर दिया है जबकि अब जब तेज़ी से समाज में में बदलाव आ रहा है सामाजिक सहिष्णुता के कपाट खुलने जा रहे हैं तब आयातित विचार पोषक तत्वों बे फिर वर्गीकरण कर दिया । 2017 में रोहिंग्या पर रोने वालों ने काश्मीर पर एक भी एवार्ड वापस न किये थे 1990 के बाद क्रूर असहिष्णुता की प्रतिक्रिया हुई होगी स्वभाविक है होगी ही क्योंकि विशाल देश में ईद दीवाली गुरुपर्व क्रिसमस साथ साथ मनाने का दृश्य वामधर्मी ज़ह नहीं सके वे पहले वर्गीकरण करतें हैं फिर वर्गों में संघर्ष कराते हैं ताकि भारत चीन की तरह विकास को गति न दे सके परन्तु हम साहित्यकार कवि कलाकार चेतना के लिए एक शक्तिकोश हैं बदलाव ले आएंगे 2029 तक भारत को उस दिशा में ले जाएंगे जो विश्व का मार्गदर्शन करेगी ।
आप सुधिजन जानिए 2017 के बाद 2018 और अधिक सम्पन्न करेगा भारत को बस प्रत्येक मन में ऊपर लिखी मेरी व्यक्तिगत अभिव्यक्ति को स्वीकृति देनी होगी ।
सरकारों को भी अब ऐसे प्रयास करने होंगे जिससे सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिल मसलन आरक्षण की जगह जाति सशक्तिकरण के कांसेप्ट को लाना होगा । आरक्षण अब गैर जरूरी एवम अनावश्यक बिंदु है तथा कालांतर में यह व्यवस्था सबसे विध्वंसक स्वरूप धारण कर लेगी इससे हम 2029 के स्वप्न को प्राप्त न कर पाएंगे ।
यूँ तो सबसे असफल मानता हूँ खुदको पर आत्मनियंत्रण और उद्विग्नता से मुक्ति पिछले कई सालों से व्यक्तिगत ज्ञान संपदा के कोषागार को बेपनाह भर रही है । साथ ही सत्य के लिए संघर्षशीलता की शक्ति भी मिल रही है वर्ष कितना कुछ दे जाता है कभी सोचके तो देखिए
*बीते साल में यश्चवन्त होना एक उपलब्धि थी कोई मुझे अस्वीकारता तो दुःखी न होता क्योंकि वो उसका अधिकार है किसे स्वीकारे किसे न स्वीकारे किसी के अधिकार पर अतिक्रमण करना मेरा कार्य नहीं !*
*इस बरस मुझे एहसास हुआ कि मैं रक्तबीज हूँ मुझे काटो मारो मेरी उपेक्षा करो सार्वजनिक रूप से आहत करो हराने की चेष्ठा करो मेरा रक्त माथे पर पसीने सा चुहचुहा के भूमि पर टपकेगा और मुझे और अधिक शक्ति से जीवित कर देगा सत्य के उदघोष के लिए !
वैमनस्यता वो बोएं और मैं काटूँ सनातन संस्कृति में यह जायज़ नहीं है इसके कई मामले मेरे सामने आए एक पल आक्रोश से भरा दूसरे पल ही मानस में उमड़ते आध्यात्मिक ज्ञान ने रोका कहा - "तुम शांत रहो चिंतन और आत्म निरीक्षण करो देखो शायद कोई कमी हो तुममें ? कई बार पाया कि हाँ में गलत था कई बार दूसरे गलत थे खुद को सुधारने की सफल कोशिश की दूसरों को ईश्वर के भरोसे छोड़ा ! बीते वर्ष ने यही सिखाया अच्छी थी सीख ।
*फिर भी मुझसे जो गलतियाँ हुईं हों उसके लिए मुझे क्षमा कीजिये इस विराट में मैं बहुत छोटा हूँ आप सब विशाल मेरी भूलों को माफ़ करने का आपमें मुझसे अधिक सामर्थ्य है ।
भारत के विशाल एवम विविद्वतापूर्ण समाज के लिए खतरा कुछ नहीं है उसका सांस्कृतिक वैभव और सामर्थ्य अक्षुण्ण है चेतना में सकारात्मकता की अक्षय ऊर्जा भरी पड़ी है । बस 100 बरस में विचारधाराओं के आक्रामक आघात से लोग चिंतन हीं हो गए हैं । महात्मा अम्बेडकर के कुछ स्वयंभू अनुयायियों के मन में कुण्ठा का प्रवेश वामधर्मी विचारकों ने भर दिया है जबकि अब जब तेज़ी से समाज में में बदलाव आ रहा है सामाजिक सहिष्णुता के कपाट खुलने जा रहे हैं तब आयातित विचार पोषक तत्वों बे फिर वर्गीकरण कर दिया । 2017 में रोहिंग्या पर रोने वालों ने काश्मीर पर एक भी एवार्ड वापस न किये थे 1990 के बाद क्रूर असहिष्णुता की प्रतिक्रिया हुई होगी स्वभाविक है होगी ही क्योंकि विशाल देश में ईद दीवाली गुरुपर्व क्रिसमस साथ साथ मनाने का दृश्य वामधर्मी ज़ह नहीं सके वे पहले वर्गीकरण करतें हैं फिर वर्गों में संघर्ष कराते हैं ताकि भारत चीन की तरह विकास को गति न दे सके परन्तु हम साहित्यकार कवि कलाकार चेतना के लिए एक शक्तिकोश हैं बदलाव ले आएंगे 2029 तक भारत को उस दिशा में ले जाएंगे जो विश्व का मार्गदर्शन करेगी ।
आप सुधिजन जानिए 2017 के बाद 2018 और अधिक सम्पन्न करेगा भारत को बस प्रत्येक मन में ऊपर लिखी मेरी व्यक्तिगत अभिव्यक्ति को स्वीकृति देनी होगी ।
सरकारों को भी अब ऐसे प्रयास करने होंगे जिससे सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिल मसलन आरक्षण की जगह जाति सशक्तिकरण के कांसेप्ट को लाना होगा । आरक्षण अब गैर जरूरी एवम अनावश्यक बिंदु है तथा कालांतर में यह व्यवस्था सबसे विध्वंसक स्वरूप धारण कर लेगी इससे हम 2029 के स्वप्न को प्राप्त न कर पाएंगे ।
22.12.17
कलाकार की सफलता के सूरज के 9 अश्व
मेरे एक मुम्बइया परिचित ने गलती से अपनी कलाकृति मुझे भेज दी मैनें जबलपुरिया स्नेहवश नहीं जान बूझकर कहा -वाह क्या बात है इसे अपने चैनल पर पोस्ट कर दूं । श्रीमन मेरे झांसे में आए सो हाँ कह दिया फिर तुरन्त कॉलबैक किया - अरे भाई हमने कर दिया है आप परेशान न हों ।
मित्रो व्यक्ति कितना सतर्क रहें मुम्बई वालों से सीखो हमारे जबलपुरी कलाकार बहुत भोले हैं । उनको समझना चाहिए कि जब रोटियों की ज़रूरत होती है तो ये तालियाँ किसी काम की नहीं होतीं ।
मेरे कलाजगत के मकसद परस्तों के साथ कि बार मुठभेड़ हो चुकी है ।
मेरे परिचित एक युवा ने मुझे सपत्नीक घर आकर अपनी आर्थिक तंगी का किस्सा सुनाया सो मैने उनको संस्थान से काम दिलाने का वादा कर उनको काम भी दिलाया । भाई को जब ये लगा कि मेरा काम उनके बिना नहीं चल पाएगा तो भाई ने एक बार छोटे से काम के लिए इतना बड़ा बिल दिया जो किसी भी हालात नें उस काम के लायक तो न था ।
इस बीच भाई ने अनवांछित मांग का प्रपोगन्दा शुरू कर दिया । मेरे अधिकारी ने उसे विवादों से बचने के लिए भुगतान कर दिया पर मुझे कलाजगत के इस भ्रष्टाचार पर बहुत दर्द हुआ । आज भी है । उसी व्यक्ति ने मुझसे मेरी कविता मांग कुछ पोस्टर बनाए जब मैंने अपनी लेखनी की कीमत मांगी तो मुकर गए ज़नाब हालांकि मुझे शब्दों की कीमत से कोई लेना देना न था पर उसे एहसास दिलाना था कि पवित्रता सार्व श्रेष्ठ है आप अगर तूलिका और रंग का सम्मिश्रण केनवस पर मुंह मांगे बेच सकते हो तो शब्दों का भी मूल्य होता है ।
मित्रो कलाजगत रहस्य का जगत भी है । पता नहीं किसे कब और कितना दे दे गीत संगीत के मशीनीकरण ने सारेगामा को नेपथ्य में पटक दिया तो देह प्रदर्शन एवम आयातित विचारकों ने सकारात्मक रंगकर्म को तो मानो बंधक बना लिया । कविताई में सियासत चुट्कुले बाजों का राज़ गई तो पेंटर वो छा रहा है जो न्यूड बना रहा है या शास्त्रीय लोक कला को ताक में रख अधकचरे चित्र दे रहा गई । उस पर एक बात और आजकल मौलिक सृजन कर्ताओं का टोटा है । नकलचियों की तादात इतनी है कि कला जगत में विकास के मार्ग अवरुद्ध होते जा रहे हैं ।
टीवी चैनल्स ने हर विधा का अंत करने का ठेका सा ले लिया है
चैनल्स केवल पैसों के लिए रियलिटी शो पेश करतें हैं । डांस जे नाम पर कसरतें गायन के नामपर फ़िल्मी गीतों पर तीनचार जजेस की मूर्खताएं नाट्य एवम अभिनय का तो कुछ न पूछिये विषय ऐसा उठाते हैं हैं जो केवल सीमा हीन होकर वर्जनाओं को तोड़ने के लिए प्रेरित करे ,,,, युवा उस ऐन्द्रजाल में फंसकर मूल साधना से भटक जाते हैं । संगीत के कुछ ही साधक हैं जो रोटी में घी लगाकर अपने फ़्लैट में मुम्बइया हो पाए हैं शेष आज भी एड़ियां घिस रहे हैं ।
एक युवा जोड़ा एक दिन मेरे संस्थान में आया बेचारा सोच रहा था कि हम उनकी कुछ सहायता करेंगे पर हम अपने सीमित साधनों से उनको क्या देते उनको दुनियाँ का राज़ समझ आया दौनों एक स्वर में बोले- सर आज समझे कि रोटी कितनी मुश्किल से हासिल की जाती है । बच्चे रूमानियत और प्रेम से पगे थे । घर लौट गए माँ बाप ने अवश्य उनको गले लगाया होगा ।
संतवृत्ति के साधकों को भी देखा है रोजिन्ना नाम छपाउँ सृजकों को भी । संतवृत्ति के कलाकार केवल साधक होते हैं कला के सतत अन्वेषण और अध्यवसाय में लगे ये गन्धर्व सामवेद वर्णित कला के निष्णात होकर भी मासूम होते हैं ।
लेकिन नाम के लिए दौड़ने वाले उफ़्फ़ विश्व में गोया सीधे इंद्र सभा से भेजे गए हों । वैसे इनका अधोपतन एक दशक से भी कम अवधि में हो ही जाता है ।
मित्रो फिर भी कोशिश कर रहा हूँ बेहतरीन कलाकार समाज को दूं जो सच्चे गंधर्व साबित हों
कलाकर की सफलता के सूरज के 9 अश्व
1:- कभी भी बेवजह किसी को प्रमोट न करो उसका टेलेंट बोलेगा ।
2:- प्रसिद्धि का लोभ प्रतिभा का अंत कर देता है
3:- अपने शहर के कूड़े कर्कट को भी सम्मान न दे सको तो सद्भाव ही दो
4:- जिस पायदान पर पैर रख के आए हो उससे उतार के दिनों के लिए सलामती की दुआ करो
5:- ग्लैमर वर्ल्ड कभी भी आपको हारा जुआरी साबित कर सकता है ।
6:- मेंटर्स भी मुंह देखा प्रमोशन न करें जबरन अपने ही स्टूडेंट्स को जिताएं न
7:- माँ बाप और मुगालते में न रहें कि उनकी संतान/शिष्य-शिष्या ही श्रेष्ठ कलाकार है । बैजू बावरा की कथा याद रखें
8:- हार जाने पर विजेता को सम्मान दें न कि खोट निकालें
9:- कलाकार खुद को सबसे नया साधक माने
18.12.17
ॐ का कंठ संगीत में महत्व : एक प्रयोग
ॐ के अनुनाद से वाणीगत मधुरता के लिए आप स्वयम एक प्रयोग करें 30 दिन में आपको अपनी भाषा में लयात्मकता एवम उसके उत्पन्न करने के लिए ध्वनि आघात की आवृत्ति का स्वयम बोध होगा ।
Balbhavan में संगीत के विद्यार्थियों को मेरा निर्देश है कि वे 5 से 10 बार इस का अनुनाद का अभ्यास करें । डॉ शिप्रा सुल्लेरे की देखरेख में बच्चे ॐ का अभ्यास करतें भी हैं । कुछ घर में करतें है ।
इससे ध्वनि फेफड़ों जीभ और वोकल काड के आटो सिंक्रोनाइज शरीररूपी मशीन से उत्पादित होगी जो आकर्षक और गेयता के काफी नजदीक होगी ।
आप वेस्टर्न गीतों में गायिकाओं की ध्वनि को महसूस करें तो पाएंगे कि आवाज़ हमारी गायिकाओं से एकदम भिन्न हैं मेनिष्ट हैं जबकि भारतीय गायिकाओं की आवाज़ मूलतः फेमिनिस्ट ही होती है । अधिकतर गायिकाएं किसी न किसी रूप में A U M के संयुक्त शब्द ॐ का उदघोष करने के कारण फेमिनिस्ट ही होती हैं ।
कर्नाटक राबिंद संगीत में भी यही ॐ स्वर साधना में ही शामिल होता है ।
सुधिजन हम इस प्रयोग को कराते हैं Bal Bhavan Jabalpur में जो एक कोशिश है छोटे बच्चों के साथ
इससे जो परिणाम मिलेंगे
1 बच्चों की आयु अनुसार बदली वोकलकाड के कारण गायन में प्रतिकूल प्रभाव न होगा
2 फेफड़ों वोकलकाड एवम जीभ में सिंक्रोनाइज़ेशन स्थापित हो जाने से ध्वनि का उत्पादन अभ्यास के एवम मस्तिष्क के आदेशानुसार ही होगा ।
3 ॐ के अभ्यास के दौरान ध्वनि नाभिकीय संचरण करने से आरोह अवरोह स्वराघात के मामले में नाभि तक के नियंत्रण के कारण गायकी ताल से न कटेगी और न ही सुरों में भटकाव होगा ।
ये प्रयोग है हमने एक वर्ष में पाया कि बाल संगीत साधक अपेक्षा के अनुरूप गायन को निखार पाते हैं । जो बच्चे घर में धार्मिक कारणों से अथवा आलस की वजह से ॐ का घोष नहीं कर पाते उनको नियमित स्वराभ्यास की ज़रूरत होती है ।
उम्मीद है आप इसे शेयर कर नए स्वर साधकों को मदद करेंगे ।
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