आलिम-ए-दीन मौलाना साहब दुनिया-ए-फ़ानी से रुख़सत फ़रमा गए....... ज़हीर अंसारी

मुफ़्ती-ए-आज़म मध्यप्रदेश मौलाना मो. महमूद अहमद क़ादरी साहब आज 22 फ़रवरी को इस दुनिया-ए- फ़ानी से रुख़सत फ़रमा गए। आप 90 साल के थे। आप उम्र के जिस पड़ाव पर पहुँच गए थे उसकी वजह से जिस्मानी तौर पर थोड़ा कमज़ोर हो गए थे लेकिन उनका दिमाग़ी तवाजन आख़री वक़्त तक मज़बूत रहा। यह उनकी दीनदारी का सिला था। अभी जनवरी माह में ही ईदमिलादुंनबी के मुबारक मौक़े पर आपने तक़रीर की और जुलूस-ए- मोहम्मदी में शामिल लोगों को मुल्क और अमन परस्ती का समझाईश दी। आप जितने बड़े आलिम-ए-दीन थे उतने बड़े ही इंसानियत के पैरोकार। बेशक आप अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त और अल्लाह के नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (सअव) की हिदायतों पर ताउम्र क़ायम रहे। आपको क़ुरान-ए-मजीद और सभी हदीश शरीफ़ का गहरा इल्म था।

मौलाना साहब ने अपने दादा हज़रत अब्दुल सलाम साहब और वालिद हज़रत मौलाना जनाब बुरहानुल हक़ जी से जो दीनी और मज़हबी तालीम मिली उसका आपने पूरा ख़्याल रखा। आप उम्र भर इंसानियत और अमन के झंडाबरदार बने रहे। जब भी शहर में दो कौमों के बीच गहमा-गहमी हुई या फ़साद की नौबत आई तो आप सबसे पहले आगे आए और अपनी क़ौम को समझाईश देकर शासन-प्रशासन की मदद की। आप की इसी ख़ूबी का ऐहतराम दीगर क़ौम के लोग भी करते थे। अन्य धर्म के साधु-संतों के साथ मंच साझा किया ताकि शहर के अमन-चैन और भाई-चारे को कोई आँच न आ सके। ईदुल फितर हो या ईदुज्जुहा या फिर ईदमिलादुंनबी हर मज़हबी त्योहार पर मुल्क परस्ती, भाई-चारा, अमन, इंसानियत और तालीम-तरबियत की सीख दी। आप अपने उसूलों से कभी डिगे नहीं।

माशाअल्लाह आपका दीनी-दुनियावी इल्म, क़द-काठी, रंग-रूप और रुआब ऐसा था कि कोई भी देखने वाला मूतासिर हो जाए। ऐसे नेक दिल और अहले सुन्नत के अज़ीम पेशवा अब हमारे बीच नहीं रहे। आपकी रहनुमाई से क़ौम का भरोसा क़ायम रहा। अब आपकी रुख़सती से ख़ालीपन क़ौम को कचोटता रहेगा।

हम नाचीज़ अल्लाह की बारगाह में सिर्फ़ यही दुआ कर सकते हैं कि ‘या अल्लाह मौलाना साहब जैसे दीनदार और नेक दिल इंसान को अपने हबीब के सदके में जन्नतुल फिरदौस में आला से आला मुक़ाम अता फ़रमाना। (आमीन)

इंशाहअल्लाह कल 23 फ़रवरी को बाद नमाज़ जुमा ईदगाह कलाँ रानीताल में आपको सुपुर्देख़ाक किया जाएगा।

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जय हिन्द
ज़हीर अंसारी

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