बीते बरस की कक्षा में बहुत कुछ सीखने को मिला इस साल अपने जन्मपर्व 29 नवम्बर 1963 से अब तक जो भी कुछ सीखा था वो सब 0 सा लगा इस साल ने मुझे बताया कि - हर सवाल ज़वाब आज देना ज़रूरी नहीं है कुछ ज़वाब अगले समय के लिए छोड़ना चाहिए कोई कितनी भी चुभते हुए आरोप लगाएं मुझे मंद मंद मुस्कुराकर उनको नमन करने की आदत सी हो गई । मुझे पता लगा कि आरोप लगाने वालों को जब समय जवाब देता है तो वे आरोप लगाने के अभ्यास से मुक्त हो जाएगा ।
यूँ तो सबसे असफल मानता हूँ खुदको पर आत्मनियंत्रण और उद्विग्नता से मुक्ति पिछले कई सालों से व्यक्तिगत ज्ञान संपदा के कोषागार को बेपनाह भर रही है । साथ ही सत्य के लिए संघर्षशीलता की शक्ति भी मिल रही है वर्ष कितना कुछ दे जाता है कभी सोचके तो देखिए
*बीते साल में यश्चवन्त होना एक उपलब्धि थी कोई मुझे अस्वीकारता तो दुःखी न होता क्योंकि वो उसका अधिकार है किसे स्वीकारे किसे न स्वीकारे किसी के अधिकार पर अतिक्रमण करना मेरा कार्य नहीं !*
*इस बरस मुझे एहसास हुआ कि मैं रक्तबीज हूँ मुझे काटो मारो मेरी उपेक्षा करो सार्वजनिक रूप से आहत करो हराने की चेष्ठा करो मेरा रक्त माथे पर पसीने सा चुहचुहा के भूमि पर टपकेगा और मुझे और अधिक शक्ति से जीवित कर देगा सत्य के उदघोष के लिए !
वैमनस्यता वो बोएं और मैं काटूँ सनातन संस्कृति में यह जायज़ नहीं है इसके कई मामले मेरे सामने आए एक पल आक्रोश से भरा दूसरे पल ही मानस में उमड़ते आध्यात्मिक ज्ञान ने रोका कहा - "तुम शांत रहो चिंतन और आत्म निरीक्षण करो देखो शायद कोई कमी हो तुममें ? कई बार पाया कि हाँ में गलत था कई बार दूसरे गलत थे खुद को सुधारने की सफल कोशिश की दूसरों को ईश्वर के भरोसे छोड़ा ! बीते वर्ष ने यही सिखाया अच्छी थी सीख ।
*फिर भी मुझसे जो गलतियाँ हुईं हों उसके लिए मुझे क्षमा कीजिये इस विराट में मैं बहुत छोटा हूँ आप सब विशाल मेरी भूलों को माफ़ करने का आपमें मुझसे अधिक सामर्थ्य है ।
भारत के विशाल एवम विविद्वतापूर्ण समाज के लिए खतरा कुछ नहीं है उसका सांस्कृतिक वैभव और सामर्थ्य अक्षुण्ण है चेतना में सकारात्मकता की अक्षय ऊर्जा भरी पड़ी है । बस 100 बरस में विचारधाराओं के आक्रामक आघात से लोग चिंतन हीं हो गए हैं । महात्मा अम्बेडकर के कुछ स्वयंभू अनुयायियों के मन में कुण्ठा का प्रवेश वामधर्मी विचारकों ने भर दिया है जबकि अब जब तेज़ी से समाज में में बदलाव आ रहा है सामाजिक सहिष्णुता के कपाट खुलने जा रहे हैं तब आयातित विचार पोषक तत्वों बे फिर वर्गीकरण कर दिया । 2017 में रोहिंग्या पर रोने वालों ने काश्मीर पर एक भी एवार्ड वापस न किये थे 1990 के बाद क्रूर असहिष्णुता की प्रतिक्रिया हुई होगी स्वभाविक है होगी ही क्योंकि विशाल देश में ईद दीवाली गुरुपर्व क्रिसमस साथ साथ मनाने का दृश्य वामधर्मी ज़ह नहीं सके वे पहले वर्गीकरण करतें हैं फिर वर्गों में संघर्ष कराते हैं ताकि भारत चीन की तरह विकास को गति न दे सके परन्तु हम साहित्यकार कवि कलाकार चेतना के लिए एक शक्तिकोश हैं बदलाव ले आएंगे 2029 तक भारत को उस दिशा में ले जाएंगे जो विश्व का मार्गदर्शन करेगी ।
आप सुधिजन जानिए 2017 के बाद 2018 और अधिक सम्पन्न करेगा भारत को बस प्रत्येक मन में ऊपर लिखी मेरी व्यक्तिगत अभिव्यक्ति को स्वीकृति देनी होगी ।
सरकारों को भी अब ऐसे प्रयास करने होंगे जिससे सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिल मसलन आरक्षण की जगह जाति सशक्तिकरण के कांसेप्ट को लाना होगा । आरक्षण अब गैर जरूरी एवम अनावश्यक बिंदु है तथा कालांतर में यह व्यवस्था सबसे विध्वंसक स्वरूप धारण कर लेगी इससे हम 2029 के स्वप्न को प्राप्त न कर पाएंगे ।
यूँ तो सबसे असफल मानता हूँ खुदको पर आत्मनियंत्रण और उद्विग्नता से मुक्ति पिछले कई सालों से व्यक्तिगत ज्ञान संपदा के कोषागार को बेपनाह भर रही है । साथ ही सत्य के लिए संघर्षशीलता की शक्ति भी मिल रही है वर्ष कितना कुछ दे जाता है कभी सोचके तो देखिए
*बीते साल में यश्चवन्त होना एक उपलब्धि थी कोई मुझे अस्वीकारता तो दुःखी न होता क्योंकि वो उसका अधिकार है किसे स्वीकारे किसे न स्वीकारे किसी के अधिकार पर अतिक्रमण करना मेरा कार्य नहीं !*
*इस बरस मुझे एहसास हुआ कि मैं रक्तबीज हूँ मुझे काटो मारो मेरी उपेक्षा करो सार्वजनिक रूप से आहत करो हराने की चेष्ठा करो मेरा रक्त माथे पर पसीने सा चुहचुहा के भूमि पर टपकेगा और मुझे और अधिक शक्ति से जीवित कर देगा सत्य के उदघोष के लिए !
वैमनस्यता वो बोएं और मैं काटूँ सनातन संस्कृति में यह जायज़ नहीं है इसके कई मामले मेरे सामने आए एक पल आक्रोश से भरा दूसरे पल ही मानस में उमड़ते आध्यात्मिक ज्ञान ने रोका कहा - "तुम शांत रहो चिंतन और आत्म निरीक्षण करो देखो शायद कोई कमी हो तुममें ? कई बार पाया कि हाँ में गलत था कई बार दूसरे गलत थे खुद को सुधारने की सफल कोशिश की दूसरों को ईश्वर के भरोसे छोड़ा ! बीते वर्ष ने यही सिखाया अच्छी थी सीख ।
*फिर भी मुझसे जो गलतियाँ हुईं हों उसके लिए मुझे क्षमा कीजिये इस विराट में मैं बहुत छोटा हूँ आप सब विशाल मेरी भूलों को माफ़ करने का आपमें मुझसे अधिक सामर्थ्य है ।
भारत के विशाल एवम विविद्वतापूर्ण समाज के लिए खतरा कुछ नहीं है उसका सांस्कृतिक वैभव और सामर्थ्य अक्षुण्ण है चेतना में सकारात्मकता की अक्षय ऊर्जा भरी पड़ी है । बस 100 बरस में विचारधाराओं के आक्रामक आघात से लोग चिंतन हीं हो गए हैं । महात्मा अम्बेडकर के कुछ स्वयंभू अनुयायियों के मन में कुण्ठा का प्रवेश वामधर्मी विचारकों ने भर दिया है जबकि अब जब तेज़ी से समाज में में बदलाव आ रहा है सामाजिक सहिष्णुता के कपाट खुलने जा रहे हैं तब आयातित विचार पोषक तत्वों बे फिर वर्गीकरण कर दिया । 2017 में रोहिंग्या पर रोने वालों ने काश्मीर पर एक भी एवार्ड वापस न किये थे 1990 के बाद क्रूर असहिष्णुता की प्रतिक्रिया हुई होगी स्वभाविक है होगी ही क्योंकि विशाल देश में ईद दीवाली गुरुपर्व क्रिसमस साथ साथ मनाने का दृश्य वामधर्मी ज़ह नहीं सके वे पहले वर्गीकरण करतें हैं फिर वर्गों में संघर्ष कराते हैं ताकि भारत चीन की तरह विकास को गति न दे सके परन्तु हम साहित्यकार कवि कलाकार चेतना के लिए एक शक्तिकोश हैं बदलाव ले आएंगे 2029 तक भारत को उस दिशा में ले जाएंगे जो विश्व का मार्गदर्शन करेगी ।
आप सुधिजन जानिए 2017 के बाद 2018 और अधिक सम्पन्न करेगा भारत को बस प्रत्येक मन में ऊपर लिखी मेरी व्यक्तिगत अभिव्यक्ति को स्वीकृति देनी होगी ।
सरकारों को भी अब ऐसे प्रयास करने होंगे जिससे सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिल मसलन आरक्षण की जगह जाति सशक्तिकरण के कांसेप्ट को लाना होगा । आरक्षण अब गैर जरूरी एवम अनावश्यक बिंदु है तथा कालांतर में यह व्यवस्था सबसे विध्वंसक स्वरूप धारण कर लेगी इससे हम 2029 के स्वप्न को प्राप्त न कर पाएंगे ।