2.10.17

श्रेष्ठ ब्लॉग की सूची में ब्लॉग मिसफिट

http://www.indiantopblogs.com यानी टॉप ब्लॉग  ने 30 सितम्बर को देशभर के  श्रेष्ठ ब्लॉग की सूची जारी कर दी है. जिसमें आपका पसंदीदा ब्लॉग मिसफिट  ( https://sanskaardhani.blogspot.in/ ) जो अब तक 373,279  पाठकों तक जा पहुंच चुका है .  
सुधि पाठकों को इस ब्लॉग मिसफिट  पर आने के लिए  नमन 
Directory of Best Hindi Blogs हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगों की डायरेक्टरी
The 2017 edition of the Directory of Best Hindi Blogs has been released on 30th September 2017. It has 140 blogs, listed alphabetically [according to the operative part of the URL]. 
30 सितंबर 2017 को ज़ारी हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगों की डायरेक्टरी का 2017 संस्करण आपके सामने प्रस्तुत है. इसमें 140 ब्लॉग हैं जिन्हें उनके  URL के पहले अंग्रेज़ी अक्षर के क्रम में लगाया गया है.


4yashoda मेरी धरोहर
aarambha आरम्भ
abchhodobhi अब छोड़ो भी
achhikhabar Achhikhabar
agrasamachar Hindi News India : Agra Samachar
ajit09 अजित गुप्‍ता का कोना 
akanksha-asha Akanksha
akhtarkhanakela आपका-अख्तर खान "अकेला"
akoham एकोऽहम्
akpathak3107 अजित गुप्‍ता का कोना 
amitaag Safarnaamaa... सफ़रनामा...
amrita-anita डायरी के पन्नों से
anitanihalani मन पाए विश्राम जहाँ
anubhaw अनुभव
anunad अनुनाद 
apnapanchoo अपना पंचू
apninazarse अपनी नज़र से 
archanachaoji मेरे मन की 
artharthanshuman Arthaat
aruncroy सरोकार 
avojha मुक्ताकाश....
baatapani बात अपनी
bal-kishore Bal-Kishore 
bamulahija Bamulahija
bastarkiabhivyakti बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना...
bhadas भड़ास blog
bhartiynari भारतीय नारी
bloglon Blog Lon
boletobindas Bole to...Bindaas....बोले तो....बिंदास 
brajeshgovind यही है जिन्दगी
brajkiduniya ब्रज की दुनिया
bulletinofblog ब्लॉग बुलेटिन
burabhala बुरा भला
chandkhem हरिहर
charchamanch चर्चा मंच
charchchit32 विशाल चर्चित 
chavannichap chavanni chap (चवन्नी चैप)
chouthaakhambha चौथा खंबा 
creativekona क्रिएटिव कोना 
dcgpthravikar कुछ कहना है 
devendra-bechainaatma बेचैन आत्मा
dillidamamla ऐवें कुछ भी 
doosrapahlu दूसरा पहलू 
dr-mahesh-parimal संवेदनाओं के पंख
drparveenchopra मीडिया डाक्टर
dudhwalive दुधवाlive
ekla-chalo एकला चलो 
ek-shaam-mere-naam एक शाम मेरे नाम 
firdausdiary Firdaus Diary
geetkalash गीत कलश
girijeshrao एक आलसी का चिठ्ठा
gulabkothari Gulabkothari's Blog
gustakh गुस्ताख़
gyandarpan ज्ञान दर्पण 
harshvardhantripathi हर्षवर्धन त्रिपाठी
hathkadh Hathkadh
hindisoch.com Hindi Soch
hinditechy Hindi Techy
indorepolice Indore Police News 
iyatta इयत्ता
jagadishwarchaturvedi नया जमाना
jankipul जानकीपुल
jhoothasach झूठा सच - Jhootha Sach
jindagikeerahen जिंदगी की राहें 
jlsingh jls
kabaadkhaana कबाड़खाना
kajalkumarcartoons Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून
kavitarawatbpl KAVITA RAWAT 
kpk-vichar मेरे विचार मेरी अनुभूति 
krantiswar क्रांति स्वर 
kuchhalagsa कुछ अलग सा
kumarendra रायटोक्रेट कुमारेन्द्र
laharein लहरें 
laltu आइए हाथ उठाएँ हम भी
lamhon-ka-safar लम्हों का सफ़र
lifeteacheseverything मेरी भावनायें...
madhurgunjan मधुर गुंजन
mainmusafir1 मैं मुसाफ़िर अनजानी राहों का...
masharmasehar Sehar
mykalptaru कल्पतरु
naisadak कस्‍बा qasba
neerajjaatji मुसाफिर हूँ यारों
omjaijagdeesh वंदे मातरम्
onkarkedia कविताएँ
opsambey चलाचले च संसारे
opsambey चलाचले च संसारे 
pachhuapawan पछुआ पवन (The Western Wind)
pahleebar पहली बार 
pammisingh गुफ़्तगू 
paramjitbali-ps2b ******दिशाएं****** 
pittpat बर्ग वार्ता - Burgh Vartaa
pramathesh jigyasa जिज्ञासा
prasunbajpai पुण्य प्रसून बाजपेयी
pratibhakatiyar प्रतिभा की दुनिया 
purushottampandey जाले 
purvaai पुरवाई
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wwwsamvedan सहज साहित्य
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*गजेटियर्स के ग्रेट शिल्पी थे जबलपुर के राय बहादुर हीरालाल*

1 अक्टूबर में राय बहादुर डॉ हीरालाल की 150 वी जयंती पर विशेष...........

 अगर बात उनके विशेष कार्यों की हो तो मध्य प्रांत के गजेटियर की  कल्पना उनके बिना संभव नहीं थी। जो आज भी शोध छात्रों के लिए मील का पत्थर हैं। और  अपने अद्भुत  कामो को अभिलेखों के तौर पर भावी पीढ़ी को सौंप गए| 👉गजेटीयर्स प्रकाशन के लिए 1910 में उन्हें रायबहादुर की उपाधि मिली
वे नृविज्ञान, मानव विज्ञान, अभिलेख विज्ञान, पुरा विज्ञान, भारतीय  इतिहास, हिंदी साहित्य, भाषा विज्ञान, फिलॉस्फी एवं पांडुलिपि विज्ञान के अधिकारी विद्वानों में से एक थे
  उनकी जीवनी व कार्यों की कुछ खास बातें :-
👉वह भारत की  मुख्य भाषाओं के साथ-साथ  जनजाति बोलियों जैसे गौंड़ी, कोरकू, गदबी आदि कई भाषाओं के जानकार थे। उन्होंने मध्य प्रदेश की भाषाओं और बोलियों का सर्वेक्षण किया और आदिवासी समाज के विभिन्न बोलियों के ग्रामोफोन रिकॉर्ड तैयार  किए
👉जनगणना अधिकारी, अकाल राहत अधिकारी, पुरातत्ववेत्ता, विज्ञान विषय के शिक्षक और डिप्टी कमिश्नर जैसी अनेक भूमिकाओं का निर्वहन किया
👉 सारे क्षेत्रों के विशेषज्ञ होने के कारण रिसर्च के लिए जर्मनी ने मांगा था ब्रेन
👉 भारत में सर्वप्रथम सहशिक्षा प्रारंभ की
👉 छत्तीसगढ़ एवं अन्य जगह पिछड़े और पहुंच विहीन क्षेत्रों में शालाएं खोली
👉 1909 एवं 1911 की भारत की जनगणना का कार्य किया
👉 इतिहास पुरातत्व साहित्य भूगोल आदि कई क्षेत्रों के संबंध में कई पुस्तकों और लेखों का लेखन किया
👉 वह भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के अवैतनिक संवाददाता भी रहे
👉 भारत के जातियों-जनजातियों समुदाय उप समुदायों पर रिसर्च करके उनके संबंध में  1908 में एथनोग्राफिक्स नोट्स, 1916 में ट्राइब्स एंड कास्ट्स ऑफ द सेंट्रल प्रॉविसेंस ऑफ इंडिया जैसी वृहद खंडों का प्रकाशन किया | 1914 में मध्य प्रांत और बरार के शिलालेख नामक पुस्तक लिखी जो एक प्रमाणित कृति मानी जाती है मध्यप्रदेश और उन के जिलो के इतिहास की पुस्तकें लिखें
👉10 हजार संस्कृत और प्राकृत पांडुलिपियों की खोजीं, जिनका पहले ज्ञान नहीं था।
👉 अपने उल्लेखनीय कार्यों के चलते उन्हें 31 प्रशंसा पत्रों से सम्मानित किया गया
👉 हिंदी साहित्य परिषद की स्थापना की
👉 कटनी में संस्कृत पाठशाला की स्थापना की जो वर्तमान में संस्कृत महाविद्यालय के रूप में मौजूद है
👉 सन 1930 में कटनी  में ग्रंथालय की स्थापना की जो तत्समय प्रदेश का मुख्य ग्रंथालय था
👉 स्नातक एवं स्नातकोत्तर में हिंदी चालू करवाया
👉 ऑल इंडिया ओरिएंटल कांफ्रेंस के अध्यक्ष भी रहे
👉 काशी नागरी प्रचारिणी सभा के आजीवन अध्यक्ष भी रहे
👉 मद्रास और नागपुर में आयोजित इंडियन साइंस  कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे
 👉वे गद्य और पद्य के सुयोग लेखक थे नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें डी.लीट की उपाधि प्रदान की गई
👉 यूरोप में आयोजित पुरातात्विक अधिवेशन में डॉ हीरालाल द्वारा भारत का प्रतिनिधित्व किया गया
👉अपनी वसीयत में हीरालाल ने तत्कालीन रॉबर्टसन कॉलेज के लिए 10 हजार और अन्य संस्थाओं के लिए 3 हजार की स्कॉलरशिप का उल्लेख किया है
👉 पंडित मदन मोहन मालवीय ने उन्हें विभाग के अध्यक्ष बनने का आमंत्रण दिया परंतु उन्होंने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर भारत कला भवन के लिए एक पुरातत्व महत्व की ब्रह्मा की मूर्ति भेंट की
👉 नागपुर विश्वविद्यालय के कुलपति पद को भी विनम्रतापूर्वक अस्वीकार किया
👉 चिड़ियों की बोलियों पर भी उन्होंने शोध  किया और चिड़ियों की  विभिन्न बोलियों को ग्रामोफोन रिकॉर्ड में तैयार किया
👉1922 में वे डिप्टी कमिश्नर पद से नरसिंहपुर से सेवानिवृत हुए, जिसके बाद भी उनका शोध कार्य चलता रहा।
👉 ताम्रपत्र और शिलालेख के अध्ययनके क्षेत्र में  वे विश्वविख्यात  थे
👉पुरातत्व के उच्च कोटि विद्वान होने चलते उन्हें चेदि कीर्ति चंद्र भी कहा जाता था।
👉 उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी उनकी किताबें व लेख व पुरातात्विक महत्व की प्राचीन मूर्तियां नागपुर भोपाल सागर व जबलपुर विश्वविद्यालय व संग्रहालय में दान दे दी गई
👉 राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने उनके निधन  पर निम्न पंक्तियों में अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की :- अयी अतीत तेरे ढेले भी, दुर्लभ रत्न तुल्य चिरकाल पर तेरा तत्वज्ञ स्वयं ही एक रत्न था हीरालाल||
👉1936 में तत्कालीन सरकार द्वारा जबलपुर स्थित डॉ हीरालाल जी के गांव बंधा का नामकरण उनकी स्मृति में हीरापुर बंधा किया गया
👉भारत सरकार ने 31 दिसंबर 1987 को उनकी स्मृति में डाक टिकट का विमोचन किया
(यह महान विभूति 19 अगस्त 1934 को हो ब्रह्मलीन हो गई )
*संकलनकर्ता-: एड निशांत राय, एड रामकिशोर शिवहरे*

टाइगर श्राफ की फेक आई डी

FAKE  @iTIGERSHROFF 
 Real @iTIGERSHROFF 
 फर्जी आई डी का  व्यवसाय सोशल मीडिया पर बेहद तेज़ी पकड़ रहा  आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि आप जिस सैलीब्रिटी को फालो कर रहें हों और वह फेक है असली . सही गलत की पहचान के लिए ट्विटर ने खाता व्हेरीफिकेशन की व्यवस्था दी है . परन्तु ये ख़ास सिगमेंट के लिए ही है . फिर भी फेक आई डी बनाने वालों की कमीं कहाँ . हाल ही में अभिनेता टाइगर श्राफ को मैंने ब्ल्यू गोले में राईट  निशान  के कारण फालो किया. क्योंकि भाई ने मेरी ट्विट को रीट्विट किया था. और मैंने रीट्विट करने वाले खाते पर कर्सर घुमाया तो  ब्ल्यू गोले में राईट  निशान वाली आई डी नज़र आई . वास्तव में वहां व्हेरिफिकेशन इमेज लगी हुई थी. जिससे मुझे शक  हुआ.  उस आई डी के फालोअर देखे और वे किसे फालो करतें हैं यह भी देखा. कुछ ऐसा समझ में न आया कि इस आई डी से कोई सेलिब्रिटी जुडी हो या जोड़ी गई हो. संक्षेप में यह कि हम ऐसे फेक आई डी को न फालो करें और न ही फालोवर सूची में शामिल रहने दें . जितना ज़ल्दी हो उसे रिपोर्ट भी करें . 

1.10.17

मोहन भागवत जी का राष्ट्रीय चिन्तन राष्ट्र की अखण्डता का सन्देश


राष्ट्रवाद की वकालत करना भाजपा और आरएसएस का महिमा-मंडित करना कह कर खारिज़ करने वालों के ज़ेहन में 30 दिसंबर 2017 को  संघ प्रधान श्रीयुत मोहन जी भागवत की अभिव्यक्ति के मायने निकालने होंगें . उनने अपनी इस ईमानदार अभिव्यक्ति में  हर मुद्दे पर गंभीरता से विमर्श किया है. वे कश्मीर को विकास पथ पर शेष भारत की तरह शामिल करने एवं विकास के लिए सकारात्मक वातावरण के निर्माण के लिए सरकारों (राज्य-एवं केन्द्रीय सरकार) को सलाह देते नज़र आए . संघ प्रमुख ने विकास के साथ साथ चुनौतियों का भी सटीक विश्लेष्ण किया. तथा रोहिंग्या के शरणार्थी, चतुर्दिक सीमाओं पर घुसपैठ एवं तस्करी पर चिंता व्यक्त की.
श्री भागवत ने पाकिस्तान को अपना दुश्मन न कहते हुए यह कहा कि- पाकिस्तान हमें अपना दुश्मन मानता है. वास्तविकता इससे इतर भी तो नहीं है.
रिम्पोचे को नमन करते हुए अपने भाषण का शुभारम्भ करते हुए स्वामी विवेकानंद  विश्वबंधुत्व के चिंतन को स्पर्श करते हुए "राष्ट्रीय दृष्टि" को आत्मसात करने के महत्व का आह्वान किया. भारतीय के इतिवृत की उपेक्षा के लिए आरएसएस प्रधान ने कालोनाईज्ड ब्रेन की शुद्धिकरण का आह्वान किया. बहन निवेदिता के उदाहरण को कोट करते हुए कहा  कि  स्वामी  विवेकानंद ने भगनी निवेदिता को अपने में भारत को आत्मसात करने की सलाह दी थी.
“आर्थिक अभिव्यक्ति ”
योजनाओं के प्रभाव की मानिटरिंग उसके प्रभाव को रेखांकित करने पर जोर दिया. तथा वे स्थानीय परिस्थिति के अनुसार आर्थिक-व्यवस्था के मापदंडों के लिए अन्वेषण की आवश्यकता पर जोर दिया. उदाहारण स्वरुप जीडीपी  के इस  अर्थशास्त्रीय  मानक को  कमियों से युक्त माना जा रहा है . हमें अपने देश के अनुरूप आर्थिकतंत्र के मानदंडों को  विकसित करना होगा. तब तक हम वैश्विक मापदंडों को स्वीकार करें .
   मोहन भागवत जी अपने आर्थिक चिंतन में कृषि सन्दर्भ में मौलिक देशज तकनीकियों की पैरोकारी को श्रेष्ठ मानते हुए  राष्ट्र की परिस्थियों के अनुकूल तकनीकियों को बाहर से स्वीकार्य करने की सलाह दी . 
वे आर्थिक विकास के लिए केवल बड़े ओद्यौगिक घरानों को ही नहीं वरन हर स्तर पर उत्पादकता आश्रित कार्यों को महत्व देने की सलाह दी . वे असंगठित क्षेत्र के  अनौपचारिक क्षेत्र को अन्त्योदय की अवधारणा की सफलता के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं. मध्य एवं निम्न मध्य वर्ग की आर्थिक गतिविधियों को भारतीय अर्थ व्यवस्था का बैक-बोन बताया . मोहन भागवत जी के इस  भाषण को लेखक के रूप में भारत के "सोशियो - इकानामिक डेवेलपमेंट का भाषण" की श्रेणी में रखता हूँ .
"शेष :- मिसफिट के  अगले अंक में " 

  

29.9.17

रामायण के राम जनजन के राम

एक था रावण बहुत बड़ा प्रतापी यशस्वी राज़ाविश्व को ही नहीं अन्य ग्रहों तक विस्तारित उसका साम्राज्य वयं-रक्षाम का उदघोष करता आचार्य चतुरसेन शास्त्री के ज़रिये जाना था रावण के पराक्रम को. उसकी साम्राज्य व्यवस्था को. ये अलग बात है कि उन दिनों मुझमें उतनी सियासी व्यवस्था की समझ न थी. पर एक सवाल सदा खुद पूछता रहा- क्या वज़ह थी कि राम ने रावण को मारा राम को हम भारतीय जो आध्यात्मिक धार्मिक भाव से देखते हैं राम को मैने कभी भी एक राजा के रूप में आम भारतीय की तरह मन में नहीं बसाया. मुझे उनका करुणानिधान स्वरूप ही पसंद है. किंतु जो अधिसंख्यक आबादी के लिये करुणानिधान हो वो किसी को मार कैसे सकता है और जब एक सम्राठ के रूप में राम को देखा तो सहज दृष्टिगोचर होती गईं सारी रामायण कालीन स्थितियां राजा रामचंद्र की रघुवीर तस्वीर साफ़ होने लगी 
रामायण-कालीन वैश्विक व्यवस्था का दृश्य 

रावण के संदर्भ में हिंदी विकीपीडिया में दर्ज़ विवरण को देखें जहां बाल्मीकि के हवाले से (श्लोक सहित ) विवरण दर्ज़ है- 

अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:। 
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता॥
आगे वे लिखते हैं "रावण को देखते ही राम मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि रूपसौन्दर्यधैर्यकान्ति तथा सर्वलक्षणयुक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान न होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता।" 
रावण जहाँ दुष्ट था और पापी था वहीं उसमें शिष्टाचार और ऊँचे आदर्श वाली मर्यादायें भी थीं। राम के वियोग में दुःखी सीता से रावण ने कहा है, "हे सीते! यदि तुम मेरे प्रति कामभाव नहीं रखती तो मैं तुझे स्पर्श नहीं कर सकता।" शास्त्रों के अनुसार वन्ध्यारजस्वलाअकामा आदि स्त्री को स्पर्श करने का निषेध है अतः अपने प्रति अकामा सीता को स्पर्श न करके रावण मर्यादा का ही आचरण करता है।
चूंकि इतनी अधिक विशेषताएं थीं तो बेशक कोई और वज़ह रही होगी जो राम ने रावण को मारा मेरी व्यक्तिगत सोच है कि रावण विश्व में एक छत्र राज्य की स्थापना एवम "रक्ष-संस्कृति" के विस्तार के लिये बज़िद था. जबकि त्रेता-युग का रामायण-काल के अधिकतर साम्राज्य सात्विकता एवम सरलतम आध्यात्मिक सामाजिक समरसता युक्त राज्यों की स्थापना चाहते थे. सामाजिक व्यवस्था को बनाने का अधिकार उनका पालन करने कराने का अधिकार जनता को ही था. सम्राठ तब भी जनता के अधीन ही थे केवल "देश की भौगोलिक सीमाओं की रक्षाशिक्षा केंद्रों को सहयोगअंतर्राष्ट्रीय-संबंधों का निर्वाह, " जैसे दायित्व राज्य के थे. जबकि रावण की रक्षकुल संस्कृति में अपेक्षा कृत अधिक उन्नमुक्तता एवम सत्ता के पास सामाजिक नियंत्रण नियम बनाने एवम उसको पालन कराने के अधिकार थे. जो वैदिक व्यवस्था के विपरीत बात थी. वेदों के व्याख्याकार के रूप में महर्षिगण राज्य और समाज सभी के नियमों को रेग्यूलेट करते थे. इतना ही नहीं वे शिक्षा स्वास्थ्य के अनुसंधानों के अधिष्ठाता भी थे यानी विशेषज्ञ को उनका अधिकार था .
इसके विपरीत रावण को रामायण कालीन अंतर्राष्ट्रीय राजनैतिक व्यवस्था का सबसे ताक़तवर एवम तानाशाह कहा जाए तो ग़लत नहीं है. रावण का सामरिक तनाव उस काल की वैश्विक-सामाजिक,एवम आर्थिक व्यवस्था को बेहद हानि पहुंचा रही थी.कल्याणकारी-गणतंत्रीय राज्यों को रावण के सामरिक सैन्य-बल के कारण रावण राज्य की अधीन होने के अतिरिक्त कोई दूसरा मार्ग शेष नहीं होता. लगभग सारे विश्व में उसकी सत्ता थी.यानि रावण के किसी अन्य किसी प्रशासन को कोई स्थान न था.वर्तमान भारत ही एकमात्र ऐसा देश था जहां कि रावण को स्वीकारा नहीं गया. जिसका सत्ता केंद्र उत्तर-भारत में था. 
समकालीन विश्व-विद्यालयों ( ऋषि-आश्रमों,गुरुकुलों) को रावण नष्ट कर देना चाहता था ताक़ि भारतगणराज्य जो अयोध्या के अधीन है वह अधीनता स्वीकर ले . इससे उसके सामरिक-सामर्थ्य में अचानक वृद्धि अवश्यम्भावी थी. कुबेर उसके नियंत्रण में थी यानी विश्व की अर्थव्यवस्था पर उसका पूरा पूरा नियंत्रण था. यद्यपिरामायण कालीन भौगोलिक स्थिति का किसी को ज्ञान नहीं है जिससे एक मानचित्र तैयार करा के आलेख में लगाया जा सकता ताक़ि स्थिति अधिक-सुस्पष्ट हो जाती फ़िर भी आप यह जान लें कि यदि लंका श्री लंका ही है तो भी भारतीय-उपमहादीपीय क्षेत्र में भारत एक ऐसी सामरिक महत्व की भूमि थी है जहां से सम्पूर्ण विश्व पर रावण अपनी "विमानन-क्षमता" से दवाब बना सकता था. 
समकालीन विश्व-विद्यालयों ( ऋषि-आश्रमों,गुरुकुलों) को रावण नष्ट क्यों करना चाहता था..? 
रावण के अधीन सब कुछ था केवल "विद्वानों" को छोड़कर जो उसके साम्राज्य की श्री-वृद्धि के लिये उसके (रावण के) नियंत्रण रहकर काम करें. जबकि भारत में ऐसा न था वे स्वतंत्र थे उनके अपने अपने आश्रम थे जहां "यज्ञ" अर्थात "अनुसंधान" (प्रयोग) करने की स्वतन्त्रता थी. तभी ऋषियों .के आश्रमों पर रावण की आतंकी गतिविधियां सदैव होती रहतीं थीं. यहां एक और तथ्य की ओर द्यान दिलाना चाहता हूं कि रावण के सैनिक द्वारा कभी भी किसी नगर अथवा गांवों में घुसपैठ नहीं कि किसी भी रामायण में इसका ज़िक्र नहीं है. तो फ़िर ऋषियों .के आश्रमों पर हमले..क्यों होते थे
उसके मूल में रावण की बौद्धिक-संपदाओं पर नियंत्रण की आकांक्षा मात्र थी. वो यह जानता था कि  यदि ऋषियों पर नियंत्रण पा लिया तो भारत की सत्ता पर नियंत्रण सहज ही संभव है. साथ ही उसकी सामरिक शक्ति के समतुल्य बनने के प्रयासों से रघुवंश को रोकना .
अर्थात कहीं न कहीं उसे "रक्षकुल" की आसन्न समाप्ति दिखाई दे रही थी. 
राम के गणराज्य में प्रज़ातांत्रिक व्यवस्था को सर्वोच्च स्थान था. सामाजिक व्यवस्था स्वायत्त-अनुशाषित थी. अतएव बिना किसी राजकीय दबाव के देश का आम नागरिक सुखी था. 
रावण ने राम से युद्ध के लिये कभी पहल न की तो राम को खुद वन जाना पड़ा. रावण भी सीता पर आसक्त न था वो तो इस मुगालते में थी कि राम सीता के बहाने लंका आएं और वो उनको बंदी बना ले पर उसे राम की संगठनात्मक-कुशाग्रता का कदाचित ज्ञान न था 
वानर-सेना :-
राम ने वनवासियों के युवा नरों की सेना बनाई लक्ष्मण की सहायता से उनको योग्यतानुसार युद्ध कौशल सिखाया . 
सीता हरण के उपरांत रावण को लगा कि राम की सीता हरण के बाद बनाई गई वानर-सेना लंका के लिये (मेरी दृष्टि में यु +वा+ नर+ योद्धा ऐसे युवाओं की सेना जो वन में निवासरत थे राम ने उनको लक्ष्मण की सहायता से युद्ध कौशल सिखाया ) कोई खतरा नहीं है बस यही एक भ्रम रावण के अंत का कारण था . 
राम ने रावण का अंत किया क्योंकि रावण एक ऐसी शक्ति के रूप में उभरा था जो विश्व को अपने तरीक़े से संचालित करना चाहती थी. राम को पूरी परियोजना पर काम काम करते हुए चौदह साल लगे. यानी लगभग तीन संसदीय चुनावों के बराबर .
क्या रावण विस्तार वादी था ...?
          जी हाँ , आप सच की तरफ जा रहे हैं अगर इस प्रश्न का उत्तर हाँ में देंगें . रावण के पराक्रम और ज्ञान के चलते उसमें विस्तारवादी होने की उत्कंठा कूट कूट के भरी थी. विस्तार का अर्थ ही विश्व को नियंत्रित कर रक्ष-संस्कृति का विस्तार करना. रक्ष-संस्कृति का अर्थ है- खाओ-पीओ-मौज-करोयानी उपभोगता वादी संस्कृति जहां सब कुछ सीमा हीन होता है. आत्मनियंत्रण शब्द रक्षसंस्कृति की शब्दावली का हिस्सा नहीं है. यह शब्द ईश्वरवादियों के लिए आक्सीजन है .. ईश्वर वादी कभी भी पंथ-निर्मित नियमों को त्यागना नहीं कहता तो कोई भी रक्ष उसे स्वीकारना नहीं चाहता. बस विवाद का विषय यही है.
तो क्या रावण वाम मार्गी था ? ..
न रावण एकेश्वर वादी था. उसे बहुल देववाद से अरुचि थी . उसके राज्य की प्रजा भी केवल शिवास्क्त थी. जिसे रक्षाकुल के संरक्षक के रूप में रावण सा राजा मिला और विलासिता के लिए सम्पूर्ण संसाधन तो कौन ऐसे राजा के विरुद्ध हो सकता है.
सवाल तो यह भी उठ सकता है कि राम ने रावण को इस कारण मारा होगा कि वे विस्तार के साथ साथ धनार्जन चाहते थे .
मित्रो , रामराज्य का विस्तार सदाचार के विस्तार के साथ अतिवादी शक्ति स्रोत के अंत से आशयित था. क्योंकि राम के पास मध्य-एशिया, चीन, रूस, इंडोनेशिया थाईलैंड आदि क्षेत्रों का राजपाठ विरासत मिला था पर छोटी सी लंका पर राम ने आक्रमण क्यों किया ? सिर्फ इस लिए किया क्योंकि वे विधर्मी नेतृत्व का अंत चाहते थे.



           

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अलबरूनी का भारत : समीक्षा

"अलबरूनी का भारत" गिरीश बिल्लौरे मुकुल लेखक एवम टिप्पणीकार          औसत नवबौद्धों  की तरह ब्राह्मणों को गरियाने वाले श...