1.10.17

मोहन भागवत जी का राष्ट्रीय चिन्तन राष्ट्र की अखण्डता का सन्देश


राष्ट्रवाद की वकालत करना भाजपा और आरएसएस का महिमा-मंडित करना कह कर खारिज़ करने वालों के ज़ेहन में 30 दिसंबर 2017 को  संघ प्रधान श्रीयुत मोहन जी भागवत की अभिव्यक्ति के मायने निकालने होंगें . उनने अपनी इस ईमानदार अभिव्यक्ति में  हर मुद्दे पर गंभीरता से विमर्श किया है. वे कश्मीर को विकास पथ पर शेष भारत की तरह शामिल करने एवं विकास के लिए सकारात्मक वातावरण के निर्माण के लिए सरकारों (राज्य-एवं केन्द्रीय सरकार) को सलाह देते नज़र आए . संघ प्रमुख ने विकास के साथ साथ चुनौतियों का भी सटीक विश्लेष्ण किया. तथा रोहिंग्या के शरणार्थी, चतुर्दिक सीमाओं पर घुसपैठ एवं तस्करी पर चिंता व्यक्त की.
श्री भागवत ने पाकिस्तान को अपना दुश्मन न कहते हुए यह कहा कि- पाकिस्तान हमें अपना दुश्मन मानता है. वास्तविकता इससे इतर भी तो नहीं है.
रिम्पोचे को नमन करते हुए अपने भाषण का शुभारम्भ करते हुए स्वामी विवेकानंद  विश्वबंधुत्व के चिंतन को स्पर्श करते हुए "राष्ट्रीय दृष्टि" को आत्मसात करने के महत्व का आह्वान किया. भारतीय के इतिवृत की उपेक्षा के लिए आरएसएस प्रधान ने कालोनाईज्ड ब्रेन की शुद्धिकरण का आह्वान किया. बहन निवेदिता के उदाहरण को कोट करते हुए कहा  कि  स्वामी  विवेकानंद ने भगनी निवेदिता को अपने में भारत को आत्मसात करने की सलाह दी थी.
“आर्थिक अभिव्यक्ति ”
योजनाओं के प्रभाव की मानिटरिंग उसके प्रभाव को रेखांकित करने पर जोर दिया. तथा वे स्थानीय परिस्थिति के अनुसार आर्थिक-व्यवस्था के मापदंडों के लिए अन्वेषण की आवश्यकता पर जोर दिया. उदाहारण स्वरुप जीडीपी  के इस  अर्थशास्त्रीय  मानक को  कमियों से युक्त माना जा रहा है . हमें अपने देश के अनुरूप आर्थिकतंत्र के मानदंडों को  विकसित करना होगा. तब तक हम वैश्विक मापदंडों को स्वीकार करें .
   मोहन भागवत जी अपने आर्थिक चिंतन में कृषि सन्दर्भ में मौलिक देशज तकनीकियों की पैरोकारी को श्रेष्ठ मानते हुए  राष्ट्र की परिस्थियों के अनुकूल तकनीकियों को बाहर से स्वीकार्य करने की सलाह दी . 
वे आर्थिक विकास के लिए केवल बड़े ओद्यौगिक घरानों को ही नहीं वरन हर स्तर पर उत्पादकता आश्रित कार्यों को महत्व देने की सलाह दी . वे असंगठित क्षेत्र के  अनौपचारिक क्षेत्र को अन्त्योदय की अवधारणा की सफलता के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं. मध्य एवं निम्न मध्य वर्ग की आर्थिक गतिविधियों को भारतीय अर्थ व्यवस्था का बैक-बोन बताया . मोहन भागवत जी के इस  भाषण को लेखक के रूप में भारत के "सोशियो - इकानामिक डेवेलपमेंट का भाषण" की श्रेणी में रखता हूँ .
"शेष :- मिसफिट के  अगले अंक में " 

  

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