26.5.15

अपाहिजों के सापेक्ष नहीं है समाज एवम् व्यवस्था


विश्व में अपाहिज आबादी के लिए जितने प्रयास किये जा रहे हैं उन सब को देख के लगता है कि वैश्विक समाज और  सरकारें विकलांगता को उत्पादकता का भाग न मानकर व्ययभार मानतीं है । इस परिपेक्ष्य में अन्य वीकर सैगमेंट की अपेक्षा कम तरज़ीह दी जा रही है । भारत उपमहाद्वीप में स्थिति सामाजिक एवम् पारिवारिक संरचना में धार्मिक दबावों के चलते इस वीकर सैगमेंट को सामाजिक तौर पर नकारा तो नहीं जाता पर पारिवारिक महत्व भी उतना नहीं है जितना कि सर्वांग सदस्य को है ।   सरकार ही भूमिका :- अपाहिज जीवन के लिए सरकारी स्तर पर दी जाने वाली सुविधा में पुनर्विचारण की ज़रुरत है । हालिया प्राप्त हो रही खबरों से स्पष्ट हो रहा है कि इस वर्ग के लोगों को मेडिकल प्रमाण पत्र प्राप्त करना सहज नहीं । इस बात की पुष्टि किसी भी सरकारी अस्पताल के बोर्ड के कामकाज से लगाईं जा सकती है । सरकार के संज्ञान में कमोबेश ये बिंदु अवश्य ही होगा कि यहाँ  भ्रष्टाचार गहरी जड़ें जमा चुका है ।
सहकर्मियों का नजरिया :- सहकर्मियों का नज़रिया बेहद अजीब सा हुआ करता है । हालिया दिनों में इसके कई उदाहरण सामने आए हैं किन्तु इन पर त्वरित दंडात्मक कार्रवाई न करना उल्टे शिकायत कर्ता को प्रताड़ित करने का प्रयास करना बेहद मार्मिक स्थिति है । कमी का लाभ उठा कर झूठे मनगढ़ंत आरोप लगा कर प्रताड़ित करने में सहकर्मी भी पीछे नहीं रहते । परंतु शिकायतों का विभागीय तोर पर निपटान न तो किया जा रहा है न ही इस कार्य में किसी की कोई रूचि ही है । विकलांगों के प्रति घृणाभाव वश किये गए मामलों की जांच हेतु स्वतंत्र राज्य के आयुक्त से कार्रवाई करानी चाहिए । राज्य के विकलांग आयुक्त :- महिला आयोग बाल आयोग अजा अजजा के सापेक्ष इस वर्ग के लिए आयोग की गतिविधियाँ तेज़ एवम् अधिक सुस्पस्ट कर देने की ज़रुरत है । यहाँ स्पस्ट करना चाहूँगा खुद को निर्दोष साबित करने का भार अधिक प्रभाव कारी हो न कि अपाहिज शिकायत कर्ता को अपराध साबित करने का अधिक भार हो ।
गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"
(स्वतंत्र लेखक हिंदी ब्लॉग लेखक एवम् टिप्पणीकार)

18.5.15

माँ अरुणा तुम कब कब कहाँ कहाँ

27 नवंबर, 1973 को अस्पताल के स्वीपर के हाथों यौन हिंसा की शिकार होने के बाद से ही माँ अरुणा कोमा में थी आज वे हमें छोड़ गईं सैकड़ों सवालों के साथ .... पर माँ के लिए केवल अश्रु बहाना चर्चा करा लेना कविता लिख देना श्रृद्धांजलि  तो है पर सच्ची- श्रृद्धांजलि शायद नहीं
इस श्रृद्धांजलि में सुनिए कल का भयावह स्वरुप ............  
माँ अरुणा
 तुम कब कब कहाँ कहाँ
कैसे कैसे छली जाती रही  हो
बोलो न....?
बोलती क्यों नहीं
४२ साल तक मौन व्रत..?
नि:शब्द रहने का तप.....?
तापसी माँ तुम चुप क्यों थी ...
तुम्हारे लिए मोमबत्तियां
जलीं थीं या नहीं इससे मुझे कोई सरोकार नहीं
पर तुम्हारा अस्तित्व वो अनाचारी जला गया
आज भी जलाता है ...... रोज़िन्ना जलाता है माँ ....
तुमको .......... अस्पतालों में
तबेलों में घुड़सालों में
रेल बस स्कूल कॉलेज़ में
हर कहीं ....... जिधर देखो वहीं
फ्रायडी-नज़र लिए घूमते भेड़िए को
आज भी बेखौफ़ घूमता...
न क़ानून बांध सका
कोई कृष्ण शस्त्रसंधान न सका
क़ानून व्यवस्था समाज
सबको अब जान लेना चाहिए
आने वाली धीमी ध्वनियाँ
जो नि:शब्द जीवन के  शस्त्र से उपजतीं  हैं

एक प्रतिकार भरा कल इन्हीं से भरा होगा   

ज़रा सोचें ये सब आजकल कहाँ नहीं है ?

वाटसएप  महाराज के ज़रिये मिली कहानी के लेखक जहां भीं हों उनको मेरा नमन वास्तव में विचार सम्प्रेषण में इन नए संचार माध्यमों का बड़ा अवदान है . ये कथा मुझे बेहद प्रभावित कर गई अतएव पेश कर हूं उन अज्ञात लेखक मौन सहमति माँ कर जिनको मैं जानता भी नहीं........
एक नन्हीं चींटी रोज अपने काम पर समय से आती थी और अपना काम अपना काम समय पर करती थी.....
वे जरूरत से ज्यादा काम करके भी खूब खुश थी.......ज्ंगल के राजा शेर नें एक दिन चींटी को काम करते हुए देखा, और आश्चर्यचकित हुआ कि चींटी बिना किसी निरीक्षण के काम कर रही थी........ उसने सोचा कि अगर चींटी बिना किसी सुपरवाईजर के इतना काम, कर रही थी तो जरूर सुपरवाईजर के साथ वो अधिक काम कर सकती थी. उसनें काक्रोच को नियुक्त किया जिसे सुपर्वाईजरी का 10 साल का अनुभव था,   और वो रिपोर्टों का बढ़िया अनुसंधान करता था . काक्रोच नें आते ही साथ सुबह आने का टाइम, लंच टाईम और जाने का टाईम निर्धारित किया, और अटेंडेंस रजिस्टर बनाया. उसनें अपनी रिपोर्टें टाईप करने के लिये, सेकेट्री भी रखी.... उसनें मकड़ी को नियुक्त किया जो सारे फोनों का जवाब देता था और सारे रिकार्डों को मेनटेन करता था...... शेर को काक्रोच की रिपोर्टें पढ़ कर बड़ी खुशी हुई, उसने काक्रोच से कहा कि वो प्रोडक्शन एनालिसिस करे और, बोर्ड मीटिंग में प्रस्तुत करने के लिये ग्राफ बनाए...... इसलिये काक्रोच को नया कम्प्यूटर और लेजर प्रिंटर खरीदना पड़ा......... और उसनें आई टी डिपार्टमैंट संभालने के लिए मक्खी को नियुक्त किया........
चींटी जो शांति के साथ अपना काम पूरा करना चाहती थी इतनी रिपोर्टों को लिखकर और मीटिंगों से परेशान होने लगी.......
शेर ने सोचा कि अब वक्त आ गया है कि जहां चींटी काम करती है वहां डिपार्टमेंट का अधिकारी नियुक्त किया जाना चाहिये....
उसनें  झींगुर को नियुक्त किया, झींगुर ने आते ही साथ अपने आॅफिस के लिये कार्पेट और ए.सी. खरीदा.....
नये बॉस झींगुर को भी कम्प्यूटर की जरूरत पड़ी और उसे चलाने के लिये वो अपनी पिछली कम्पनी में काम कर रही सहायक  को भी नई कम्पनी में ले आया......... चींटी जहां काम कर रही थी वो दुःख भरी जगह हो गयी जहां सब एक दूसरे पर आदेश चलाते थे और चिल्लाते रहते थें...... झींगुर ने शेर को कुछ समय बाद बताया कि आॅफिस मे टीमवर्क कमजोर हो गया है और माहौल बदलने के लिए कुछ करना चाहिये...... चींटी के डिपार्टमेंट की रिव्यू करते वक्त शेर ने देखा कि पहले से उत्पादकता बहुत कम हो गयी थी....... उत्पादकता बढ़ाने के लिये शेर ने एक प्रसिद्ध कंसलटेंट उल्लू को नियुक्त किया.......
उल्लू नें चींटी के विभाग का गहन अघ्ययन तीन महीनों तक किया फिर उसनें अपनी 1200 पेज की रिपोर्ट दी जिसका निष्कर्ष था कि विभाग में बहुत ज्यादा लोग हैं..... जो कम करने की आवश्यकता है......सोचिये शेर ने नौकरी से किसको निकाला......
नन्हीं चींटी को.......... क्योंकि उसमें नेगेटिव एटीट्यूड, बेमक़सद के टीमवर्क, और कभी न महसूस होने वाले मोटिवेशन की कमी थी.......
ज़रा सोचें ये सब आजकल कहाँ नहीं है ??


17.5.15

100 वर्ग मीटर का वर्चुअल राष्ट्र "द किंगडम ऑफ़ एनक्लाव"


निर्माण हो रहा है एक ऐसे राष्ट्र का  जिसका क्षेत्र फल मात्र 100 वर्ग मीटर है आभासी दुनिया में तो स्थापित हो ही गया है . नाम प्यॉत्र वारजेंकीविज को जब पता लगा स्लोवेनिया के मेटलिका शहर के पास और क्रोएश्या की राजधानी जागरेब से करीब 50 किलोमीटर दूर एक ऐसी जगह के बारे में पता चला, जिस पर किसी का अधिकार नहीं है... बस फिर क्या था उस नो मैंस लैंड घोषित ज़मीन पर अधिकार घोषित कर दिया .
हुआ कुछ यूं कि 1991 में यूगोस्लाविया का विघटन हुआ के दौरान विवादित भूमि को सर्वामतेन नो मैंस लैंड घोषित किया गया . बस फिर क्या था एक विचार बना कि बिना टेक्स देकर, सम्पूर्ण स्वतन्त्रता के साथ विश्व के किसी व्यक्ति को किसी ऐसे देश में रखा जावे जहां  जिसमें रंग, जाति, धर्म, का भेदभाव किये बगैर किसी को भी रखा जा सकता है . मुफ्त अद्ध्ययन , मुक्त अभिव्यक्ति , टेक्स भी न हो .....

इस निर्माणाधीन राष्ट्र का बाकायदा फेसबुक पेज भी है . जिसका यू आर एल है : https://www.facebook.com/TheKingdomOfEnclava इस यूं आर एल के ज़रिये विश्व का कोई भी नागरिक  इस देश के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर सकता हैं .इतना ही नहीं इस बच्चा देश की वेब साईट भी है http://enclava.org/ . साथ ही  किंगडम ऑफ़ इन्क्लावा में 2015 के प्रथम चुनाव भी हो चुके हैं . तथा   अब तक हज़ारो आवेदन  नागरिकता  के लिए भेजे जा रहे हैं . जब भी किसी राष्ट्र को बच्चे का साथ खेलेन की इच्छा होगी तो सोचिये क्या होगा . 

30.4.15

काबुल की फर्खुन्दा

काबुल की फर्खुन्दा 
मरने के बाद जी उठती है
आती है मेरे
ज़ेहन में अक्सर
जब किसी बेटी के हाथों में किताब देखता हूँ
डर जाता हूँ घबराता हूँ
अकेले रो भी लेता हूँ
अनजानी फर्खुन्दा के लिए
तब आती है हौले से सिहाने मेरे माथे पे
सव्यसाची की तरह हाथ फेरती है
यकीन दिलाती है
कि उसने किताब नहीं जलाई ............ सच वो बेगुनाह है ..........
किताबें जो सेल्फ में सजी होती हैं
किताबें जो पूजा घर में रखी होतीं हैं
किसी ज़लज़ले में
पुर्जा पुर्जा होती हैं
किताबें जो दीमकें खा जातीं हैं
किताबें जो रिसते हुए पानी में गल जातीं हैं
किताबें जो बच्चे फाड़ देतें हैं
उन का हिसाब रखते हो तुम ?
न कभी नहीं ......... तो फिर फर्खुन्दा की जान लेना किस किताब के हिसाब से जायज़ था ...
किताबें बनातीं हैं
इंसान को इंसान बनातीं हैं
फर्खुन्दा पर  पत्थर पटक कर
उसे ज़लाकर तुमको क्या मिला ..........
क्यों जलाते हो ज़ेहनों में
कभी न बुझाने वाली आग ..........
मरी फर्खुन्दा पर  बड़े बड़े पत्थर बरसा कर
फिर सरे आम जलाकर
उस किताब में ये तो लिक्खा ही न था
Farkhunda was killed in Kabul on 19th of March 2015 in a really bad way, , 

25.4.15

मुहावरे से गायब होता घड़ियाल अब लोग बोलेंगे "आशुतोषी आंसू"

           हमारी बुजुर्ग मौसी जी   बेहद भावुक हैं ज़रा सी बात हुई नहीं कि नगर पालिक निगम के बे टोंटीदार नालों के मानिंद   उनकी आँखों से टप्प टप्प टपा टप अश्रुधार निकल पड़ती है . आपके आंसू उनके आंसुओं में बहुत फर्क है . आपके आंसू निहायत  सियासी अभिनय का एक हिस्सा है जबकि उनके आंसुओं में स्नेह, भावात्मकता की तरलता है .
            आप क्या जानें भावनाओं की तरलता को ........... आपकी सोच में कुंठा और दिखावे का अतिरेक साफ़ तौर पर झलकता है . हम सब मूर्ख नहीं हैं सबने उस सभा को देखा है  सब जानते हैं कि आपकी असहिष्णुता को कुमार के "लटक-गया" की गूँज दिलो दिमाग से हटाए नहीं हट पाएगी . आप मीडिया कर्मी थे उम्मीद थी कि आप में संवेदना होगी ही . किन्तु मंच से आप सभी  उस व्यक्ति को  मौत के पास जाता देख उतरे तक नहीं .............   न जाते तो कम से कम सभा को रोका जा सकता था . जहां तक कुमार का सवाल है वे तो वैचारिक हिंसक होने के प्रमाण अक्सर मंचों पर तब से देते आए हैं जब वे केवल निजी  कालेजों के बच्चों को ये बताते फिरते थे कि - भारत ही एक ऐसा देश है जहां ........... खैर छोडिये उस बेटी की आह का असर आप पर कतई नज़र नहीं आ रहा था क्योंकि आप जानते हैं - "आह को चाहिए एक उम्र असर होने ...... " आप उस उम्र को छू भी नहीं पाए हैं . यहाँ आप आप का अर्थ केवल आप न समझें ... "आप" भी समझें मेरा अनुग्रह है . एक कवि के रूप में मुझे जितनी  पीढ़ा हो रही है उसको आप नाप नहीं पाएंगे . 
      रहा गजेन्द्र की मौत का सवाल उसे भाषण से कम आंकना आपकी सियासी मज़बूरी हो सकती है पर आप सब के निगेटिव चिंतन का पिटारा इस बहाने खुल ही गया . मेरा आलेख सियासी कतई नहीं है . मेरा  साहित्यकार मन  मुझे बार बार लताड़ रहा है . कि ऐसी घटनाओं को देख सुन कर चुप क्यों हो चुप नहीं हूँ आशुतोष मैं  मुखर हूँ पर आप जैसों को देख कर मुझे पल भर को यकीन ही नहीं हुआ था कि आप लोग इतने भी निष्ठुर हो सकते हो . स्तब्ध था गालियाँ देना आता नहीं कठोर हो नहीं सकता शब्द जम गए थे बर्फ की तरह कुछ न लिखा गया.... पर मेरी भी मानवता के प्रति कोई जवाबदेही है . आप सब अभिनेता हो नाटक का हिस्सा हो ना समझ हो अतिउत्साही हो आपको अच्छे बुरे की समझ तो कदापि नहीं अभी जाओ मित्र एक बार फिर किसी स्कूल में दाखिला लेकर ज़िंदगी और सियासत के बीच की बारीकियों को समझो ......... समझदार बनों ........ भीड़ का कोई सिद्धांत नहीं होता ......... अर्रा कर सफलताएं रेत के ढेर में कब बदल जाए किसे पता ....... प्रभू आप सबको सदबुद्धि दे और उसे जो मर गया .......... सदगति दे .. "ॐ शान्ति शान्ति "     

24.4.15

मध्यप्रदेश के बाल विवाह विरोधी लाडो अभियान को पी एम के हाथों मिला सम्मान

         मध्यप्रदेश शासन के महिला सशक्तिकरण विभाग ने 2013 से  लाडो अभियान चलाकर बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006
को प्रभावी बनाने जो कदम उठाए उससे इस दिशा में
अभियान के द्वितीय चरण अर्थात
 लाडो अभियान 2015 के प्रभावी असर दिखाई डे रहे हैं . लाडो-अभियान
एक मिशन मोड में चलाया जाने वाला कार्यक्रम है . इस कार्यक्रम की प्रणेता महिला
सशक्तिकरण संचालनालय की आयुक्त  श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव का स्वप्न है
 कि महिलाओं एवं बच्चों सशक्तिकरण के लिए सर्वांगीण पहल होनी चाहिए . आम जनता
को यह महसूस हो कि  सामाजिक बदलाव लाने के लिए
 सरकार के साथ साथ आम नागरिक की ज़िम्मेदारी भी
है . इस हेतु योजनाएं अथवा कार्यक्रमों का जनजन तक पहुँचना आवश्यक होता है .. इसी
क्रम में  महिला सशक्तिकरण संचालनालय की आयुक्त  श्रीमती कल्पना
श्रीवास्तव  की सोच लीक से हटकर नज़र आ रही है . उनकी सोच से  स्वागतम
लक्ष्मी
, लाडो-अभियान , शौर्यादल  जैसे  कार्यक्रम
 समाज के सामने आए हैं जो महिलाओं एवं बच्चों के समग्र कल्याण  के लिए
सामाजिक पहल की  दूरगामी आइडियोलोजी सूत्रपात करने में सक्षम हैं .
 मध्य-प्रदेश का लाडो अभियान
2015   एक ऐसा बहुआयामी कांसेप्ट बन गया है जो भविष्य
के  लिया एक दिशा सूचक का कार्य करेगा.
 
2009 में जारी  यूनिसेफ की
रिपोर्ट से पता चलता है कि -
भारत में दुनिया के सापेक्ष  40
 प्रतिशत बाल  विवाह होते है तथा
 49  प्रतिशत लड़कियों का विवाह 18  वर्ष से कम
आयु में ही हो जाता है।
लिंगभेद और
अशिक्षा का ये सबसे बड़ा कारण है .
 राजस्थानबिहारमध्य
प्रदेश
उत्तर प्रदेश और पश्चिम    
बंगाल में सबसे ख़राब स्थिति है
 यूनिसेफ के अनुसार
राजस्थान में 82 प्रतिशत विवाह 18 साल से पहले ही हो जाते है .
    ऐसा नहीं है कि
भारत सरकार इस सामाजिक कुरीति को रोकने प्रभावी उपाय एवं ऐतियाती कदम नहीं उठा सकी
.  सरकार नें विवाह की आयु का निर्धारण कर कुरीती पर अंकुश लगाने के समुचित
प्रयत्न कर लिए हैं किन्तु सम्पूर्ण रूप से बाल-विवाह रोकने के लिए सामाजिक सोच
में सकारात्मक बदलाव लाने की सर्वाधिक ज़रुरत सदा ही  है .   भले ही
 
 1978  में संसद द्बारा बाल विवाह निवारण कानून
पारित किया गया .  इसमे विवाह की आयु लड़कियों के लिए  
18  साल और लड़कों के लिए 21  साल का निर्धारण  किया गया साथ ही भारत सरकार ने नेशनल प्लान फॉर चिल्ड्रेन 2005  में 2010  तक बाल विवाह को 100
प्रतिशत ख़त्म करने का लक्ष्य रखा था .
 
          कोई भी क़ानून तब प्रभावशाली हो जाता है जब उस देश के लोग उस क़ानून के
महत्व को जानें एवं समझें . इस हेतु वातावरण निर्माण भारतीय प्रजातांत्रिक संरचना
के लिए बेहद आवश्यक है
 
         लाडो-अभियान इसी सोच का परिणाम है . 
                 लाडो
अभियान क्या है ....
?
समाज में प्रचलित बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीति से बच्चों का मानसिक शारीरिक, बौद्धिक एवं
आर्थिक सशक्तिकरण पर गहरा एवं नकारात्मक प्रभाव पडता है । बालक एवं बालिकाओं को
उनके अधिकारों से वंचित होना पडता है । मिलेनियम डेवलपमेन्ट गोल जैसे गरीबी
उन्मूलन
, प्राथमिक शिक्षा का सार्वभौमिकरण लैंगिक
समानता को बढावा देना
, बच्चों के जीवन की सुरक्षा, महिला स्वास्थ्य में सुधार आदि को प्राप्त करने के लिए बाल विवाह को
 ख़त्म करने  की ज़रुरत  महसूस की जाती रही है .
   पर्याप्त ज्ञान और व्यापक
जागरूकता के अभाव में बाल विवाह की कुरीति बालिकाओं की शिक्षा
, स्वास्थ्य और विकास में बाधक बन रही है । बाल विवाह को केवल कानूनी प्रावधानों
के माध्यम से नहीं रोका जा सकता है
,वरण  इसे
जनजागरूकता और सकारात्मक वातावरण निर्माण कर ही बदला जा सकता है । इसी उददेष्य से
वर्ष
 2013 से बाल विवाह को रोकने के
कार्य को एक अभियान का रूप दिया गया
 ''लाडो अभियान" . 
अभियान के अंतर्गत ग्राम तथा वार्ड स्तर पर  कोर ग्रुप के गठन का प्रावधान भी  है . जो जिला/ विकासखंड / ग्राम / वार्ड  स्तर पर दायित्व बोध कराने का अवसर देता है .
कोरग्रुप एक निगरानी यूनिट की तरह कार्य करता है .    
प्रदेश में बाल विवाह पर अंकुश के लिए वर्ष 2013 में ये अभियान शुरू किया गया।


-श्रीमती श्रीवास्तव ने इसमें जनता व सरकार की
समान भागीदारी सुनिश्चित करने मुहिम चलाई।
-जागरूकता के लिए बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006
के प्रावधानों का प्रचार-प्रसार किया गया। 
-बाल विवाह रोकने के लिए इससे बच्चों को मानसिक
व शारीरिक रूप से होने वाले दुष्परिणामों की जानकारी दी गई।
-बाल विवाह रोकथाम विशेष अवसरों पर चिन्हित
क्षेत्रों में ही होता था
, लेकिन इस अभियान को पूरे प्रदेश में साल भर
चलाया गया।
 
-जिले से ले कर ग्राम स्तर तक कोर सदस्य बनाए गए,
जिन्होंने लोगों को जागरूक किया।
-मात्र 1 वर्ष (अप्रैल 2014 से फरवरी 15) में लगभग 52,000 तय बाल विवाह सम्पन्न् होने के पूर्व परामर्श
से रोके गए।
-1511 बाल विवाह
स्थल पर रोके गए व
41 प्रकरण पुलिस में दर्ज कराए गए।


- अभियान के तहत लगभग 1
लाख बच्चों का दाखिला स्कूल में कराया गया।
-22000 स्कूलों में
बाल विवाह कानून की जानकारी दी गई ।
 अभियान
ने अपने पहले ही चरण में ऐसा वातावरण निर्माण किया कि समुदाय में बाल-विवाह के
प्रति सकारात्मकता की सोच रखने वाले समुदायों एवं व्यक्तियों में भी आमूल-चूल
परिवर्तन के लक्षण परिलक्षित होने लगे हैं .
 सिविल
सर्विस डे पर मंगलवार को नई दिल्ली में आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी ने जे एन कांसोटिया प्रमुख सचिव
, मबावि,  संचालनालय महिला सशक्तिकरण की आयुक्त श्रीमती
कल्पना श्रीवास्तव व । श्रीमती टिनी पाण्डेय सहायक संचालक महिला सशक्तिकरण एवं
अरविन्द सिंह भाल प्रबंधक महिला वित्त विकास निगम को मेडल व प्रमाण पत्र प्रदान कर
सम्मानित किया


कैसे हुआ लाडो अभियान असरकारी....?
 लाडो-अभियान एवं अन्य कार्यक्रमों के लिए सतत निगरानी मार्गदर्शन एवं उत्साहवर्धन में महिला सशक्तिकरण संचालनालय की आयुक्त  श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव  कभी चूक नहीं करतीं . अपने मैदानी अधिकारियों एवं  अमले से   सीधे, अथवा वाट्सएप , फेसबुक, ट्विटर के ज़रिये जुड़े रहना उनको सलाह देना, सपोर्ट करना, श्रीमती श्रीवास्तव का मानो कार्यदायित्व सा हो गया है . वे हर कार्यकारी अधिकारी से व्यक्तिगत रूप से जुड़ जातीं हैं .  

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आखिरी काफ़िर: हिंदुकुश के कलश

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