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सोमवार, मई 18, 2015

माँ अरुणा तुम कब कब कहाँ कहाँ

27 नवंबर, 1973 को अस्पताल के स्वीपर के हाथों यौन हिंसा की शिकार होने के बाद से ही माँ अरुणा कोमा में थी आज वे हमें छोड़ गईं सैकड़ों सवालों के साथ .... पर माँ के लिए केवल अश्रु बहाना चर्चा करा लेना कविता लिख देना श्रृद्धांजलि  तो है पर सच्ची- श्रृद्धांजलि शायद नहीं
इस श्रृद्धांजलि में सुनिए कल का भयावह स्वरुप ............  
माँ अरुणा
 तुम कब कब कहाँ कहाँ
कैसे कैसे छली जाती रही  हो
बोलो न....?
बोलती क्यों नहीं
४२ साल तक मौन व्रत..?
नि:शब्द रहने का तप.....?
तापसी माँ तुम चुप क्यों थी ...
तुम्हारे लिए मोमबत्तियां
जलीं थीं या नहीं इससे मुझे कोई सरोकार नहीं
पर तुम्हारा अस्तित्व वो अनाचारी जला गया
आज भी जलाता है ...... रोज़िन्ना जलाता है माँ ....
तुमको .......... अस्पतालों में
तबेलों में घुड़सालों में
रेल बस स्कूल कॉलेज़ में
हर कहीं ....... जिधर देखो वहीं
फ्रायडी-नज़र लिए घूमते भेड़िए को
आज भी बेखौफ़ घूमता...
न क़ानून बांध सका
कोई कृष्ण शस्त्रसंधान न सका
क़ानून व्यवस्था समाज
सबको अब जान लेना चाहिए
आने वाली धीमी ध्वनियाँ
जो नि:शब्द जीवन के  शस्त्र से उपजतीं  हैं

एक प्रतिकार भरा कल इन्हीं से भरा होगा   

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