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आप क्या जानें भावनाओं की तरलता को ........... आपकी सोच में कुंठा और दिखावे का अतिरेक साफ़ तौर पर झलकता है . हम सब मूर्ख नहीं हैं सबने उस सभा को देखा है सब जानते हैं कि आपकी असहिष्णुता को कुमार के "लटक-गया" की गूँज दिलो दिमाग से हटाए नहीं हट पाएगी . आप मीडिया कर्मी थे उम्मीद थी कि आप में संवेदना होगी ही . किन्तु मंच से आप सभी उस व्यक्ति को मौत के पास जाता देख उतरे तक नहीं ............. न जाते तो कम से कम सभा को रोका जा सकता था . जहां तक कुमार का सवाल है वे तो वैचारिक हिंसक होने के प्रमाण अक्सर मंचों पर तब से देते आए हैं जब वे केवल निजी कालेजों के बच्चों को ये बताते फिरते थे कि - भारत ही एक ऐसा देश है जहां ........... खैर छोडिये उस बेटी की आह का असर आप पर कतई नज़र नहीं आ रहा था क्योंकि आप जानते हैं - "आह को चाहिए एक उम्र असर होने ...... " आप उस उम्र को छू भी नहीं पाए हैं . यहाँ आप आप का अर्थ केवल आप न समझें ... "आप" भी समझें मेरा अनुग्रह है . एक कवि के रूप में मुझे जितनी पीढ़ा हो रही है उसको आप नाप नहीं पाएंगे .
रहा गजेन्द्र की मौत का सवाल उसे भाषण से कम आंकना आपकी सियासी मज़बूरी हो सकती है पर आप सब के निगेटिव चिंतन का पिटारा इस बहाने खुल ही गया . मेरा आलेख सियासी कतई नहीं है . मेरा साहित्यकार मन मुझे बार बार लताड़ रहा है . कि ऐसी घटनाओं को देख सुन कर चुप क्यों हो चुप नहीं हूँ आशुतोष मैं मुखर हूँ पर आप जैसों को देख कर मुझे पल भर को यकीन ही नहीं हुआ था कि आप लोग इतने भी निष्ठुर हो सकते हो . स्तब्ध था गालियाँ देना आता नहीं कठोर हो नहीं सकता शब्द जम गए थे बर्फ की तरह कुछ न लिखा गया.... पर मेरी भी मानवता के प्रति कोई जवाबदेही है . आप सब अभिनेता हो नाटक का हिस्सा हो ना समझ हो अतिउत्साही हो आपको अच्छे बुरे की समझ तो कदापि नहीं अभी जाओ मित्र एक बार फिर किसी स्कूल में दाखिला लेकर ज़िंदगी और सियासत के बीच की बारीकियों को समझो ......... समझदार बनों ........ भीड़ का कोई सिद्धांत नहीं होता ......... अर्रा कर सफलताएं रेत के ढेर में कब बदल जाए किसे पता ....... प्रभू आप सबको सदबुद्धि दे और उसे जो मर गया .......... सदगति दे .. "ॐ शान्ति शान्ति "