14.11.14

तुमको नेवलों से बचाना मेरा फ़र्ज़ है..

मैं अपनी प्राप्त सांसें गिन रहा हूं ..
तुम अपनी गिनो ..
रोज़िन्ना  सोचता हूं
तुम क्यों गिनते हो इस उसकी सांस
क्या सर्वशक्तिमान हो
मेरी नियति का नियंता तुम नहीं हो
जहां मैं हूं वहां तुम कहीं नहीं हो ..
भला क्या मालूम कि
तुम कितनी गिन पाते हो मेरी सांसें..
जानते हो आर्त हृदय से सदा ही तीर निकलते हैं
तुम हो कि सुई चुभते ही हो जाते हो बदहवास ..
तुम उन में शुमार  हो जो वमन करते हो विष
और मैं वो हूं जो तुमको आस्तीन में
सम्हाल के रखता हूं..
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
मुझसे डरो मत
मुझमें विषदंत नहीं हैं
मां के स्तनों में  अमिय ही तो था
जो मैने छक के पिया है..
पिता का दिया विशाल फ़लक
हां मित्र मैने हक़ से लिया है..
तुम्हारे पास सायुध आया हूं
तुममें बसे विषधर को मिटाने
मेरे गीत मेरे आयुध हैं..
जो विषधर के खिलाफ़ हैं..
चलो निकाल दो विषग्रंथियां
जो अंतस के विषधर की संगत से तुममें ऊग आईं हैं
मित्र तुमको नेवलों से बचाना मेरा फ़र्ज़ है..
 तुम्हारी मित्रता मुझपे कर्ज़ है...

13.11.14

भारतवंशियों का अमेरिका में बढ़ता प्रभाव और पाकिस्तानी मीडिया की छटपटाहट

 श्री सत्य नडेला 
बाबी ज़िंदल 
पाकिस्तानी मीडिया पर प्रसारित एक विशेष प्रसारण में अमेरिकी प्रशासन में भारतीय मूल के लुसियाना के गवर्नर  बाबी ज़िंदल एवं साउथ कैरलिना की गवर्नर  निकी हैली के नाम का प्रभाव पूर्ण ढंग से ज़िक्र किया. बाबी ज़िंदल को   को भविष्य में (2016 के अमेरिकी चुनाव ) में अमेरिका का राष्ट्रपति चुने जाने की संभावना का उल्लेख करते हुए चिंता व्यक्त की  है कि यू.एस. की पालिसी में प्रो-भारतीय सिद्धांतों को वज़न मिलेगा. 
भारतीय मूल के अमेरिकी लोगों की बढ़ती साख और पाकिस्तानीयों की वर्तमान परिस्थिति पर केंद्रित कार्यक्रम   की शुरुआत करते हुए सी ई ओ माइक्रोसाफ़्ट  का ज़िक्र करते हुए कहा कि बड़ी कम्पनियों में भारतीय मूल के लोगों की भागीदारी बढ़ी है. स्मरण हो कि श्री सत्य नडेला, सी ई ओ माइक्रोसाफ़्ट हैं.  
 निक्की हैली मान. प्रधानमंत्री जी के साथ 
 यू.एस. प्रशासन में नीतिगत फ़ैसले लेने वाले ओहदेदारों  पुनीत तलवारी, निशा विश्वाल, राजीव शाह, सुश्री अजिता  राज़ी , (स्वीडन में अमेरिकी राज़दूत ) विक्रम सिंह, फ़रीद परेरा, जसमीत आहूजा, का ज़िक्र किया. यहां तक कि अमेरिकी मीडिया में फ़रीद ज़कारिया, विकास बज़ाज, ज़ेन मीर, संजय गुप्ता की उपस्थिति का भी ज़िक्र किया गया.  इस स्थिति के सापेक्ष पाकिस्तानी मूल के नागरिकों के घटते अस्तित्व यहां तक कि संवेदनशील जगहों में पाकिस्तानी लोगों के संघर्ष पर पीढा भी कहीं इशारों इशारों तो कभी खुल के सामने आई. उन्हैं दर्द है कि पाकिस्तान को आतंक का प्रश्रयदाता देश मान कर पाकिस्तानी नागरिकों के खिलाफ़ विश्व के लोगों के  व्यव्हार में परिवर्तन आया है इसे आप पाकिस्तानी यूथ के दर्द समझ पाएंगे https://www.youtube.com/watch?v=JCewOLDd5Dc   . विकसित देशों में पाकिस्तान पर विश्वास की कमी इस का मूल कारण है. पाकिस्तानी प्रसारण में बेहद हताशा थी कि  पाकिस्तानी मूल के अमेरिकन      अपनी सार्थक उपस्थिति साबित नहीं कर पा रहे हैं ....? हालांकि वे मान  रहे थे कि पाकिस्तान की सियासत इसकी ज़िम्मेदार है.      जबकि एक लाइन में कहा जाए तो यह कहना ग़लत न होगा कि- " पाकिस्तान की विश्वश्नीयता में आई कमीं का खामियाज़ा है " ये मानना है पाक़िस्तानी युवाओं का जो पाकिस्तानी आंतरिक एवम वैश्विक नगैटिव परिस्थियों के चलते बाहरी देशों में अपमानित हो रहे हैं. 



जहां तक भारतीय मूल के लोगों की बात की जाए तो स्पष्ट रूप से भारतीय सामाजिक औदार्यपूर्ण संरचना, कर्मशीलता, एवं सहिष्णुता  आज़ादी के बाद भी  भारतवंशीयों के काम आई है.  अपनी कर्मशीलता एवम बुद्धि-ज्ञान के बलबूते पर जहां भी जाते हैं यक़ीन मानिये छा जाते हैं. और जहां अपनी मौज़ूदगी दर्ज़ कराते हैं तो थरथराहट अवश्य हो ही जाती है. 
भारत में अमेरिका के राज़दूत के रूप में रिचर्ड  राहुल वर्मा भी बराक ओबामा की रिपब्लिकन एवम विपक्षी दल  डेमोक्रेट्स के बीच समान रूप से पसंदीदा हैं. 
 विकी पीडिया पर प्रकाशित जानकारी के अनुसार 2010 के अमेरिकी सेंसस में भारतीय मूल  के मात्र .9%  यानि मात्र एक प्रतिशत के आसपास  अमेरिका में मौज़ूद हैं.  सोचिये अगर भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों की जनसंख्या में 9% का इज़ाफ़ा और हो जाए तो पाकिस्तान में कितनी हाय तौबा मच जाएगी 
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   पाकिस्तानी टी वी हिन्दुस्तान के नागरिकों के ज़ज़्बे को सराहते हैं 


इस चर्चा में देखिये 

           Indians in US are smarter than Pakistanis

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चर्चा देखने के लिये इस लिन्क का उपयोग भी किया जा सकता है 
लिन्क :- https://www.youtube.com/watch?v=gNEcZ83nzfw
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12.11.14

वर्ल्डविज़न का भारत की छवि को गिराने वाला आपत्तिजनक ई संदेश


आज एक मेल देखा. वर्ल्ड विज़न www.worldvision.in मेल का स्नेपशाट देखिये
 लाल रंग से रेखांकित लाइन के पढ़ते ही लगा जैसे कि देश में भयावह स्थिति आ गई जो वर्ल्ड विज़न के अलावा अन्य किसी के विज़न में नहीं हैं. एक स्थापित एन जी ओ के रूप में यह संस्थान प्रभावी कार्य भले कर रहा हो पर बच्चों के  भूखे रहने के नाम पर स्पांसर शिप मांगना किस हद तक सही है. मेरी तरह की मेललिस्ट में कई देशी-विदेशी लोगों के पते होंगे जहां ये मेल पहुंच रहे होंगे. और लोग भारत में भूख की स्थिति पाए जाने की बात से सहमत हो गए होंगे तथा  प्रेरित होकर स्पांसर-शिप के लिये तत्पर भी होंगे ।     मेरा खुला आग्रह है कि  वर्ल्ड विज़न www.worldvision.in  इस तरह के विज्ञापन तुरंत बंद कर सार्वजनिक रूप से खेद व्यक्त करे।  इस संस्था ने कहीं भी अपना मेल पता वेब पर अंकित नहीं किया है. जो एक  आपत्ति-जनक बिंदु है.  
_______________________________
प्रति 
वर्ल्ड विज़न टीम
World Vision India
 No. 16, VOC Main Road,
 Kodambakkam, Chennai - 600 024.

     हार्दिक-शुभकामनाएं
आपका ई संदेश मिला . आपके बाल कल्याण के लिये कार्य करने की सराहना अवश्य करता
हूं किंतु आपके द्वारा जो स्पांसरशिप के लिये संदेश दिया है घोर आपत्तिजनक है.
मेल संदेश के प्रारंभ में ही Feed a Hungry Child लिखा जाकर दान मांगना
 सर्वथा ग़लत एवं भारत की छवि को धूमिल करना है. खासकर मध्य-प्रदेश सहित भारत
में शायद ही कोई ऐसा प्रांत हो भूखे बच्चों वाली स्थिति होगी. भारत में बाल
विकास सेवाऎं, बाल-गृह, अनाथ बच्चों के लिये आश्रम संचालन हेतु अनुदान, शासकीय
तौर पर मुहैया कराए जाते हैं साथ ही विभिन्न धर्मों की धार्मिक, आध्यात्मिक ,
सामाजिक संस्थाएं बिना इस तरह के वाक्यों के सहारे कार्य कर रहें हैं. अगर आप
सर्वे करें तो निश्चित ही आप पाएंगे कि लाखों नागरिक  बिना किसी प्रदर्शन के
बच्चों के लिए भोजन आवासीय  शिक्षा आदि के लिये  प्रायोजक भी हैं  .मैंने अपने  सार्वजनिक जीवन  एवं सरकारी  सेवा के कालखंड  में आपके द्वारा इंगित स्थिति नहीं पाई है. आप के इस मेल से मुझे घोर आपत्ति है. 
कृपया मेरी आहत  भावना के प्रति सहिष्णुता पूर्वक नज़रिया रखिये. 
सादर 
अनवरत शुभ की कामनाओं के साथ 
गिरीश बिल्लोरे "मुकुल"
स्वतंत्र-लेखक, विचारक, साहित्यकार   

9.11.14

तू देख की क्या रंग है तेरा मेरे आगे..!!

 
गो हाथ को जुम्बिश नहीं हाथों में तो दम है
रहने दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे…!

                       बात यूं तो एहसास करने की है. लिखना भी नहीं चाहता पर क्या करूं लेखक जो ठहरा लिखे बिना काम भी तो नहीं चलता.कब तक छिपाए बैठूंगा अपना दर्द सीने में जो मेरा मित्र है . सोचता हूं कि आत्महिंसा कितनी ज़ायज़ है ? 
उत्तर मिलता है- मात्रा में पूछोगे तो कहूंगा कि लेशमात्र भी नहीं अवधि में ? तो निमिष मात्र भी नहीं....कदापि नहीं..!
तो क्या लड़ जाऊं ..?
न इसकी ज़रूरत ही नहीं है.. !
तो क्या करूं.. 
बस खुद से बातें करो खुद को प्रेम से समझाओ.. और जिसने तुम पर अनाधिकृत दबाव डाला है उसे एहसास करा दो कि - भाई, अब सीमाएं पार होती नज़र आ रहीं हैं.. मेरे खिलाफ़ होते अपने आचरण में बदलाव लाओ. अत्यधिक सहनशीलता दिखाने की ज़रूरत नहीं. क्यों कि यही है "आत्म-हिंसा..!"
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
                 मित्रो, एक मित्र के सार्वजनिक आचरण से आघातित हो मैने स्वयं से सलाह ली. फ़िर वही किया . क्योंकि खुद पर हो रही हिंसा का प्रतिहिंसक हो ज़वाब देना गलत है सो बेहतर है कि आत्महिंसा के मूलकारण की ओर  खिलाफ़ क़दम ताल की जावे पूरी दृढ़ता से.. किया भी यही मैने . 
          फलस्वरूप मित्र ने मुझे  फ़ेसबुक पर अनफैंड कर लिया. उसका निर्णय मुझे अच्छा लगा. चूंकि मैं हिंसक नहीं हूं अतएव मैने अपनी ओर से सहज समझाइश से इतर कुछ भी नहीं किया. 
                साथ ही  मैं उन रिश्तों को ढोना भी नहीं चाहता जो सिरे से अप्रिय हों. पर व्यवसायिक मज़बूरियां हों कि उनको जीवंत रखा जावे. इन मज़बूरियों के सामने घुटने टेक होना आत्महिंसा है.    
                                                     ::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
               मुझे अच्छी तरह याद है.. कुछ लोग मेरी शिकायतें लेकर ओहदेदारों तक जा पहुंचे. सबके सब जब एक्सपोज़ हुए तो मैने उनसे पूछा भी. पर उनके झूठ बोलते चेहरों को माफ़ करना ही मैने उचित समझा क्योंकि जब मैं उनमें से कुछेक से पूछ रहा था तो चचा ग़ालिब बोले :- 
मत पूछ की क्या हाल है मेरा तेरे पीछे?
तू देख की क्या रंग है तेरा मेरे आगे
 . मै जानता हूं कि दुनिया का असली चेहरा यही है. इससे इतर कुछ भी नहीं और फ़िर दुनियां मेरे लिये क्या है इस बारे में चचा ग़ालिब मेरे जन्म के पहले ही लिख चुके हैं :- 
बाजीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनियाँ मेरे आगे
होता है शबो-रोज़ तमाशा मेरे आगे..!! 
           मित्रो ये फ़साना है मेरा न हमारा हमारे इर्दगिर्द बारहा ये फ़साना मुसलसल ज़ारी है ईमां और कुफ़्र के बीच के सवाल पर कुछ न कहो शांत रहे मन जो कहे वो करो  चचा ग़ालिब की मानो यक़ीनन खूब सही कहा है उनने कि सदा ईमान को मित्र बनाए रखो 
इमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
क'अबा मेरे पीछे है क़लीसा मेरे आगे  
          ::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
 अब रात का तीन बज़ चुका है सोना भी ज़रूरी है... चलो सोता हूं किसी की नींद उड़ा के.. पर अब आत्महिंसा न होने दूंगा.. मिसफ़िट हूं आप कहां फ़िट करेंगे इस वाक़्ये को आप जाने ..... अब तो बस चचा का ये शेर गुनगुनाके सो जाऊंगा
(भले वो मेरे बारे में खूज़ खबर ले )
   नफ़रत का गुमाँ गुज़रे है मैं रश्क़ से गुज़रा
  क्यूँ कर कहूँ लो नाम न उसका मेरे आगे .

8.11.14

एक कविता : फ़ेसबुक से / प्रस्तुति रीता ज़मींदार क़ानूनगो

तब टूटती थी प्लेट
बचपन में तुमसे
अब माँ से टूट जाये
तो कुछ भी ना कहना..
👓🍫🍏
तब मांगते थे गुब्बारा
बचपन में माँ से
अब माँ चश्मा मांगे
तो ना मत कहना..
👓🍫🍏
तब मांगते थे चॉकलेट
बचपन में माँ से
अब माँ मांगे दवाई
तो ना मत कहना..
👓🍫🍏
तब डाटती थी माँ
शरारत होती थी तुमसे
अब वो सुन ना सके
तो बुरा उसे ना कहना..
👓🍫🍏
जब चल नहीं पाते थे तुम
माँ पकड़ के चलाती थी
अब चल ना पाए वो
तो सहारा तुम देना..
👓🍫🍏
जब रोते थे तुम
माँ सीने से लगाती थी
अब सह लेना दुःख तुम
माँ को रोने ना देना..
👓🍫🍏
जब पैदा हुए थे तुम
माँ तुम्हारे पास थी
जब माँ का अंतिम वक़्त हो
उसके पास तुम रहना.

Rita Zamindar Kanungo 

6.11.14

ढोली अविरल बजाएगा ढोल : ढमन कड्डन.. कड्डन... कड्डन

मास्टर अविरल
गले में ढोल यूं लटकाते हैं
बड़े बड़े शरमा जाएं 

 यूं तो मास्टर अविरल  की उम्र छै: बरस
की पिछले महीने ही हुई है पर इन लिटिल-मास्टर साहबान में  सिद्धहस्त
 ढोली बनने के सारे गुण मौजूद हैं वो भी तीन बरस की उम्र से . अविरल की
माताजी श्रीमती रिंकी के अनुसार -"पाँव तो पालने में ही नज़र आ चुके थे. अवी
ने एक बरस की उम्र से  दौनों हाथों से टेबल बरतन को बजा बजा के बताने की
कोशिश की कि उसके साथ एक कलाकार भी जन्मा है माँ ..! "
 
व्हीकल-फैक्ट्री में कार्यरत श्री मनीष को माँ ने अपने पुत्र के अंतस के
कलाकार के बारे में बताया तो वे भी प्रभावित हुए. संकट इस बात का था कि क्या किया
जाए. समय बीतते बीतते
 अविरल का अन्य बच्चों की तरह  स्कूल जाना प्रारम्भ हुआ . परंतु ताल ने अवि
से नाता बनाए रखा. अखबारों के ज़रिये जब पता चला कि बालभवन में  “किलकारी
2014” के लिए आडिशन हो रहा है तो अवि के दादाजी और माँ रिंकी को राह मिल गई घरेलू
कामकाज के साथ तालमेल बैठाकर वे मास्टर अविरल को लेकर आ गए  बालभवन . बालभवन
की सदस्यता के साथ अब रोज़ अविरल बालभवन आते हैं.   वीरेन्द्र सिद्धराव और इंद्र पांडेय इनकी
प्रतिभा को मांजने में जुट गए हैं. बालभवन इस बार बालदिवस 2014  किलकारी
के रूप में शहीद-स्मारक भवन में आयोजित कर रहा है ... प्रशिक्षक मानते हैं कि – “अविरल
की  प्रस्तुति धमाकेदार होगी 






5.11.14

अमृत वृद्धाश्रम : विजय सपत्ति

||| एक नयी शुरुवात |||

मैंने धीरे से आँखे खोली, एम्बुलेंस शहर के एक बड़े हार्ट हॉस्पिटल की ओर जा रही थी। मेरी बगल में भारद्वाज जी, गौतम और सूरज बैठे थे। मुझे देखकर सूरज ने मेरा हाथ थपथपाया और कहा, “ईश्वर अंकल,आप चिंता न करे, मैंने हॉस्पिटल में डॉक्टर्स से बात कर ली है, मेरा ही एक दोस्त वहाँ पर हार्ट सर्जन है,सब ठीक हो जायेंगा। “ गौतम और भारद्वाज जी ने एक साथ कहा, “हाँ सब ठीक हो जायेंगा। “ मैंने भी धीरे से सर हिलाकर हाँ का इशारा किया। मुझे यकीन था कि अब सब ठीक हो जायेंगा।

मैंने फिर आँखे बंद कर ली और बीते बरसो की यात्रा पर चल पड़ा। यादो ने मेरे मन को घेर लिया।

||| कुछ बरस पहले |||

कार का हॉर्न बजा। किसी ने ड्राइविंग सीट से मुंह निकाल कर आवाज लगाई, “अरे चौकीदार, दरवाज़ा खोलना। 
मैंने आराम से उठकर दरवाज़ा खोला। एक कार भीतर आकर सीधे पार्किंग में जाकर रुकी। मैं धीरे धीरे चलता हुआ उनकी ओर बढा। कार में से एक युवक और युवती निकले और पीछे की सीट से एक बूढी माता। युवक कुछ बोलताइसके पहले ही मैंने कहा, “अमृत वृद्धाश्रम में आपका स्वागत है, ऑफिस उस तरफ है। 

मैंने गहरी नज़रों से तीनो को देखा। ये एक आम नज़ारा था इस वृद्धाश्रम के लिए। कोई अपना ही अपनों को छोडने यहाँ आता था। सभी चुप थे पर लड़के के चेहरे पर उदासी भरी चुप्पी थी। लड़की के चेहरे पर गुस्से से भरी चुप्पी थी और बूढी अम्मा के चेहरे पर एक खालीपन की चुप्पी थी। मैं इस चुप्पी को पहचानता था। ये दुनिया की सबसे भयानक चुप्पी होती है। खालीपन का अहसास, सब कुछ होते हुए भी डरावना होता है और अंततः यही अहसास इंसान को मार देता है।

तीनों धीरे धीरे मेरे संग ऑफिस की ओर चल दिए। मैं बूढी अम्मा को देख रहा था। वो करीब करीब मेरी ही उम्र की थी। बहुत थकी हुई लग रही थी, उसके हाथ कांप रहे थे। उससे ठीक से चला भी नहीं जा रहा था। अचानक चलते चलते वो लडखडाई तो मैंने उसे झट से सहारा दिया और उसे अपनी लाठी दे दी। लड़के ने खामोशी से मेरी ओर देखा। मैंने बूढी अम्मा को सांत्वना दी। ठीक है अम्मा। धीरे चलिए, कोई बात नहीं। बस आपका नया घर थोड़ी दूर ही है। मेरे ये शब्द सुनकर सब रुक से गए। युवती के चेहरे का गुस्सा कुछ और तेज हुआ। लड़के के चेहरे पर कुछ और उदासी फैली और बूढी माँ के आँखों से आंसू छलक पडे। युवती गुर्राकर बोली, “तुम्हे ज्यादा बोलना आता है क्या ? चौकीदार हो, चौकीदार ही रहो”। मैंने ऐसे दुनियादार लोग बहुत देखे थे और वैसे भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था। मैं इन जमीनी बातो से बहुत ऊपर आ चुका था। मैंने कहा, “बीबीजी, मैंने कोई गलत बात तो नहीं कही, अब इनका घर तो यही है। युवती गुस्से से चिल्लाई, “हमें मत समझाओ कि क्या है और क्या नहीं। युवक ने उसे शांत रहने को कहा। बूढी अम्मा के चेहरे पर आंसू अब बहती लकीर बन गए थे।

ये शोर सुनकर ऑफिस से भारद्वाज और शान्ति दीदी बाहर आये। उन्होंने पुछा, “क्या बात है ईश्वर किस बात का शोर है ?”मैंने ठहर कर कहा”जी, कोई बात नहीं,बस ये आये है। बूढी अम्मा को लेकर।“ युवती फिर भड़क कर बोली, “तुम जैसे छोटे लोगो के मुंह नहीं लगना चाहिए।“ भारद्वाज जी सारा मामला समझ गए। उन्होंने शांत स्वर में कहा, “मैडम जी, यहाँ कोई छोटा नहीं है और न ही कोई बड़ा। ये एक घर है,जहाँ सभी एक समान रहते है। और मुझे बड़ी ख़ुशी होती अगर ऐसा ही घर समाज के हर हिस्से में भी रहता !”
पूरी कहानी के लिये 
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