22.9.13

नेताजी ने सिद्धांत .. बाबा ने वेदांत तज़ा.

कुत्तों का बास अधीनस्त कुत्तों को एक तस्वीर दिखाते हुए बोला  - मित्रो इसे देखा हैं.. ?
कुत्ते - (समवेत स्वरों में) अरे टामी सर फ़ोटू लेकर तलाशने की बीमारी कब से लग गई.. बास..?
बास - बास इज़ आल वेज़ राईट समझे जित्ता पूछा उत्ता बताओ.. इस तस्वीर की  मैंने कापीयां कराई है.. सब ले जाओ इसकी पता साज़ी करके लेकर आओ .
    सारे कुत्ते भुनभुनाते हुए निकले .. कोई उनकी भुनभुनाहट का सारांश था "बताओ भई, क्या ज़माना आ गया है.. हमारे बास को हमारी घ्राण-शक्ति पर से भरोसा जाता रहा. अरे हम एक बार सूंघ लेते तो आदमी की राख तक को सूंघ के बता देते कि किसकी भस्मी है... उफ़्फ़... बड़ा आया बास कहलाने के क़ाबिल नहीं है.. स्साला.. आदमियों के साथ रह के कुत्तव विहीन हो गया है. कुत्तों को इस क्रास बीट की बात वैसे भी न पसंद थी .बास था सो मज़बूरी थी सुनने की ... बास की सुनना संस्थागत मज़बूरी थी वरना देसी कुत्ते  किसकी सुनते हैं. बहरहाल तस्वीर वाले आदमी की तलाश में निकले कि हमारा निकलना हुआ. हम निकले निकलते ही कुछ एक जो मुहल्ले के थे अनदेखा करके निकल गये . पराए मोहल्ले वाला घूर-घूर हमें तक रहा था.हम डरे डरे से कन्नी  निकास लिए।  खैर बच तो गए कुत्ते से पर सोच रहें है कि -
" कुत्तों को फोटो की का ज़रुरत आन पडी उनकी घ्राण शक्ति को का हुआ. ?"

                            सब अपने मूलगुण धर्म को छोड़ क्यों रहे हैं...?  
शरद जोशी जी का वो सटायर याद ही होगा जिसका सारांश था - "हैं तो पर नहीं हैं..!" नल है पानी नहीं साहब हां हैं पर दौरे पर हैं आदि आदि. ठीक उसी तरह सबमें  अपना गुणधर्म बदल लेने की होड़ लग गई है.. कुत्तों ने सूंघ के पहचानना छोड़ दिया. नेताजी ने सिद्धांत छोड़ दिये.. बाबा ने वेदांत तज़ा..  जैसे सरकारी दफ़्तर में बाबू सहित सब के सब काम छोड़ के वो सब करते हैं जो एक अभिनेता-अभिनेत्री करता या करती  है. तो सरकारी गैर सरकारी स्कूल का मास्टर स्कूल में कम कोचिंग क्लास में खैर जो जैसा चाहें करें वैसा पर ये याद रखा जावे कि अगर प्रकृति में ऐसा बदलाव  हो जाए तो ......?  
          

13.9.13

" दण्ड का प्रावधान उम्र आधारित न होकर अपराध की क्रूरता आधारित हो !"

                  भारतीय न्याय व्यवस्था ने एक बार फ़िर साबित कर दिया है कि -भारतीय न्याय व्यवस्था बेशक बेहद विश्वसनीय एवम विश्वास जनक है. दामिनी के साथ हुआ बर्ताव अमानवीय एवम क्रूरतम जघन्य था. सच कितने निर्मम थे अपराधी उनके खिलाफ़ ये सज़ा माकूल है. जुविलाइन एक्ट की वज़ह से मात्र तीन बरस की सज़ा पाने वाला अपराधी भी इसी तरह की सज़ा का पात्र होना था . किंतु मौज़ूदा कानून के तहत लिए गए निर्णय पर  टीका टिप्पणी न करते हुये एक बात सबके संग्यान में लाना आवश्यक है कि - "यौन अपराधों के विरुद्ध सज़ा एक सी हो तो समाज का कानून  के प्रति नज़रिया अलग ही होगा."
 
    सुधि पाठको ! यहां यह कहना भी ज़रूरी हो गया है कि- यौन अपराध,  राष्ट्र के खिलाफ़ षड़यंत्रों, राष्ट्र की अस्मिता पर आघात करने वाले विद्रोहियों, आतंकवादियों के द्वारा की गई राष्ट्र विरोधी गतिविधियों से कम नहीं हैं  . अतएव इस अपराध को रोकने कठोरतम दण्ड के प्रावधान की ज़रूरत है. इतना ही नहीं ऐसे आपराधिक कार्य में अवयष्क  को उसकी अवयष्कता के आधार पर कम दण्ड देना  सर्वथा प्रासंगिक नहीं है. राज्य के विरुद्ध अपराध के संदर्भ में देखा जाये तो  यदि कोई कम उम्र का (अवयष्क) व्यक्ति विधि विवादित है तो उसे क्या इस अल्प दण्ड से दण्डित कर सपोले को पनपने का मौका देना उचित होगा..?   मेरा व्यक्तिगत सुझाव है कि दण्ड का प्रावधान उम के अनुसार न होकर अपराध की क्रूरता पर अवलम्बित होना चाहिये. राज्य द्वारा इस प्रकार के सुझाव पर अमल करते हुए नये क़ानून के निर्माण की शुरुआत कर ही देनी चाहिये. बी बी सी में प्रकाशित साक्षात्कार अनुसार लीडिया गुथ्रे जो एक समाज सेविका है ने कहा-"जब पहली बार मैं एक यौन अपराधी से मिलने गई तो मेरी टांगें कांप रही थीं. जैसै- तैसे मैं सीढियां उतर रही थी. 

दिमाग में यही चल रहा था कि एक दड़बे जैसे कमरे में बैठकर मैं उस आदमी से कैसे बात कर 

पाऊंगीं जिसने इतना भयानक काम किया था." - लीडिया के सुधारात्मक कार्यक्रम से व्यक्तिगत रूप मैं सहमत नहीं क्योंकि जब वे स्वयम यौन आक्रमणकारी अपराधी को सदाचार का पाठ पढ़ाने गईं तब वे भयातुर थीं. यानी यौन अपराधी में सुधार सहजता से  हो पाने पर वे स्वयम सशंकित हैं.. तो समाज ऐसे व्यक्ति को किस तरस स्वीकार करेगा.
          यहां घोर आदर्शवादिता का शिकार होना लाज़िमी नहीं है. यौन अपराध अन्य सभी क्रूरतम अपराधों के समकक्ष ही है. अतएव यौन अपराध को क्रूरतम अपराध की श्रेणी में रखा जाकर कठोर दण्ड के प्रावधान का समावेश मौज़ूदा क़ानूनों में किया जा सकता है. साथ ही दण्ड " दण्ड का प्रावधान उम्र आधारित न होकर अपराध की क्रूरता आधारित हो ऐसा  !" सोचिये अगर क़साब की उम्र अपराध करते वक्त १७ बरस ११ माह के आस पास होती तो क्या दशा होती ? 

12.9.13

धार्मिक उन्माद से शोक ग्रस्त हूं.. क्या लिखूं दोस्तो ?

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11.9.13

आपदाग्रस्त उत्तराखंड में टी.एच.डी.सी. की मनमानी


जून की आपदा में पूरे उत्तराखंड में जगह-जगह गांव-घर-जमीनें धसकी है। किन्तु फिर भी अलकनंदा पर प्रस्तावित विष्णुगाड-पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना (400 मेवाकी कार्यदायी संस्था टी.एच.डी.सी.विस्फोटो का प्रयोग कर रही है। विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध के विद्युतगृह को जाने वाली सुरंग निर्माण के कारण हरसारी गांव के मकानों में दरारें पड़ी हैपानी के स्त्रोत सूखे हैफसल खराब हुई है। लोगो ने बांध का विरोध किया है। नतीजा यह है कि लगभग दस वर्षो बाद भी प्रभावितों की समस्याओं का निराकरण नही हुआ है। बांध का विरोध इसलिये बांध कंपनी द्वारा झूठे मुकद्दमों में फंसाने की कोशिशे जारी। हरसारी के प्रभावित समाज-सरकार के सामने एक दिन के उपवास पर बैठे है। ताकि बांध कंपनी की मनमानी और लोगो की पीड़ा सामने आये। एक आपदाग्रस्त राज्य में टी.एच.डी.सीद्वारा नई आपदा लाने को स्वीकार नही किया जायेगा।
गोपेश्वर में जिलाधीश कार्यालय के बाहर धरने पर शहरी विकास मंत्री एंव चमोली जिला आपदा प्रभारी श्री पीतम सिंह पंवार और श्री अनुसूया प्रसाद मैखुरी उपाध्यक्ष विधानसभा ने लोगो से मुलाकात की और जिलाधीश व पुलिस अधीक्षक को केस वापिस लेने के निर्देश दिये। उन्होने कहा की प्रभावितों के हितो की उपेक्षा नही की जायेगी।
ज्ञातव्य है कि अभी टी.एच.डी.सीको 13 अगस्त 2013 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये आदेश के कारण  विष्णुगाड-पीपलकोटी बांध के लिये राज्य सरकार से पर्यावरण स्वीकृति नही मिली है। 
सुप्रीम कोर्ट की डबल-बैंच के निर्देश थे कि  पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के साथ साथ उत्तराखंड राज्य उत्तराखंड में किसी भी जल विद्युत परियोजना के लिए पर्यावरणीय या वन स्वीकृति न दें।‘‘

सूत्र बताते हैं कि  मकान पहले ही जीर्ण-शीर्ण हालत में हैभयानक विस्फोटों के कंपन से हमारे मकानों में कंपन होता हैजिसकी सूचना लगातार जिला अधिकारी/उपजिलाधिकारी को वे  देते आये हैंतथा उपजिलाधिकारी ने आश्वस्त भी किया कि वे  अपने कर्मचारियों को हम आपके गांव में भेजेंगे। किंतु आवेदक  इंतजार ही करते रहेफिर उनको फोन से अवगत कराया कि लगातार रात 11 बजे से बजे तक विस्फोट हो रहे हैंलोग डर के मारे घर में सोते वक्त बाहर आते हैंआज तक हम लगातार विस्फोटों को बंद करने की मांग करते आये हैंलेकिन उनकी कोई सुनवायी नहीं हुई। इस क्षेत्र में  वर्षा से जगह-जगह पर भू-स्खलन हो रहे हैं हरसारी में श्री तारेन्द्र प्रसाद जोशी का मकान भी गिरा है। जिसका सर्वेक्षण राजस्व विभाग/बांध कंपनी टी.एच.डी.सीने आकर किया है तथा राजस्व विभाग से प्रभावित को मुआवजे के तौर पर अस्सी हजार रूपये भी दिये गये हैं 
ऐसे समय पर जब आपदा आयी हुयी है प्रदेश में बांधों से भारी तबाही हुयी हैटी.एच.डी.सीने दोबारा से सुरंग निर्माण का कार्य शुरू किया है तो हमारे अंदर दहशत बैठी हुई है और हम बुरी तरह से डरे हुए हैं हमारी समस्याओं का निराकरण किये बिना विस्फोट जारी है
 इस परिपेक्ष्य में आवेदको जब सितंबर 2013 को जब हम कार्य बंद करने गये तो टनल के अंदर से ठेकेदार के कर्मचारी कार्यदायी संस्था टी.एच.डी.सीके कर्मचारी श्री टिकेन्द्र कोटियाल जी जहां पर सड़क में हम ग्रामीण विरोध कर रहे थे तो उपर आयेहम सभी ने कहा कि निर्माण कार्य बंद करो और हमारी मकानें तो आप ने स्वंय आकर देखी है जो कि ज़मीन पर विस्फोटों की वजह से गिरी पड़ी हैइतने में उत्तेजना में आकर उन्होंने नरेन्द्र पोखरियाल के साथ बद सलूकी की .
समाचार स्रोत : Bhishma Kukreti 


31.8.13

हम भी पिटे थे जब रुपया गिरा था जेब से

वन इंडिया से साभार 
हम भी पिटे थे जब रुपया गिरा था जेब से
हमाए बाबूजी भी बड़े तेज़ तर्रार थे हम जैसे 50 साल के पार वालों के बाबूजीयों की  
हिटलरी सर्वव्यापी है. हुआ यूं कि हमारी लापरवाही की वज़ह से हम हमारी जेब का एक रुपया ट्प्प से गिरा घर आए हिसाब पूछा एक रुपिया कम मिला ... साहू जी ( किरानेवाले) कने गये 
हमने पूछा भैया हमारा रुपिया गिर गया इधर ! उनने भी खोजा न मिला ....वापस घर पहुंचे . 
     घर पहुंचते ही एक रुपिए के पीछे बाबूजी के चौड़े हाथ वाले दो झापड़ ने हमको रुपैये की कीमत समझा दी...
वैसे हमाये वित्त मंत्री जी भी पचास के पार के हैं.. उनके बाबूजी हमारे बाबूजी टाइप के न थे . .. हो सकता है हों पर हमारी तरह तमाचा न मिला हो जो भी हो भारत का रुपिया गिरा है तो उसका दोषी भारत के वित्तमंत्री तो हैं ही हम आप कम नहीं हैं.   यानी हमारी विदेशी आस्थाओं में इज़ाफ़ा हो रहा है.विदेशी  सोना खरीदो सेलफ़ोन खरीदो, पक्का है विदेशी मुद्रा में भुगतान करना होगा. हमारा खज़ाना खाली होना तय है. 
आभार sealifegifts
   मैं पूछता हूं  आर्थिक समझ कितने भारतियों को है..? शायद कुछ ही लोग हैं पर रुपया गिरा तो किसे गाली देना है ये सबको मालूम है. लोकप्रिय योजनाएं, विदेशी निवेशकों के प्रति हमारी सोच उत्पादन की बज़ाय अपने अनाधिकृत अधिकारों के प्रति हमारा रुझान अर्थ व्यवस्था के खिलाफ़ हैं. आयात नीति भी कहीं न कहीं हमारे प्रतिकूल है.. सब कुछ प्रतिकूल रहे तो भी आम आदमी चाहे तो क्षणिक वैभव प्रदर्शन को प्रदर्शित करने वाली विदेशी वस्तुओं के प्रति उदासीन हो जाए तो हम अपनी अर्थ-व्यवस्था स्वयमेव सुधार लेंगे. 
        अब राज्यों  को भी विदेशी निवेशकों में विश्वास जमाने की ज़रूरत है. सोशल साइटस पर डालर के मुक़ाबले  रुपए गिरने पर किसम किसम के संवाद जारी हैं. मुझे तो लगता है हम सब उन जाल में फ़ंसे तोतों की तरह  हैं जो जो ये रट चुके थे "शिकारी आता है दाने का लोभ दिखाता है लोभ में मत पड़ो ..!" 
 हम उन कबूतरों की तरह क्यों नहीं एक साथ उड़ते कि अगर जाल में फ़ंसे भी तो जाल सहित उड़ जाएं.. 

29.8.13

स्वातंत्र्यवीर श्री मांगीलाल गुहे दिवंगत



श्रीयुत मांगीलाल जी गुहे दिवंगत


90 वर्षीय क्रांतिकारी स्वतन्त्रता संग्राम

सेनानी श्रीयुत गुहे जी का दु:खद निधन

आज प्रात: जबलपुर में हो गया। अंतिम 

यात्रा 

 दिनांक 30.9.2013





 ( प्रात: 10 बजे) को उनके निवास 

गौरैया प्लाट मदन महल जबलपुर से 

ग्वारीघाट

मुक्तिधाम के लिए प्रस्थान करेगी . नार्मदीय 

ब्राह्मण समाज एवं

परिजन - क्रांतिवीर श्रीयुत गुहे जी को 

विनत 

श्रद्धांजलि एवं 


शोकाकुल परिवार को दुःख सहने की शक्ति हेतु 

माँ नर्मदा से प्रार्थना रत हैं

सुर्खियों से दूर रहे स्वातंत्र्यवीर : श्री मांगीलाल गुहे

श्रीयुत गुहे ने गांधी जी के निर्देशों पर सदा अमल किया 1942 में महा. गांधी के “करो या मरो” नारे से प्रभावित होकर अंग्रेज सरकार की पत्राचार व्यवस्था को खत्म करने हरदा के लेटर बाक्सों को बम से नेस्तनाबूत किया,साथ ही डाक गाड़ी के दो डब्बों के बीच यात्रा करते हुए रस्सी में हंसिया बांध कर रेल लाइन के किनारे के टेलीफ़ोन तारों को काटा ताकि टेलीफ़ोनिक एवम टेलीग्राफ़िक संचार व्यवस्था छिन्न भिन्न हो हुआ यही .उनकी ज़रा सी चूक जान लेवा हो सकती थी. पर युक्तियों और सतर्क व्यक्तित्ववान श्री गुहे ऐसा कर साफ़ बच निकले. श्री गुहे बताते हैं कि मुझसे लोग दूरी बनाते थे . ऐसा स्वभाविक था. लोग क्यों अग्रेजों के कोप का शिकार होना चाहते.
श्रीयुत गुहे हमेशा कुछ ऐसा कर गुज़रते जो विलायती कानून की खिलाफ़त और बगावत की मिसाल होता पर हमेशा वे सरकारी की पकड़ में नहीं आ पाते .कई बार ये हुआ कि अल्ल सुबह हरदा की सरकारी बिल्डिंग्स पर यूनियन जैक की जगह तिरंगा दिखाई देता था. ये करामात उसी क्रांतिवीर की थी जिसे तब उनकी मित्र मंडली मंगूभाई के नाम से सम्बोधित पुकारती थी.उनका एक ऐसा मित्र भी था जो सरकारी रिश्वत की गिरफ़्त में आ गया उसने श्री गुहे को बंदी बनवा दिया. जब मैने मित्र के नाम का उल्लेख करने की अनुमति चाही तो दादाजी ने कहा-”मुझमें किसी से कोई रागद्वेष के भाव नहीं मैं तो देश को आज़ाद हवा दिलाना चाहता था मेरा उद्देश्य पूर्ण हुआ.मै उसे आज भी मित्र मानता हूं हो सकता है कि उसका परिवार मेरी गिरफ़्तारी के धन से भोजन कर सका हो.अथवा उसकी ज़रूरते पूरी हुईं हों. .!”
ऐसे महान विचारक श्रीयुत गुहे जी पर हमें गर्व है.
बरतानिवी सरकार की टेलीग्राफ़िक संचार व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने हंसिये को रस्सी से बांधकर हावड़ा मेल में बैठकर रेलवे लाइन के किनारे वाले टेलीफ़ोन के तार घात लगाके काटे जो एक दुस्साहसिक कार्य था. श्री गुहे जी को उनके एक सहयोगी आंदोलनकारी ने अंग्रेज सरकार से रिश्वत लेकर जेल भिजवाया. वे 21 माह तक जेल में रहे ….
सदा ही हौसलों से संकटों समस्याओं को चुनौती देने वाले श्री गुहे जी का जन्म 10 अक्टूबर 1924 को हरदा में हुआ. आपके पिता श्री शिवचरण गुहे कृषक थे.ये दौर भारतीय कृषकों के लिये अभाव एवम संघर्ष का दौर था. एक ओर अभाव दूसरी ओर सामाजिक अंग्रेज़ सरकार की दमनकारी नीतियों से किशोरावस्था में ही विद्रोही हो गये थे.वे विद्रोही अवश्य थे किंतु विध्वंसक नहीं. ऐसे कई अवसर भी आए जब उनका आक्रोश झलकता साफ़ दिखता था पर आक्रोश सदा विसंगतियों के खिलाफ़ होता था. उनके व्यक्तित्व में बालसुलभ भोले पन की आभा उनके जानने वालों ने अक्सर देखी. पर सत्य तक पंहुचते ही वे गले लगाना भी नहीं भूले. गांधीजी के आह्वानों का असर उनके किशोर मन पर अवश्य पड़ता था. हमसे उनकी हुई कई वार्ताओं में अक्सर हमें महसूस हुआ कि कभी भी अन्याय को सहन न करने वाले दादा जी का सेनानी होना स्वभाविक ही रहा होगा.उनके संवादों में सादगी, लोगों के प्रति विश्वास का भाव उनकी गुणात्मक विशेषता थी. स्वभाव से घुमक्कड़ श्री गुहे ने सारे देश का भ्रमण किया तीर्थ यात्राएं तो एकाधिक बार कर चुके थे. अगर यह कहा जावे कि जबलपुर में गुहे जी के समकालीन नार्मदीय बुज़ुर्गों में शक्ति का संचार अगर हुआ तो गुहे जी की वज़ह से ही हुआ ये तय है.
मंगू भैया की गली स मत जाजे रे........!! 
मंगू भैया अपने दो मंज़िला पैत्रक आवास पर अक्सर थैली में पत्थर लेकर बैठा करते थे. निशाना उन पर साधा जाता था जो फ़िरंगीयों की नौकरी करते या फ़िरंगी होते. चोट किसी को नहीं लगती पर इस बात का संदेश अवश्य पहुंचता होगा हरदा वासियों को कि फ़िरंगियों की गुलामी करना ठीक नहीं.
अगर उस दौर को महसूस करें तो आप ये आवाज़ भी महसूस करेंगे जो कदाचित कोई माता पिता अपने नौकरी शुदा बच्चों के लिये होती होगी जिसमें ये कहा जा रहा हो-“ मंगू भैया की गली स मत जाजे रे...मंगू भैयो पत्थर मारच “
जेल में हुए अत्याचार...............!!
 विश्व को मानवाधिकार के मुद्दे पे घेरने वाले यूरोपीय देश शेष देशों की जेलों के बारे में खूब नसीहतें देतीं हैं पर ब्रिटिश उपनिवेशों की जेलों में क्रूरता पूर्ण यातनाओं के किस्से स्वाधीनता सेनानियों के परिजन जानते हैं . आप क्रिमिनल्स से अधिक कष्ट दी जाती थी. दादा जी ने जैसा बताया कि होशंगाबाद की जेल में उनको घास की साग और रेतीले आटे से बनी रोटियां दी जाती थीं.. !!
सबसे मित्रवत व्यवहार...!!
बच्चे,बूढ़े,युवा, सबके साथ मैत्री पूर्ण व्यवहार गुहे जी के व्यक्तित्व को अधिक आकर्षक बनाने में सहायक सिद्ध हुआ.
दुबेजी ने पहचान लिया था... .
हरदा के मजिस्ट्रेट श्री दुबे जी ने श्रीयुत गुहे जी को आंदोलन के कारण कारागार में भेजा था.. आज़ाद भारत में सन 1948 में उनको आर्डिनेन्स फ़ैक्ट्री जबलपुर में नियुक्ति पत्र देते वक्त पहचाना और बड़े आत्मीयता और सम्मान से नियुक्ति पत्र दिया
प्रमोशन के साथ क्लर्क भी दिया.
 अच्छे कार्यों की वज़ह से गुहे जी को दो बार विशिष्ट सेवा पदक मिले. विशेष पदोन्नति के पूर्व रिकार्ड लिखने में गुहे जी ने जब असमर्थता व्यक्त की तो फ़ैक्ट्री प्रशासन ने उनको एक लिपिक की सुविधा भी मुहैया कराई. श्री गुहे सेवानिवृत्ति के समय चार्जमैन के पद पर थे .
साहित्यकार भौंचक रह गये थे :-
आज़ादी की पचासवीं वर्षगांठ के अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री जी ने ताम्रपत्र से समादरित किया था गुहे जी को . इसी क्रम में संस्कारधानी की साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था “मिलन” ने दादाजी को “शौर्य-चक्र” प्रदान किया . मातृज्योति भवन में शहर के सारे साहित्यकार थे मूर्धन्य वक्ताओं की कमी भी न थी उस हाल में. दादाजी बहुत मान मनुहार के बाद मंच पर बमुश्किल राजी हुए थे. पर मुझ पर बंधन लगाया कि मैं उनको भाषण के लिये न बुलवाऊं. मैने विश्वास दिलाया पर सदन ने उनसे वक्तव्य का आग्रह किया तो गुहे जी इंकार न कर सके . और स्वतंत्रता के पूर्व एवम बाद के सामाजिक राजनैतिक आर्थिक साहित्यिक घटनाक्रम एवम वातावरण पर ऐसे प्रहार किये कि जबलपुर के साहित्यकार भौंचक रह गये. अंतत: सारे उत्तरवर्ती वक्ताओं ने अपने भाषण में एक एक कर गुहे जी वक्तव्य के अंश शामिल किये . पूरा कार्यक्रम गुहे दादाजी पर केंद्रित हो गया था.
·         श्रीयुत पं. मांगीलाल गुहे 
·         पिता स्व.शिवकरण गुहा “रायली वाले बाबूजी” ( गोदड़ी वाले)
·         माता   : गं. तु. सोना बाई
·         पत्नि    : ग. तु. गायत्री देवी सुपुत्रि स्व. जागेश्वर पटवारी सन्यासा  
·         जन्म :- 10.10.1924,
·         जन्म स्थान :- हरदा
·         विचारधारा :- गांधीवादी
·         पुत्र :- इंजि. श्री गोविंद गुहा,( भोपाल ), श्री भगवान दास जी गुहा ( रायपुर ), अनिल दत्त गुहा, सुनील दत्त गुहा,
सुपुत्री दामाद  :- श्रीमति आशा पाराशर, श्री दिनेश पाराशर छिपावड़,   
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विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

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