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शुक्रवार, सितंबर 13, 2013

" दण्ड का प्रावधान उम्र आधारित न होकर अपराध की क्रूरता आधारित हो !"

                  भारतीय न्याय व्यवस्था ने एक बार फ़िर साबित कर दिया है कि -भारतीय न्याय व्यवस्था बेशक बेहद विश्वसनीय एवम विश्वास जनक है. दामिनी के साथ हुआ बर्ताव अमानवीय एवम क्रूरतम जघन्य था. सच कितने निर्मम थे अपराधी उनके खिलाफ़ ये सज़ा माकूल है. जुविलाइन एक्ट की वज़ह से मात्र तीन बरस की सज़ा पाने वाला अपराधी भी इसी तरह की सज़ा का पात्र होना था . किंतु मौज़ूदा कानून के तहत लिए गए निर्णय पर  टीका टिप्पणी न करते हुये एक बात सबके संग्यान में लाना आवश्यक है कि - "यौन अपराधों के विरुद्ध सज़ा एक सी हो तो समाज का कानून  के प्रति नज़रिया अलग ही होगा."
 
    सुधि पाठको ! यहां यह कहना भी ज़रूरी हो गया है कि- यौन अपराध,  राष्ट्र के खिलाफ़ षड़यंत्रों, राष्ट्र की अस्मिता पर आघात करने वाले विद्रोहियों, आतंकवादियों के द्वारा की गई राष्ट्र विरोधी गतिविधियों से कम नहीं हैं  . अतएव इस अपराध को रोकने कठोरतम दण्ड के प्रावधान की ज़रूरत है. इतना ही नहीं ऐसे आपराधिक कार्य में अवयष्क  को उसकी अवयष्कता के आधार पर कम दण्ड देना  सर्वथा प्रासंगिक नहीं है. राज्य के विरुद्ध अपराध के संदर्भ में देखा जाये तो  यदि कोई कम उम्र का (अवयष्क) व्यक्ति विधि विवादित है तो उसे क्या इस अल्प दण्ड से दण्डित कर सपोले को पनपने का मौका देना उचित होगा..?   मेरा व्यक्तिगत सुझाव है कि दण्ड का प्रावधान उम के अनुसार न होकर अपराध की क्रूरता पर अवलम्बित होना चाहिये. राज्य द्वारा इस प्रकार के सुझाव पर अमल करते हुए नये क़ानून के निर्माण की शुरुआत कर ही देनी चाहिये. बी बी सी में प्रकाशित साक्षात्कार अनुसार लीडिया गुथ्रे जो एक समाज सेविका है ने कहा-"जब पहली बार मैं एक यौन अपराधी से मिलने गई तो मेरी टांगें कांप रही थीं. जैसै- तैसे मैं सीढियां उतर रही थी. 

दिमाग में यही चल रहा था कि एक दड़बे जैसे कमरे में बैठकर मैं उस आदमी से कैसे बात कर 

पाऊंगीं जिसने इतना भयानक काम किया था." - लीडिया के सुधारात्मक कार्यक्रम से व्यक्तिगत रूप मैं सहमत नहीं क्योंकि जब वे स्वयम यौन आक्रमणकारी अपराधी को सदाचार का पाठ पढ़ाने गईं तब वे भयातुर थीं. यानी यौन अपराधी में सुधार सहजता से  हो पाने पर वे स्वयम सशंकित हैं.. तो समाज ऐसे व्यक्ति को किस तरस स्वीकार करेगा.
          यहां घोर आदर्शवादिता का शिकार होना लाज़िमी नहीं है. यौन अपराध अन्य सभी क्रूरतम अपराधों के समकक्ष ही है. अतएव यौन अपराध को क्रूरतम अपराध की श्रेणी में रखा जाकर कठोर दण्ड के प्रावधान का समावेश मौज़ूदा क़ानूनों में किया जा सकता है. साथ ही दण्ड " दण्ड का प्रावधान उम्र आधारित न होकर अपराध की क्रूरता आधारित हो ऐसा  !" सोचिये अगर क़साब की उम्र अपराध करते वक्त १७ बरस ११ माह के आस पास होती तो क्या दशा होती ? 

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