19.1.13

अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं

जनाब ज़ां निसार अख़्तर 
के बारे में जानिये चौथी दुनियां
अखबार के इस "आलेख" में
                            नमस्कार मित्रो जां निसार अख़्तर एक मशहूर शायर की क़लम की ज़ादूगरी से मैं इस हद तक प्रभावित हुआ हूं कि उनकी तारीफ़ में कुछ कहने के लिये शब्द छोटे पढ़ रहे हैं..उनकी ग़ज़ल में गोते लगाएं और जानें उनको 
अशआर मेरे यूं तो ज़माने के लिए हैं
कुछ शेअर फ़क़त उनको सुनाने के लिए हैं
अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं
आंखों में जो भर लोगे तो कांटो से चुभेंगे
ये ख्वाब तो पलकों पे सजाने के  लिए हैं
देखूं तेरे हाथों को तो लगता है तेरे हाथ
मंदिर में फ़क्त दीप जलाने के लिए हैं
सोचो तो बड़ी चीज़ है तहज़ीब बदन की
वरना तो बदन आग बुझाने के लिए हैं
ये इल्म का सौदा, ये रिसाले, ये किताबें
इक शख्स की यादों को भुलाने के लिए हैं


15.1.13

और हमारा मुंह खुला का खुला रह गया



और हमारा मुंह खुला का 

खुला रह गया

धीरे धीरे राम धुन पे शव यात्रा जारी थी. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि गुमाश्ता बाबू जो कल तक हंसते खिल खिलाते दुनियादारी से बाबस्ता थे अचानक लिहाफ़ ओढ़े के ओढ़े बारह बजे तक घर में क़ैद रहे .  रिसाले वाले गुमाश्ता बाबू के नाम से प्रसिद्ध उन महाशय का नाम बद्री प्रसाद गुमाश्ता था. अखबार से उनका नाता उतना ही था जितना कि आपका हमारा तभी मुझे "रिसाले वाले" उपनाम की तह में जाने की बड़ी ललक थी. अब्दुल मियां ने बताया कि दिन भर गुमाश्ता जी के हाथ में अखबार हुआ करते हैं . उनका पेट एक अखबार से नहीं भरता. अर्र न बाबा वो अखबार खाते नहीं पढ़ते है. देखो क़रीम के घर जो अखबार आता है उन्हीं ने लगवाया विश्वनाथ के घर भी और गुप्ता के घर भी.मुहल्ले में  द्वारे द्वारे सुबह सकारे उनकी आमद तय थी. शायद ही गुमाश्तिन भाभी ने उनको कभी घर में चाय पिलाई हो ? अक्सर उनकी चाय इस उसके घर हुआ करती थी होती भी क्यों न पिता ने उनको बेचा जो था 1970 के इर्द-गिर्द गुमाश्ता जी की बिक्री दस हज़ार रुपयों में हुई थी तब वे तीसेक बरस के होंगे. और तब से आज़ तक वे घर जमाई के रूप में गुमाश्तिन भाभी के घर के इंतज़ाम अली ही रहे उससे आगे उनकी पदोन्नति ठीक वैसे ही नहीं हो सकी जैसे एक ईमानदार की अक्सर नहीं हुआ करती.. कभी कभार हो भी जाती है.. गुमाश्तिन भाभी चाहतीं तो बद्री प्रसाद गुमाश्ता का ओहदा बढ़ सकता था बकौल  गुमाश्ता जी-’हमाई किस्मत में जे सब कहां कि हम किसी भी नतीज़े को घर पे लागू करें. 
        वास्तव में गुमाश्ता जी का विवाह जबरिया किंतु कारगर कोशिश थी. पिता भी  नाकारा बेटे से कुछ हासिल किये बिना रहना नहीं चाहते थे. उधर रेहाना सुल्तान की फ़िल्में देख देख बिगड़ रही बेटी के लिये भी कोई ढंग का लड़का चाहिये था गुमाश्तिन के पिता को राम ने जोड़ी मिला तो दी परंतु  गुमाश्तिन को पसंद न थे गुमाश्ता जी सतफ़ेरा पति छोड़ा भी न जा सके है सो भई गुमाश्तिन ने भी दिल का खजाना उनसे ही भरने की कोशिश की पर बेमेल विवाह ही था वे थीं फ़िल्मी स्वप्नों से भरी सुंदरी  और वो थे बुद्धू कालीदास बनाने की खूब कोशिश की पर न बन पाए. एक प्रायवेट स्कूल के मास्टर बना दिये गये मास्टर बनाने के पहले ससुर जी ने बोला-’सुनो दामाद जी, हमाई इज्जत मट्टी में मत मिलैयो. आज्ञाकारी तो थे ही निची मुंडी कर हां कही पर सुनाई न दी ससुर जी मुंडी के ऊपर से नीचे होने से समझ गये कि दामाद उनकी इज़्ज़त बरकरार रखेंगें. 
      पर उन दिनों शरद यादव की ऐसी आंधी चली की देश के लिये कुछ नया करने की जुगत में बद्री प्रसाद भी विज्ञप्ति वीर बन गए. मैनेजमेंट दूसरी पार्टी वालों का था सो नौकरी चली गई. बहुत दिनों तक भाई उनके डंडे-झण्डे लगाते बिछायत करते कराते अपने सुनहरे कल के सपने में खोये रहे तब से बीवी की  नज़रों से गिर गये . ऐसे गिरे कि बस मत पूछो उनको अपचारी घोषित कर दिया गुमाश्तिन ने.तब से  गुमाश्तिन ने सुबह की चाय तो क्या नहाने को गरम पानी तक न दिया होगा . तब तक जोड़े की गोद में एक और गुमाश्ता आ चुका था. गुमाश्तिन भाभी ने बेटे के पिता के खट जबलईपुर ब्रांड बापत्व से परे रखने की ग़रज़ से बड़े भाई के कने दिल्ली रवाना कर दिया  
    याद आया एक शाम न शाम न थी वो रात के दस बजे थे इक्का दुक्का दारूखोर सड़क पे गाली गुफ़्तार करता गुजर रहा था बद्री को पान खाने की तलब लगी. बाहर निकले ही थे कि भीतर से एक आवाज़ भी साथ साथ निकली-’ जाओ, घूमो फ़िरो फ़िर रात दो बजे तक लौटना..! न जाओगे तो मालवीय जी की मूर्ती कोई चुरा लेगा..  शहर कोतवाली की जिम्मेदारी जो है..! 
      गुमाश्तिन के ये डायलाग पहली बार बाहर गूंजे थे  फ़िर तो जब ये आवाज़ न सुनाई दे तो जानिये कि गुमाश्तिन भाभी या तो बीमार हैं या आऊट आफ़ सिटी. 
   तो मित्रो  हां गुमाश्तिन भाभी के "वो" आज़ अचानक गुज़र गये..? और गुमाश्तिन जी आऊट आफ़ कंट्री 
क्या हुआ ... अर्र... बाप रे... भाभी कहां है.. और बच्चे...... कैसे हुआ.. हे राम.. बेचारे.......... 
 इधर उधर से पता साजी करने पर पता लगा कि भाभी अपने विदेशी बेटे के पास एक महीने से गई हैं. क्रिया करम के लिये एक रिश्ते का भाई हाज़िर हुआ. एक दिन में बद्री की बरसी तक निपटा दी.
  तीन महीने बाद......
गुमाश्तिन का बेटा शहर आया मुहल्ले भर के लोगों को घर बुलवाया सबको आभार कहा कि- आपने हमारे पिता जी आखिरी तक साथ  दिया हम न आ सके इस बात का हमें रंज है. मां ने सबको धन्यवाद देने के लिये भेजा है.पिता की स्मृति में वो विदेशी अपने साथ  उपहार लाया सारे मुहल्ले वालों के लिये .संस्कारवश किसी ने ना नुकुर न की ... धन्यवाद के बोल बोलता गुमाश्ता जी का कुल दीपक ने जो भी बोला मुझे तो लगा वो कह रहा है- Thank's .. काश आप न होते तो मुझे आना पड़ता नुकसान हो जाता मुझे .      
                          गुमाश्ता के कुलदीपक ने पूरी ईमानदारी और प्रोफ़ेसनली मुहल्लेदारी निबाही आखिर संस्कारवान लड़का जो था. सब कह रहे हैं .. इस स्मृति भैंट को ग्वारीघाट में बांट देते हैं किसी बुद्धिमान की सलाह पर मुहल्ले वाले मंदिर पर उन दीपकों को भेजा गया.. पुजारी रोज जगाता है निट्ठल्ले बद्रीप्रसाद गुमाश्ता के स्मृति-दीप.. मंदिर में भगवान के पास. मुहल्ले को खूब याद आते हैं वे.. उनकी सहज मुस्कान 
      कल ही की तो बात है कोई कह रहा था- गुमाश्ता जी के बिना मुहल्ले में शून्यता सी छा गई है. 
      इसे सुन किसी ने कहा:-  ये तो बानगी है आने वाले दिनों में ऐसे कई गुमाश्ते जी मुहल्लों को सूना करेंगे..  
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यशभारत 20.01.2013





14.1.13

मकर संक्रान्ति : सूर्य उपासना का पर्व :सरफ़राज़ ख़ान


भारत में समय-समय पर अनेक त्योहार मनाए जाते हैं. इसलिए भारत को त्योहारों का देश कहना गलत न होगा. कई त्योहारों का संबंध ऋतुओं से भी है. ऐसा ही एक पर्व है . मकर संक्रान्ति. मकर संक्रान्ति पूरे भारत में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है. पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तब इस त्योहार को मनाया जाता है. मकर संक्रान्ति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति शुरू हो जाती है. इसलिये इसको उत्तरायणी भी कहते हैं. तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाया जाता है. हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन लोग शाम होते ही आग जलाकर अग्नि की पूजा करते हैं और अग्नि को तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति देते हैं. इस पर्व पर लोग मूंगफली, तिल की गजक, रेवड़ियां आपस में बांटकर खुशियां मनाते हैं. देहात में बहुएं घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी मांगती हैं. बच्चे तो कई दिन पहले से ही लोहड़ी मांगना शुरू कर देते हैं. लोहड़ी पर बच्चों में विशेष उत्साह देखने को मिलता है.

उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से दान का पर्व है. इलाहाबाद में यह पर्व माघ मेले के नाम से जाना जाता है. 14 जनवरी से इलाहाबाद मे हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है. 14 दिसम्बर से 14 जनवरी का समय खर मास के नाम से जाना जाता है. और उत्तर भारत मे तो पहले इस एक महीने मे किसी भी अच्छे कार्य को अंजाम नही दिया जाता था. मसलन विवाह आदि मंगल कार्य नहीं किए जाते थे पर अब तो समय के साथ लोग काफी बदल गए है. 14 जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से अच्छे दिनों की शुरुआत होती है. माघ मेला पहला नहान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि तक यानी आख़िरी नहान तक चलता है. संक्रान्ति के दिन नहान के बाद दान करने का भी चलन है. उत्तराखंड के बागेश्वर में बड़ा मेला होता है. वैसे गंगा स्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं. इस दिन गंगा स्नान करके, तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है. इस पर्व पर भी क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े मेले लगते है. समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है और इस दिन खिचड़ी सेवन एवं खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व होता है. इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है.

महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रांति पर कपास, तेल, नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं. ताल-गूल नामक हलवे के बांटने की प्रथा भी है. लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं :- `तिल गुड़ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला` अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा मीठा बोलो। इस दिन महिलाएं आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बांटती हैं.

बंगाल में इस पर्व पर स्नान पश्चात तिल दान करने की प्रथा है. यहां गंगासागर में हर साल विशाल मेला लगता है. मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं. मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था. इस दिन गंगा सागर में स्नान-दान के लिए लाखों लोगों की भीड़ होती है. लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं.

तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाया जाता है.पहले दिन भोगी-पोंगल, दूसरे दिन सूर्य-पोंगल, तीसरे दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल, चौथे व अंतिम दिन कन्या-पोंगल. इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकट्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है. पोंगल मनाने के लिए स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं. इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है. उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं. असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू या भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं. राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद लेती हैं. साथ ही महिलाएं किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन व संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं. अन्य भारतीय त्योहारों की तरह मकर संक्रांति पर भी लोगों में विशेष उत्साह देखने को मिलता है.
                                                         साभार 
 

11.1.13

बापूजी जो भाव से बलात्कारी हो उसे तो सगी बहन भी भाई कहने में झिझकेगी


आसाराम बापू ही क्यों सारे बड़बोलों के लिये एक सटीक सुझाव देना अब ज़रूरी है कि औरतें को शिक्षा देने के स्थान पर अब आत्म चिंतन का वक़्त आ गया है. कुछ दिनों से देख रहा हूं कि मीडिया के ज़रिये लोग बाग अनाप-शनाप कुछ भी बके जा रहें हैं बेक़ाबू हो चुकी है जुबाएं लोगों की . सच्चाई तो यह है कि हम सब बोलने की  बीमारी से ग्रसित हैं . क्योंकि  हमारा दिमाग  सूचनाओं से भरा पड़ा है  और हम उसे ही  अपनी  ज्ञान-मंजूषा मान बैठे हैं ..! और चमड़े की ज़ुबान लप्प से तालू पर लगा कर ध्वनि उत्पन्न करने की काय विज्ञानी क्रिया करते हैं । जो  वास्तव में यह एक सतही मामला है किसी को भी किसी सूचना से तत्व-बोध नहीं हो सकता. आज के मज़मा जमाऊ लोगों को तो कदापि नहीं. आसाराम जी ने जो भी कहा केवल सतही बात है. और जो भी जो कुछ कहे जा रहे हैं उसे भी वाग्विलास की श्रेणी में ही रखा जा सकता है. मेरे एक तत्कालीन कार्यालय प्रमुख ने किसी चर्चा में कहा था- "कमज़ोर की पराजय को कोई रोक  नहीं सकता "
                            उनका कथन आधी सचाई थी पूरी सचाई तो उनको तब समझ आती जबकि वे कछुआ और खरगोश की कथा याद रखते . वे भी क्या करें सूचनाएं इतनी हैं कि बेचारे को बालपन की बोध कथाएं याद नहीं शायद उनको दादी-नानी की गोद में बैठने का मौका न मिला हो.खैर जो भी हो मूल बात पर ही वार्ता जारी रहे तो उम्दा होगा मित्रो मुझे मेरा एक चपरासी अच्छी तरह से  है बात तब की है जब  वेतन बैंक के ज़रिये नहीं मिलता था  एक दिन मैं अपना वेतन ड्रावर में रख कर घर आते वक़्त वहीं भूल आया .  तीन दिन लगातार छुट्टी के चलते घर भागना हमारी आदत में शुमार था  हो हम भाग निकले. मोबाइल का दौर तो नहीं कि हम कुछ कर पाते . नरसिंहपुर से गाड़ी छूटते ही हमें अपनी भूल का एहसास हुआ. सो हमने अपने मित्र को बताया. मित्र ने कहा - अब मान लो कि चपरासी ऐश करेगा भूल जाओ वेतन .हमारा सफ़र तो सफ़र पूरी रात घर में करवट बदलते रहे. सवालों से जूझते हम बहुत देर तक सो न सके थे उस रात . अल्ल सुबह कोई हमारा दरवाज़ा खटखटा रहा था. दरवाजा खोला गया  चपरासी हमारा वेतन लेकर हाज़िर हुआ. -सा’ब, जे भूल आए थे आप..!
    ज्यों का त्यों नोट का बंडल चपरासी की नीयत की पवित्रता का एहसास करा गया. कम पढ़ा लिखा अयोध्या परसाद ने  ईमानदारी और नेकनीयत के सारे पाठ  पढ़े थे गोया. उसका चरित्र बलवान था बेटी दामिनी वाली घटना से तुलना करें तो स्पष्ट होता है कि -अब, बलवान चरित्रों की कमी सी आ गई है. इन कमज़ोर चरित्र वालों के सामने घुटने टेकने की सलाह देना आपकी विद्वता पर सवालिया निशान खड़े करता है बापू जी. .. प्रवचन कीजिये प्रपंच नहीं. 
 बापूजी जो भाव से बलात्कारी हो उसे तो सगी बहन भी भाई कहने में झिझकेगी आप इस सचाई को भी भूल गये ? 
              नारी के खिलाफ़ हमारी सोच को बदलना है. उसके दैहिक आकर्षण में बंधे हम अपनी ही पुरुष वादी मान्यताओं को सदा सही ठहरातें हैं. किसी भी तरह हम दामिनी वाली स्थिति को समझने की कोशिश में ही नहीं हैं. औरत के  खिलाफ़ है हमारी मानसिकता ये तो तय कर दिया बयानों नें.. औरतें को शिक्षा देने का समय नहीं आसाराम जी और उनके तरह के बयान बाज़ों अब समझने का दौर आ चुका है हर हालत में आपको नज़रिया बदलना होगा . हम कौन होते जो कि औरतों के कामकाज़ निर्धारित करें उनकी सीमाओं का निर्धारण भी करना हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं है.समाज को महिलाओं सामर्थ्यवान बनाने की सलाह दी जावे तो अच्छा लगेगा.
           मर्यादाओं में रहने भाई बना लेने की सलाह देने जैसी बातौं से काम पक चुके हैं अब तो इन बेहूदा बातों पर पाबंदी के क़ानून लाने की मांग करना ज़ायज है.  आप बोलिए  मगर बेक़ाबू होकर नहीं.. 
      नारी को ये करना है उसकी वो सीमाएं हों इसे कौन तय करेगा वो जो उसकी शक्ति का पूजन धर्मभीरू होने की वज़ह से करता तो है किंतु उसकी आंतरिक शक्ति को पहचाना नहीं चाहता अथवा पहचान कर भी उसे कमज़ोर साबित कर देता है ताकि उसका अपना वज़ूद कायम रहे. 
   
           

             

9.1.13

फ़ुर्षोत्तम-जीव



किस किस को सोचिए किस किस को रोइए
आराम बड़ी चीज है ,मुंह ढँक के सोइए ....!!
"जीवन के सम्पूर्ण सत्य को अर्थों में संजोए इन पंक्ति के निर्माता को मेरा विनत प्रणाम ...!!''
साभार http://manojiofs.blogspot.in/2011/11/blog-post_26.html
साभार नभाटा 

आपको नहीं लगता कि जो लोग फुर्सत में रहने के आदि हैं वे परम पिता परमेश्वर का सानिध्य सहज ही पाए हुए होते हैं। ईश्वर से साक्षात्कार के लिए चाहिए तपस्या जैसी क्रिया उसके लिए ज़रूरी है वक़्त आज किसके पास है वक़्त पूरा समय प्रात: जागने से सोने तक जीवन भर हमारा दिमाग,शरीर,और दिल जाने किस गुन्ताड़े में बिजी होता है। परमपिता परमेश्वर से साक्षात्कार का समय किसके पास है...?
लेकिन कुछ लोगों के पास समय विपुल मात्रा में उपलब्ध होता है समाधिष्ठ होने का ।
इस के लिए आपको एक पौराणिक कथा सुनाता हूँ ध्यान से सुनिए
एकदा -नहीं वन्स अपान अ टाइम न ऐसे भी नहीं हाँ ऐसे

"कुछ दिनों पहले की ही बात है नए युग के सूत जी वन में अपने सद शिष्यों को जीवन के सार से परिचित करा रहे थे नेट पर विक्की पेडिया से सर्चित पाठ्य सामग्री के सन्दर्भों सहित जानकारी दे रहे थे " सो हुआ यूँ कि शौनकादी मुनियों ने पूछा -"हे ऋषिवर,इस कलयुग में का सारभूत तत्व क्या है.....?

ऋषिवर:-"फुर्सत"
मुनिगण:- "कैसे ?"
ऋषिवर :- फुरसत या फुर्सत जीवन का एक ऐसा तत्व है जिसकी तलाश में महाकवि गुलजार की व्यथा से आप परिचित ही हैं आपने उनके गीत "दिल ढूँढता फ़िर वही " का कईयों बार पाठ किया है .
मुनिगण:- हाँ,ऋषिवर सत्य है, तभी एक मुनि बोल पड़े "अर्थात पप्पू डांस इस वज़ह से नहीं कर सका क्योंकि उसे फुरसत नहीं मिली और लोगों ने उसे गा गाकर अपमानित किया जा रहा है ...?"
ऋषिवर:-"बड़े ही विपुल ज्ञान का भण्डार भरा है आपके मष्तिस्क में सत्य है फुर्सत के अभाव में पप्पू नृत्य न सीख सका और उसके नृत्य न सीखने के कारण यह गीत उपजा है संवेदन शील कवि की कलम से लेकिन ज्यों ही पप्पू को फुरसत मिलेगी डांस सीखेगा तथा हमेशा की तरह पप्पू पास हो जाएगा सब चीख चीख के कहेंगे कि-"पप्पू ....!! पास होगया ......"
मुनिगण:-ये अफसर प्रजाति के लोग फुरसत में मिलतें है .... अक्सर ...........?
ऋषिवर:-" हाँ, ये वे लोग हैं जिनको पूर्व जन्म के कर्मों के फलस्वरूप फुरसत का वर विधाता ने दिया है
मुनिगण:-"लेकिन इन लोगों की व्यस्तता के सम्बन्ध में भी काफी सुनने को मिलता है ?
ऋषिवर:-"इसे भ्रम कहा जा सकता है मुनिवर सच तो यह है कि इस प्रजाति के जीव व्यस्त होने का विज्ञापन कर फुरसत में होतें है, "
मुनिगण:-कैसे...? तनिक विस्तार से कहें ऋषिवर

ऋषिवर:-"भाई किससे मिलना है किससे नहीं कौन उपयोगी है कौन अनुपयोगी इस बात की सुविज्ञता के लिए इनको विधाता नें विशेष गुण दिया है वरदान स्वरुप इनकी घ्राण-शक्ति युधिष्ठिर के अनुचर से भी तीव्र होती है मुनिवर कक्ष के बाहर खडा द्वारपाल इनको जो कागज़ लाकर देता है उसे पड़कर नहीं सूंघ कर अनुमान लगातें हैं कि इस आगंतुक के लिए फुरसत के समय में से समय देना है या नहीं ? "
    मुनिगण बोले तो ऋषिवर, क्लर्क नामक जीव ही है जो सदैव व्यस्त दिखाई देता है. कार्यालयों में बहुधा..?
 ऋषिवर :- ये भी दृष्टि भ्रम है मुनियो, कुटिया की इस भित्ती पर देखो अभी मैं वेबकास्टिंग प्रणाली से एक दफ़्तर का चलचित्र प्रस्तुत करता हूं.. 
   मुनियों ने दीवारावलोकन प्रारम्भ किया, नट्टू मुनि लम्बू मुनि को लगभग डपट कर न हिलने की सलाह दे रहे थे भित्ती पर एक LED SCREEN अवतरित हुआ ऋषिवर ने हाथ में CPU को मंत्र शक्ति से उत्पन्न किया. दृश्य कुछ यूं था -
    "एक दफ़्तर में बाबू साब एक फ़ाईल की तलाशी में व्यस्त थे तभी अधिकारी का दूत आया बोला-"पुसऊ जी ...पुसऊ जी"
पुसऊ :- का है दिमाग न खाओ देखते नहीं ज़रूरी काम में लगा हूं..!
दूत :- "सा’ब, बुलाय रै हैं..."
पुसऊ :-हओ, बोल दो आत हैं, फ़ाईल निकाल के.. 
दूत :- हओ, जल्दी आईयो.. भोपाल से डाक आई है.. साब बोलत थे 
पुसऊ :- बोल दओ न कि आ रहे हैं .. भोपाल वारे जान लै लैं हैं का.. स्टाफ़ के नाम पै हम अकेले काम   
              झौआ भर . कहूं की फ़ाइल कहूं रख देत हो तुम .. हमाओ पूरो दिन फ़ाइल ढूड़त ढूड़त लग जात है.. फ़ुरसत कहां मिलत है इतै.. जो सा’ब भी एक पे एक ग्यारा .. हर कागज़ आतई टेर लगात है पुसऊ पुसऊ... 
ऋषिवर :- मुनिगण, ये   पुसऊ दिन भर में अफ़सर की मार्क की हुई डाक को सही फ़ाईल में नत्थी करता है एक भी कागज़ इधर के उधर न हो पाए उसका मूल कार्य दायित्व है. रोजिन्ना दफ़्तर में जब इसे फ़ुरसत मिलेगी तो पहली फ़ुरसत में हरे कव्हर वाली फ़ाईल निपटाता है. ये फ़ाईलें जानते हो कौन सी हैं..
मुनिगण अवाक थे तभी ऋषि बोले- "मुनियो, ये फ़ाईलें जेब और वातावरण को हरा भरा बनातीं हैं. इन फ़ाईलों पर फ़ुरसत से काम किया जाता है. बहुधा कार्यालय के बंद होने के बाद "
   यानी देश इसी तरह चलता है ऋषिवर ? मुनियों का सवाल था .
हां, देश चल कहां रहा है..? फ़ाईलों में बंद है जैसे परसाई दादा वाले भोला राम का जीव . 
मुनिगण :- तो महाराज ये देश चल कैसे रहा है..?
ऋषिवर :- यही वो सवाल है जिसके उत्तर आपको परमेश्वर के अस्तित्व का एहसास होगा  ?
मुनिगण :- यानी गुरुदेव..?
 ऋषिवर :- यानी भारत को केवल भगवान पर भरोसा है सच भी यही है जो भी चल रहा है सब उसके भरोसे ही तो चल रहा है..    
मुनिगण:-वाह गुरुदेव वाह आपने तो परम ज्ञान दे ही दिया ये बताएं कि क्या कोई फुरसत में रहने के रास्ते खोज लेता है सहजता से ...?
कुछ ही क्षणों उपरांत सारे मुनि कोई न कोई बहाना बना के सटक लिए फुरसत पा गए और बन गए ""फ़ुरुषोत्तम -जीव "
गुरुदेव सूत जी ने एकांत में मुनियों से फुरसत पा कर वृक्षों को जो कहा वो कुछ इस तरह था
फुर्सत और उत्तम शब्द के संयोजन से प्रसूता यह शब्द आत्म कल्याण के लिए बेहद आवश्यक और तात्विक-अर्थ लेकर धरातल पर जन्मां है   इस शब्द का जन्मदिन जो नर नारी पूरी फुर्सत से मनाएंगें वे स्वर्ग में सीधे इन्द्र के बगल वाली कुर्सी पर विराजेंगे । इस पर शिवानन्द स्वामी एक आरती तैयार करने जा रहें हैं आप यदि कवि गुन से लबालब हैं तो आरती लिख लीजिए अंत में लिखना ज़रूरी होगा : कहत "शिवानन्द स्वामी जपत हरा हर स्वामी " पंक्ति का होना ज़रूरी है।


7.1.13

कबाड़खाना ब्लाग की अनूठी प्रस्तुति

आज मन चाह रहा था कुमार गंधर्व को सुनूं सुनने को तलाश की गई तो 
कबाड़खाना ब्लाग की इस पोस्ट पर ठहर गया 


माया महाठगिनी हम जानी

निरगुन फांस लिए कर डोलै, बोलै मधुरी बानी.


केसव के कमला व्है बैठी, सिव के भवन भवानी.


पंडा के मूरत व्है बैठी, तीरथ में भई पानी.


जोगि के जोगिन व्है बैठी, राजा के घर रानी.


काहू के हीरा व्है बैठी, काहू के कौड़ी कानी.


भक्तन के भक्ति व्है बैठी, ब्रह्मा के बह्मानी.


कहै कबीर सुनो भाई साधो, वह सब अकथ कहानी



और अब सुनिये ये 

1.1.13

और शारदा महाराज खच्च खच्च खचा खच बाल काटने लगे बिना पानी मारे....

रायपुर के सैलून में प्रसिद्ध
लेखक ललित शर्मा 

सैलून में कटवाते कटवाते  जेब कटवाना अब हमें रास न आ रहा था। आज़कल सैलून वाले लड़के बड़ी स्टाइल से बाल काटतेजेब काटने की हुनर आज़माइश करने लगे हैं. हमारे टाइप के अर्ध बुढ़ऊ में अमिताभी भाव जगा देते है.. सर फ़ेसियल भी कर दूं..?, फ़ेसमसाज़  करूं ? स्क्रब  कर दूं ब्लीच   करूं.. किसी एक पे आपकी हां हुई कि आपकी जेब कटी.. किस्सा चार-पांच सौ पे सेट होता है. अपन ठहरे आग्रह के कच्चे इसी कच्चेपन से  मंथली बज़ट बिगड़ने लगा तो हमने भी एकदम तय कर लिया कि बाल तो घर में ही कटवाएंगे वो भी क्लासिक स्टाईल में. हम ने फ़ैमिली-बारबर शारदा परसाद जी से कटिंग कराएंगे वो भी अपने घर में. खजरी वाले खवास दादा की यादैं भी उचक उचक कर कहतीं भई, कटिंग घर में शारदा सेईच्च बनवाओ. सो हम ने शारदा जी को हुकुम दे डाला- हर पंद्राक दिन में हमाई कटिंग करना !
वो बोले न जी हम औजार लेके किधर किधर घूमेंगे वो तो मालिश वालिश तक ठीक है. 
 बिलकुल डिक्टेटर बन हमने फ़ैमिली-बारबर को हिदायत दी - शारदा तुम अस्तुरा-फ़स्तुरा, कैंची-वैंची" लेके आना अगले संडे .  
सा’ब जी-"जे काम न कहो अब , जमाना बदल गया  आप किस जमाने में हो. ?
हम हैं तो इसी जमाने में पर हमाई आदतें पुरानी हैं.. पटे पे बैठ के बनवाने की. 
शारदा बोले- हम बैठ के न बना पाँ  हैं.. ..पटा पै.. आ  तो जैं हैं हपता पंद्रा दिन मैं  मनौ कुरसी मंगा लय करौ  यानी  शारदा जी सशर्त हमसे  सहमत हो ही गए वैसे हमाई हजामत कई लोग बनाने का शौक रखते हैं कुछ अधीनस्त, कुछ वरिष्ट कुछ अशिष्ठ तो कुछ अपषिष्ठ.. लोग आजकल पता नई क्यों हज़्ज़ामी पे उतारूं हैं.पर हम बनवाना तो शारदा महाराज से चाहते हैं.     अब वे हर पखवाड़े हमारी हजामत बनाने आ जाते हैं.
  दुनियां जहान  को गरियाते रहे पुराने दिनों की याद दिलाई उनको.. बाम्हन-नाई के अंतर्संबंधों पर एक अच्छा सा भाषण पिलाया कि भाई राजी हो गये. बोले ठीक है सा’ब आऊंगा  . अब पखवाड़े के पखवाड़े शारदा परसाद उसरेठे जी हमाई हजामत बनाने आते हैं. दुनियाँ  जहान के समाचार हम हासिल कर लेते हैं. वैसे शारदा हरीराम नहीं हैं. पर जो दुनियां-जहान में चल रहा है उन सारी खबरों पर शारदा जी की पैनी नज़र होती है. उनका अपना नज़रिया भी होता है जैसे मोदी सा’ब के लिये पी एम की कुर्सी फ़िट है कि उनको बड़ी होगी या छोटी पड़ेगी अन्ना के बिना केज़रीवाल का क्या होगा. क्रेन बेदी की हैसियत क्या होगी.. अमिताभ को सन्यास के लिये न उकसाया जाना उनके मन को खल रहा है. .. बोल रहे थे-"सचिन ने क्या बिगाड़ा लता जी आशा जी आड़वानी (वे आडवानी को आड़वानी जी बोलते हैं. ) और खासकर अमिताभ बच्चन (जो उनकी नज़र में  खूब कमा रहे है) को हटने की नही बोलते बेचारे सचिन को सचिन के पीछे फ़ालतुक में पड़ी है जनता  " यह कहते उनके चेहरे पर काटजू भाई सा’ब वाला भाव था.कुछ ऐसी ही बाते  बाक़ायदा हमसे शेयर करते हैं.
                  हमारे बाल कुछ ज़्यादा कड़े थे. पानी लगाने से भी नर्म न पड़े सो शारदा ने युक्ति निकाली . वो विषय छेड़े कि हमको गुस्सा आए और गुस्सा इतना कि हमारे रोयें स्टैंडअप हों........और  उनका
काम सरल हो जाए.
बोले "सा’ब सुना है गैस की कीमत सरकार गिराने वाली है..?"
उनका सरकार बोलना था कि हमारा रोयां-रोयां  खड़ा हो गया और भाई शारदा ने खच्चखच्च खचाक दाईं तरफ़ के बालों को निपटा कर दिया.
शारदा दाई बाजू के बाल काटते हुए..
    अब बारी थी बाईं तरफ़ के बालों की. इस बार भाई ने फ़िर शहर में बढ़ती अराजक यातायात व्यवस्था को निशाना बनाया मुये रोयों पर कोई असरईच्च न हुआ.
शारदा - साब जी जे बाल और गीले करूं..?
हम- क्यों.. इत्ती ठंड में गीले पे गीला किये जा रहे हो ? मरवाना है क्या... शारदा हमाई हालत ठंड में जानते हो अस्थमा का दौरा पड़ जाएगा समझे ....?
शारदा- "बाल कड़े हैं.."
हम- ’वो तो जनम जात कड़े हैं..
शारदा बाएं बाजू के बाल काटते हुए..
शारदा-"..............?"(बिन बोले मानो कह गया - सुअर के जैसे..! )
उसकी अनकही बात को हम ताड़ गये थे हमने प्रति प्रश्न किया - दाईं तरफ़ के काटे थे वो कैसे कट गये ?
शारदा-"वो कड़े थे पर खड़े थे .. !"
हम- "तो ?"
शारदा-"सा’ब, का बताएं.."
     तभी श्रीमति जी घर के भीतर से चिल्लाईं - बच्चों की फ़ीस भरना है, बिजली का बिल देना है कल तुम रुक जाना डिंडोरी न जाना .. इसी बीच बास का फ़ोन आ गया ... कल पहुंच रहे हो न आफ़िस.... ?
 बस क्या था हमारे रोयें रोयें में तनाव भर गया......... और शारदा महाराज खच्च खच्च खचा खच बाल काटने लगे बिना पानी मारे...........

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