आसाराम बापू ही क्यों सारे बड़बोलों के लिये एक सटीक सुझाव देना
अब ज़रूरी है कि औरतें को शिक्षा देने के स्थान पर अब आत्म चिंतन का वक़्त आ गया
है. कुछ दिनों से देख रहा हूं कि मीडिया के ज़रिये लोग बाग अनाप-शनाप कुछ भी बके जा रहें हैं बेक़ाबू हो चुकी है जुबाएं लोगों की . सच्चाई तो यह है कि हम सब बोलने की बीमारी से ग्रसित हैं . क्योंकि हमारा दिमाग सूचनाओं से भरा पड़ा है और हम उसे ही अपनी ज्ञान-मंजूषा मान बैठे हैं ..! और चमड़े की ज़ुबान लप्प से तालू पर लगा कर ध्वनि उत्पन्न करने की काय विज्ञानी क्रिया करते हैं । जो वास्तव में यह एक सतही मामला है किसी को भी किसी सूचना से तत्व-बोध नहीं हो सकता. आज के मज़मा जमाऊ लोगों को तो कदापि नहीं. आसाराम जी ने जो भी कहा केवल सतही बात है. और जो भी जो कुछ कहे जा रहे हैं उसे भी वाग्विलास की श्रेणी में ही रखा जा सकता है. मेरे एक तत्कालीन कार्यालय प्रमुख ने किसी चर्चा में कहा था- "कमज़ोर की पराजय को कोई रोक नहीं सकता "
उनका कथन आधी सचाई थी पूरी सचाई तो उनको तब समझ आती जबकि वे कछुआ और खरगोश की कथा याद रखते . वे भी क्या करें सूचनाएं इतनी हैं कि बेचारे को बालपन की बोध कथाएं याद नहीं शायद उनको दादी-नानी की गोद में बैठने का मौका न मिला हो.खैर जो भी हो मूल बात पर ही वार्ता जारी रहे तो उम्दा होगा मित्रो मुझे मेरा एक चपरासी अच्छी तरह से है बात तब की है जब वेतन बैंक के ज़रिये नहीं मिलता था एक दिन मैं अपना वेतन ड्रावर में रख कर घर आते वक़्त वहीं भूल आया . तीन दिन लगातार छुट्टी के चलते घर भागना हमारी आदत में शुमार था हो हम भाग निकले. मोबाइल का दौर तो नहीं कि हम कुछ कर पाते . नरसिंहपुर से गाड़ी छूटते ही हमें अपनी भूल का एहसास हुआ. सो हमने अपने मित्र को बताया. मित्र ने कहा - अब मान लो कि चपरासी ऐश करेगा भूल जाओ वेतन .हमारा सफ़र तो सफ़र पूरी रात घर में करवट बदलते रहे. सवालों से जूझते हम बहुत देर तक सो न सके थे उस रात . अल्ल सुबह कोई हमारा दरवाज़ा खटखटा रहा था. दरवाजा खोला गया चपरासी हमारा वेतन लेकर हाज़िर हुआ. -सा’ब, जे भूल आए थे आप..!
ज्यों का त्यों नोट का बंडल चपरासी की नीयत की पवित्रता का एहसास करा गया. कम पढ़ा लिखा अयोध्या परसाद ने ईमानदारी और नेकनीयत के सारे पाठ पढ़े थे गोया. उसका चरित्र बलवान था बेटी दामिनी वाली घटना से तुलना करें तो स्पष्ट होता है कि -अब, बलवान चरित्रों की कमी सी आ गई है. इन कमज़ोर चरित्र वालों के सामने घुटने टेकने की सलाह देना आपकी विद्वता पर सवालिया निशान खड़े करता है बापू जी. .. प्रवचन कीजिये प्रपंच नहीं.
बापूजी जो भाव से बलात्कारी हो उसे तो सगी बहन भी भाई कहने में झिझकेगी आप इस सचाई को भी भूल गये ?
नारी के खिलाफ़ हमारी सोच को बदलना है. उसके दैहिक आकर्षण में बंधे हम अपनी ही पुरुष वादी मान्यताओं को सदा सही ठहरातें हैं. किसी भी तरह हम दामिनी वाली स्थिति को समझने की कोशिश में ही नहीं हैं. औरत के खिलाफ़ है हमारी मानसिकता ये तो तय कर दिया बयानों नें.. औरतें को शिक्षा देने का समय नहीं आसाराम जी और उनके तरह के बयान बाज़ों अब समझने का दौर आ चुका है हर हालत में आपको नज़रिया बदलना होगा . हम कौन होते जो कि औरतों के कामकाज़ निर्धारित करें उनकी सीमाओं का निर्धारण भी करना हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं है.समाज को महिलाओं सामर्थ्यवान बनाने की सलाह दी जावे तो अच्छा लगेगा.
मर्यादाओं में रहने भाई बना लेने की सलाह देने जैसी बातौं से काम पक चुके हैं अब तो इन बेहूदा बातों पर पाबंदी के क़ानून लाने की मांग करना ज़ायज है. आप बोलिए मगर बेक़ाबू होकर नहीं..
नारी को ये करना है उसकी वो सीमाएं हों इसे कौन तय करेगा वो जो उसकी शक्ति का पूजन धर्मभीरू होने की वज़ह से करता तो है किंतु उसकी आंतरिक शक्ति को पहचाना नहीं चाहता अथवा पहचान कर भी उसे कमज़ोर साबित कर देता है ताकि उसका अपना वज़ूद कायम रहे.