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शनिवार, जनवरी 19, 2013

अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं

जनाब ज़ां निसार अख़्तर 
के बारे में जानिये चौथी दुनियां
अखबार के इस "आलेख" में
                            नमस्कार मित्रो जां निसार अख़्तर एक मशहूर शायर की क़लम की ज़ादूगरी से मैं इस हद तक प्रभावित हुआ हूं कि उनकी तारीफ़ में कुछ कहने के लिये शब्द छोटे पढ़ रहे हैं..उनकी ग़ज़ल में गोते लगाएं और जानें उनको 
अशआर मेरे यूं तो ज़माने के लिए हैं
कुछ शेअर फ़क़त उनको सुनाने के लिए हैं
अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं
आंखों में जो भर लोगे तो कांटो से चुभेंगे
ये ख्वाब तो पलकों पे सजाने के  लिए हैं
देखूं तेरे हाथों को तो लगता है तेरे हाथ
मंदिर में फ़क्त दीप जलाने के लिए हैं
सोचो तो बड़ी चीज़ है तहज़ीब बदन की
वरना तो बदन आग बुझाने के लिए हैं
ये इल्म का सौदा, ये रिसाले, ये किताबें
इक शख्स की यादों को भुलाने के लिए हैं


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