28.12.12

विश्व की हर मां को मेरा विनत प्रणाम



सव्यसाची स्व. मां 
      यूं तो तीसरी हिंदी दर्ज़े तक पढ़ी थीं मेरी मां जिनको हम सब सव्यसाची कहते हैं क्यों कहा हमने उनको सव्यसाची क्या वे अर्जुन थीं.. कृष्ण ने उसे ही तो सव्यसाची कहा था..? न वे अर्जुन न थीं.  तो क्या वे धनुर्धारी थीं जो कि दाएं हाथ से भी धनुष चला सकतीं थीं..?
 न मां ये तो न थीं हमारी मां थीं सबसे अच्छी थीं मां हमारी..! 
जी जैसी सबकी मां सबसे अच्छी होतीं हैं कभी दूर देश से अपनी मां को याद किया तो गांव में बसी मां आपको सबसे अच्छी लगती है न हां ठीक उतनी ही सबसे अच्छी मां थीं .. हां सवाल जहां के तहां है हमने उनको सव्यसाची   क्यों कहा..!
तो याद कीजिये कृष्ण ने उस पवित्र अर्जुन को "सव्यसाची" तब कहा था जब उसने कहा -"प्रभू, इनमें मेरा शत्रु कोई नहीं कोई चाचा है.. कोई मामा है, कोई बाल सखा है सब किसी न किसी नाते से मेरे नातेदार हैं.."
यानी अर्जुन में तब अदभुत अपनत्व भाव हिलोरें ले रहा था..तब कृष्ण ने अर्जुन को सव्यसाची सम्बोधित कर गीता का उपदेश दिया.अर्जुन से मां  की तुलना नहीं करना चाहता मैं क्या   कोई भी "मां" के आगे भगवान को भी महान नहीं मानता.. मैं भी नहीं... !                                   "मां"  तो मातृत्व का वो आध्यात्मिक भाव है जिसका प्राकट्य विश्व के किसी भी अवतार को ज्ञानियों के मानस में न हुआ था न ही हो सकता वो तो केवल "मां" ही महसूस करतीं हैं. दुनियां के सारे पुरुष क्या स्वयं ईश्वर भी मातृत्व का अनुभव नहीं कर सकते. मां शब्द ही माधुर्य, पवित्रता, और उससे भी पहले "पूर्णता का पर्याय" होता है. यानी मां में ही आप विराट के दर्शन पा सकते हैं. 
मां शब्द का अर्थ भी "स्वार्थ-हीन नेह" और जिसमें ये भाव है उसकी किसी से शत्रुता हो ही नहीं सकती.  जी ये भाव मैने कई बार देखा मां के विचारों में "शत्रु विहीनता का भाव " एक बार एक क़रीबी नातेदार के द्वारा हम सबों को अपनी आदत के वशीभूत होकर अपमानित किया खूब नीचा दिखाया .. हम ने कहा -"मां,इस व्यक्ति के घर नजाएंगे कभी कुछ भी हो इससे नाता तोड़ लो " तब मां ने ही तो कहा था मां ने कहा तो था .... शत्रुता का भाव जीवन को बोझिल कर देता है ध्यान से देखो तुम तो कवि हो न शत्रुता में निर्माण की क्षमता कहां होती है. यह कह कर  मां मुस्कुरा दी थी तब जैसे प्रतिहिंसा क्या है उनको कोई ज्ञान न हो .मर्यादा मे रहना सीखो 
मैने कह दिया था -मर्यादा गई राम के जमाने के साथ..
तब मैने मां के चेहरे पर मुस्कान देखी थी.. मुझे महसूस हुआ कि कितना गलत हूं
          मेरे विवाह के आमंत्रण को घर के देवाले को सौंपने के बाद सबसे पहले पिता जी को लेकर उसी निकटस्थ परिजन के घर गईं जिसने बहुधा हमारा अपमान किया करता . मां ने उस कुंठित रिश्तेदार को इतना स्नेह दिया कि  उसे अपनी भूलों का एहसास हुआ उसने  मां के चरणों को पश्चाताप के अश्रुओं से पखारा. वो मां ही तो थीं जिसने  उस एक परिवार को सबसे पहले सामाजिक-सम्मान दिया जिनको समाज ने अपनी अल्पग्यता वश समाज से अलग कर दिया था. मां चाहती थी कि सदा समभाव रखना ही जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य हो. 

                    जननी ने बहुत अभावों में आध्यात्मिक-भाव और सदाचार के पाठ हमको पढ़ाने में कोताही न बरती. हां मां तीसरी हिंदी पास थी संस्कृत हिन्दी की ज्ञात गुरु कृपा से हुईं अंग्रेजी भी तो जानती थी मां उसने दुनिया   खूब बांची थी. पर दुनिया से कोई दुराव न कभी मैने देखा नहीं मुझे अच्छी तरह याद है वो मेरे शायर मित्र  इरफ़ान झांस्वी से क़ुरान और इस्लाम पर खूब चर्चा करतीं थीं . उनकी मित्र प्रोफ़ेसर परवीन हक़  हो या कोई अनपढ़ जाहिल गंवार मजदूरिन मां सबको आदर देती थी ऐसा कई बार देखा कि मां ने धन-जाति-धर्म-वर्ग-ज्ञान-योग्यता आधारित वर्गीकरण को सिरे से नक़ारा  आज मां  यादों के झरोखे से झांखती यही सब तो कहती है हमसे ,... सच मां जो भगवान से भी बढ़कर होती है उसे देखो ध्यान से विश्व की हर मां को मेरा विनत प्रणाम 
  


मां.....!!
छाँह नीम की तेरा आँचल,
वाणी तेरी वेद ऋचाएँ।
सव्यसाची कैसे हम तुम बिन,
जीवन पथ को सहज बनाएँ।।


कोख में अपनी हमें बसाके,
तापस-सा सम्मान दिया।।
पीड़ा सह के जनम दिया- माँ,
साँसों का वरदान दिया।।
प्रसव-वेदना सहने वाली, कैसे तेरा कर्ज़ चुकाएँ।।

ममतामयी, त्याग की प्रतिमा-
ओ निर्माणी जीवन की।
तुम बिन किससे कहूँ व्यथा मैं-
अपने इस बेसुध मन की।।
माँ बिन कोई नहीं,
सक्षम है करुणा रस का ज्ञान कराएँ।

तीली-तीली जोड़ के तुमने
अक्षर जो सिखलाएँ थे।।
वो अक्षर भाषा में बदलें-
भाव ज्ञान बन छाए वे !!
तुम बिन माँ भावों ने सूनेपन के अर्थ बताए !!
 

यशभारत जबलपुर में 

पास उसके न थे-गहने  मेरी मां , खुद ही गहना थी !
वही  क्यों कर  सुलगती है   वही  क्यों कर  झुलसती  है ?
रात-दिन काम कर खटती, फ़िर भी नित हुलसती है .
न खुल के रो सके न हंस सके पल –पल पे बंदिश है
हमारे देश की नारी,  लिहाफ़ों में सुबगती  है !
वही तुम हो कि  जिसने नाम उसको आग दे  डाला
वही हम हैं कि  जिनने  उसको हर इक काम दे डाला
सदा शीतल ही रहती है  भीतर से सुलगती वो..!
 
कभी पूछो ज़रा खुद से वही क्यों कर झुलसती है.?मुझे है याद मेरी मां ने मरते दम सम्हाला है.
ये घर,ये द्वार,ये बैठक और ये जो देवाला  है !
छिपाती थी बुखारों को जो मेहमां कोई आ जाए
कभी इक बार सोचा था कि "बा" ही क्यों झुलसती है ?तपी वो और कुंदन की चमक हम सबको पहना दी
पास उसके न थे-गहने  मेरी मां , खुद ही गहना थी !
तापसी थी मेरी मां ,नेह की सरिता थी वो अविरल
उसी की याद मे अक्सर  मेरी   आंखैं  छलकतीं हैं.
विदा के वक्त बहनों ने पूजी कोख  माता की
छांह आंचल की पाने जन्म लेता विधाता भी
मेरी जसुदा तेरा कान्हा तड़पता याद में तेरी
उसी की दी हुई धड़कन इस दिल में धड़कती है.

आज़ की रात फ़िर जागा  उसी की याद में लोगो-
तुम्हारी मां तुम्हारे साथ  तो  होगी  इधर  सोचो
कहीं उसको जो छोड़ा हो तो वापस घर  में ले आना
वही तेरी ज़मीं है और  उजला सा फ़लक भी है !

        * गिरीश बिल्लोरे मुकुल,जबलपुर

26.12.12

स्व. श्री हीरालाल गुप्त “मधुकर” स्मृति समारोह सम्पन्न


२४ दिसम्बर १९९७ से  निरंतर जारी श्री हीरालाल गुप्त मधुकर स्मृति समारोह का आयोजन  हीरालाल गुप्त मधुकर स्मृति समिति एवम सव्यसाची कला ग्रुप  के तत्वावधान में  ड्रीमलैण्ड फ़नपार्क जबलपुर में दिनांक २४ दिसम्बर २०१२ को आयोजित किया गया.  कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पूर्व उप महाधिवक्ता उच्च न्यायालय मध्यप्रदेश श्री आदर्श मुनि त्रिवेदीजी ने की जबकि  मुख्य अतिथि के रूप में  श्री कृष्ण कान्त चतुर्वेदी पूर्व निदेशक कालिदास अकादमी ,मध्य प्रदेश उपस्थित थे.  15 वर्ष पूर्व प्रारम्भ किये गए "स्वर्गीय हीरा लाल गुप्त स्मृति पत्रकारिता सम्मान " से इस वर्ष वरिष्ठ पत्रकार श्री चैतन्य भट्ट को सम्मानित किया गया. कार्यक्रम में प्रो. एच. बी. पालन,विनोद शलभयशोवर्धन पाठकइरफ़ान झांस्वी, डा. अजित वर्मा, श्री महेश मेहदेले, संजय पारे, अरुण टेमले सहित बड़ी संख्या में साहित्यिक सांस्कृतिक संस्थाओं के प्रतिनिधि, साहित्यकार, पत्रकार उपस्थित थे.                सव्यसाची स्वर्गीया श्रीमती प्रमिला बिल्लोरे स्मृति सम्मान से इस बार संस्कारधानी जबलपुर ही नहीं मध्य प्रदेश के जाने माने उद्घोषकराष्ट्र स्तरीय सामाजिक पत्रिका "सनाढ्य संगम" के यशस्वी संपादक साहित्यकार श्री राजेश पाठक "प्रवीण" को नवाजा 
                        संस्कारधानी की भावना के अनुरूप इस कार्यक्रम में हम स्वर्गीय रामेश्वर गुरु जी को भी स्मरण किया जाना इस कार्यक्रम की की विशेषता थी.स्व. श्री गुरु के दामाद श्री श्याम बिहारी चतुर्वेदी ने स्व. रामेश्वर गुरु जी व्यक्तित्व पर विचार व्यक्त किये.
           कार्यक्रम के आरम्भ में दिवंगत मां सव्यसाची प्रमिला देवी बिल्लोरे एवम स्वर्गीय हीरालाल गुप्त मधुकर जी के चित्रों पर पुष्पांजली अतिथियों एवम उपस्थित व्यक्तियों द्वारा किया .
    कार्यक्रम की शुरुआत वरिष्ट पत्रकार मोहनशशि की अभिव्यक्ति से हुई जिन्हौने जबलपुर में स्व. हीरालल गुप्ता जी की समकालीन पत्रकारिता में पवित्रतासादगीव्यापक विचारशीलता को रेखांकित किया.  
         इस अवसर पर सृजन सम्मान से सम्मानित श्री अमरेंद्र नारायण पूर्व सेक्रेट्री जनरल एसिया पेसिफ़िक टेक्नोकम्यूनिटि ने कहा –“बरसों देसी-विदेशी भूमि पर सेवा देने के बाद मुझे जबलपुर में वापसी को जबलपुर ने जिस तरह स्वीकारा है उसे उससे स्पष्ट हो जाता है कि जबलपुर वास्तव में अपने संस्कारधानी नाम के अनुरूप संस्कारवान है और रहेगी भी
         स्व. श्री हीरालाल गुप्त मधुकर स्मृति पत्रकारिता सम्मान से समादरित श्री चैतन्य भट्ट ने प्राप्त सम्मान को गरिमामय सम्मान निरूपित करते हुए कहा कि  अदभुत चरित्र के धनी थे स्व. गुप्त जी उनका सानिध्य मात्र से सादगी और सच्चरित्र होना स्वभाविक था.      
 अध्यक्षीय उदबोधन में श्री आदर्श मुनि त्रिवेदी ने कहा-संस्कारवान पीढ़ी्यां ही अपने पूर्वजों की स्मृतियां अक्षुण्य रखतीं हैं. जबलपुर की तासीर भी यही है. इस तरह के आयोजनों से उन  आदर्शों
की प्राण-प्रतिष्ठा को कायम किया जा सकता जो सामाजिक समरसता को जीवित रखते हैं.
       मां सव्यसाची प्रमिला देवी बिल्लोरे स्मृति सम्मान से सम्मानित श्री राजेश पाठकप्रवीण ने कहा- मेरे जीवन का मार्मिक क्षण है जबकि मुझे मेरी मां का स्नेह मिल रहा है.
             कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत श्री सतीष बिल्लोरेश्री अरविंद गुप्ता  डा. विजय तिवारी किसलयबसंत मिश्राराजीव गुप्ता,श्री राजकुमार अग्रवाल ने किया. कार्यक्रम का संचालन गिरीश बिल्लोरे ने तथा आभार अभिव्यक्ति श्री विजय तिवारी द्वारा की गई 

24.12.12

जो सतह में चल रहा है उसका अनुमान लगाओ तो सही रिज़ल्ट पर पहुंच जाओगे..

कार्टूनिस्ट इरफ़ान 

           अराजक- व्यवस्थाओं के खिलाफ़ समुदाय के तेवर को कम आंकना किसी भी स्थिति में किसी भी देश के लिये आत्मघात से कम नहीं है. आज के दौर में विश्व का कोना कोना सूचना क्रांति की वज़ह से एक सूत्र में बंधा नज़र आता है तब तो शीर्षवालों को सतह की हर हलचल पर निगाह रखनी ज़रूरी है. सबकी बात समझ लेने वाली इंद्रियों को सक्रिय करना ही होगा. मेरे प्रिय प्रोफ़ेसर (डा.) प्रभात मिश्र कहते थे -"जो सतह में चल रहा है उसका अनुमान लगाओ तो सही रिज़ल्ट पर पहुंच जाओगे.." प्रभात सर ने कहा तो मुझसे था पर सम-सामयिक बन गया है यह वाक्यांश ... शीर्षवालों के लिये . 
            कृष्ण कालीन महाभारत आप को याद है न .. जो युद्ध न था .   बस क्रांति थीं.. हां इनमे कृष्ण थे अवश्य पर वो कृष्ण जो लक्ष्य थे विचार थे चिंतन थे...जिसे आप गीता कहते हैं  उनके पीछे चल पड़ा था समुदाय परंतु अब बिना कृष्ण यानी नेतृत्व के, केवल लक्ष्य को  अपना अगुआ मानके चलेगा समुदाय. चल भी रहा है. 
                         अब क्रांतियों का स्वरूप सहज ही बदल रहा है. सर्वमान्य नेतृत्व की अपेक्षा  क्रांतियां लक्ष्य को ही अपने आगे रखने लगीं हैं. लक्ष्य ऐसा जो अंतरआत्मा में बेचैनी भरता है. यही बेचैनी  क़दम उठाने मज़बूर करती है. कई सवाल लिखने को बाध्य कर देतीं हैं  ये बेचैनियां.. ! मेरे विचारक मित्र लिमिटि खरे बेचैन हैं कई तरह के  सीधे सवाल करतें हैं सियासत से .और व्यवस्था से किंतु  जवाब गुम हैं. 
पता नहीं क्या हो गया है  रहनुमाओं को ..आम आदमी के  दर्द की समझ कब आएगी ...? कुछ खास नहीं मांगता भारतीय उसकी अपनी छोटी आशाएं हैं उसकी अपनी छोटी छोटी ज़रूरतें हैं जैसे कीमतें स्थिर रखो. अनाधिकृत दबाओ मत, गुमराह मत करो, चैन से जीने दो .. पर पता नहीं क्या हुआ है व्यवस्था को जो अपना कार्य-दायित्व भूल के अन्य बातों के प्रबंधन में जुटी है. 
        शीर्ष पर आसीनों को यह लगता है कि समुदाय शून्य हो चुका है.. वास्तव में ऐसा है नहीं शून्य नहीं होता समुदाय .. शांत अवश्य होता है पर नदी के उस भाग की कल्पना कीजिये जिसके नीचे भयानक भंवर होती है परंतु उसी भंवरीले स्थान का बहाव सबसे शांत होता है जिसका आंकलन आप सहजता से  नहीं कर पाते.
 आप माने या न मानें दिल्ली वाली बेटी को लेकर पूरा देश बेचैन है. सब के मन में आक्रोष है इस आक्रोश को उकसाना अब अनुचित है.. सरकार तुरंत स्वीकारे मांग . हीला हवाली तर्क वितर्क अब  अस्वीकार्य ही होंगे. लोग हर हालत में त्वरित परिणाम चाह रहे हैं. 
                 

23.12.12

वरिष्ठ पत्रकार श्री चैतन्य भट्ट को हीरा लाल गुप्त स्मृति अलंकरण एवम सव्यसाची स्वर्गीया श्रीमती प्रमिला बिल्लोरे स्मृति अलंकरण राजेश पाठक "प्रवीण" को

                               

                                                                 कल दिनांक 24 दिसंबर 2012 को शाम 6.30 बजे ड्रीम लेंड फन पार्क सिविक सेंटर जबलपुर मध्य प्रदेश में स्वर्गीय हीरा लाल गुप्त स्मृति सम्मान समारोह आयोजित है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पूर्व उप महाधिवक्ता उच्च न्यायालय मध्यप्रदेश श्री आदर्श मुनि त्रिवेदीजी तथा मुख्य अतिथि श्री कृष्ण कान्त चतुर्वेदी पूर्व निदेशक कालिदास अकादमी ,मध्य प्रदेश होंगे। 15 वर्ष पूर्व प्रारम्भ किये गए "स्वर्गीय हीरा लाल गुप्त स्मृति पत्रकारिता सम्मान " से इस वर्ष वरिष्ठ पत्रकार श्री चैतन्य भट्ट को सम्मानित किया जायेगा .





                               सव्यसाची स्वर्गीया श्रीमती प्रमिला बिल्लोरे स्मृति सम्मान से इस बार संस्कारधानी जबलपुर ही नहीं मध्य प्रदेश के जाने माने उद्घोषक, राष्ट्र स्तरीय सामाजिक पत्रिका "सनाढ्य संगम" के यशस्वी संपादक , साहित्यकार श्री राजेश पाठक "प्रवीण" को नवाजा जायेगा।
संस्कारधानी की भावना के अनुरूप इस कार्यक्रम में हम स्वर्गीय रामेश्वर गुरु जी को भी नहीं भूले। उनके जन्म शताब्दी वर्ष के चलते हम उनका भी स्मरण करेंगे। डॉ रामशंकर मिश्र जी स्वर्गीय रामेश्वर गुरु जी के साहित्य दर्शन पर एक सारगर्भित आलेख का वाचन करेंगे।

19.12.12

रैपिस्ट मस्ट बी हैंग्ड टिल डैथ

        
 सरकार को नारी के साथ बलात्कार उसके खिलाफ़ सबसे जघन्य हिंसा मानने में अब देर नहीं करनी चाहिये.नारी की  गरिमा की रक्षा के लिये बलात्कार को किसी भी सूरत में हत्या से कमतर आंकना सिरे से खारिज करने योग्य है.  घरों में काम करने वाली नौकरानियां, दफ़्तरों का अधीनस्त अमला, इतना ही नहीं उंचे पदों पर काम कर रहीं महिलाएं तक भयभीत हैं. मुझसे नाम न लिखने की शर्त पर एक महिला अधिकारी कहतीं हैं-"हम कितना भी दृढ़ता दिखाएं आखिरकार औरत हैं पल भर में हमारा हौसला खत्म करने में कोई लापरवाही नहीं करता पुरुष प्रधान समाज . "
 ब्लाग जगत की महत्वपूर्ण लेखिका Aradhana Chaturvedi (आराधना चतुर्वेदी रिसर्च स्कालर  )  खुद भयभीत हैं -"मैं दिल्ली में रहती हूँ. अकेले बाहर आती-जाती हूँ. शाम को जल्दी आने की कोशिश करती हूँ, पर सर्दियों में तो छः बजे अँधेरा हो जाता है. 
अभी तक शॉक्ड हूँ कल की घटना से. बार-बार लग रहा है कि ये घटना मेरे साथ भी हो सकती है. सोच रही हूँ वेंटीलेटर पर गंभीर हालत में पड़ी उस लड़की के बारे में. तबीयत ठीक नहीं, बाहर भी नहीं जा सकती...आंदोलन कर रहे जे.एन.यू. के सभी छात्रों के साथ हूँ."
                                           मेरे मित्र कुमारेंद्र सिंह सेंगर जी की  एक बात विचारणीय है-"जब समाज में हर एक बात को सेक्स से जोड़ कर देखा जाने लगा है, सेक्स को, कामुकता को, स्त्री-देह को व्यापक सौन्दर्य-बोध के साथ परोसा जाने लगा है,गानों में, खेलों में, कपड़ों में, खाने में, स्वास्थ्य में, शिक्षा में, वाहनों में, सौन्दर्य-प्रसाधनों में..........लगभग सभी जगहों पर, सभी क्षेत्रों में कामुकता को, देह को, सेक्स को प्रमुखता दी जा रही हो वहां आप मनोविकारी लोगों से संयम की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं ?"
    अखबारों और मीडिया घरानों को चाहिये कि औरतों के खिलाफ़ करतीं खबरों तस्वीरों को छापना बंद करें. अंतरजाल पर भी कई ऐसी खबरिया साइट्स हैं जो सन्नी-लियोन और पूनम पांडॆ ब्रांड मामलों.और. तस्वीरों को  टाप रेटेट बता कर लाइम लाइट में रखतीं हैं.. कुमारेंद्र सिंह सेंगर जी का इशारा इनकी ओर भी है.. ध्यान से देखें तो लगता है कि कुमारेंद्र जी सेक्स के व्यवसायिक अनुप्रयोग को भी बलात्कार की एक सीढ़ी बता रहें हैं.. मीडिया हाउसेस के लिये भी आत्म-चिंतन का दौर आ गया है.    
                                                उनकी इस सवालिया टिप्पणी पर आत्म-चिंतन करना होगा. व्यापारी होती जा रही सामाजिक संरचना में केवल चेहरों.. कामुकता को बढ़ावा देते इश्तहारों , फ़्रंट पेज पर सेक्स को स्थान देते रिसाले, बेशक़ उत्प्रेरक बन जाते हैं. किंतु चारित्रिक विकास का दौर में माता पिता अपनी ज़वाबदेही से मुकर नहीं सकते. मुन्नी-शीला, फ़ेविकोल, वाले गीतों पर जब बच्चा थिरकता है तो  अभागे माता पिता बच्चे के इस कुरूप विकास को महिमा-मंडित करते नज़र आते हैं. उफ़्फ़ क्यों नहीं समझ पा रहा है  90 प्रतिशत भारतीय (शायद काटजू साहब वाला ) कि हम कुछ गलीच बो रहें हैं औलादों के ज़ेहन में. ?
      
           प्रयास ब्लाग के युवा लेखक दीपक तिवारी अपने     एक आलेख में लिखते हैं कि-" राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के सिर्फ 2011 के आंकड़ों पर ही नजर डाल लें तो तस्वीर काफी हद तक साफ हो जाती है कि आखिर महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं। महिलाओं के साथ बलात्कार, शारीरिक उत्पीड़न और छेड़छाड़ के साथ ही महिलाओं के अपहरण और घर में पति या रिश्तेदारों के उत्पीड़न के मामलों की लिस्ट काफी लंबी है। साल 2011 में हर रोज 66 महिलाएं बलात्कार की शिकार हुई। एनसीआरबी के अऩुसार 2011 में बलात्कार के 24 हजार 206 मामले दर्ज हुए जिनमें से सजा सिर्फ 26.4 फीसदी लोगों को ही हुई जबकि महिलाओं के साथ बलात्कार के अलावा उनके शारीरिक उत्पीड़न, छेड़छाड़ के साथ ही उनके उत्पीड़न के 2 लाख 28 हजार 650 मामले दर्ज किए गए जिसमें से सजा सिर्फ 26.9 फीसदी लोगों को ही हुई। ये वो आंकड़ें हैं जिनमें की हिम्मत करके पीड़ित ने दोषियों के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई…इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि असल में ऐसी कितनी घटनाएं घटित हुई होंगी क्योंकि आधे से ज्यादा मामलों में पीड़ित समाज में लोक लाज या फिर दबंगों के डर से पुलिस में शिकायत ही नहीं करती या उन्हें पुलिस स्टेशन तक पहुंचने ही नहीं दिया जाता है। सबसे बड़ी बात ये है कि आंकड़ें इस पर से पर्दा हटाते हैं कि इन मामलों में कार्रवाई का प्रतिशत सिर्फ 25 है…यानि कि 75 फीसदी मामले में या तो आरोपी बच निकले या फिर ये मामले सालों तक कोर्ट में लंबित पड़े रहते हैं और आरोपी जमानत पर खुली हवा में सांस ले रहा होता है।अगर 71.1 प्रतिशत दरिंदे खुले आम घूम रहें हों तो कौन भयभीत न होगा. 
                      यौनिक अपराधों की सुनवाई केवल 30 दिन से अधिक का वक़्त नहीं मिलना चाहिये. सजा मौत से कम न हो वरना रेशमा जैसी नारी  जीवन भर एक आक्रांत जीवन जियेगी शायद मुस्कुराहट लौट न पाए कभी . बेटियों के खिलाफ़ होते समाज को वापस नेक चलनी की राह दिखाने के लिये अगर कठोर क़ानून न बने तो समाज का पतन दूर नहीं होगा. 
                  मेरे व्यक्तिगत राय ये भी है कि एक ऐसा कानून बनाया जाये जो औरत के खिलाफ़ जिस्मानी ज़्यादती को हत्या के समान कारित माने. सच्चे पुरुष कभी भी किसी नारी के आत्म सम्मान की हत्या नहीं करते. बलात्कारी सदैव हत्यारा होता है. कसाब सरीखा आतंकी होता है... उससे बस  जितना जल्द हो सके दुनिया से बिदाई "फ़ांसी के तख्त पर" दे देनी चाहिये. 
                     मैं एक कवि हूं.. कितना नर्म हूं फ़ांसी की मांग करना मेरी प्रकृति के खिलाफ़ है पर सामाजिक संस्कारों वश मुझे लगता है कि -"जो नारी जैसी नर्म हृदया के हृदय को घात करे उसे जीने का अधिकार देना सर्वदा अनुचित है."
                                           बकौल विचारक पत्रकार  श्री  रवींद्र बाजपेई -"दिल्ली में बलात्कार के आरोपियों को फांसी पर टांगने की मांग चारों तरफ गूँज रही है लेकिन जिस देश में आतंकवादियों को फांसी पर लटकाने में दस बरस का वक़्त लगता हो वहां इस तरह के अपराधियों को उनके कुकर्म की सजा देने में कितनी देर होगी यह विचारणीय है।"  
          सवालों पर एक दीर्घ विराम लगा सकती राजनैतिक इच्छा शक्ति. 


वो जितना रोई होगी बस में दिल्ली की लड़की मेरी आंखों के आंसू भी सुखाए उसी पगली ने


हां सदमा मग़र हादसा
देखा नहीं कोई !
और न तो  साथ मेरे
जुड़ती है कहानी हादसे जैसी......!!
मग़र नि:शब्द क्यों हूं..?
सोचता हूं
अपने चेहरे पे
सहजता लांऊ तो कैसे ?
मैं जो महसूस करता हूं
कहो बतलाऊं वो कैसे..?
वो जितना रोई होगी बस में दिल्ली की लड़की
मेरी आंखों के आंसू भी सुखाए उसी पगली ने
न मैं  जानता उसे न पहचानता हूं मैं ?
क्या पूछा -"कि रोया क्यूं मैं..?"
निरे जाहिल हो किसी पीर तुम जानोगे कैसे
ध्यान से सुनना उसी चीख
सबों तक आ रही अब भी
तुम्हारे तक नहीं आई
तो क्या तुम भी सियासी हो..?
सियासी भी कई भीगे थे सर-ओ-पा तब
देखा तो होगा ?
चलो छोड़ो न पूछो मुझसे
वो कौन है क्या है तुम्हारी अब वो कैसी है ?
मुझे मालूम क्या मैं तो 
जी भर के 
दिन भर रोया हूं
मेरे माथे पे 
बेचैनियां
नाचतीं दिन भर  !
मेरा तो झुका है 
क्या तुम्हारा 
झुकता नहीं है सर..?

 सुनो तुम भी
दिल्ली से आ रहीं चीखैं.. ये चीखैं
हर तरफ़ से एक सी आतीं.. जब तब 
तुम सुन नहीं पाते सुनते हो तो गोया 
समझ में आतीं नहीं तुमको 
समझ आई तो फ़िर किसकी है 
ये तुम सोचते होगे
चलो अच्छा है जानी पहचानी नहीं निकली !!
हरेक बेटी की आवाज़ों फ़र्क  करते हो
अगर ये करते हो ख़ुदा जाने क्या महसूस करते हो..?
हमें सुनना है  हरेक आवाज़ को 
अपनी समझ के अब 
अभी नहीं तो बताओ 
प्रतीक्षा करोगे कब तक
किसी पहचानी हुई आवाज़ का 
रस्ता न तकना तुम
वरना देर हो जाएगी 
ये बात समझना तुम !!
                     
     

16.12.12

गांव के गांव बूचड़ खाने से लगने लगे हैं- सियासी-परिंदे गावों पे मंडराने लगे हैं.

साभार : http://yugaahwan.blogspot.in/


रजाई ओढ़ तो ली मैनें मगर वो नींद न पाई ,
जो पल्लेदारों को  बारदानों में आती है.!
वो रोटी कलरात जो मैने छोडी थी थाली में
मजूरे को वही रोटी सपनों में लुभाती है.
***********
फ़रिश्ते   आज कल घर मेरे आने लगे हैं
मुझे बेवज़ह कुछ रास्ते बतलाने लगे हैं
मुझे मालूम है काम अबके फ़रिश्तों का
फ़रिश्ते घूस लेकर काम करवाने  लगे हैं.
***********
तरक़्क़ी की लिस्टें महक़में से हो गईं जारी
तभी तो लल्लू-पंजू इतराने लगे हैं....!!
खुदा जाने नौटंकी बाज़ इतने क्यों हुए हैं वो
जिनको लूटा उसी को भीख दिलवाने चले हैं.
***********
जिन गमछों से आंसू पौंछते हमारे बड़े-बूढ़े-
वो गमछे अब गरीबों को डरवाने लगे हैं.
गांव के गांव बूचड़ खाने से लगने लगे अब
सियासी-परिंदे गांवों पे मंडराने लगे हैं.









10.12.12

ये तन्हाई मुझे उस भीड़ तक लाती है.. !!

 ये नज़्म कुछ खास दोस्तों को समर्पित है 










ये तन्हाई मुझे उस  भीड़ तक लाती है.. !!
जिसे मैं छोड़ आया हूं ...
कोसों दूर अय.. लोगो
कि जिसमें तुम हो, तुम हो
और तुम भी तो हो प्यारे..
वो जिसने मेरे चेहरे पे सियाही
पोतना चाहा...
ये भी हैं जो मिरे पांवों पे
बांधा करते थे बेढ़ियां
इक दिन अचानक
जागते ही तोड़ आया हूं..!!
ये तन्हाई मुझे उस  भीड़ के पास लाती है.. !!
जिसे मैं छोड़ आया हूं ...!!
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अचानक एक दिन तुम सबसे टूटा
दूर जा छिटका...
तुम हैरत में हो ? क्या वज़ह थी
मेरे जाने की..?
तुम जो रास्ता बतला रहे हो
लौट आने की...!!
अरे पागल हो तुम .. ज़रा सोचो
कभी बहता हुआ दरिया
सुनेगा लौट आने की ?
मेरे साहिल पे आके अब सुनों
अनुगूंज तुम मेरी
तुम्हारा शुक्रिया कि
टूटके तुम से
यकीं मानो
बहुत कुछ मीत अपने जोड़ पाया हूं !!
**********
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
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