ये नज़्म कुछ खास दोस्तों को समर्पित है 
ये तन्हाई मुझे उस  भीड़ तक लाती है..
!!
जिसे मैं छोड़ आया हूं ...
कोसों दूर अय.. लोगो 
कि जिसमें तुम हो, तुम हो 
और तुम भी तो हो प्यारे..
वो जिसने मेरे चेहरे पे सियाही 
पोतना चाहा...
ये भी हैं जो मिरे पांवों पे 
बांधा करते थे बेढ़ियां 
इक दिन अचानक 
जागते ही तोड़ आया हूं..!! 
ये तन्हाई मुझे उस  भीड़ के पास लाती
है.. !!
जिसे मैं छोड़ आया हूं ...!!
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अचानक एक दिन तुम सबसे टूटा 
दूर जा छिटका... 
तुम हैरत में हो ? क्या वज़ह थी 
मेरे जाने की..?
तुम जो रास्ता बतला रहे हो 
लौट आने की...!!
अरे पागल हो तुम .. ज़रा सोचो 
कभी बहता हुआ दरिया
सुनेगा लौट आने की ?
मेरे साहिल पे आके अब सुनों
अनुगूंज तुम मेरी 
तुम्हारा शुक्रिया कि
टूटके तुम से 
यकीं मानो 
बहुत कुछ मीत अपने जोड़ पाया हूं !!
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गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”
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