3.8.11

सुन प्रिय मोरी चाहत उसपे.. जो न स्वांग रचाए





मन  मधुवन अरु देह राधिका   हिवड़ा ताल सजाए ! 
कैसे रोकूं ख़ुद को कान्हा,  सावन   मन भरमाए  !!
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मैं बिरहन बिरहा की मारी, अश्रु झरें ज्यों चिंगारी
बेसुध हूं मैं तन अरु  मन से,  चीन्हो मोहे  श्रृंगारी
सावन बीतो जाए..
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नातों के बन छोड़ के मोहे, राधा संग तुम रास रचाते
मंदिर मंदिर नाचूं गाऊं,  प्रिय तुम मोहे चीन्ह न पाते
जोबन बीतो जाए..
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करुण पुकार सुनी कान्हा ने, आए अरु मुस्काए
सुन प्रिय मोरी चाहत उसपे.. जो न स्वांग रचाए
बिन चाहत के आए...

2.8.11

इस लोगो के बारे में आप क्या जानते हैं

हिंट :- यह लोगो उस बात का बढ़ावा देता है जिसकी वज़ह से भारत में शिशु और बाल मृत्यु दर पर नियंत्रण रखा जा सकता है. आप क्या इस बारे में जानकारी जुटा कर  अजन्में बच्चों  की मदद करना चाहेंगे..
सबसे पहले सही जवाब देने वाले तीन विजेता हक़दार होगें सम्मान पत्र के जो जारी होगा महिला बाल विकास जबलपुर के संयुक्त-संचालक की ओर से

31.7.11

बिना रीढ़ वाले जन्तु

लगातार होती 
बारिश
भिगो देती है 
उन घरों को जमीन के भीतर 
बने होते हैं.
निकल आते है
उन से 
बिना रीढ़ वाले 
जन्तु 
सरे राह 
डस लेते हैं 
तभी उनको 
पूजने का त्यौहार आता है
अब तो 
जी हां
रोज़ पूजता हूं 
शायद बारिश 
बंद नही होती 
रात-दिन आज़कल ..!!

29.7.11

हर दिल अज़ीज़ समीरलाल को बधाईयां

"*****"    जबलपुर की सड़कों पर लम्ब्रैटा पर चलने वाला एक गोलमटोल  फ़ुर्तीला व्यक्ति अचानक गुम हो जाता है..सोचा कि मित्रों की चौकियों पर उसकी रपट लिखा दूं. लिखवाई भी तब किसी ने बताया .."अच्छा वो, हां फ़ारेन निकल गया "
           भाग्यवान लोग फ़ारेन जाते थे तब, हवाई जहाज़ में उड़कर विदेश जाना एक बड़ी बात होती थी. उससे भी बड़ी बात भारत में ही नौकरी लगना रात दिन एक करके हम भी नौकरी शुदा हो गये.शहर से बाहर हुए हम सच  भूल चुके थे कई लोगों को .भुलावे वाली उस सूची में ये गोल मटोल टाइप के महाशय भी शुमार हैं.न तो नाम याद रहा न पता बस इतना याद रहा कि एक अफ़सर का लड़का जो गोल मटोल शांत टाईप का आता था मित्र मंडलीयों में वो बाहर है. 
   जबलपुर के  सदर काफ़ी हाउस,सिटी काफ़ी हाउस,अन्ना वाला सदर का काफ़ी हाउस,   में पाई जाने वाली इस शख्शियत से मुलाक़ात कराने की ज़िम्मेदारी जबलपुरिया दोस्तों के सर रही है 87 से 89 के बीच किंतु 2007  में तो कमाल हो गया नेट से जुड़ा ब्लागिंग के साथ मेरा नाता कायम हुआ कि भाई से मुलाक़ात एक टिप्पणी ने कराई जो उडनतश्तरी की जानिब से थी. विदेश में बसी यह तश्तरी आज भी जबलपुरिया यादों से सजी हुई है.कुल मिला कर एक मधुर सुलझा दोस्त जो हरदिल अज़ीज़ है वोइच्च तो है समीरलाल ... जो आज़ अपना जन्म दिवस मना रहे हैं.    
अर्चना चावजी के साथ सुनिये उड़न तश्तरी वाले समीर लाल  की आवाज़

26.7.11

सन्नाटा...ख़ामोशी के संग

सन्नाटा बैठा हुआ .लिये..ख़ामोशी के संग .
तय मानो नज़दीक है.. सोच सोच में जंग
सोच सोच हो जंग, तभी सूरत बदलेगी
गुमसुम आंखों की, बाहें युद्ध की ख़ातिर मचलेगीं
कहें मुकुल कवि, युद्ध सदा बरकाओ
कानन देखी नाय, आंख से सब पढ़ आओ..!!

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ऊसर बोई आस्था,  हरियाए हर बाग,
स्वेद बूंद से जागते-अपने अपने भाग.
अपने-अपने भाग जगा के सब केऊ जागौ.
मीत अकारथ इतै उतै नै भागो.
कहैं मुकुल कविराय छोड़ दो आपा धापी
एक साध लौ आप सधैगी दुनियां बाक़ी.. 

21.7.11

सुनो छोटी सी गुड़िया की कहानी--

 आज पल्लवी का जन्मदिन है ..कौन पल्लवी ?? नहीं जानते ???



देखिये कहीं ये तो नहीं "......" या ये है पल्लवी 

 स्नेहिल मुस्कान बिखेरती पल्लवी सच बहुत गम्भीर भी है. उत्साह से भरी पल्लवी बिटिया से मिल कर ही जान पाएंगे

17.7.11

हमारी खामोशी के पीछे पनपता क्रांति का वातावरण..!!


भारत में आतंकवादियों को सज़ा के लिये लम्बी प्रकिया से एक ओर समूचा  हिंदुस्तान हताश  है तो दूसरी ओर  आतंकवाद को शह मिल रही हैतो इस मसले को गर्माए रखने के लिये काफ़ी है.यह सवाल भी भारतीय व्यवस्था  के सामने है कि क्या आतंकवादीयों के लिये ऐसे क़ानून नहीं बनाए जा सकते जिससे उनका तुरंत सफ़ाया हो सके.

   यदी  आम आदमीयों से ज़्यादा ज़रूरी है कसाब का  जीना तो होने दीजिये धमाके हमारी कीमत की क्या है. फ़िर दाग दीजिये एक जुमला "हम आतंकियों को नहीं छोड़ेंगे " हम अपनी व्यवस्था के दयालू होने की क़ीमत भी चुका देंगे...आपके इस  भारतीय-फ़लसफ़े को नुकसान न पहुंचाएंगे.  क्योंकि आप को हमारी बड़ी चिंता है जिसका उदाहरण ये भी है. हम तो वोट हैं जो एक टुकड़ा है कागज़ का, हम तो बाबू,मास्टर,स्कूली बच्चे, मिस्त्री, मुंशी, वगैरा वगैरा, हमारी कीमत ही क्या है.. हो जाने दो हमारी देह को चीथड़ों में तक़सीम किसी  हम जो रोटी के लिये पसीने को बहा देना अपना धर्म मानते हैं हम जो तुम सब की नीयत को पहचानते हैं तुम्हारे लिये हमसे कीमती जान उस आतंकी की है तो ठीक है बचा लो उसे पर याद रखना ये सौदा मंहगा साबित होगा   यदी एक बार हमें मौका   मिला तो सच बता देंगे सच-झूठ, न्याय-अन्याय का अर्थ.  देखो हमारे तेवर अब असाधारण हैं. हमारी खामोशी के पीछे   पनपता क्रांति का वातावरण है.. उसे देख  शायद  होश में आ जाओगे.. मुझे फ़िर भी यक़ीन नहीं कि तुम मुझे आज़ाद भारत में आज़ादी का गीत सुनाओगे.

  

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