3.8.11

सुन प्रिय मोरी चाहत उसपे.. जो न स्वांग रचाए





मन  मधुवन अरु देह राधिका   हिवड़ा ताल सजाए ! 
कैसे रोकूं ख़ुद को कान्हा,  सावन   मन भरमाए  !!
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मैं बिरहन बिरहा की मारी, अश्रु झरें ज्यों चिंगारी
बेसुध हूं मैं तन अरु  मन से,  चीन्हो मोहे  श्रृंगारी
सावन बीतो जाए..
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नातों के बन छोड़ के मोहे, राधा संग तुम रास रचाते
मंदिर मंदिर नाचूं गाऊं,  प्रिय तुम मोहे चीन्ह न पाते
जोबन बीतो जाए..
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करुण पुकार सुनी कान्हा ने, आए अरु मुस्काए
सुन प्रिय मोरी चाहत उसपे.. जो न स्वांग रचाए
बिन चाहत के आए...

3 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

नातों के बन छोड़ के मोहे, राधा संग तुम रास रचाते
मंदिर मंदिर नाचूं गाऊं, प्रिय तुम मोहे चीन्ह न पाते
जोबन बीतो जाए..बहुत ही बढ़िया

S.N SHUKLA ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति , सुन्दर भावाभिव्यक्ति

बसंत मिश्रा ने कहा…

adbhut srangar ka mishran

basant mishra

Wow.....New

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