28.6.11

ज़रा रूमानी हो जाएं

आज़ देर तक खूब गीत सुने जो सुने वो शायद आपको भी पसंद आएं.. तलाशिये इन लिंक्स में
सुहासी धामी  
साभार : न्यू आब्ज़र्वर पोस्ट 
आप की आंखों में महके हुये राज़  देख हमने इस मोड़ से जाने का मन बना लिया. जहां से जातें हैं सुस्त क़दम रस्ते  तेज़ कदम राहें  वहीं उस मोड़ पर तुमसे मिलना और भिगो देना पूरे बदन को रिमझिम सावनी फ़ुहारों का.  और फ़िर न जाने क्यों ... न क्यों होता है ज़िंदगी के साथ अचानक तुम्हारे जाने के बाद तुमको तलाशता है उसी मोड़ पर.  और फ़िर मन को धीरज देता रजनीगंधा के फ़ूलों का वो गुच्छा जो रात तुमने महकाने लाए थे मेरे सपनों में.जहां मुझसे  तुम कह रहे होते हो मैं अनजानी आस हूं जिसके पीछे तुम  गोया पागल हो ? और फ़िर अचानक तुम्हारी सुर में सुर मिलने की चाहत का सरे आम होना...और तुमसे मिली नज़र की याद के असर को न भुला पाना फ़िर खुद से  मेरा शर्मशार होके सिमट जाना खुद में... फ़िर तन्हाई में दिल से बातें करना..खामोशी में भी संगीत एहसास करना.शायद तुमको इस बात का एहसास तो होगा ही  कि बातों ही बातों में प्यार ... तुमने ही तो कहा था न ..और एक दिन हां एक  दिन हम तुमने कहा था न बड़े अच्छे लगते हैं..? मैने पूछा था- क्या..? तब से मैं बस उस प्रीतदीप की पहली किरन से सवाल करती हूं अक्सर ..! 

26.6.11

मुझे मत मारो...........लगती है...........दिल पर...

 एक समयोचित आलेख डॉ.मोनिका जी के ब्लॉग --परवाज़ ....शब्दों के पंख  से प्रस्तुत है.

वीरांगनाएं हीं तो हैं सशक्ति करण का सर्वोच्च उदाहरण

एक  बार  फिर  मिला  मौका मुझे माता गुज़री कालेज में बेटियों से सशक्तिकरण के परिपेक्ष्य में संवाद करने का.अधिकांश चेहरे अवाक से देख रहे थे तब जब मैंने बताया कि भारतीय नारियां इतिहास में कभी  भी  कमजोर न थीं वीरांगनाएं हीं तो  हैं सशक्ति करण का सर्वोच्च उदाहरण हमारे पास आत्म चिंतन  के लिये एक समृद्ध इतिहास तो है. झांसी की रानी लक्ष्मी बाई,जबलपुर की रानी दुर्गावति, और डिण्डौरी में शहीद हुई रानी अवंती बाई ने मुगलों एवम अंग्रेजों को छटी का दूध याद दिलाया. क्यों तलाशें हम पश्चिम से सशक्ति करण के तरीके... जो जानना है वो हमारे इतिहास में है तो. 
             

25.6.11

अखिल-भारतीय मुशायरा एवम कवि सम्मेलन


देर रात तक चले मुशायरे एवम कवि सम्मेलन के बाद मे मुझे काफ़ी देर बाद रचना पाठ के लिए बुलाया. यद्यपि शुरुआत में नव रचित सरस्वती वंदना "शारदे मां शारदे मन को धवल विस्तार दे" के पाठ का अवसर मुझे दिया. फ़िर मेरा गीत तुम चुप क्यों हो कारन क्या है हुआ. बहुत पसंद आया मित्रों श्रोताओं को यह गीत..!!

23.6.11

वे आँखें------मेरे गीत...अर्चना चावजी

एक रचना सतीश सक्सेना जी के ब्लॉग से 

यह दर्द उठा क्यों दिल से है 
यह याद कहाँ की आई है  !
लगता है कोई चुपके से 
दस्तक दे रहा चेतना की 

वे भूले दिन बिसरी यादें 
क्यों मुझे चुभें शूलों जैसी 
लगता कोई अपराध मुझे 
है, याद दिलाये करमों की 
उनके ब्लाग मेरे गीत पर  पोस्ट पढ़ने के लिये  "यहां " क्लिक कीजिये 




सतीष सक्सेना 


21.6.11

सावधान....चमचों के साथ छुरी-कांटे भी होते हैं...!!


चमचों के बिना जीना-मरना तक दूभर है. खास कर रसूखदारों-संभ्रांतों के लिये सबसे ज़रूरी  सामान बन गया है चम्मच. उसके बिना कुछ भी संभव नहीं चम्मच उसकी पर्सनालिटी में इस तरहा चस्पा होता है जैसे कि सुहागन के साथ बिंदिया, पायल,कंगन आदि आदि. बिना उसके रसूखदार या संभ्रांत टस से मस नहीं होता. 
       एक दौर था जब चिलम पीते थे लोग तब हाथों से आहार-ग्रहण किया जाता था तब आला-हज़ूर लोग चिलमची पाला करते थे. और ज्यों ही खान-पान का तरीक़ा बदला तो साहब चिलमचियों को बेरोज़गार कर उनकी जगह चम्मचों ने ले ली . लोग-बाग अपनी  आर्थिक क्षमतानुसार चम्मच का प्रयोग करने लगे. प्लैटिनम,सोने,चांदी,तांबा,पीतल,स्टेनलेस, वगैरा-वगैरा... इन धातुओं से इतर प्लास्टिक महाराज भी चम्मच के रूप में कूद पड़े मैदाने-डायनिंग टेबुल पे. अपने अपने हज़ूरों के सेवार्थ. अगर आप कुछ हैं मसलन नेता, अफ़सर, बिज़नेसमेन वगैरा तो आप अपने इर्द गिर्द ऐसे ही विभिन्न धातुओं के चम्मच देख पाएंगे. इनमें आपको बहुतेरे चम्मच बहुत पसंद आएंगे. कुछ का प्रयोग आप कभी-कभार ही करते होंगे. 
      चम्मच का एक सबसे महत्वपूर्ण और काबिले तारीफ़ गुण भी होता है कि वो सट्ट से गहराई तक चला जाता है. यानी आपके कटोरे के बारे में और आपके मुंह  के बारे में, आपके हाथों के बारे में 
                                              अब आप डायनिंग टेबल पर सजे चम्मच देखिये और याद कीजिये उस दौर को जब हमारे खाने-खिलाने के तरीके़ में "छुरी-कांटे" का कोई वज़ूद न था.केवल चम्मच से ही काम चलाया जाता था... हज़ूर आप बे-खौफ़ थे अभी भी हैं बे-खौफ़ तो आज़ आपको खबरदार किये देता हूं... अब हर जगह एक से बढ़कर एक "चम्मच" मौज़ूद मिलेंगे... पर छुरी-कांटों के साथ अब तय आपको करना है कि "चम्मच-बिरादरी" का उपयोग आप कितना और कैसे करना है. जैसे भी करें पर "खाते-वक़्त" इस बात का ध्यान भी रखें कि आप सिर्फ़ चम्मच से नहीं खाएंगे. उसके साथ छुरी-कांटों का प्रयोग भी करेंगे. और आप तो जानते हैं कि छुरी-कांटा तो छुरी-कांटा है .......
इसे भी कभी देख लीजिये जी जब फ़्री हों 

हमें हर मामले में उंगली करनें में महारत हासिल है .



20.6.11

41 बरस के बालक का बर्थ डे

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आज़ एक  41 बरस के बालक का जनम दिन मनता देख मन में ईर्ष्या कुंठा एक साथ समंदर में उभरे ज्वार की तरह उभर जातीं हैं.कुछ भी गुड फ़ील नईं होता...अब ऐसी चाइल्ड केयर भी किस काम की कि इकतालीस बरस तक की जाये अरे हम लोग तो 25 के हुए इस बच्चे के पापा के जमाने के पहले की बात है .. घर में जो भी आता पूछता :-"क्या कर रये हो , बस कविता से काम न चलेगा कुछ करो भई "
अपुन भी ऐसे रिश्तेदारों की एक कान से सुनसुना दूसरे से निकाल देते थे. किसी  के घर जाओ तो भी यही सवाल -"भाई कुछ करने लगे कि नहीं" उत्तर हो यदि-”ट्यूशने कर रहा हूं..! तो प्रतिप्रश्न ये होता यार कुछ नौकरी वौकरी के लिये ट्राय करो" अब हम क्या बताएं चुप्पी साथ लेते थे. जैसे नौकरी पेड़ पे लगती हो ऊंची एड़ी की और लपक ली. फ़लां का सलेक्शन इधर ढिकां का उधर हुआ तो जानो एक लम्बी तक़रीर कोई न कोई सुना ही देता था. पंद्रह सौ की ट्यूशन से मुझे संतोष मिलता था पर दुनिया को नहीं. छब्बीस बरस का होते ही नौकरी मिली तो सबके मुंह बंद. पर तारीफ़ कम लोगों ने ही की थी. वो भी मज़बूरी में की गई साफ़ झलकती थी.दिन भर बच्चों को पढ़ाना थक के देर रात तक काम्पिटीशन एक्ज़ाम की तैयारी करना हमारे लिये आम बात थी. ऐसा सभी करते थे.
                      उन दिनों एक  ड्रेस मुझे बहुत लुभाती थी, परंतु जब खरीदने गया तो पाया आठ सौ की है..उल्टे पांव वापस आने लगा तो दूकानदार बोला -”अरे,पैसे दे देना ?” पर इस फ़िज़ूल खर्ची की अपेक्षा अन्य मदों के लिये वो पैसे सम्हालना ज़रूरी था. सो मन में कसक रह गई .कई बार तो किताबों के लिये जुगाड़ करना मेरे लिये सरदर्द हो जाता था...सारे मध्यम वर्गी युवा उन दिनों इसी तरह के संघर्ष भरा जीवन बिताते थे . आज़ भी कमो-बेश यही स्थिति है. तीस बरस ही तो बीते हैं. ये बाबा दस बरस का रहा होगा. पर इसके बच्चे के भाग्य में सुनिश्चितता लिखी थी. आज़ भी जो जनम दिन की खुशियां मना रहा है. एक हम हैं कि इकतालीसवें जन्म दिन पर अफ़सर से छुट्टी मांगने पर झिड़के गये थे .
                    तुम्हारे हाथ में देश की रास  सौंपने की जुगत है मेरे दिमाग में बच्चों को स्कूल कालेज  भेजने के लिये भारी भरकम  फ़ीस के जुगाड़ की चिंता. फ़िर भी तुमको जन्म-दिन मुबारक़ बोल ही देता हूं         
    

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