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सोमवार, जून 20, 2011

41 बरस के बालक का बर्थ डे

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आज़ एक  41 बरस के बालक का जनम दिन मनता देख मन में ईर्ष्या कुंठा एक साथ समंदर में उभरे ज्वार की तरह उभर जातीं हैं.कुछ भी गुड फ़ील नईं होता...अब ऐसी चाइल्ड केयर भी किस काम की कि इकतालीस बरस तक की जाये अरे हम लोग तो 25 के हुए इस बच्चे के पापा के जमाने के पहले की बात है .. घर में जो भी आता पूछता :-"क्या कर रये हो , बस कविता से काम न चलेगा कुछ करो भई "
अपुन भी ऐसे रिश्तेदारों की एक कान से सुनसुना दूसरे से निकाल देते थे. किसी  के घर जाओ तो भी यही सवाल -"भाई कुछ करने लगे कि नहीं" उत्तर हो यदि-”ट्यूशने कर रहा हूं..! तो प्रतिप्रश्न ये होता यार कुछ नौकरी वौकरी के लिये ट्राय करो" अब हम क्या बताएं चुप्पी साथ लेते थे. जैसे नौकरी पेड़ पे लगती हो ऊंची एड़ी की और लपक ली. फ़लां का सलेक्शन इधर ढिकां का उधर हुआ तो जानो एक लम्बी तक़रीर कोई न कोई सुना ही देता था. पंद्रह सौ की ट्यूशन से मुझे संतोष मिलता था पर दुनिया को नहीं. छब्बीस बरस का होते ही नौकरी मिली तो सबके मुंह बंद. पर तारीफ़ कम लोगों ने ही की थी. वो भी मज़बूरी में की गई साफ़ झलकती थी.दिन भर बच्चों को पढ़ाना थक के देर रात तक काम्पिटीशन एक्ज़ाम की तैयारी करना हमारे लिये आम बात थी. ऐसा सभी करते थे.
                      उन दिनों एक  ड्रेस मुझे बहुत लुभाती थी, परंतु जब खरीदने गया तो पाया आठ सौ की है..उल्टे पांव वापस आने लगा तो दूकानदार बोला -”अरे,पैसे दे देना ?” पर इस फ़िज़ूल खर्ची की अपेक्षा अन्य मदों के लिये वो पैसे सम्हालना ज़रूरी था. सो मन में कसक रह गई .कई बार तो किताबों के लिये जुगाड़ करना मेरे लिये सरदर्द हो जाता था...सारे मध्यम वर्गी युवा उन दिनों इसी तरह के संघर्ष भरा जीवन बिताते थे . आज़ भी कमो-बेश यही स्थिति है. तीस बरस ही तो बीते हैं. ये बाबा दस बरस का रहा होगा. पर इसके बच्चे के भाग्य में सुनिश्चितता लिखी थी. आज़ भी जो जनम दिन की खुशियां मना रहा है. एक हम हैं कि इकतालीसवें जन्म दिन पर अफ़सर से छुट्टी मांगने पर झिड़के गये थे .
                    तुम्हारे हाथ में देश की रास  सौंपने की जुगत है मेरे दिमाग में बच्चों को स्कूल कालेज  भेजने के लिये भारी भरकम  फ़ीस के जुगाड़ की चिंता. फ़िर भी तुमको जन्म-दिन मुबारक़ बोल ही देता हूं         
    

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