4.4.11

वेब रिपोर्टिंग एवं ई-मेल के कड़वे अनुभव


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अपनी माटी एक अच्छा पठन योग्य वेब पोर्टल है . 


आजकल कुछ ऐसे रिर्पोटर्स देखने को मिलेंगे जो  चाहते हुए भीं आप के मेल पते पर ऊल-जुलूल किस्म की खबरें भेजते हैं। शायद ऐसाकरना उनकी आदत है जो एक ‘ड्रग एटिक्ट’ की तरह कई मेल आई0डीपर एक साथ अपने वाहियात ‘आर्टिकल्स’ भेजते हैं। हाई प्रोफाइलकहलाने के चक्कर में ब्लाग/फेसबुक आदि इत्यादि वेब स्पेस पर अपनी सिरदर्द जैसी बकवासों को लिखने/चैटिंग करने वालों से एक तरह सेएलर्जी’ हो गई है। इन्टरनेट की सेवा प्रदान करने वालों ने थोड़े से पैसों में असीमित डाउन/अपलोडिंग की सुविधा दे रखा है सो वेब का बेजाइस्तेमाल करने वाले अराजक तत्वों की भरमार हो गई है। इन लोगों ने इन्टरनेट को मजाक सा बना लिया है।

कुछेक कथित लेखकों ने हमें भीं अपने लेख/न्यूज आदि मेल करना शुरू कर दिया। खीझ होने लगी थीयह कहिए कि ऐसे लोगों से एलर्जीहोने लगी। सैकड़ों मेल आई.डीपर भेजे गए इन तत्वों के ‘आलेख’  तो सारगर्भित होते हैंऔर  ही प्रकाशन योग्य। हमने अपने सहकर्मीसे कहा कि रिप्लाई आल करके ऐसे लोगों को ताकीद कर दो कि आइन्दा बेवजह मेल बाक्स में ‘वाहियात’ आलेख  भेजें। कोई दिल्ली के हैं,उन्होंने काल करके कहा कि वह ऐसा इसलिए करके हैं ताकि गरीब लोग जो वेब साइट्स/न्यूज पोर्टल की तरह संचालित कर रहे हैंउन्हेंमुफ्त में न्यूज (खबरेंमिल जाएँ। उनकी बातें सहकर्मी ने सुनी और कुछ बताया। हँसी आई फिर मानव होने की वजह से दुर्गुण रूपी गुस्साभी आया। कहा वह बेवकूफ है। पहले तो इसे छपास रोग थाजब छपने लगा तब आल पर मेल करने लगा। यह सोचकर कि वह वेब पोर्टलचलाने वाले आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को फ्री में खबरें दे रहा है। इसी तरह कईयों के मेल्स आते रहते हैं।

मानव हूँ गुस्सा तो आएगा ही। सहकर्मी से कहा कि लिख दो कि फार  गॉड सेक अब इस तरह के मेल सेन्डिंग बन्द करें। सहकर्मी नहींसमझ पाये उन्होंने ‘रिप्लाई आल’ कर दिया। जाहिर सी बात है कि जिनसे हमारा किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नहीं है वे गुस्सा तो करेंगे ही।एक छोटी सी त्रुटि ने कई लोगों के ‘ईगो को हर्ट’ किया। उनके रिटर्न मेल्स आएजिनमें सभीं ने अपने-अपने तरीके से मुझे भला-बुरा कहाथा। मैने महसूस किया कि पत्रकारिता से सम्बद्ध लोगों में स्वाभिमान के स्थान पर दर्प यानि घमण्ड कुछ ज्यादा हैवह भी ऐसे लोगजिन्होने दो हजारपाँच हजार खर्च करके अपनी वेब साइट्स बना लिया है उनके तो रूतबे का कोई सानी नहीं।

बहरहाल मैं क्या गुस्सा करूँ। मैं तो बस इतना ही कहुँगा कि कभीं-कभी ऐसे लोगों से पाला पड़ जाता है जिनकी वजह से हमारी रिप्लाई सेएक से एक योद्धा तलवारें भाँजने लगते हैंजिन्हें युद्ध के मैदान में जंग लड़ने का तरीका ही नहीं मालूम।  इस इलेक्ट्रॉनिक युग में अमेरिकीराष्ट्रपति को प्रेषित मेल गलती से किसी अन्य देश के राष्ट्राध्यक्ष को मिल जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। आपा  खोया करें मैंने भी प्रिण्टमीडिया में अब तक अपनी सेवाएँ देते हुए 37 वर्ष पूरे कर लिए हैं। तब  तो इसकी पढ़ाई थीऔर  ही मास कम्युनिकेशन का प्रशिक्षण जोपढ़ना-लिखना जानता था वहीं सिकन्दर होता था। आप वेबसाइट संचालित करते हैंयह आप के लिए गौरव की बात हो सकती है। हम भीअपना अखबार निकालते हैंऔर वेब पोर्टल ऑपरेट करते हैंशौकिया। रही बात चैटिंग या फिर नए तकनीक से संवाद करने की तो वह मुझेनहीं मालूम।

इन्टरनेट ऑपरेट करने के लिए सहयोगी की मदद लेता हूँ। सहयोगी से चूक हो जाए तो जाहिर सी बात है कि वह गलती मेरी ही मानीजाएगी। लेकिन आप तूफान सिंह हों या चक्रवात मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं भी ‘बैतालके नाम से अपनी ‘युवावस्था’ मे चर्चित पत्रकारहुआ करता थालेकिन तहजीब और एखलाक को ताक पर नहीं रखा लेागों के बीच सम्मानित ढंग से स्थान पाता था। अब भीं पाता हूँ। आजतो मेट्रोसिटी में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले भी सपना ‘मक्का’ का देखते हैं। हमारे यहाँ कहावत है कि ‘‘रहैं भरसाएँ में और देखै सपनामक्का कै’’ मैं आप को नहीं कह राह हूँ। अब मैं इस कहावत से भी इनकार नहीं कर सकता कि ‘चोर की दाढ़ी में तिनका यदि आप की मेलआई0डीपर रिप्लाई आल के क्रम में कुछ मेरी तरफ से भेजा गया हो जिससे आप का ‘ईगो हर्ट’ हुआ हो तो उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँक्योंकि मैं ‘अकारण’ किसी शरीफ को दिल नहीं दुखाना चाहता। आप से भी अपेक्षा करता हूँ कि जो लोग अपने मेल्स सेण्ड आल करकेबकवास’ भेजते हैं उन्हें नसीहत जरूर दें। अनजाने में हुई गलती के लिए एक बार फिर क्षमा चाहूँगा। फिलवक्त बस इतना ही। 

भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
अम्बेडकरनगर

सम्पर्क नम्बर- 09454908400
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संजीव 'सलिल' की एक रचना: बिन तुम्हारे...


बिन तुम्हारे सूर्य उगता, पर नहीं होता सवेरा.
चहचहाते पखेरू पर डालता कोई न डेरा.


उषा की अरुणाई मोहे, द्वार पर कुंडी खटकती.

भरम मन का जानकर भी, दृष्टि राहों पर अटकती.. 



अनमने मन चाय की ले चाह जगकर नहीं जगना.

दूध का गंजी में फटना या उफन गिरना-बिखरना..



साथियों से बिना कारण उलझना, कुछ भूल जाना. 

अकेले में गीत कोई पुराना फिर गुनगुनाना..



साँझ बोझिल पाँव, तन का श्रांत, मन का क्लांत होना. 

याद के बागों में कुछ कलमें लगाना, बीज बोना..



विगत पल्लव के तले, इस आज को फिर-फिर भुलाना.

कान बजना, कभी खुद पर खुद लुभाना-मुस्कुराना..



बिन तुम्हारे निशा का लगता अँधेरा क्यों घनेरा? 

बिन तुम्हारे सूर्य उगता, पर नहीं होता सवेरा.
Acharya Sanjiv Salil

के  ब्लाग ”दिव्य नर्मदा " से 

2.4.11

चैतन्य की शिकायत--- है कोई हल किसी के पास???



 आज मिलिये चैतन्य से...सुनिए चैतन्य की शिकायत...निकालिए कोई हल....



ये रही डा० मोनिका शर्मा की पोस्ट
डा०मोनिका शर्मा
कहाँ मैं खेलूं चहकूं गाऊं
आप बङों को क्या समझाऊं
बोलूं तो कहते चुप रहो
चुप हूं तो कहते कुछ कहो
कोई राह सुझाओ तो.... मैं क्या करूं, मैं क्या करूं.........?(पूरा पढ़िये)

___________________
परवाज़.....शब्दो... के पंख

1.4.11

काश..! बेटी तुम ये जान लेती,

"कल रात भर से बेचैनी पीढा,घुटन,वेदना, तनाव का दौर जारी है...!
निकट रिश्ते की  एक बेटी ने परीक्षा में असफ़लता के बाद दुनियां से विदा ले ली
आप के सामने एक सवाल :-"क्यों, पराजय से इतना हताश हो जाता है मन..? "
     सोचता हूं  शायद, हार को समझने के लिये यानी कल की जीत के लिये  हारने के अनुभवों की ज़रूरत होती है सच है ...अपने बच्चों को हार का एहसास दिलाता हूं.. हर पराजय को जीत में बदलने का नुस्खा बताता हूं..!
                                  तभी तो जीत का आलेख लिखे जाते हैं...!! सच शब्द नहीं है "हार"... अगली जीत का सोपान होती है हार.  काश..! बेटी तुम ये जान लेती... बिलखते परिवार की हूक को पहचान लेतीं.... ... एक पल में तुम इस तरह न बलिदान देंतीं....!
जिस,सच से जूझ रहे हैं हम सब कि तुम अब नहीं हो हमारे साथ...! पर मन मानने को तैयार नहीं... काल चक्र के इस क्षण को क्या हुआ
स्तब्ध से हम किससे ,कैसे कहें बेटी ... हम तुमको  खो चुके हैं 
"ॐ शांति-शांति-शांति"

31.3.11

विजयी था विजय है मेरी, करते रहो लाख मनचीते !!


मैं तो मर कर ही जीतूंगा जीतो तुम तो जीते जीते !
**************
कितनी रातें और जगूंगा कितने दिन रातों से होंगे
कितने शब्द चुभेंगें मुझको, मरहम बस बातों के होंगे
बार बार चीरी है छाती, थकन हुई अब सीते सीते !!
**************
अपना रथ सरपट दौड़ाने तुमने मेरा पथ छीना है.
      अपना दामन ज़रा निहारो,कितना गंदला अरु झीना है
  चिकने-चुपड़े षड़यंत्रों में- घिन आती अब जीते-जीते !!
**************
    अंतस में खोजो अरु रोको, अपनी अपनी दुश्चालों को
चिंतन मंजूषाएं खोलो – फ़ैंको लगे हुए तालों को-
      मेरा नीड़ गिराने वालो, कलश हो तुम चिंतन के रीते !!
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सरितायें बांधी हैं किसने, किसने सागर को नापा है
लक्ष्य भेदना आता मुझको,शायद तथ्य नहीं भांपा है
    विजयी था विजय है मेरी, करते रहो लाख मनचीते !!
     ****************

ज्योतिषाचार्य हैरान किरकिटिया दीवाली देख कर

प्रसारण देखिये न सुनिये Bambuser पर 
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  आज़ यानी तीस मार्च दो हज़ार ग्यारह को   क्रिकेट खेल शुरु हुआ उसके पहले से खेल रहा था पूरा भारत   जी नहीं शायद पूरे एक हफ़्ते से खेल रहा था भारत. जी असली भारत जो मुनाफ़ के गांव का भारत है. असली भारत जो हैदराबाद,कानपुर,जबलपुर,इंदौर,जयपुर के गांवों का भारत है जी रहमान के साथ  जो "जय हो के नारे लगाता भारत है " शहरों की तंग गलियों-कुलियों  में बसता असली भारत आज़ झूम उठा आतिश बाज़ियां बम्ब-फ़टाखे, बधाईयां यानी पूरा देश जीत के जश्न में डूबता चला जा रहा था. आख़िरी के पांच ओवर्स में तो गोया "भारत" के हर चेहरे पर चमक दिख रही थी. मेरे ज्योतिषाचार्य मित्र माधव जी हैरान... हों भी क्यों न बड़ी दीवाली फ़िए छोटी दीवाली तक़ तो लिखी थी पंचांग में फ़िर मार्च महीने की  किरकिटिया दीवाली अब आगे इससे बड़ी दीवाली होगी ये सब तो लिख ही न पाये थे पंचांग वाले .
हमारे पी०एम० साब बोले:- गिलानी साहब , मैडम चाहतीं हैं आप भी आयें मैच देखने..!
गिलानी:-"जी इसी बहाने हमारे गिले शिक़वे दूर हो जाएंगे"
जी मन मोहन बोले पर मन ही मन बोल रहे थे :-"ज़नाब, आप अपनी हार पे तालिया बजाओगे ये तय है"
       और हुआ भी यही . जब गिलानी साब ताली बज़ा रए थे तब मन मोहन सिंग जी मुस्कुरा रहे थे.
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हमारे-प्रदेश में सरकार ने छुट्टी कर दी दफ़्तर के बाबू-अफ़सर सब कानूनी तौर पर घर जा सके मैच देखने तो हम भी आ गये थे ,सोचा नेट खोल के गूगल बज़ खोल ही रहा था कि मनीष सेठ का फ़ोन आया :"बज़ छोड़ के किधर हो बाबा चलो बज पे" भाई समीर की बज़ पे लुटे थे सब भक्ति भाव से
खूब भजन हुये
सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम
साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम
हरे कृष्ण हरे कृष्ण हरे कृष्ण हरे हरे ...हरे राम हरे राम हरे राम हरे हरे



Sameer Lal - साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम
और कुछ नमूने ये रहे 

Vivek Rastogi - वाह कार्टून सही कह रहा है, युवी ने बिल्कुल ध्यान दिया, अब कुछ अवार्ड तो दो17:25
Sameer Lal - कैश अवार्ड मिल चुका है...अब श्री फल और सर्टीफिकेट देना बाकी है17:26
Manish Seth - bhajan break mai bhi chalo rakhe17:26
Sameer Lal - सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता राम सीता17:27
Manish Seth - shall bhi odani padegi17:27
Manish Seth - captain bacha17:28
Sameer Lal - शॉल तो पिछले समारोह वाली बची है...उसमें से दे देंगे. बस, गेंदा फूल की माला लेते आना ताजी17:28
Vivek Rastogi - ओह्ह कैश... फ़ोटू तो दिखाओ17:28
Chankya Sharma - @@@@arvind shesh - Buzz - Public
उन्माद का यह उत्सव दरअसल सरकार और सत्ताधारी मीडिया की गहरी साजिश है…

कहां गया विकीलीक्स से पैदा हुआ तूफान…

2-जी, इसरो, राष्ट्रमंडल खेलों के घोटाले… सब इस क्रिकेट नाम की साजिश में घुसा दिए गए। जितने लोग इस तरह के खेल में दीवाने हुए जा रहे हैं, वे सब इस साजिश में जाने-अनजाने भागीदार हैं, उसके जिम्मेदार हैं, इस अपराध में शामिल हैं।
खेल को प्यार का सौदा होना चाहिए, लेकिन इस जहर का क्या करें हम... 
और देखिये कुछ नमूने 

Sameer Lal - सो तो खैर कप भी नहीं है इनके बाबा का...खेलने के लिए दे रहे हैं19:59
Sameer Lal - दिल दिया है, जान भी देंगे..ए सनम तेरे लिए....19:59
Sameer Lal - साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम साईं राम20:00
Manish Seth - ladke jaan laga rahe hai20:00
Girish Billore - हम भी उन पर जान छिड़कते हैंEdit20:02
Manish Seth - jale par namak na chhidko baba20:03 (edited 20:03)
Sameer Lal - एक एक प्लेयर को कितना जोड़ी शर्ट और पैजामा मिलता है खेलने के लिए?? किसी को पता है क्या?20:04
Manish Seth - ek jodi har match mai wahi pahan kar aa jate hai20:07


देखिये बज पे ये थे बी एस पाबला BS Pabl ये भी थे   Chankya SharmaDiwakar Mani दिवाकर मणिVivek Rastogi and अविनाश वाचस्पति and 2 others Manish Seth हम भी तो थे Girish Billore,
टीम भारत के लिए हार्दिक मंगलकामनाएँ!!!!
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आज मुझे भी कुछ कहना है..ब्लाग की स्वामिनी श्रीमति रचना जी का जन्म-दिन है...
अशेष-बधाईयां

  • रंग…….

    ……. मोहन ने अपने पडोसी हामिद पर केशरिया रंग डाला और हामिद ने मोहन पर हरा रंग डाला …
    ये देखकर मोहन की अम्मा ने कहा – अच्छा है इन्होने एक दूसरे के रंग को स्वीकार कर लिया…….
    हामिद की अम्मी बोली – हां! वरना ये दोनो लाल होते और हम काले! …..


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30.3.11

अपनाने में हर्ज क्या है ???











एक पोस्ट केवल राम जी के ब्लॉग "चलते-चलते" से---
 

 केवलराम की यह पोस्ट अर्चना जी ने उम्दा ब्लागपोस्ट की पाडकास्टिंग की गरज़ से पेश की है. केवलराम जी एक उम्दा और भीड़ में अलग दिखाई देने वाले व्यक्तित्व के धनी हैं. उनके दो ब्लाग हैं
चलते -चलते ....! और  "धर्म और दर्शन".. वे हिंदी ब्लागिंग के लिये इतने समर्पित है कि उनने शोध के लिये हिंदी ब्लागिंग को चुना है.... हिंदी संस्कृत अंग्रेजी पर समान अधिकार रखने वाले केवल राम जी को दुलारिये एक मेल कीजिये उत्साह वर्धन कीजिये...ये रहा  उनका मेल-पता  
kewalanjali84@gmail.com
-गिरीश बिल्लोरे
_______________________जन्म दिन (आभार-पाबला जी का )________________

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विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...