27.2.11

सर्वहारा के बारे में सोचने की सनद और मेरा वो दोस्त


साभार: बारिश की खुशबू
                 

जी,सवाल सीधा सपाट उन लोंगों से है जिनके लिये जन-चिंतन वाग्विलास का साधन है. इस विषय को लेकर आप बस एक हुंकार भरिये और भीड़ से अलग थलग दिखिये इससे ज़्यादा इनकी और कोई मंशा नहीं. एक मित्र याद है कमसिनी ही कहूंगा कालेज के दौर की उम्र को जनवाद भाया सो वह मित्र मुझसे मिला. आकर्षित होना लाज़मी था एक आईकान की तलाश जो थी मुझे और उसकी बातों में वक्तव्यों में लय थी, कोई बात किसी दूसरी बात के बीच असंगत न लगती थी. बेहतरीन कविता लिखता था . उस समय वो क्षेत्रीय राजनैतिक दलों की परिस्थितियां देख रहा था. जब  केवल दो पार्टी का बोलबाला था और आपतकाल के बाद सब जुड़े एक हुए थे .भारतीय सत्ता पर काबिज़ हुए थे. जीं हां, तभी की बात कर रहा हूं जब राजनारायण ने गुड़ चना खाने की सलाह दी थी . मेरा वो मित्र उस समय आज़ की स्थितियों का बयान कर रहा था. उसके वक्तव्य आम आदमी से इतना क़रीब होते कि मन कहता बस “इस युवक में ही भारत बसता है.”
        गंजीपुरा के साहू मोहल्ले वाली गली में हम लोग रूपनारायण जी के किराएदार थे. आगे बनी एक बिल्डिंग में मेरा वही मित्र रहता था.जो हमेशा व्यवस्था का विरोध किया करता था. कालेज में चल रहे प्रौढ़ साक्षरता अभियान से प्रेरित हो कर मैं भी मुफ़्त शिक्षा देने –घर पर बोर्ड लगा देख मेरी गली से गुज़रने वाले प्रोफ़ेसर महेश दत्त मिश्र रुके और बस वहीं उनसे भी जुड़ाव हुआ. हरदा टिमरनी के अलावा उनसे पारिवारिक जुड़ाव निकला सो बस अटूट रिश्ता कायम हुआ , प्रौढ़ साक्षरता अभियान से जुड़ाव ने उनका स्नेह पात्र बनाया दूसरी गोर्की की व्याख्या , लेनिन, आदि जो मेरे लिये अनूठी मूर्तियां थीं से जोड़ता रहा था मेरा वो मित्र. हालांकि टालस्टाय को पढ़ चुका था. जो मुफ़्त मे मिलता वो पढ़ ही लेता. बाक़ी प्यास मेरा वो मित्र  पूरी करता. इस बीच सृष्टिधर मुखर्जी दादा के पास भी कई बैठकें हुईं . मेरा च्वाइस सबसे मिलना और खूब  मिलना था साथ ही मिलने वाले के उनके अंतस के वैचारिक प्रवाह को समझना था जो आज़ भी है. ये एक प्रयोग ही था प्रयोग का हिस्सा बनके प्रयोग करना. न कि मुझे राजनीती लुभा रही थी न वे लोग जो खुद को का परिचय देने के साथ पदवी जोड़ते थे. मुझे खींच रहा था गांधी, लोहिया, लेनिन,परसाई (तब स्वस्थ्य थे). कुछ कविताएं लिख लेता था डिबेट जीत लेता तो ज़रूरी था मुकाम तक पहुंचने के लिये बहुत सी बातें मेरे मष्तिष्क में एकत्र रहें. सो इस सब के अलावा उस मित्र के सतत सम्पर्क में रहने की कोशिश करता, जिसकी पर्सनालिटी अनोखी थी. बड़ी-बड़ी गोल आंखें इकहरा बदन, लम्बे हाथों पर लम्बी लम्बी अंगुलियां.सुन्दर हैण्डराइटिंग, मैं कामर्स का वो सायंस का था, सीनियर क्लास में था. राबर्टसन में. डी०एन०जैन में फ़र्स्ट ईयर में. वो सिर्फ़ पढ़ता था कालेज के बाद ट्यूशनें करता था. दो पैसा कमाना मेरी उस समय की ज़रूरत थी.सपने थे छोटे छोटे जिनके साथ जी रहा था. मित्र तो मित्र था एक दिन उसने बताया कि कितना शोषण है गांव में निचली जातियों के लोगों का ,ग़रीबों का सरकार कुछ नहीं करती नेता झूठे हैं अफ़सर भ्रष्ट होते हैं. देश को बदलना है. हम युवकों को.
 धीरे धीरे उस मित्र की तस्वीर साफ़ होती चली गई. वो पूरी तरह शब्दों का व्यापारी नज़र आने लगा.एक दिन वो एक रिक्शे वाले को मातृ-भगिनी अलंकरण से अलंकृत करते दिखा. उसकी वो कविता मुझे याद आई
वो ग़रीब रिक्शेवाला
जो देह के गन्ने को
कर देता है हवाले
रोजी की चर्खी के
दिन भर मजूरी के बाद
जुगाड़्ता
दो जून की रोटी
ये अलग बात है
दारू की एक बाटल भी
मिल जाती है उसे  !!       
              तब से मन में कुछ और नहीं पर ये बात गहरे तक पैठ गई कि न सिर्फ़ सामंती बल्कि ऐसी विचार धारा भी अशिक्षित समुदाय को ऊपर नहीं उठने देगी
वरना जो सर्वहारा के उन्नयन के बारे में जनवाद सही है कृष्ण ने भी तो जनवाद के साथ हुंकार भरी थी. बदल दी थी .
समकालीन व्यवस्था जिसने .
    भारत में अन्य विपरीत परिस्थियों के बावज़ूद जनवाद के नाम पर जारी खूनी खेल न तो अब न ही पहले कभी आवश्यक रहा है. आप ही सोचें बच्चे  को समाज में जीने पढ़ने आगे बढ़ने का हक़ नहीं है क्या…? तो उनको क्यों थमा दी जातीं हैं बंदूकें क्या ये उनके मानव-अधिकारों का उल्लंघन नहीं. दूसरी ओर व्यवस्था से गुत्थमगुत्था करके उसे तोड़ने की कल्पना कितनी वैग्यानिक है..! आप चाहें तो उसमें सुधार लाने मूल धारा से खुद को जोड़ सकतें हैं किंतु आयातित विचारधारा के प्रचारक इन सनद धारियों को अस्तित्व का खतरा नज़र आ रहा है.
    मेरा एक सवाल है जिन बच्चों में आपने व्यवस्था के खिलाफ़ मोहरा बनाना चाहा है उनको आम-जीवन से जोड़ने के लिये क्या किया. जवाब नहीं है आपके पास  दें भी कैसे आप यदी अपने किसी भी  अनुयाई के प्रति वफ़ादार होते तो भारत तय था कि आपको न तो मानवाधिकार का रक्षा कवच धारण करना होता और न ही आप मेरे इस सवाल से बचते नज़र आते. प्रोफ़ेसर महेश दत्त मिश्र ने कहा था:-“बेटा, तमाम अवसर उपलब्ध हैं,बस मन इच्छाशक्ति जोर मारे”
   हम व्यवस्था के साथ हैं हमें भी कई बातें पसंद नहीं आतीं किंतु व्यवस्था ने कहां रोका किसी को, सब तो अवसर का लाभ उठा के देश के लिये उपयोगी साबित हो रहे हैं. और आब हैं कि करोड़ों देशवाशियों का सर दर्द बने हैं.क्या आप देश वाशियों के मानवाधिकार के हंता नहीं .
(क्रमश: जारी)



25.2.11

अंतरजालिया-साहित्य को कोसने का दौर

 इसे देखिये क्या यह साहित्यिक पत्रिका नहीं है जो अब आन लाइन है  कादम्बिनी

अब बांचिये यह आलेख

                   
 इन दिनों अंतरजालिया-साहित्य और उसके लेखक,लेखिकाओं के खिलाफ़ ठीक उसी तरह का वातावरण बनाते हुए नज़र आ रहे हैं जैसा मुहल्ले की कामवाली-बाईयां उन घरों  की चुगलियां अन्य घरों तक नकारात्मक भाव से किन्तु तेज़ गति से प्रसारित करतीं हैं.यह खबर हम सबके लिये बहुत नुकसान देह नहीं. इससे लोगों तक हिंदी साहित्य नेट पर लाने की कोशिशें जारी होने की खबर हासिल हो गई है.    
    जब हम ने उनमे से एक सज्जन से बात करनी चाही तो वो बोले-“आप कौन..?”
मैं:-“सर,इस नाचीज़ को गिरीश बिल्लोरे कहतें हैं”
वे:-“हर चीज़ में ना लगाना ज़रूरी है क्या ?”
         गोया, हज़ूर हमें हमें पहचान गये कि हम कोई “चीज़ हैं” हमने इस सवाल का ज़वाब न देते हुए कहा - आपका वेबकास्ट इंटरव्यू लेना चाहता हूं..!
वे:-“आप प्रश्नावली भेज दें में वीडियो भेज दूंगा ”
मैं:- :-“हज़ूर,आपका वीडियो मेरे प्रसारण के लिये उपयुक्त नहीं यह लाईव ही रेकार्ड होता है ”  
मेरे हज़ूर,सर आदि संबोधन से गोया वे इतने प्रभावित हो गये कि बोलने लगे:- “मेरे पास समय नहीं है ”  
मैं :- वैसे समय तो मेरे पास भी नहीं है, आपको सूचना के लिये बता दूं कि परसाई जी के शहर का वाशिंदा हूं .
एक कुछ प्रति प्रश्न थे  आपके उठाए गये सवालों से जुड़े
           उसके बाद उनने जो कहा वो बस एक व्यक्ति के विरुद्ध प्रगट किया गया विरोध मात्र था.
               साथियो ऐसे नकारात्मक चिंतन की आयु कितनी होती है आप सभी जानते हैं. सारे तथ्यों को पहचानते हैं. खूब लिखिये नेट पर खुल कर पर सर्वथा उपयोगी,स्तरीय,और ऐसा भी जो चूलें हिला दे उनकी जो आत्ममुग्ध हैं.  
     बेशक अब कचरा न डालें,कापी-पेस्ट न करें, अद्यतन रहें, आत्म-मुग्धता से लबालब न लिखें. और विरोध की होली जला दें जी आज ही.





"कौआ ,चील ,गदहा ,बिल्ली ,कुत्ते

 एक सरकारी बना
"बहुत  असरकारी" 
 होशियार था
कौए की तरह  
और जा बैठा
वहीं जहां
अक्सर 
होशियार कौआ बैठता है.!!

*************************
                                                                 चील:-
 चीखती चील ने 
मुर्दाखोर साथियों को पुकारा
एक बेबस जीवित देह  नौंचने  
 सच है
घायल होना
सबसे बड़ा अपराध है. 
मित्र मेरे, बीते पलों का 
यही एहसास आज़ मेरे 
तो कल तुम्हारे साथ है.

****************************
गधा 
जो अचानक रैंकने लगता है 
सड़क पर
मुहल्ले के नुक्कड़ पर
लगता है कि :- "मैं अपने दफ़्तर आ गया ?"
वहां जहां मैं और मेरा गधा 
एक ही सिक्के  के दो पहलू हैं.
मुझे इसी लिये प्रिय है
मेरा गधा..
सर्वथा मेरा
अपना "अंतरंग-मित्र "
*****************************
बिल्ली
सुना है
बिल्लियों का भाग से भरोसा 
उठ गया !
बताओ
दोस्त क्यों है ये मंज़र नया ?
जी सही 
अब आदमी छीकें तोड़ रहें हैं
*****************************

कुत्ते पर
इंसानी नस्ल का रंगत  
चढ़ गई
ये जानकर
अपनी वफ़ादारी का
. यशगान कर
एक बुज़ुर्ग कुत्ता
इन दिनों 
कुत्ता सुधार अभियान 
चला रहा है !!
नई पौध को आदमियत से 
बचना सिखा रहा है..?
 
  इस पोस्ट के समस्त फोटो गूगल पर उपलब्ध हैं यदि किसी  भी पाठक को कोई आपत्ती हो तो अवगत कराएं  

24.2.11

तोता बोला मैना मौन ?

एक बाल गीत पेश है इस गीत में श्लेष-अलंकार का अनुप्रयोग है  

 











 तोता बोला मैं न  मौन, बात मेरी बूझेगा कौन ?
**************
एक अनजाना एक अनजानी राह पकड़ के चला गया
कैसे नाचे ठुमुक   बंदरिया  बंदर  लड़  के   चला गया
       अपना   ही  जब  रूठा  हो  तो  औरों  से जूझेगा कौन ?                                         
तोता बोला मैं न  मौन, बात मेरी बूझेगा कौन ?
**************
बूढ़े   बंदर   ने   समझाया   काहे   बंदरिया  रोती  है
देह से छोटी होय चदरिया, किचकिच हर घर होती है
      मनातपा  ले    घर  परबिन जोड़ी पूछेगा कौन ?                                 
तोता बोला मैं न  मौन, बात मेरी बूझेगा कौन ?
**************

23.2.11

होली तो ससुराल की बाक़ी सब बेनूर सरहज मिश्री की डली,साला पिंड खजूर


होली तो ससुराल की बाक़ी सब बेनूर
सरहज मिश्री की डली,साला पिंड खजूर
साला पिंड-खजूर,ससुर जी ऐंचकताने
साली के अंदाज़ फोन पे लगे लुभाने
कहें मुकुल कवि होली पे जनकपुर जाओ
जीवन में इक बार,स्वर्ग का सुख पाओ..!!
#########
होली तो ससुराल की बाक़ी सब बेनूर
न्योता पा हम पहुंच गए मन में संग लंगूर,
मन में संग लंगूर,लख साली की उमरिया
मन में उठे विचार,चलॆ लें नयी बंदरिया .
कहत मुकुल कविराय नए कानून हैं आए
दो होली में झौंक, सोच जो ऐसी आए ...!!
#########
होली तो ससुराल की ,बाक़ी सब बेनूर
देवर रस के देवता, जेठ नशे में चूर,
जेठ नशे में चूर जेठानी ठुमुक बंदरिया
ननदी उमर छुपाए कहे मोरी बाली उमरिया .
कहें मुकुल कवि सास हमारी पहरेदारिन
ससुर “देव के दूत” जे उनकी पनिहारिन..!!
#########

सुन प्रिय मन तो बावरा, कछु सोचे कछु गाए,
इक-दूजे के रंग में हम-तुम अब रंग जाएं .
हम-तुम अब रंग जाएं,फाग में साथ रहेंगे
प्रीत रंग में भीग अबीरी फाग कहेंगे ..!
कहें मुकुल कविराय होली घर में मनाओ
मंहगे हैं त्यौहार इधर-उधर न जाओ !!

21.2.11

ब्लॉग प्रहरी : एग्रीगेटर के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ



             आपके सभी सवाल यहीं खत्म होते हैं. ब्लॉगप्रहरी वह व्यापक परिकल्पना है , जिसने अब तक के सभी अनुत्तरित सवालों को सुलझा दिया है. यह कोई अवतार नहीं है , यह कोई थोपा गया और प्रचारित-प्रसारित व् सुनियोजित पहल नहीं है. यह प्राकृतिक तरीके से विकास को अपनाते हुए आज रणक्षेत्र में खड़े उस योद्धा जैसा है , जिसके माथे पर कोई शिकन का भाव नहीं. क्योंकि इस विकास की पराकाष्ठा को इसके उत्पति के समय ही भांप लिया गया था.
आज ब्लॉगजगत उस लंबे इंतजार से बाहर आकार खड़ा है , जब उसे आवश्यकता थी एक साझा मंच की. जब एग्रीगेटर के भूमिका पर ही सवाल उठने लगे और तमाम बड़े एग्रीगेटरों  ने अपनी सेवाएं समाप्त कर लीं कारण जो भी हों.
               और शायद एग्रीगेटर अपनी सुविधाओं और दृष्टि को वह विस्तार नहीं दे पाए , जिसकी आवश्यकता समय ने पैदा कर दी थी. ऐसे में ब्लॉगप्रहरी पुनः सक्रिय हुआ और आज उसे देखा तो पाया कि उसने वह कर दिखाया , जिसके लिए वह चर्चा में आया था.
मिसफ़िट : एक एग्रीगेटर के तौर पर ब्लॉगप्रहरी क्या सुविधा दे  रहा है…?
ब्लाग प्रहरी : आपके ब्लॉग पोस्ट के लिंक का तुरंत प्रकाशन :ब्लॉग प्रहरी आपके ब्लॉग पोस्ट को ४ से ६० सेकंड के भीतर उठा ले जाता है. यह सामान्य तौर पर अत्यंत विश्वसनीय और सही समय है. अब तक के सभी एग्रीगेटर इससे कहीं ज्यादा समय लेते थे.
आपके ब्लॉग पोस्ट की टाइटल, लिंक तथा लघु रूप दिखाना:
सामान्य तौर पर यह सर्वाधिक वांक्षित सुविधा है , जिसकी  अपेक्षा प्रत्येक एग्रीगेटर से की जाती है. ब्लॉगप्रहरी पर यह सेवा भी उसी प्रारूप में उपलब्ध है, जिसके आप आदि है. 
पसंद-नापसन्द करने का विकल्प :
ब्लोग्प्रहरी पर यह सेवा भी उपलब्ध है. परन्तु इस सेवा के साथ एक विस्तार किया गया है. हमने देखा कि पसंद - नापसंद का दुरूपयोग किया गया था. इससे  प्रतिस्पर्धा को विकृत किया गया था.
सुधार : ब्लॉगप्रहरी पर किसने पसंद किया और किसने नापसंद किया , इसे भी देखा जा सकता है. अतः कोई भी बेवजह आपकी पोस्ट को नापसंद कर निचे नहीं धकेल सकता है
कितने पसंद और कितने नापसन्द है  :
आप इसे ब्लॉगप्रहरी के दाहिनी  तरफ  देख सकते हैं. वर्तमान में " सर्वाधिक नापसंद " नहीं दिखया जा रहा, वर्ना सबसे ज्यादा नापसंद पोस्ट को भी बिना वजह प्रसिद्धि मिलेगी.
एक दिन में सबसे ज्यादा पढ़े गए ब्लॉग पोस्ट  :
जैसा कि एग्रीगेटर्स से अपेक्षा की जाती है. यह सुविधा भी ब्लॉगप्रहरी पर उपलब्ध है.
सुधार : हमने देखा कि लोग अपने ही पोस्ट को कई दफा किल्क कर उसे सर्वाधिक पढ़े गए पोस्ट वाले हिस्से में पहुंचा देते थे. ब्लॉगप्रहरी आपके द्वारा क्लिक को रजिस्टर कर लेता है. आप किसी भी पोस्ट को अपने पहले क्लिक से ही , पढ़ी गयी संख्या में इजाफा कर सकते है. दूसरी बार क्लिक करने पर आप पोस्ट तो पढ़ पाएंगे परन्तु , पढ़े गए संख्या में इजाफा नहीं होगा.
एक दिन में सबसे ज्यादा पसंद प्राप्त ब्लॉग पोस्ट :
यह सुविधा भी ब्लोग्प्रहरी पर उपलब्ध है .
सुधार : आप यह भी देख सकते हैं कि अमुक पोस्ट को किसने पसंद का चटखा लगाया है . इससे कोई भी छद्म खेल को बढ़ावा नहीं मिलेगा . क्योंकि आपकी राय सार्वजनिक है.
आपके अभी ब्लॉग पोस्ट्स के लिंक का प्रोफाइल में संकलन
ब्लॉगप्रहरी पर आपके ब्लॉग से आयातित ब्लॉगपोस्ट्स की लिंक्स को उनके पठान और पसंद संख्या के साथ सुन्दर तरीके से सहेजा जाता है.
ब्लॉग पोस्ट्स का विषय -वार संकलन
हिंदी ब्लॉगजगत में लेखों का विषयवार संकलन तकनीक द्वारा संभव नहीं. एक ही  ब्लॉग पर कई विषय पर लेखन किया जाता है. अतः कोई भी वर्गीकरण कारगर और सही नहीं हो सकता, जब तक इसे मानव द्वारा नहीं किया जाए.
उपाय : ब्लॉगप्रहरी में कई  ग्रुप्स बनाये गए हैं. यह ग्रुप फेसबुक के ग्रुप निर्माण जैसा है. हर उपयोगकर्ता अपना ग्रुप बना सकता है. कुछ विशेष ग्रुप ब्लॉगप्रहरी द्वारा बनाये गए हैं. यह ग्रुप द्वार ही आप पोस्ट्स को विभिन्न विषय में दाखिल कर सकते हैं. हर सदस्य एक साथ कई ग्रुप में शामिल हो सकता है.
किसी भी एग्रीगेटर द्वारा यह मूलभूत सुविधाएं अपेक्षित हैं . ब्लॉगप्रहरी इससे कहीं ज्यादा है|
१. ट्वीट करने की सुविधा.
: ट्वीटर/ बज्ज  के बढते प्रभाव और प्रसिद्धि को देखते हुए यह आवश्यक समझा गया कि आज बहुत कुछ लिखने का समय सबसे पास नहीं और न ही गैर-ब्लॉगलेखक आपकी लंबी पोस्ट्स को पढ़ने का समय रखता. शायद इसी वजह से दो- टूक विचार वाले ट्विटर ने धूम मचा दी है. ब्लॉगप्रहरी ने इस आवश्यकता को समझते हुए ट्वीटर द्वारा प्रदत सभी प्रमुख सुविधाओं को आत्मसात किया.
ट्वीटर से अपने ट्वीट आयातित करने की सुविधा
आज  सभी ट्वीटर पर सक्रिय है. ऐसे में यह आवश्यक है कि एक ही जगह आपको ट्वीट पढ़ने और प्रत्युतर देने का साधन भी हो. ब्लॉगप्रहरी पर आप अपना ट्वीटर अकाउंट जोड़ कर ऐसा कर सकते हैं.
आप अपने ब्लॉग जोड़ने और हटाने में सक्षम होंगे
बार बार यह शिकायत रही कि अमुक एग्रीगेटर मेरा ब्लॉग नहीं दिखाता. अथवा बार बार आवेदन के बाद भी वह आपके ब्लॉग को शामिल नहीं कर रहा. कई बार आपको अपने ब्लॉग हटाने के लिए भी अनुरोध करना पड़ता है. यह सब झमेले से अलग ब्लोग्प्रहरी पर अपने खाते में आप अपना ब्लॉग स्वयम जोड़ या हटा सकते हैं.
इसके आलावा आप ब्लोगप्रहरी पर पाते हैं, निम्न सुविधाएं
१.       अपने प्रशंसक बनाना और दूसरे के प्रशंसक  बनना (इस सुविधा से आप अवांक्षित पोस्ट्स से मुक्ति पा सकेंगे )
२.      एक सार्वजनिक चर्चा का मंच ( फोरम , जिसमे आप ब्लॉग लेखन और तमाम तकनिकी जानकारियों को पा सकते हैं , और अपने सवाल भी पूछ सकते हैं. ब्लॉगप्रहरी टीम आपके द्वारा पूछे गए सवाल को २४ घंटे के भीतर उतर देगी )
३.      एक सार्वजनिक व् प्राइवेट चैट रूम ( आम बात-चित के लिए और विशेष प्रयोजन हेतु चर्चा के लिए एक चैट-रूम, जो टेक्स्ट और वीडियो दोनों मोड में संभव है )
४.     इवेंट मैनेजमेंट यानि विशेष आयोजनों की सूचना का मंच ( ब्लॉगप्रहरी पर आप किसी विशेष आयोजन जैसे ब्लॉग सम्मलेन और गोष्ठिओं कि सुचना को बेहतर ढंग से साझा कर पाते हैं. साथ ही आप स्थान , दिन और समय का उल्लेख करते हैं . पाठकों के समक्ष यह विकल्प होता है कि वह उस आयोजन में अपना नाम रजिस्टर करा सके. इससे आपके आयोजन बल मिलेगा तथा आप उसे सही तरीके से निभा पाएंगे .
५.     ग्रुप एल्बम और वीडियो लाइब्रेरी ( हम विभिन्न आयोजनों में शामिल होते हैं और कई बड़े ब्लॉग सम्मलेन अभी तक हो चुके हैं. कितना अच्छा होता अगर इनका संकलन एक जगह मौजूद होता. ब्लॉगप्रहरी ने इस आवश्यकता को भांप लिया और या सुविधा हमने प्रदान की है )
६.      सार्वजनिक ब्लॉग मंच ( कई पाठक ऐसे हैं, जो ब्लॉग बनाने की प्रक्रिया से परिचित नहीं हैं . ऐसे नए हिंदी नेटीजन के लिए एक ब्लॉग मंच का होना आवश्यक है. जहाँ वह अपने विचार व्यक्त कर सकें.
७.    ब्लॉगप्रहरी का सर्च सेवा : एक ही पन्ने पर बिना किसी परेशानी के टेक्स्ट, न्यूज, वीडियो और पी डी एफ फाइल को सर्च किया जा सकता है.
                                इसके अलावा अन्य ब्लॉगप्रहरी पर अनगिनत सुविधाएं मौजूद है. यह संपूर्ण परिकल्पना ३ महीने के गहन शोध के बाद लिखी गयी और उसे चरणबद्ध तरीके से पूरा किया गया.
ब्लॉगप्रहरी के इन तमाम शोध और स्वरूप निर्माण के पीछे कई लोगों ने योगदान दिया.
                                              सबसे पहले ६० से भी ज्यादा छात्रों ने अपना बहुमूल्य समय देकर इसके निर्माण में मदद की. अविनाश वाचस्पति, पद्म सिंह और गिरीश बिल्लोरे जी ने हर संभव मदद किया और अपना बहुमूल्य समय भी दिया. हालांकि इसके निर्माण और पूर्ण होने की आधिकारिक घोषणा अभी तक नहीं कि गयी है. परन्तु टीम द्वारा यह लगातार दोहराया जा रहा है कि हम उसे बेहतर बनाने के लिए अपना सुझाव सामने रखें. आप सभी से भी यहीं अपेक्षा है कि इस प्रहरी की और चलें और ब्लॉग जगत को पुनः सजीव और एकत्रित करने का प्रयास करें.


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