25.2.11

अंतरजालिया-साहित्य को कोसने का दौर

 इसे देखिये क्या यह साहित्यिक पत्रिका नहीं है जो अब आन लाइन है  कादम्बिनी

अब बांचिये यह आलेख

                   
 इन दिनों अंतरजालिया-साहित्य और उसके लेखक,लेखिकाओं के खिलाफ़ ठीक उसी तरह का वातावरण बनाते हुए नज़र आ रहे हैं जैसा मुहल्ले की कामवाली-बाईयां उन घरों  की चुगलियां अन्य घरों तक नकारात्मक भाव से किन्तु तेज़ गति से प्रसारित करतीं हैं.यह खबर हम सबके लिये बहुत नुकसान देह नहीं. इससे लोगों तक हिंदी साहित्य नेट पर लाने की कोशिशें जारी होने की खबर हासिल हो गई है.    
    जब हम ने उनमे से एक सज्जन से बात करनी चाही तो वो बोले-“आप कौन..?”
मैं:-“सर,इस नाचीज़ को गिरीश बिल्लोरे कहतें हैं”
वे:-“हर चीज़ में ना लगाना ज़रूरी है क्या ?”
         गोया, हज़ूर हमें हमें पहचान गये कि हम कोई “चीज़ हैं” हमने इस सवाल का ज़वाब न देते हुए कहा - आपका वेबकास्ट इंटरव्यू लेना चाहता हूं..!
वे:-“आप प्रश्नावली भेज दें में वीडियो भेज दूंगा ”
मैं:- :-“हज़ूर,आपका वीडियो मेरे प्रसारण के लिये उपयुक्त नहीं यह लाईव ही रेकार्ड होता है ”  
मेरे हज़ूर,सर आदि संबोधन से गोया वे इतने प्रभावित हो गये कि बोलने लगे:- “मेरे पास समय नहीं है ”  
मैं :- वैसे समय तो मेरे पास भी नहीं है, आपको सूचना के लिये बता दूं कि परसाई जी के शहर का वाशिंदा हूं .
एक कुछ प्रति प्रश्न थे  आपके उठाए गये सवालों से जुड़े
           उसके बाद उनने जो कहा वो बस एक व्यक्ति के विरुद्ध प्रगट किया गया विरोध मात्र था.
               साथियो ऐसे नकारात्मक चिंतन की आयु कितनी होती है आप सभी जानते हैं. सारे तथ्यों को पहचानते हैं. खूब लिखिये नेट पर खुल कर पर सर्वथा उपयोगी,स्तरीय,और ऐसा भी जो चूलें हिला दे उनकी जो आत्ममुग्ध हैं.  
     बेशक अब कचरा न डालें,कापी-पेस्ट न करें, अद्यतन रहें, आत्म-मुग्धता से लबालब न लिखें. और विरोध की होली जला दें जी आज ही.





13 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

होली भी आ ही गई है...विरोध की होली जला ही दी जाये.

दीपक 'मशाल' ने कहा…

इसमें कोई शक नहीं कि इस समय का ज्यादातर हिन्दी ब्लॉग साहित्य परिष्कृत हिन्दी साहित्य के कच्चे माल के समान है, जिसमे भावनाएं तो हैं लेकिन अलंकरण और आवश्यक सौंदर्य नहीं... संभव है कि इन्हीं प्रयासरत लोगों में से कल को कोई नरेन्द्र कोहली, शैलेश मटियानी, महेश दत्तानी या निराला निकले.. यह भी सही है कि कई ब्लॉग लेखक आज के कुछ तथाकथित मंचीय-अमंचीय कवियों और लेखकों से बेहतर ही लिख रहे हैं.
इस सत्य को हमें वैसे ही स्वीकार करना होगा जैसे एक वीर योद्धा सहर्ष अपनी पराजय स्वीकार करता है.
जो भी हो मुझ जैसे नव-पादपों को तो ब्लॉग से काफी कुछ सीखने को मिला. ये अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट की तरह नहीं तो कम से कम अभ्यास मैच के समान तो फिर भी है और आने वाले कुछ सालों में इसका महत्त्व लोग स्वीकार करेंगे ऐसी आशा है. वैसे भी हम लोग ही कहते हैं ना कि 'हथेली पर आम नहीं जमता'. हमें ध्यान रखने की आवश्यकता है कि विकास के क्रम में कहीं हम आत्ममुग्ध तो नहीं हो रहे, क्योंकि ऐसा होते ही विकास का रुकना स्वाभाविक है.'परिवर्तन संसार का नियम है' ये सत्य है लेकिन वही परिवर्तन देर तक टिकता है जो प्रकृति के नियमों के अनुसार हो, जो तर्कसंगत हो और जो इस धरा एवं सत्य को स्वीकार्य हो.वर्ना तो गद्दाफी और मुबारक ने भी कभी जो परिवर्तन किये होते वो महज़ ३०-४० साल ना चलते.
गिरीश जी एक छोटा सा आग्रह है कि इसे अंतर्जालीय-साहित्य ना कहें क्योंकि अंतर्जाल पर सूर, कबीर, तुलसी, जौक़, ग़ालिब और प्रेमचंद आदि साहित्य सूर्यों की रचनाएं भी उपलब्ध हैं, हाँ ब्लॉग या चिठ्ठा साहित्य कह सकते हैं जोकि मुझे ज्यादा उपयुक्त प्रतीत होता है. शेष आप ज्यादा समझ सकते हैं.

मनीष सेठ ने कहा…

mr.x:aap ki tarif,mai:jitni ki jaye utni kam hai
mr.y:aap ki tarif,mai:apne muh se kaise karu
mr.z:aap ki tarif,mai:aap hi kare toh aachha lagega

Rahul Singh ने कहा…

होली की मुबारकबाद ले लें, इस पोस्‍ट के एवज में अभी से हमारी.

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

दीपक जी एक लम्बी कहानी है..!!

Sunil Kumar ने कहा…

सारगर्भित पोस्ट सोचने को मजबूर

निर्मला कपिला ने कहा…

नकारातमक सोच का विरोध करते हैं। आने वाला समय नेट पर साहित्य का ही है। शुभकामनायें।

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

हर समाज की अपनी भाषा और संस्कृति होती है और हर भाषा का अपना साहित्य होता है। हिन्दी भाषा का भी अपना साहित्य और समाज है। कहना न होगा यह समाज और इसका साहित्य अत्यंत समृद्ध रहा है।

इसमें कोई शक नहीं कि मीडिया, विज्ञापन, पत्रकारिता और सिनेमा ने हिंदी भाषा, साहित्य और संस्कृति की भूमि को उर्वर बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। ब्लाग या चिट्ठा इसी विकास की दुनिया का नवीनतम माध्यम है और ब्लागिंग या चिट्ठाकारिता लेखन या मीडिया की नई विधा।

सारगर्भित पोस्ट...!

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

राज दादा जी कि टिप्पणी हमारी भी समझी जाए।

vandana gupta ने कहा…

सारगर्भित पोस्ट्।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बढ़िया सुझाव...अच्छा ही टिकेगा.

Sushil Bakliwal ने कहा…

नकारात्मक चिंतन अपनी जगह, ब्लाग चैतन्य अपनी जगह.

G.N.SHAW ने कहा…

जी हाँ..आप ने बिलकुल सठिक कहा है .धन्यवाद..!

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