5.12.10

जबलपुर कार्यशाला के बाद का दिन : मेरी नज़र से

                  जबलपुर ब्लागर्स मीट के दूसरे दिन बाटी-भर्ता का माहौल था मेरी काया बुखार से तप रही थी . उधर कण्डों पर सिकी मनभावन बाटियों से वंचित रहा.पापी के भग में कहां पण्ढरपुर खैर दूसरे दिन का अहवाल नीचे आदरणीय साथियों नें पेश किया मज़ा आ गया
         आधिकारिक रपट के बाद : -  
 श्री समीर लाल की पोस्ट    :- इनसे मिले, उनसे मिले: देखें किनसे मिले
श्री महेंद्र मिश्र जी की पोस्ट :-
यार बबाल जी दाल बाटी खाने का तरीका क्या है ?
श्री विजय तिवारी जी :-   सकारात्मक एवं आदर्श ब्लागिंग की दिशा में अग्रसर होना ब्लागर्स का दायित्त्व है : 

                                     जबलपुर ब्लागिंग कार्यशाला पर विशेष
श्री विजय कुमार सप्पती की पोस्ट :- जबलपुर, ब्लागर सम्मेलन:स्नेह भरा अनुभव 
श्री ललित शर्मा जी की पोस्ट      :-  पनघट की पनिहारिन, फ़ाड़ू शायर, रुम नम्बर 120 और गक्कड़ भर्ता -----
 
     बच्चे पढ़ रहे है श्रीमति जी पीपली लाईव को ध्यान से देख रहीं हैं.वास्तविकता है ग्रामीण भारत की. हम भारतीय हैं ही ऐसे फ़िल्म और सियासत के तिलिस्म से जकड़े नत्था तो रोज़ मिलता है हर गांव में रहता है. खैर छोड़िये ब्लाग पर चर्चा के बाद जब आत्म मंथन किया तो पाया कि कार्यशाला में व्यवस्था गत कुछ कमियां रहीं 

_________________________________________________________

                                                   कार्यशाला: मेरी भूलें
  1. मेरे द्वारा फ़ोन पर बैनर बनाने का आदेश दिया था .... जो सर्वथा ग़लत था. स्वयम यह किया जाना था.
  2. समारोह में घर से तैयार होकर वापस आने में विलम्ब किया जो अक्षम्य था फ़िर भी सभी ने क्षमा किया 
  3. हिमांशु राय ,चैतन्य-भट्ट यानी चुन्नू भैया, अन्शु तिवारी, अजय त्रिपाठी जी, संजीव चौधरी, आदि को कहना भूल गया जो मेरी भयानक ग़लतियों में से एक है.
  4. अरविंद भाई से आज़ तक.... वीडियो न मिल पाया  यह भी मेरी एक ग़लती है. भले ही वो व्यस्त हैं
  5. रपट में फ़ोन्ट के प्रारूप में विविधता से रपट  के पठन में प्रभाव पड़ा है- इस प्रयोग  को यथावत इस लिये रखना चाहता हूं ताक़ि भविष्य में  अनावश्यक प्रयोगवादी न बनूं. 02+02=05 करने की कोशिशें ही अनावश्यक प्रयोग है.    
  6. _________________________________________________________?             

                  मित्रो, सादर-अभिवादन, मैं गीत कार कवि होने के साथ एक कथाकार भी हूं. कई छोटी छोटी विचार कहानियां सुना चुका हूं मित्रों को. अब उपन्यास की ओर रिख किया  अगर कोई बाधा न आई तो मेरा-उपन्यास "सर्किट-हाउस" ज़रूर जनता के सामने आएगा अध्याय एक जो अपने आप में एक पूरी कहानी है सादर पेश है.
"सर्किट-हाउस"
( नोट:-इस कहानी का प्रकाशन करने वाले अखबार/पत्रिका  पारिश्रमिक स्वरूप दी जाने वाली राशी अवश्य दें ताकि किसी एक अपाहिज छात्र/छात्रा को मदद पहुंचाई जा सके अथवा वे सीधे किसी भी चिह्नित अपाहिज छात्र/छात्रा को मदद पहुंचाएं तथा किये गए कार्य का विवरण मुझे भेज दें सादर )

            ( आज़ मन किसी बात को लेकर फ़िर उदिग्न है अक्सर छितिर-बितर मन के मनके जोड़ लेता हूं. उस दिन खूब लिख लेता हूं जब कोई दर्द हृदय को छलनी करे. पर पलायन से मेरा कोई नाता नहीं जितना सताओगे दूने वेग से सामने आऊंगा. ऐसे ही किसी दिन लिखनी शुरु की थी कहानी जो सामने ला रहा हूं इस कथा का  किसी ज़िंदा या मृत सरकारी आदमी से कोई लेना देना नहीं यदी कहानी का कोई किरदार नाम अथवा चरित्र से मैच करे तो इसे संयोग ही कहा जावेगा. )
               ब्रिटिश ग़ुलामी के प्रतीक की निशानी सर्किट हाउस को हमारे तन्त्र ने  ठीक उसी उसी तरह ज़िंदा रखा जैसे हम भारतीय पुरुषों ने शरीरों  के लिये  कोट-टाई-पतलून,अदालतों ने अंग्रेजी, मैदानों ने किरकिट,वगैरा-वगैरा. एक आलीशान-भवन जहां अंग्रेज़ अफ़सरों को रुकने का इन्तज़ाम  हुआ करता था वही जगह सर्किट हाउसके नाम से मशहूर है. हर ज़रूरी जगहों पर  इसकी उपलब्धता है. कुल मिला कर शाहों और नौकर शाहों की आराम गाह .  मूल कहानी से भटकाव न हो सो चलिये सीधे चले चलतें हैं  उन किरदारों से मिलने जो बेचारे इस के इर्द-गिर्द बसे हुये हैं बाक़ायदा प्रज़ातांत्रिक देश में गुलाम के
सरीखे…..! तो चलें
                         आज़ सारे लोग दफ़्तर में हलाकान है , कल्लू चपरासी से लेकर मुख्तार बाबू तक सब को मालूम हुआ जनाब हिम्मत लाल जी का आगमन का फ़ेक्स पाकर सारे आफ़िस में हड़कम्प सा मच गया. कलेक्टर साब के आफ़िस से आई डाक के ज़रिये पता लगा  अपर-संचालक जी पधार रहें किस काम से आ रहें हैं ये तो लिखा है पर एजेण्डे के साथ  कोई न कोई हिडन एजेण्डा  भी होता है  …?   जिसे  वे कल सुबह ही जाना जा सकेगा .
दीपक सक्सेना को ज्यों ही बंद लिफ़ाफ़ा प्रोटोकाल दफ़्तर से मिला फ़टाफ़ट कम्प्यूटर से कोष्टावली आरक्षण हेतु चिट्ठी और मातहतों के लिये आदेश टाईप कर ले आया बाबू. दीपक ने दस्तख़त कर आदेश तामीली के वास्ते चपरासी दौड़ा दिया गया.
चपरासी से बड़े बाबू को मिस काल मारा बड़े बाबू साहब के कमरे में बैठा ही था मिस काल देख बोला :-साब राम परसाद का मिसकाल है..!
दीपक:- स्साला कामचोर, बोल रहा होगा सायकल पंक्चर हो गई..?
मुख्तार बाबू ने काल-बैक किया  सरकारी फ़ोन से . 
हां,बोलो…!’
 ’हज़ूर, श्रीवास्तव तो घर पे नहीं है..?
लो  साहब से बात करोमुख़्तार बाबू बोला,
 रिसीवर लेकर दीपक ने अधीनस्त फ़ील्ड स्टाफ़ रवीन्द्र श्रीवास्तव की बीवी को बुलवाया फ़ोन पर :- जी नमस्ते नमस्ते कैसीं हैं आप..?
ठीक हूं सर ये तो सुबह से निकलें हैं देर रात आ पाएंगे बता रहे थे आप ने कहीं ज़रूरी काम से भेजा है..?”
अर्रे हां…. भेजा तो है याद नहीं रहासारी ठीक है भाभी जी आईये कभी घर सुनिता बहुत तारीफ़ करती हैं आपकी
जी, ज़रूर ….
राम परसाद को दीजिये फ़ोन..?”
     कुर्सी पर  लगभग लेटते हुए दीपक का आदेश रामप्रसाद के लिये ये था कि वो दीपक की जगह अब्राहम का नाम भर के आदेश तामीली उसके घर पर करा दे.
     “अब्राहमफ़ील्ड से वापस आकर सोफ़े पे पसरा ही था कि     रामप्रसाद की आवाज़ ने उसके संडे के लिये तय किये  सारे कामों पर मानों काली स्याही पोत दी. उसने आदेश देखते ही ना नुकुर शुरु कर दी अरे रामपरसाद श्रीवास्तव का नाम तुमने काटा मेरा भी काट के शर्मा का लिख दो
सा,रखना हो तो रखो, वरना लो साहब को मिस काल किये देता हूंकहो तो…?
अर्र न बाबा, वो तो मज़ाक कर रा था लाओ किधर देना है पावती..?”
   लोकल-पावती-क़िताब आगे बढ़ाते हुए अब्राहम से पूछता है:-सा,वो एम-वे वाला धंधा कैसा चल रा है
 मतलब समझते ही बीवी को आवाज़ लगाई:-भई, सुनती हो ले आओ एक टूथ-पेस्ट , अपने परसाद के लिये..! पचास का नोट देते हुए –’हां और ये ये लो रामपरसाद, आज़ बच्चों के लिये कुछ ले जाना. दारू मत पीना बड़ी मेहनत की कमाई है.
जी हज़ूरदारू तो छोड़ दी ? रामपरसाद ने हाथों में नोट लेकर कहा अरे सा, इसकी क्या ज़रूरत थी. आप भी न खैर साहबों के हुक़्म की तामीली मेरा फ़रज़ (फ़र्ज़) बनता है हज़ूर .
        हज़ूर से हासिल नोट जेब में घुसेड़ते ही रामपरसाद ने बना लिया बज़ट  , पंद्र्ह की दारू, पांच का सट्टा , दस का रीचार्ज, बचे बीस महरिया के हवाले कर दूंगा. जेब में टूथ-पेस्ट डाल के रवानगी डाल दी.
सुबह सरकारी फ़रमान के मुताबिक विभाग के अपर-संचालक हिम्मत लाल जी की जी अगवानी के लिये दीपक सक्सेना , अब्राहम, सरकारी गाड़ी से स्टेशन पर पहुंच चुके थे  उन सबके पहले एक दम झक्कास वर्दी पर मौज़ूद था.  वो भी गाड़ी .के आगमन के नियत समय  के तीस मिनिट पहले. दीपक  सक्सेना ने लगभग गरियाते हुए सूचित किया :-ससुरा, अपने दोस्त के बेटे के रिसेप्शन में आया है.
अब्राहम ने पूछा :-तो मीटिंग लेगें.. और टूर भी नहीं ?
दीपक:-लिखा तो है फ़ेक्स में पर पर तुम्ही बताओ इतना सब कर पायेंगे. चलो आने पे पता   चलेगा.
 अब्राहम:-हां सर, वो प्रोटोकाल वाले बाबू से रात बात हो गई थी . कमरा नम्बर तीन और पीली-बत्ती वाली  गाड़ी अलाट हो गई है. एस०डी०एम०साब से भी बात हो गई  थी.
 दीपक:- सुनो भाई, तुम बाबू को कुछ दे दिया करो ?  
अब्राहम:-देता हूं सर,
 दीपक:- हां, तो पुन्नू वाली फ़ाईल का क्या हुआ…?
अब्राहम:- सर, हो जाता तो अप्रूवल न ले लेता आपसे.
  इस हो जाता में  गहरा अर्थ  छिपा था. जिसे एक खग ने उच्चारित किया दूजे  खग ने समझा.
 दीपक:-  हां. ये तो है.
 अब्राहम:- सर, कोई मीटिंग नहीं तो चलिये मैं चर्च हो आऊंगा.
 दीपक:-  . अरे, जीजस नाराज़ न होंगें और अगर साहब नाराज़ हुए तो सब धरा रह   जाएगा.
अब्राहम:-  ओ के सर
 दीपक:-  ज़रा, ट्रेन का पता लगाओ ?
अब्राहम:- सर, वो गिरी जी  को भी बुला लेते उसका स्टेशन पर अच्छा परिचय है..?
 दीपक:-  ओह तो तुम्हारा भी ज़वाब नहीं जाओ भाई जिससे मुझे घृणा है तुम तो बस ?
अब्राहम:- सारी सर !
 दीपक:-  आईंदा इस तरह के नामों का उच्चारण वर्ज़ित है.
                              दीपक का चिढ़ना स्वभाविक था. काम धाम का आदमी न था स्साला कमाई धमाई के नाम पे ज़ीरो इधर सर्किट-हाउस और बीवियों के खर्चे इत्ते बढ़े हुये थे कि गोया कुबेर भी उतर आए तो इन दौनों पे लगाम लगाने की ताक़त उसमें नहीं ऊपर से डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट का बढ्ता प्रचार सरकारी अफ़सरों और मुलाज़िमों की तो बस दुर्दशा समझिये. और सुबह सुबह उस नाकारा मरदूद का नाम लेकर सुबह खराब करदी . ज़ायका बिगाड़ू  स्थिति से मुक्ति की गरज़ से अब्राहम डिप्टी एस एस के कमरे में तांक-झांक यूं कर रहा मानो गाड़ी इसी चेम्बर में छुपा के रखी हो.
बोलिये
कुछ नहीं सर वो इंदौर-बिलासपुर
भई, इनक्वैरी में पूछिये काहे हमारा टाईम खराब करतें हैं आप…?
विश्वकर्मा जी, मै गिरी साब का मित्र हूं..!
पहले देना था न रिफ़रेन्स आईये बैठिये डिप्टी एस एस ने कहा.
                          डिप्टी एस एस की आफ़र की गई कुर्सी पर सवार अब्राहम बाहर खड़े यात्रियों को हिराक़त भरी नज़र से निहारने लगा इस बीच  डिप्टी एस एस  ने ट्रेन की पोज़ीशन ली पता चला कि नरसिंहपुर में बार बार चेन पुलिंग होने से  गाड़ी  समय से एक घण्टा लेट हो रही है. अंदर की पक्की खबर मिलते ही अब्राहम तुरंत रवाना हुआ बिना आभार व्यक्त किये . उधर जिधर ए०सी० डब्बा रुकने के लिये रेलवे ने स्थान  नियत पर दीपक  एक अन्य महिला अधिकारी से गपिया रहा था, जिसका अफ़सर भी इसी से आने वाला था .  
अब्राहम दीपक ने पूरे गब्बर स्टाईल में सवाल दागता है: क्या खबर लाये हो ?”
सर, बस साढ़े छै: के बाद ही आयेगी .
बातों में खलल न हो इस गरज़ से दीपक ने अब्राहम की तरफ़ मुखातिब हो कहा:- ठीक है तो जाओ रामपरसाद को लेकर चाय ले आओ ?
                     लोक-सेवा आयोग इसी टाईप के  क्लास टू अर्दलीयों की भर्ती करता है. जो हज़ूर का हुक़्म सर माथे लगाएं और फ़ौरन कूच करें आदेश के पालन के लिये.
दीपक की तरह कई और अफ़सर अपने अपने अफ़सरों को लेने आये थे जो आपस में दो या तीन के समूह में जन्मभूमि,डायरेक्ट-प्रमोटी,यहां तक कि जाति के आधार पर छोटे-छोटे खोमचों में जमा हो चुके थे, यानी खुले आम क्षेत्रीयता, जातिवाद,और तो और प्रमोटी-डायरेक्ट जैसे वर्ग-भेद का सरे आम प्रदर्शन . क्या कर होंगे मत पूछिये ब्रह्म-मूहूर्त में इन मरदूदों ने   मुख्य प्लेटफ़ार्म पर मातहतॊं और पूर्ववर्ती अफ़सरों और अपने अपने बासों की इतनी  चुगलियां  कीं कि सारा वातावर्ण नकारात्मक उर्ज़ा से सराबोर हो गया.
दीपक जी चाय पिला रहें है इस बात की खबर  बोपचे साब को मिली तुरंत पहुंच गये सलामी देने
अरे भई ,सक्सेना जी, कैसे सुबह सुबह ?
नमस्कार,अपर-संचालक महोदय आ रहें हैं आप कैसे ..?
बोपचे ने मैडम को सर-ओ-पा भरपूर निहारते हुए  कहा:- बस हम भी ऐसे ही मंत्री जी के पी ए का साला और उसकी पत्नी आ रहे हैं. उनको तेवर में माता जी के दरबार में कोई मनता पूरी करनी है सो हम आए हैं चाकरी को . अब बताएं हमारे कने कौन सा गाड़ी घोड़ा है जो ये सब करतें फ़िरें. फ़िर भी ससुरे छोड़ते कहां हैं..?
जी सही कहा..! मैडम और दीपक ने हां हुंकारा किया. तभी अब्राहम चाय लेकर आया पी एस सी सलैक्टेट अर्दली था सो समझदारी से दो की जगह चार चाय ले आया.
बोपचे:- ई अब्राहम बहुतई काम के अफ़सर हैं बहुत बढ़िया चाय ले आये गुप्ता कने से लाए हो का…?
हां, सर अब्राहम बोला
अरे भई सक्सेना जी, बड़े भाग तुम्हारे जलवे दार विभाग मिला है- गाड़ी घोड़ा, अपरासी-चपरासी, और……..!
दीपक : ( बोपचे इस और को परिभाषित न कर दे  इस भय से ) और क्या विभाग की बदौलत चुनाव में हार जीत होती है कौन सरकार इसे हरा न  रखेगी बताईये   कोई और सेवा हो तो
अरे वाह दीपक जी सेवा क्या बस गाड़ी की झंझट है..? आज़ बस के लिये.
ठीक है, किये देता हू व्यवस्था..दीपक के लिये  अच्छा मौका था गिरी को रगड़ने का मोबाईल लगाया उधर फ़ोन उठते ही :- नमस्ते नमस्ते कैसे हो अच्छा एक काम करना दस बजे सर्किट हाउस में गाड़ी भेज देना क्यों बोप
बोपचे : न भाई नौ बजे ठीक नौ बजे
दीपक:- यार दस नहीं नौ बजे डाट नौ बजे हां बोपचे साब के पास गाड़ी भेज देना ? क्या , ड्रायवर नहीं आएगा ? अरे सरकारी काम है बुलाओ साले को . हम भी तो सन डे को खट रये हैं क्या बीवी बीमार है उसकी ..? तो  मैं क्या करूं प्रायवेट लगा के भेजो कुछ खर्च कर लिया करो जानते नहीं प्रौढ़ शिक्षा मंत्रीके रिश्तेदार आने हैं. बेचारे बोपचे जी ने कहा है,पहली बार. बात ज़्यादा न बढ़ाते हुये फ़ोन काटते ही बोपचे से बोला:- ये स्साला गिरी जो है न इतने कानून बताता है कि संविधान की संरचना करने वाले का अवतार हो ? साला नटोरिअस प्रमोटी है न तीनों खिल खिला के हंस दिये.
दीपक और मैडम तनु लोक सेवा आयोग की परीक्षा में साथ साथ थे. पास भी साथ-साथ हुए. तनु भी दीपक पर मोहित तो थी किंतु दीपक के बापूजी की बगावत के चलते मिलन पूरा न हुआ. पर पैंच आज़ भी लड़ा लेतें हैं दौनों. पहला इश्क़ दौनों को भुलाए न भूल पाता उस पर पोस्टिंग भी प्राय: पास में ही हो जाती है.  खैर सरकारी काम की आड़ में जो भी होता है वो सरकारी तो होता है. इससे किसी को क्या आपत्ति होने चली. तनु को मालूम  है कि व्यक्तित्व के हिसाब से दीपक को बेमेल बीवी मिली. जिसे वो ढो रहा है. दिल आज़ भी तनु की संदूकची में बंद है. तनु भी अपने मिसफ़िट पति को ढो ही रही थी. पर क्या करें पति से सात वादे जो कराए उस पोपले पंडत ने कब का मर गया वो पंडित खैर जो भी हो ज़िन्दगी ने रुतबा दिया, कमाई का बेहतरीन ज़रिया दिया तो फ़िर काहे की चिंता अब जिसका हसबैण्ड गंजा हो तो क्या हसबैंड न होगा बस न्यूनतम मुद्दों पे समझौता कर तनु बस सपनों में याद कर लेती है उधर दीपक भी गा लिया करता है "तुम होती तो ऐसा होता तुम ये कहतीं तुम वो करतीं आदि आदि..!" 
दुनियां भर में जहां सरकारी काम काज कानूनों के सहारे चलते हैं वही दूसरी और भारत में हर व्यवस्था क़ायदों से चला करती है. क़ानून ये है कि हज़ूर आयें तो कोई ज़रूरत नहीं कि उनके हर आगमन का सरकारी करण हो.,किंतु कायदा ये है कि हज़ूर की हर यात्रा का सरकारी करण हो और माहहतों द्वारा उनकी जी  हज़ूरी में कोई कमी न हो अब आप समझ ही गये होंगे कानून और क़ायदे का समीकरण. कानून संविधान की  ॠचाएं हैं तो कायदा राज शाही की का अनुवाद है.
नौकरी तो पिता जी किया करते थे सर उठा के. हमारे दौर में तो कितनी डिग्री दुम उठाना है कितनी नहीं  हज़ूरों की अनुमति पे निर्भर करता है. खैर इस का विशद विश्लेषण अन्य अध्यायों में होगा अभी तो दीपक की रोमांटिक सुबह की तरफ़ चलते हैं
                   गाड़ी का अगले पंद्रह मिनिट में प्लेट फ़ार्म पर आ जाएगी ये खबर  न तो दीपक सर को अच्छी लगी और  नही तनु मैडम को अब्राहम इसी बात की पड़ताल कर रहा था कि हाय इन दो बगुला-बगुली का जोड़ा काहे बिछड़ गया . प्रभू के खेल कितने निराले हैं
              अब्राहम का दिमाग फ़्रायड की तरह जुगाली करने में बिज़ी हो चुका था. शेर छाप बीड़ी का एड को ताकते ताकते विचारों की जुगाली किये जा रहा था कि राम परसाद बोला:-सा,गाड़ी आ गई..!
                     राम परसाद की सूचना से  साधना-भंग होते ही पुन: अपनी औकात में लौट आए साहब के पास दौड़ते हुए पहुंचा. तीनों ए०सी० के सामने आते ही लगभग कोच को प्रणाम की मुद्रा में देख रहे थे गोयाजगन्नाथ के रथ को निहार रहे हों. कोच से साहब का न निकलना उनको परेशान कर गया. कुछ देर बाद मोबाईल ने गुदगुदी की सो दीपक ने फ़ोन उठाया :-सर,”“हां सर, आप नहीं आये क्या पूरा कोच खाली हो गया ?”
भई,सक्सेना, तुम बे अक्ल हो मुझे फ़ोन करना था न …?
यस सर सारी सर  क्या हुआआप नहीं आए ?
अरे भई, सी एस मीटिंग इमर्जैन्सी मीटिग ले रहे हैं आप ट्रेन से मैडम को उतरवा लो. यलो सूट में हैं.
कोच में घुसते ही दीपक को तीन पीले सूट वाली देवियों को निहारा दूसरी वाली बेहद बेतकल्लुफ़ी से पसरीं थी बस पारखी नज़रों ने पहचान लिया और एक हल्की मुस्कान के साथ गुड मार्निंग मैम शब्द उगल दिया जिसके जवाब में उनके पास सवाल ही लौटा :- तो आप हैं दीपक जी
यस,मै
                              सच्चा साम्य वाद दिखा मैडम में.  मैडम का दृष्टिकोण सभी के प्रति एक समानता का था. उनके मन में प्रथम श्रेणी और चतुर्थ के मध्य कोई अंतर न समझ में आता आदेश दिया ये ये और हां वो वाला मेरा सामान है   . तीनों से दो ने क्रमश: पदानुक्रम में बारी बारी से भारी , हल्का सामान उठा लिया. सबसे हल्का सामान पानी की बाटल दीपक को  पकड़ा दी इस तरह सभी के हाथ काम के सरकारी नारे को बुलंद करती मैशान से सबसे आगे हो लीं शान से आहिस्ता आहिस्ता कोच से प्लेट फ़ार्म पर आ चुकीं थीं. सारा सामान चैक कर लिया न प्लेटफ़ार्म पर आते ही आदेश हुआ.                                                
जी फ़िर भी कुछ या आ रहा हो बताऎं मैम  ? इस बार अब्राहम ने पूछा..
अरे, वो लेज़ का पैकेट और एक मेगज़ीन है
के मैम देखता हूं, कह कर अब्राहम गाड़ी कोच में पुन: प्रविष्ठ हुआ हां हाथ का वैनिटी-बाक्स दीपक को थमाना न भूला. यह भी कहना न भूला कि आप लोग चलिये मैं आता हूं. यानी कुल मिला के दीपक बाटल और वैनिटी बाक्स ढोयेंगे अब…!!
                   लेज़ का पैकेट और वूमेन मेगज़ीन लेकर अब्राहम तब ट्रेन के कोच से उतरा जब उसने यह देख न  लिया की सारी पीठें गेट की ओर जा रहीं हैं. और फ़िर हौले-हौले लगभग सरकता हुआ चल पड़ा. कैलकुलेशन के मुताबिक जब उसे समझ आया कि अब कार तक पहुंच गये होंगे लोग चाल तेज़ करके पहुंच गया और हांफ़ने का अभिनय भी किया. जाते ही बोला :-मैगज़ीन तो मिल गई थी पर ये लेज़ नहीं दिख पा रहा था उपर वाली सीट पर मिला..बमुश्किल ?
                अपने बास दीपक से बाटल और वैनिटी बाक्स जो ढुलवाना था. मैम कार में सवार, उसके आगे पायलट करता दीपक सबसे पीछे अब्राहम की गाड़ी. पांच मिनट बाद ही सर्किट-हाउस के पोर्च में रुकी गाड़ी रूम नम्बरमें घुस गईं मैम यह कहते हुये दस बजे आ जाईये और हां शादी में शाम पांच बजे जाना है तब तक मार्बल-राक्स घूमना था. हां, नाश्ते में एग और ब्रेड-बटर बस . 
                अब्राहम ने रहमान को सब समझा दिया रामपरसाद की ड्यूटी पूरादिन सर्किट हाउस के लिये तय थी .
          पूरा दिन चाकरी में जुटे इन तीनों ने मैडम के हर आदेश  का पालन राजाज्ञा  मान के किया. भेड़ाघाट विज़िट, शापिंग आदि के फ़लस्वरूप बिलासपुर इंदौर एक्सप्रेस से वापसी के लिये पहुंचने तक  मैम की डाक दुगनी हो चुकी थी .
 कुल मिला कर रुपये…..” का उपरिव्यय.
              सोमवार सरकारी अवकाश था. मंगल को दीपक और जूनियर अफ़सर ने अपने अपने दफ़्तर में जाकर उन फ़ाईलों को गति दी जिनसे उपरिव्यय समायोजित होंगे

3.12.10

ब्लागिंग पर राष्ट्रीय कार्यशाला आधिकारिक रपट

सलेट लिये चार : अर्थ निकालने की स्वतंत्रता सहित
 दिनांक 01/12/2010 को जबलपुर की होटल-सूर्या में "हिंदी ब्लागिंग विकास और सम्भावना" विषय पर केंद्रित
पंकज स्वामी गुलुश ने कार्यशाला के प्रारम्भ में विषय प्रतिपादन-अभिव्यक्ति में कहा :-
तेज़ी से विकसित हो रही ब्लागिंग के भविष्य को समृद्ध एवम सशक्त निरूपित करते हुए कहा कि ’नागरिक-पत्रकारिता के इस स्वरूप (ब्लागिंग) को’ पांचवे स्तम्भ का दर्ज़ा हासिल हो ही चुका है सबने ब्लागिंग की ताक़त को पहचाना है . महानगरों से लेकर कस्बाई क्षेत्रों तक हिंदी ब्लागिंग नेट की उपलब्धता पर निर्भर करती है. जिन जिन स्थानों पर नेट की उपलब्धता सहज रूप से सुलभ है वहां तक ब्लागिंग का विस्तार हो रहा है. विकास के इस दौर में हिन्दी में ब्लाग लेखन कई कई कारणों से ज़रूरी और आवश्यक है. बाधा हीन  स्वतंत्र-अभिव्यक्ति
संवाद की निरन्तर सीधी एवम सुलभ सुविधा 
पाडकास्टिंग,वेबकास्टिंग, के लिये नई सुविधाओं की उपलब्धता
अखबारों,समाचार-माध्यमों में नागरिक अभिव्यक्ति के लिये स्वतन्त्र स्थान का अभाव
 हिन्दी में अधिकाधिक पाठ्य सामग्री  की  नेट पर आवश्यक्ता 
अखबारों की मदद 
सूचनाऒ का सहज प्रवाह 
गुलुश जी ने अपने विचार रखते हुए यह भी कहा कि :- ब्लागर्स मासिक साप्ताहिक या पाक्षिक अथवा जैसी भी परिस्थियां हो आपस में मिलें अवश्य ताकि  आपसी चर्चा कर अपने ब्लाग/ब्लागिंग  के विकास  की युक्तियों को तलाश सकते हैं .  साथ ही ब्लागिंग के स्वस्थ्य स्वरूप को देखा जा सके. सनसनीखेज विषयॊं पर टिप्पणी करते हुये गुलुश जी की राय थी : लोग प्रवृत्ति से इन विषयों के प्रति आकर्षित होते  हैं . जो ब्लाग क्या अखबारों,चैनल्स,यूट्यूब, यानी सभी माध्यमों की ताक़त बन जाता है ऐसा माना जा रहा किंतु जो चीज़ अमर होनी होती है उसे स्वच्छ रखना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिये.   
साभार: झा जी कहिन

  संजय की दिव्यदृष्टि के बारे में हम सभी जानते हैं कि उन्होंने धृतराष्ट्र को घर बैठे महाभारत का आँखों देखा हाल सुनाया था. द्वापर के बाद हम कहें कि वर्तमान उससे भी आगे बढ़ चुका है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. आदिकाल से जिज्ञासु प्रवृत्ति वाला मानव कल्पनाओं को साकार करने शाश्वत क्रियाशील रहा है. किस्सागोई, लेखन, प्रिंटिंग, रिकार्डिंग और दृश्यांकन से प्रारम्भ होकर आज हम ऑनलाइन, अपने अधिकांश कार्यों का सम्पादन करने में सक्षम हैं. चार-पाँच दशक पूर्व कल्पना से परे अविष्कार आज अनपढ़, मजदूर और ग्रामीणों को भी सहज सुलभ होते जा रहे हैं. विकास और त्वरण की क्रांति आँधी-तूफ़ान से तेज चल रही है. सन्देश एवं साहित्य का आदान-प्रदान ध्वनियों, चित्रों और लिपियों से प्रारम्भ होकर आज अंतरजाल की दुनिया में अपनी पहचान बना चुका है. अंतरजाल तकनीकी अब तक ज्ञात सर्वाधिक विकसित सुविधा प्रणाली है. विश्व की विभिन्न भाषाओं के साथ ही इसका हिंदी में भी प्रचलन बढ़ा है. इस बहुआयामी अंतरजाल तकनीकी से हमारा साहित्य एवं पत्रकार जगत भला कैसे पीछे रहता. आवश्यकतानुसार शनैः शनैः अंतरजालीय उपकरणों एवं साफ्टवेयर्स के माध्यम से आज हम किसी से कम नहीं हैं. अंतरजाल की सहायता से शुरू हुई ब्लागिंग आज निश्चित रूप से संचार क्रांति की विशेष उपलब्धि है. साहित्य, संदेश, समाचार, वार्तालाप, जानकारियाँ, नवीन अविष्कार, त्वरित प्रसारण के साथ-साथ कांफ्रेंसिंग जैसी सुविधाएँ की-बोर्ड की चन्द बटनों के दबाते ही आपकी स्क्रीन पर उपलब्ध हो जाती हैं. आज इन्हीं सारी सुविधाओं से परिपूर्ण हमारे हिन्दी ब्लॉगर्स त्वरित गति से विश्व में अपनी पहचान कायम कर चुके हैं. आज विश्व का अधिकांश जनसमुदाय भले ही अंतरजालीय सुविधा से वंचित हो परन्तु ब्लॉग्स, ई-मेल और नेट बैंकिंग जैसी सुविधाओं की जानकारी रखता है. आज विश्व में ब्लॉग्स और उनके पाठकों की बढ़ती संख्या इस विधा की सफलता के प्रमाण हैं. दो दशक पहले और आज के परिवेश में आमूल चूल बदलाव आ चुका है. आज देश, प्रदेश, शहर और कस्बाई स्तर पर भी ब्लागिंग के चर्चे होने लगे हैं. ब्लागर्स की बढ़ती संख्या और उसकी लोकप्रियता आज किसी से छिपी नहीं है. ब्लाग के जन्म और उसकी विकास यात्रा जो हम देख रहे हैं ये मात्र पड़ाव हैं, मंजिल नहीं. मंजिल तो हमारे द्वारा तैयार किए जा रहे आधार और तय की गई दूरी के बाद ही मिलेगी. आज हम जिस मंजिल की कल्पना कर रहे हैं वह तभी प्राप्त होगी जब हमारा आधार मजबूत होगा. यहाँ पर इसी आधार को मजबूत बनाने के लिये ब्लागिंग कार्य शाला का आयोजन किया गया है. ब्लागर्स जानते हैं कि इलाहाबाद, छत्तीसगढ़, वर्धा और दिल्ली में ' ब्लॉगर्स संगठन एवं इसके प्रचार-प्रसार हेतु आयोजित ब्लागर्स मीट '  भी इसी दिशा में उठाए आधारभूत कदम हैं. आज जब संस्कारधानी जबलपुर में ब्लागिंग पर चर्चा हो रही है तब ब्लागिंग के स्वरूप, प्रस्तुति, मर्यादा और आचार-संहिता पर भी चिन्तन और वार्तालाप जरूरी है.
                आज मैं चन्द छोटे-छोटे किन्तु महत्वपूर्ण बिन्दुओं की ओर आप सभी का ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूँ , जिन पर अमल कर हम सकारात्मक एवं आदर्श ब्लागिंग की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं:-

1. आज अनेक ब्लागर बन्धुओं ने ब्लागिंग को चौराहे की चर्चातक सीमित कर रखा है जबकि ये व्यक्तित्व, कृतित्व एवं सामाजिक सरोकारों की अभिव्यक्ति का विशाल मंच तथा हमारे सर्वांगीण विकास का माध्यम बन सकता है.
2. छोटी-छोटी अनुपयुक्त एवं खालिस व्यक्तिगत बातें, स्वार्थपरक वक्तव्य, वैमनस्यतापूर्ण आलेख तथा टिप्पणियों से बचने के साथ ही इन्हें बहिष्कृत भी करना होगा.
3. वाह-वाह, बहुत खूब एवं अतिसुन्दर जैसी गिव्ह एण्ड टेकवाली टिप्पणियों से परहेज करना होगा तथा दूसरों की पोस्ट पर यथासम्भव पढ़कर ही अपना अभिमत देने की मानसिकता पर बल देना होगा.

4. ब्लाग्स की वरिष्ठता के मानदण्ड छद्म पाठक नहीं पोस्ट की साहित्यिक गुणवत्ता और उपयोगिता को बनाना होगा. इससे एक ओर टिप्पणियों के बेतुके आदान-प्रदान के सिलसिले पर अंकुश लगेगा वहीं दूसरी ओर सकारात्मक लेखन को और प्रोत्साहन मिलेगा.
5. हमें अपनी ब्लागर मित्रमंडली के घेरे से बाहर निकलना होगा.
6. नव आगन्तुकों को स्नेह-आशीष के साथ ही उनके हितार्थ परामर्श की कड़ीबनाना होगी ताकि भावी ब्लागिंग में आशानुरूप परिष्करण प्रक्रिया को दिशा मिल सके.
7. ब्लागिंग में उपयोगी जानकारी एवं सुविधाओं के प्रचार-प्रसार के लिए भी लगातार ज्ञानवर्धक एवं उपयोगी पोस्ट प्रकाशित होते रहना चाहिए.
8. बदलते परिवेश में ब्लागिंग की महत्ता देखते हुए व्यक्तिगत एवं सहकारी तौर पर ज्ञानपरक पुस्तकें प्रकाशित होना चाहिए.
9. ब्लागिंग की उपयोगिता को शासकीय एवं अशासकीय शिक्षण संस्थाओं के पाठ्यक्रमों में भी शामिल किया जाना चाहिए ताकि ब्लाग्स में निहित विभिन्न विषयों  की नई-पुरानी जानकारी विद्यार्थी-शोधार्थी आसानी से प्राप्त कर सकें. साथ ही इसकी उपयोगिता एवं प्रचार-प्रसार के लिए शासन के साथ विधिवत पत्राचार किया जाना चाहिए.
10. अन्तिम बिन्दु पर विशेष ध्यान दिलाना चाहूँगा   कि अब ब्लागिंग हेतु सर्वमान्य आचार संहिता का होना बहुत आवश्यक हो गया है. इसके क्रियान्वयन के पश्चात ब्लागिंग आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले ब्लॉगर्स पर अंकुश और प्रतिबन्ध लगाना भी सम्भव हो सकेगा.
 ११. हिन्दी ब्लागिंग  को उत्पादन एवं आय से जोड़ने के उपायों पर विस्तार से चर्चा होनी चाहिए.  
             इस तरह मुझे उम्मीद है कि हमारे विद्वान साथी मेरी उपरोक्त बातों पर अवश्य ध्यान देंगे. आज इस ब्लागिंग कार्य शाला के परिणाम ब्लॉगर्स को नई दिशा देने में अहम भूमिका का निर्वहन करेंगे, ऐसी मेरी कामना है.
जय हिन्दी - जय ब्लागर्स
महेंद्र मिश्रा जी का आलेख पृष्ठ 01
महेंद्र मिश्रा जी का आलेख पृष्ठ 02
जबलपुर में हिंदी  ब्लागिंग को बढ़ावा देने में समीर लाल के अवदान की चर्चा करते हुए कहा कि हिंदी चिट्ठाकारिता समाज की धुरी साबित होगी . समय चक्र के लेखक श्री महेंद्र मिश्र ने जो कहा उस अभिव्यक्ति को दाएं एवम बाऎं पन्नों पर क्लिक कर विस्तार से देखा जा सकता है.


नाव चल निकली डूबे जी की नाव




समीर लाल उवाच :-


ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देती है. न कोई संपादक, न मालिकों का दबाव एवं नितियाँ-सब आप पर निर्भर करता है. आप अपने विचारों से, अपने लेखन से, अपने भावों से मात्र एक बटन क्लिक करके संपूर्ण विश्व भर में फैले अपने पाठकों को स्पर्श कर सकते हैं और मजे की बात यह, उनसे टिप्पणियों के माध्यम से त्वरित विमर्श कर सकते हैं, उनके विचार जान सकते हैं, उनकी प्रतिक्रियायें प्राप्त कर सकते हैं. ऐसा अन्य किसी भी माध्यम से पहले संभव न था.
ऐसे में जहाँ यह माध्यम आपको इतनी सुलभता, इतनी स्वतंत्रता देता है, तब यह आपकी नैतिक जिम्मेदारी हो जाती है कि आप स्वविवेक, आत्म नियंत्रण, अनुशासन और संयम का पालन करें. इस स्वतंत्रता और संसाधन का दुरुपयोग न करें.
हर स्वतंत्रता के साथ स्वतः ही आपसे एक आशा रहती है और यह आपका दायित्व भी रहता है कि आप उस स्वतंत्रता का जिम्मेदारीपूर्वक सदुपयोग करेंगे. यह ठीक वैसा ही है कि जब बच्चा बड़ा हो जाता है तो माँ बाप उसे अकेले मोटर साईकिल लेकर ट्यूशन, बाजार और दोस्तों के बीच में जाने देते हैं. वो जानते हैं और उन्हें इस बात का विश्वास रहता है कि अब वह बच्चा बड़ा हो गया है, जिम्मेदार हो गया है एवं कोई ऐसी हरकत नहीं करेगा जो गैर कानूनी हो, समाज के लिए घातक हो और किसी अन्य को नुकसान पहुँचाये. 
लेखन के साथ एक सतत जागरुकता रहना चाहिये कि आप जो भी नेट पर लिख रहे हैं वह एक इतिहास दर्ज कर रहे हैं. वह हमेशा समूचे विश्व के लिए उपलब्ध रहेगा. कल वही सब आपके परिचित, परिवार, बच्चे पढ़ेंगे. ध्यान रहे कि अपने लिखे से आपको उम्र के किसी भी पड़ाव में, किसी भी परिस्थिति में अपमानित या शर्मसार या अपनी ही करनी पर पछतावा/ शर्मिंदा न होने पड़े...
कुछ अलिखित नियम होते हैं और समाजिक जीवन का एक अनुशासन होता है जो बच्चा परिवारिक एवं अपने आसपास के माहौल और बुजुर्गों एवं साथियों के व्यवहार से सीखता है अतः सभी वरिष्ठों का यह नैतिक दायित्व है कि वो ऐसा माहौल, व्यवहार और मानक स्थापित करें जो एक सुदृढ़ समाज का निर्माण करें, न कि आचार संहिता बनाने में अपनी उर्जा लगायें. इन जिम्मेदारियों और दायित्वों के परिपालन के लिए किसी लिखित आचार संहिता की  ही नहीं है. इसका मानसिक और व्यवाहरिक बीजारोपण तो स्थापित माहौल स्वयं स्वतः कर देगा.
फिर भी कुछ अपवाद बच रह जाते हैं, कुछ असामाजिक तत्व पनप ही जाते हैं, कुछ गंदी मानसिकता वाले गंदगी फैलाने चले ही आते हैं. यह हमारे समाज में हमेशा से होता आया है. बस, एक जिम्मेदार नागरिक का फर्ज होता है कि इनसे दूर रहे, इनसे बच कर चले. इनके कारण हम समाज को तो नहीं छोड़ देते और न ही हम अपना व्यवहार बदल लेते हैं. फिर उसी समाज और जगत का विस्तार तो यह आभासी जगत ब्लॉगिंग का है, यह कैसे उन बातों से अछूता रह सकता है और उससे इतर यहाँ के नियम कैसे हो सकते हैं. यहाँ भी वही फलसफा लागू होता है कि आप अपने दायित्वों का निर्वहन जिम्मेदारीपूर्वक किजिये. इन तत्वों की वजह से न तो आपको विचलित होने की आवश्यक्ता है और न ही अपने आप को बदलने की. 
उत्साहवर्धन, प्रोत्साहन, छिद्रान्वेषण, त्रुटिसुधार, फटकार एवं नजर अंदाज करना- सभी का अपना महत्व है.
टिप्पणियाँ जहाँ एक ओर जीवन उर्जा हैं, बंद होते हताश ब्लॉगर के लिए संजीवनी हैं वहीं लेखक को इस बात का अहसास कराती हैं कि समाज की उन पर नजर है..,..वो मात्र दीवाल या शीशे के सामने खड़े कुछ भी अनर्गल प्रलाप नहीं कर रहे हैं वरन उन्हें संयम का पालन करना है.
-ब्लॉगर्स की संख्या बढ़ाने की मुहिम चलायें-हर माह हर ब्लॉगर एक नया चिट्ठाकार बनाये-गुणित आधार पर संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि होगी. आप बस अपना कार्य करिये-सब अपने अपने हिस्से के पालन करें तो एक ऐसे समाज का निर्माण स्वतः हो जायेगा जिसकी हम परिकल्पना करते हैं.
-नई जानकारियाँ, तकनीक आपस में बाँटें. ज्ञान बांटने से बढ़ता है. नई जानकारियाँ पाकर अन्य लोगों में भी इस ओर रुझान बढ़ता है और उत्साहवर्धन होता है.
-प्रतिस्पर्धा बेहतर लेखन की हो, न कि सिर्फ़ रेंकिंग की, टिप्पणियों की संख्या की, फॉलोअर्स बढ़ाने की-यह सब बेहतर लेखन और बेहतर व्यवहार से स्वतः हो जायेगा. इसके लिए आप को कुछ नहीं करना है, यह फल है-आपका काम वृक्ष लगाना है, उसकी देखभाल करना है. उसे कीटों से, गन्दगी से बचाना है. स्वादिष्ट फल स्वमेव आ जायेंगे. बबूल बोकर आम की प्रतिक्षा करना मात्र बेवकूफी है- फिर भी कितने ही हैं जो यह बेवकूफी किये जा रहे हैं और फिर तरह तरह का रोना रोते हैं कि रेकिंग में बदमाशी चल रही है, मठाधीशों के इशारे पर कार्य हो रहे हैं, गुट बने हैं, टिप्पणियाँ नहीं मिलती आदि आदि.
अंत में, एक बात और जोड़ना चाहता हूँ कि हमें हिन्दी ब्लॉगिंग को -विश्वविद्यालयीन पाठयक्रम (मीडिया एवं पत्रकारिता कोर्स) का हिस्सा बनवाने का प्रयास करना होगा. इसे उन छात्रों के प्रोजेक्ट के रुप में लिया जा सकता है. इससे न सिर्फ उन्हें इस तेजी से उभरते पाँचवें खम्भे से जुड़ने का अवसर मिलेगा वरन हिन्दी ब्लॉगिंग एक विशिष्ट प्रसार प्राप्त करेगी जो इसे समृद्धि प्रदान करेगा.
एक उन्माद
उम्र के उस पड़ाव मे
उगा लिया था
हथेली पर
एक कैक्टस
अब
उखाड़ देना चाहता हूँ
मगर
कांटे डराते हैं मुझे!!
तो अंत में यही निवेदन कि उगाना ही है तो सुन्दर फल, फूल उगाईये, ताकि वर्तमान में और भविष्य में उसकी सुगंध और स्वाद ले सकें वरना कांटे बोयेंगे तो वह तकलीफ देंगे ही.       
______________________________________________________
 समारोह के विशिष्ठ-अतिथि श्री जी.के अवधिया ने कहा :-’नेट पर हिन्दी की उपस्थिति में सबसे महत्वपूर्ण योगदान हिंदी ब्लागर्स का है. 28 हज़ार हिन्दी ब्लागर्स अथक प्रयास से हिंदी को नेट पर ला ही दिया किंतु अभी भी हम पीछे हैं अन्य भाषाओं  अंग्रेज़ी,चायनीज़ से पीछे हैं इसकी चिंता भारत सरकार को हो न हो गूगल को अवश्य है क्योंकि उसको व्यावसायिक फ़ायदे हैं किंतु गूगल और माइक्रसाफ़्ट जैसी कम्पनियां हिन्दी के डाटा-बेस के मामले में आत्मनिर्भर नहीं हैं. जैसे ही यह सम्भव होगा ब्लाग्स को विज्ञापन मिलना तय है. हिंदी ब्लॉग में विदेशी मुद्रा अर्जक होते ही हिंदी-ब्लागिंग का स्वरुप कुछ  और ही होगा. पर हमारा दुर्भाग्य ये है कि हम देवनागरी  के बावन-अक्षरों को क्रमश: याद नहीं पाते हैं.डाक्टर विजय तिवारी की राय को गति देते हुए अवधिया जी ने सुझाव दिया कि विज्ञापन कम्पनियां विषय आधारित वेब साइट्स का चुनाव करतीं हैं विज्ञापन के लिए . अत: सदा विषय विशेष पर केंद्रित ब्लाग्स लिखे जाएं ताकि एडसेन्स(गूगल),अन्य विज्ञापन कम्पनियों को आप तक पहुंचने में कठिनाई न हो.   
ललित शर्मा का मानना था :- नकारात्मकता और ग्रुप बाज़ी से हटकर  खुले दिल से हिंदी के अंतरजाल पर समग्र विस्तार के प्रयास आवश्यक हैं. आभासी होते हुए भी वास्तविक संबंध स्थापित कर देने वाली हिंदी-चिट्ठाकारिता में अपार सम्भावनाएं हैं विश्व से जोड़  ने वाली  महत्वपूर्ण-आलेखों (पोस्टस) पर अध्ययन के बाद टिप्पणीयों को दर्ज करने से  पोस्ट की मूल भावनाएं आसानी से उजागर होती है. टिप्पणी का प्रयोग पोस्ट के रुख को बदलने के नहीं किया जाना चाहिए ताकि वातावरण की भी सहज रह सके. हिंदी ब्लागिंग में आचार-संहिता के बिंदू पर असहमत नज़र आए ललित शर्मा ने कहा :- हिंदी ब्लागिंग का स्वरुप परिवार की तरह आत्मीय हो गया है . तो  परिवार के लिए भी  कानूनी धाराओं की  ज़रुरत क्यों आन पडी . एक धारा और बढ़ जायेगी तो क्या होगा उससे. ज़रूरत स्वायत्त अनुशासन की है न कि इन सब की जिसे आचार संहिता कहा जा रहा है. 
ललित शर्मा ने कहा कि :-अवधिया जी का सुझाव चिंतन योग्य है. विषय आधरित ब्लागिंग होनी चाहिये. ब्लागिंग में निरंतरता , स्वच्छता एवम शुचिता के लिये ही स्थान होता है. अत: राग-द्वेष  कारक सनसनीखेज़ आलेखों से बचा जावे. बेनामीयों को चाहिये कि खुल के साफ़ साफ़ एतराज़ दर्ज़ कर दें ब्लाग पर अश्लीलता तक न पहुंचें.  जिसे खुल कर कहने की हिम्मत न हो वो उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के  प्रयोग का ज्ञान ही नहीं है ऐसे लोगों के लिए ब्लागिंग अनुकूल स्थान नहीं. 
विवेकशील मनुष्य प्रजाती की रचनात्मक अभिव्यक्ति का स्वरुप बन चुका है ब्लॉग तो विध्वंसात्मक प्रवृत्तियों को  ध्यान में रख कर पोस्ट प्रति पोस्ट लिखना गैर ज़रूरी है.  ब्लागर्स के बीच अनबन कलह फ़ैलाना सामाजिक रूप से गंदगी फ़ैलाना है. इसके लिये कानूनी प्रावधान हैं. जिनका प्रयोग किया जा सकता है. 
बवाल उवाच :- बवाल जी ने ब्लाग की शक्ति को अमोघ शक्ति निरूपित करते हुए कहा कि हम सबकी बात का प्रभाव उस बात के सरल प्रवाह पर नियत है . अतएव सुखद परिणाम के लिये सतत प्रभावशाली अभिव्यक्ति दर्ज़ होती रहे. नित नये टूल्स का अनुप्रयोग हो. अभी आह ही में bambuser पर गिरीष जी का प्रयोग अनूठा रहा है.जिसका प्रयोग आज किया जाना था ताकि कार्यशाला का लाईव प्रसारण हो सके किंतु इस टूल का  अनुप्रयोग आज़ हाई-स्पीड डाटा कार्ड के अभाव के कारण सम्भव न हो सका. ्वरना आज़ की मीटिंग का लाइ प्रसारण भी  इतिहास में दर्ज़ होता. 
प्रेम-फ़रुक्खाबादी :- हिन्दी ब्लागिंग को आचार संहिता की नहीं सदाचरण वाले आलखों की ज़रूरत है. 
आनंदकृष्ण:- आनंद कृष्ण ने सीधे सपाट शब्दों में कहा आचरण पर हमारा हक़ और नियंत्रण दौनों है यदि हमारे आचरण सही होंगे तो सब कुछ ठीक होना तय है.आचार संहिता जैसी बातों की कोई आवश्यकता नहीं  जहां तक ब्लाग स्पोट या वर्ड-प्रेस  का सवाल है वो हमारे नियंत्रण में नहीं है तो अनावश्यक है यह बहस आवश्यक है  हमारी आचरण गत शुद्धि की. 
विवेकरंजन श्रीवास्तव:- अभियंता विवेक जी की राय थी कि पांचवां स्तम्भ मज़बूती की ओर विकल्प के रूप में उभरता दिखाई दे रहा है. उसमें अनावश्यक रूप से  लगाम कसने की ज़रूरत से ज़्यादा ज़रूरत है कि नये ब्लागर्स को यह बताया जावे कि ब्लागिंग में नित नये टूलस का अनुप्रयोग कैसे किया जावे, किस तरह से अन्तरजाल पर हिंदी के अधिकाधिक प्रयोग को बढ़ावा मिले. कुल मिला कर प्राथमिक पाठ्यक्रम का होना ज़रूरी है. अतएव ब्लागर्स निरंतर ब्लागिंग के लिये विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करें. उनकी सहायता करें ताकि हिंदी के कंटैंट्स को नेट पर बढाया जा सके. सामाजिक वैचारिक महत्व के विषयों की नेट पर उपलब्धता के पयास होने चाहियें. क्योंकि हिंदी ब्लागिंग में अपार संभावनाएं हैं. 
अरुण निगम:- जबलपुर में हाल ही में रायपुर से पधारे ब्लागर श्री अरुण निगम ने कहा कि नया नया ब्लागर भी हूं अत: मुझे निरंतर सहयोग की ज़रूरत है. उम्मीद है कि जबलपुर के  मित्र मुझे और अधिक सुदृढ़ता पाने में सहयोग करेंगे. 
       गैर ब्लागर प्रख्यात साहित्य संयोजक राजेश पाठक "प्रवीण" ने ब्लाग की सार्थकता के उदाहरण प्रस्तुत किये जबकि सलिल समाधिया ने अपना अनाम ब्लाग शीघ्र बनाने के वादे के साथ कहा :- सवाल ही पैदा नही होता कि पांचवे स्तम्भ की शक्ति को नकारा जाए. 
      जबकि मनीष शर्मा का मत था की ब्लागिंग की अधिकाधिक ओरल पब्लिसिटी हो ताकि लोग (हम जैसे  गैर ब्लागर) दैनिक अखबारों की तरह पोस्ट का इन्तज़ार करें.जिस दिन  हरेक चिट्ठे का पाठक गैर ब्लागर पाठक  होगा  वह दिन हिन्दी ब्लागिंग का टर्निंग पाईण्ट होगा. 
   संजू तिवारी के मतनुसार :- अखबारों से पहले एक क्लिक में अपने पाठक तक पहुंचने वाले ब्लाग में अभूतपूर्व शक्तियां हैं हर ब्लागर को  आलेखों को सहजता से लिखना चाहिये. बिना पूर्वाग्रही हुए दूसरों से संवाद करना चाहिये 
ऐसे डूबे डुबे जी


जे अपने राम भैया !!
  संगीतकार सुयोग पाठक संगीत आधारित ब्लाग बनाने के लिये संकल्पित हुए जो कार्यशाला की उपलब्धि थी. 
प्रत्येक ब्लागर को कार्टूनिष्ट ब्लागर डूबे जी ने कार्यशाला के दौरान बनाए कार्टून्स देकर प्रभावित किया.जिसे  अनिवार्यत: अपने अपने ब्लाग पर लगाने का प्रस्ताव बहुमत से पारित हुआ  सो बाएं बाजू देखिये
___________________
 कार्यशाला के अंत में दिवंगत ब्लागर  श्री महावीर शर्मा, खुशदीप जी के पिता श्री एवम श्री पाबला जी की मातुश्री के देहावसान पर मौन होकर श्रद्धांजलि अर्पित की. 
_________________________
-     कार्यशाला का संचालन गिरीश बिल्लोरे द्वारा आभार प्रदर्शन बवाल द्वारा किया गया. 
मेरी कारगुजारियां अगली पोस्ट में  


Kindle Wireless Reading Device, Wi-Fi, 6" Display - with New E Ink (Pearl) Technology खबरें इधर भी:-
The Blind Sideपत्रिका जबलपुर एवम पीपुल्स समाचार
विशेष-अनुरोध:- 
इस रपट में किसी भी प्रतिभागी वक्ता के किसी बहुमूल्य विचार का जिक्र न हुआ हो तो कृपया सूचित कीजिये मानवीय भूल को मित्रगण क्षमा करेंगें मुझे उम्मीद है यथा सम्भव पूरे मनोयोग एवम स्मृति के आधार पर क्रोसिन खाकर बुखार से अवकाश लेकर लिखा है. हो सकता है अत: कुछ भूल अवश्य हुई ही होगी . कृपया मुझे इस मेल पते girishbillore@gmail.com पर सहयोगी ब्लागर्स  अवगत करावें. ताकि अगली पोस्ट में विवरण  लगा सकूं. सादर आपका ही गिरीश बिल्लोरे मुकुल  
__________________________________
         आधिकारिक रपट के बाद : -  
 श्री समीर लाल की पोस्ट:      इनसे मिले, उनसे मिले: देखें किनसे मिले
श्री महेंद्र मिश्र जी की पोस्ट :-यार बबाल जी दाल बाटी खाने का तरीका क्या है ?
श्री विजय तिवारी जी             :- सकारात्मक एवं आदर्श ब्लागिंग की दिशा में अग्रसर होना ब्लागर्स का दायित्त्व है : जबलपुर ब्लागिंग कार्यशाला पर विशेष
श्री विजय कुमा सप्पती की पोस्ट :- जबलपुर, ब्लागर सम्मेलन:स्नेह भरा अनुभव 
श्री ललित शर्मा जी की पोस्ट      :-  पनघट की पनिहारिन, फ़ाड़ू शायर, रुम नम्बर 120 और गक्कड़ भर्ता -----
__________________________________




1.12.10

सबसे लचीली है भारत की धर्मोन्मुख सनातन सामाजिक व्यवस्था

साभार: योग ब्लाग से


बेटियों को अंतिम संस्कार का अधिकार क्यों नहीं..? के इस सवाल को गम्भीरता से लिये जाने की ज़रूरत है. यही चिंतन सामाजिक तौर पर महिलाऒं के सशक्तिकरण का सूत्र पात हो सकता है. क़ानून कितनी भी समानता की बातें करे किंतु सच तो यही है कि "महिला की कार्य पर उपस्थिति ही " पुरुष प्रधान समाज के लिये एक नकारात्मक सोच पैदा कर देती है. मेरे अब तक के अध्ययन में भारत में वेदों के माध्यम से स्थापित की गई  की व्यवस्थाएं लचीली हैं. प्रावधानों में सर्वाधिक विकल्प मौज़ूद हैं. फ़िर भी श्रुति आधारित परम्पराओं की उपस्थिति से कुछ  जड़ता आ गई जो दिखाई भी देती है. सामान्यत: हम इस जड़त्व का विरोध नही कर पाते
  1. रीति-रिवाज़ों के संचालन कर्ता घर की वयोवृद्ध पीढी़, स्थानीय-पंडित, जिनमें से सामन्यत: किसी को भी वैदिक तथा पौराणिक अथवा अन्य किसी ग्रंथ में उपलब्ध वैकल्पिक प्रावधानों का ज्ञान नहीं होता. 
  2. नई पीढ़ी तो पूर्णत: बेखबर होती है. 
  3. शास्त्रोक्त प्रावधानों/विकल्पों की जानकारीयों से सतत अपडेट रहने के लिये  सूचना संवाहकों का आभाव होता है. 
  4. वेदों-शास्त्रों व अन्य पुस्तकों का विश्लेषण नई एवम बदली हुई परिस्थियों में उन पर सतत अनुसंधानों की कमीं. 
  5. विद्वत जनों में लोकेषणाग्रस्त होने का अवगुण का प्रभाव यानी अधिक समय जनता के बीच नेताओं की तरह भाषण देने की प्रवृत्तियां.स्वाध्याय का अभाव 
                       उपरोक्त कारणों से कर्मकाण्ड में नियत व्यवस्थाओं के एक मात्र ज्ञाता होने के कारण पंडितों/कुटुम्ब के बुजुर्गों की आदतें  परम्पराओं को जड़ता देतीं हैं. उदाहरण के तौर पर स्वास्थ्य सम्बंधी विज्ञान जन्म के तुरंत बाद बच्चे को स्तन-पान की सलाह देता है, घर की बूढ़ी महिला उसकी घोर विरोधी है. उस महिला ने न तो वेद पढ़ा है न ही उसे चिकित्सा विज्ञान की सलाह का अर्थ समझने की शक्ति है बल्कि अपनी बात मनवाने की ज़िद और झूठा आत्म-सम्मान पुत्र-वधू को ऐसा कराने को बाध्य करता है. आप बताएं कि किस धर्मोपदेशक ने कहां कहा है कि :- ”जन्म-के तुरन्त बाद  स्तन पान न कराएं. और यदि किसी में भी ऐसा लिखा हो तो प्रमाण सादर आमंत्रित हैं. कोई भी धर्म-शास्त्र /वेद/पुराण (यहां केवल हिंदू सामाजिक व्यवस्था के लिये तय नियमों की चर्चा की जा रही है अन्य किसी से प्रमाण विषयांतरित होगा ) किसी को जीवन की मूल ज़रूरतों से विमुख नहीं करता.
       परिवार में मेरे चचेरे भाई के जन्म के समय जेठानियों की मर्यादा का पालन करते हुए मां ने नवज़ात शिशु को स्तन पान विरोध कर रही जेठानियों को बातों में उलझा कर करवाया घटना का ज़िक्र ज़रूरी इस लिये है कि सकारात्मक-परिवर्तनों के लिये सधी सोच की ज़रूरत होती है. काम तो सहज सम्भव हैं. 
    मृत्यु के संदर्भ में मां ने अवसान के एक माह पूर्व परिवार को सूचित किया कि मेरी मृत्यु के बाद घर में चावत का प्रतिषेध नहीं होगा. मेरी पोतियां चावल बिना परेशान रहेंगी. उनके अवसान के बाद प्रथम दिन जब हमारी बेटियों के लिये चावल पकाये गए तो कुछ विरोध हुआ तब इस बात का खुलासा हम सभी ने सव्यसाची  मांअंतिम इच्छा के रूप में किया. 
The Blind SideDecision Points    यहां आपको एक उदाहरण देना ज़रूरी है कि भारतीय धर्म- आधारित सामाजिक व्यवस्था में आस्था हेतु प्रगट  की जाने वाली ईश्वर-भक्ति के  तरीकों में जहां एक ओर कठोर तप,जप,अनुष्ठान आदि को स्थान दिया है वहीं नवदा-भक्ति को भी स्थान प्राप्त है. यहां तक कि "मानस-पूजा" भी प्रमुखता से स्वीकार्य कर ली गई है.   आप में से अधिकांश लोग इस से परिचित हैं 
"रत्नै कल्पित मासनम 
हिम-जलयै स्नान....च दिव्याम्बरम ना रत्न विभूषितम ."
              अर्थात भाव पूर्ण आराधना जिसे पूरे मनोयोग से पूर्ण किया जा सकता है क्योंकि इस आराधना में भक्त ईश्वर से अथवा किसी प्रकोप भयभीत होकर शरण में नहीं होता बल्कि नि:स्वार्थ भाव से भोले बच्चे की तरह आस्था व्य्क्त कर रहा होता है. 
                         जीवन के सोलहों संस्कारों में वेदों पुराणों का हस्तक्षेप न्यूनतम है. जिसका लाभ उठाते हुए समकालीन परिस्थितियों के आधार पर अंतर्नियम बनाए जाने की छूट को भारतीय धर्मशास्त्र बाधित नहीं करते . मेरे मतानुसार  सबसे लचीली है भारत की धर्मोन्मुख सनातन सामाजिक व्यवस्था
वेद और पुराण /अभिव्यक्ति पर एक महत्वपूर्ण-जानकारी :- विरासत बना ऋग्वेद
 

कल मिलेंगे कि नहीं राम जाने परसों मिलतें हैं तब तक सुनिये ये गीत

जी कल कार्यशाला के बाद भी न मिल पाएंगे
परसों तक के लिये शब्बा खैर









Kindle 3G Wireless Reading Device, Free 3G + Wi-Fi, 3G Works Globally, 6" Display - with New E Ink (Pearl) TechnologyO Holy Night (CD/DVD)

Wow.....New

विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस

                जॉर्ज सोरोस (जॉर्ज सोरस पर आरोप है कि वह भारत में धार्मिक वैमनस्यता फैलाने में सबसे आगे है इसके लिए उसने कुछ फंड...