ड्राईंग रूम दीवारों दाग बना रही अपनी बेटी को चाक देते वक्त आंचल ने सोचा न था कि अनिमेष उसे अचानक रोक देगा , अनिमेष का मत था कि घर को सुन्दर सज़ा रहने दो आने जाने वाले लोग क्या कहेंगे ?
”कहने दो, मुझे परवाह नहीं, बच्ची का विकास अवरुद्ध न हो ”
"भई, ये क्या, तुम तो पूरे घर को "
"हां, अनिमेष मैं अपनी बेटी के विकास के रास्ते तुम्हारी मां की तरह रोढ़े न अटकाने दूंगी समझे..?"
अनिमेष को काटो तो खून न निकले वाली दशा का सामना अक्सर करना होता था, उसे अच्छी तरह याद है मां ने पहली बार अक्षर ज्ञान कराया था उसे तीलियों के सहारे. ड ण आदि के लिये रंगीन ऊन का अनुप्रयोग करने वाली तीसरी हिन्दी पास मां के पास दुनियादारी गिरस्ती के काम काज़ के अलावा भी पर्याप्त समय था हम बच्चों के वास्ते. आंचल के आंचल में अमिय था किन्तु वक्त नहीं तनु बिटिया के पेट में बाटल का दूध ............उसका विरोध करना भी हमेशा अनिमेष को भारी पड़ता था. आंचल का जीवन बाहरी दिखावे का जीवन था. उसे मालूम था कि किसी भी तरह अपनी स्वच्छन्दता को कायम रखेगी आंचल !
तर्क का कोई मुकाबला न कर पाना अनिमेष की मज़बूरी थी सो आज़ उसने अपनी बिटिया को मां के रूप में वक्त देना शुरु कर दिया.
जब वीमेन्स-क्लब-मीटिंग से आंचल जब लौटी तो देखा बिटिया माचिस की तीलियों से A ,B ,C ,D , लिख रही है,
किसने बताया बेटे ?
पप्पा ने
गुड
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समय का चक्र आगे चला चलना ही था . तनु के विकास का चक्र रुका नहीं . चाईल्ड सायकोलाज़ी पर धुआंधार भाषण दे रही आंचल की बेटी तनु अपने लेक्चर में पप्पा के बताये तरीकों का ज़िक्र कर रही थी पूरे भाषण में कहीं भी अपने अवदान का जिक्र न पाकर हताश आंचल के मन की अकुलाहट अनिमेष खूब भली भाँती पढ़ चुके था. सभा के बाद तनु से मिलते ही बोले ''बेटे, माम कितनी खुश है तुम्हारी तरक्की से फिर आंचल के कांधे पर हाथ रखके जोर से बोले :-''वाह, माँ हो तो तुम्हारे जैसी जिसने सब कुछ सिखाया और श्रेय मुझे दिला दिया.'' पिता का यह वाक्य आँचल के अंतस में उतारा झट माम से लिपट गई लोग भी आँचल की और सम्मान से देख रहे थे.
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”कहने दो, मुझे परवाह नहीं, बच्ची का विकास अवरुद्ध न हो ”
"भई, ये क्या, तुम तो पूरे घर को "
"हां, अनिमेष मैं अपनी बेटी के विकास के रास्ते तुम्हारी मां की तरह रोढ़े न अटकाने दूंगी समझे..?"
अनिमेष को काटो तो खून न निकले वाली दशा का सामना अक्सर करना होता था, उसे अच्छी तरह याद है मां ने पहली बार अक्षर ज्ञान कराया था उसे तीलियों के सहारे. ड ण आदि के लिये रंगीन ऊन का अनुप्रयोग करने वाली तीसरी हिन्दी पास मां के पास दुनियादारी गिरस्ती के काम काज़ के अलावा भी पर्याप्त समय था हम बच्चों के वास्ते. आंचल के आंचल में अमिय था किन्तु वक्त नहीं तनु बिटिया के पेट में बाटल का दूध ............उसका विरोध करना भी हमेशा अनिमेष को भारी पड़ता था. आंचल का जीवन बाहरी दिखावे का जीवन था. उसे मालूम था कि किसी भी तरह अपनी स्वच्छन्दता को कायम रखेगी आंचल !
तर्क का कोई मुकाबला न कर पाना अनिमेष की मज़बूरी थी सो आज़ उसने अपनी बिटिया को मां के रूप में वक्त देना शुरु कर दिया.
जब वीमेन्स-क्लब-मीटिंग से आंचल जब लौटी तो देखा बिटिया माचिस की तीलियों से A ,B ,C ,D , लिख रही है,
किसने बताया बेटे ?
पप्पा ने
गुड
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समय का चक्र आगे चला चलना ही था . तनु के विकास का चक्र रुका नहीं . चाईल्ड सायकोलाज़ी पर धुआंधार भाषण दे रही आंचल की बेटी तनु अपने लेक्चर में पप्पा के बताये तरीकों का ज़िक्र कर रही थी पूरे भाषण में कहीं भी अपने अवदान का जिक्र न पाकर हताश आंचल के मन की अकुलाहट अनिमेष खूब भली भाँती पढ़ चुके था. सभा के बाद तनु से मिलते ही बोले ''बेटे, माम कितनी खुश है तुम्हारी तरक्की से फिर आंचल के कांधे पर हाथ रखके जोर से बोले :-''वाह, माँ हो तो तुम्हारे जैसी जिसने सब कुछ सिखाया और श्रेय मुझे दिला दिया.'' पिता का यह वाक्य आँचल के अंतस में उतारा झट माम से लिपट गई लोग भी आँचल की और सम्मान से देख रहे थे.
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साथ ही इन मित्रों स्नेही जनो का आभार आनेस्टी प्रोजेक्ट डेमोक्रेसी.यशवन्त मेहता "यश",नीरज रोहिल्ला, मिथिलेश दुबे,'अदा', राजकुमार सोनी, नरेश सोनी,जी.के. अवधिया, एम.वर्मा ,अजय कुमार झा, महेन्द्र मिश्र,राधे, अन्तर सोहिल,शिखा वार्ष्णेय , डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक,विजय तिवारी 'किसलय ', 'उदय', सुलभ § सतरंगी,कविता रावत,राज भाटिय़ा,संजीत त्रिपाठी ,शरद कोकास, उन्मुक्त,Kumar Jaljala, हर्षिता,बवाल,
ललित भाई की पोस्ट ने मन में उछाह वापसी की तो श्याम भाई ने भी खूब हंसाया सो मित्रो मै लौट आया अमरकंटक से अपनी बहन शोभना के स्नेह से अभीभूत हूं.
अन्त में समीर जी को बता दूं इग्नोर करना ऐसी भयानक स्थितियों का मार्ग देना है. इग्नोरेन्स की सीमा होनी चाहिये