2.5.10

पाड्कास्ट अन्त्याक्षरी : एपीसोड 02

मिसफ़िट पर गत रात्रि प्रस्तुत अन्त्याक्षरी के उपरांत जो हुआ वो कमाल ही थी ...... स्पोर्ट से जुड़ीं श्रीमति अर्चना चावजी को बच्चों ने घेर लिया देर रात एपीसोड की रिकार्डिंग के लिये बाध्य किया . सभी बच्चे अर्चना जी की अवाज़ के मुरीद बने . चिन्मय,समर्थ,शुभम,शिवानी,सुप्रिया, सभी को आज़ यात्रा पे निकलना है सो अर्चना जी के साथ अन्त्याक्षरी रिकार्ड करने के ज़िद के आगे हमने तो घुटने टेक ही दिये , बालहट के सामने किसकी चले सकती है.... और तैयार हुआ यह एपीसोड जो आपकी नज़र है .... श्रोता गण शायद आप इसे पसंद करें

प्रथम पाड्कास्ट अन्त्याक्षरी : श्रीमति अर्चना चावजी एवम सुलभा बिल्लोरे

 श्रीमति अर्चना चावजी एवम श्रीमति सुलभा बिल्लोरे ने आज़ अन्त्याक्षरी के प्रथम एपीसोड में सुलभा जी को हराते हुए चार अंक से आगे हुईं. अन्त्याक्षरी के इस ट्रायल एपीसोड में आपका स्वागत है  आपका इस प्रयोग में सहयोग अपेक्षित है

27.4.10

अक्षय कात्यानी की मदद हेतु एकाउंट नम्बर 09322011002264 में सहयोग राशि जमा कीजिये

 CAVS संचार पर प्रकाशित इस आलेख को ध्यान से देखिये 

अक्षय को मदद चाहिए....

अथवा मोहल्ला लाईव पर प्रकाशित इस आलेख को  

जिसमें अक्षय कात्यानी की बीमारी के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है. मित्रों इस आलेख को पोस्ट करने के कुछ क्षण पूर्व श्री सुधीर कात्यानी जी से इस पोस्ट की तस्दीक हुई है. आपसे विनम्र आग्रह है कि आप अक्षय कात्यानी की मदद हेतु ओरिएंटल बैंक आफ़ कामर्स भोपाल,अरेरा कालोनी ब्रांच एकाउंट नम्बर 09322011002264 में सहयोग राशि जमा कीजिये
बात अक्षय की जो एक बीमारी से पीडित है। बीमारी ने उसे ऐसा जकड़ा कि इलाज में पिता की जीवन भर की पूंजी खर्च हो गई इसके बाद भी वो ठीक नही हुआ क्योंकि तब तब इस बीमारी की सही थेरेपी नही आई थी। अब जबकि बीमारी के इलाज की कारगर पद्धति आ गई है पिता के पास बेटे के इलाज के लिए पैसे नही है। यदि समय पर इलाज नही मिला तो युवक का जीवन बचाना मुश्किल होगा।
नाम अक्षय कत्यानी हटटा कटटा गबरू जवान 70 किलो वजन दिखने में स्मार्ट, लेकिन एक बीमारी ने उसे 40 किलो का हाडमांस का पुतला बना दिया । पढाई पूरी की तो टीवी जर्नलिस्ट बन गया लेकिन इस बीमारी के कारण नौकरी छोडनी पड गई और बिस्तर पकड लिया। प्रायवेट बिजनेस करने वाले पिता सुधीर कात्यानी ने बेटे के इलाज के लिए अपने जीवन भर की कमाई खपा दी। गाड़ी बंगला बेच दिया। लेकिन वो ठीक नही हुआ। अब अचानक डाक्टरों ने बताया कि इस बीमारी का कारगर इलाज आ गया है। सिर्फ दो लाख खर्च होंगे। लेकिन अब जबकि वो दाने - दाने को मोहताज हो गए हैं। बेटे के इलाज के लिए दो लाख कहां से लाएं तो क्या इकलौते जवान बेटे को यूँ ही हाथ से चले जाने दे।
मजबूर पिता क्या करे? मदद के लिए सबने हाथ खडे कर दिए हैं। बेटे को अल्सरेटिव्ह कोलाईटिस है। खून की उल्टी दस्त होते हैं। खाना खाते नही बनता। कैंसे माँ - बाप अपने जिगर के टुकडे को तिल - तिल मरते देखें। एक तो बीमारी दूसरा मां - बाप की बेबसी बेटे से देखी नही जाती वो भी ऐंसी जिंदगी से निराश होता जा रहा है। आखिर क्या करे वो कहां जाए। उसकी भी इच्छा है कि मां-बाप के सपनो को पूरा करे। अभी तो पूरी जिंदगी पडी है उसके सामने। सिर्फ दो लाख के पीछे क्या जान जली जाऐगी उसकी। फिलहाल पैसे के अभाव में इलाज रूका है। क्या इस नौजवान को हम दुनिया से विदा हो जाने दें। ऐसे समय में समाज को सामने आना होगा। इस नौजवान की मदद के लिए आईए और इसकी मदद कीजिए। रोशन कीजिए अक्षय की दुनिया को जी लेने दीजिए एक जवान को अपनी पूरी जिंदगी ।
(अतुल पाठक , संपर्क : atul21ap@gmail.com_)
यदि आप अक्षय की कोई मदद करना चाहते हैं तो इन नम्बरों पर संपर्क कर सकते हैं :
योगेश पाण्डेय - 09826591082,
सुधीर कत्यानी (अक्षय के पिता) - 09329632420,
अंकित जोशी (अक्षय के मित्र) - 09827743380,०९६६९५२७८६६
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आलेख :लेखक : अतुल पाठक,CAVS संचार से साभार
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विनम्र अपील :- 

26.4.10

क्षमा वीरस्य भूषणं :विवाद समाप्त होते है माफ़ी मांगने और माफ़ कर देने से

साथियो, एक दिन मेरे अधीनस्त चपरासी राजू का स्वास्थ्य खराब हो जाने एवम ,एक क्लर्क लापरवाही से ,एक सरकारी काम अनावश्यक बाधा उत्पन्न हुई.सारे काम को अगले एक घंटे में पूरा करना था .मेरा पारा सातवें आकाश पर था . जो जी में आया वो बोल रहा था, चपरासी को गुस्से में यह कह दिया :- सर ही दु:ख रहा था न ? मर नही जाते तुम नौकरी करो तमीज़ से करो. 
बात आई गई हो गई.  किंतु मन में कुछ चल रहा था, क्रोध और उतावला पन बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है, राजू पर मेरा अनावश्यक क्रोध व्यक्त करना मुझे ही सालने लगा, मन खिन्न था अगले दिन . रात भर सोचता रहा राजू के जीवन से ज़्यादा जरूरी काम तो न था बस फ़िर तय किया कि कल चपरासी से माफ़ी मागूंगा. वो भी अकेले में नहीं  सारे स्टाफ़ के सामने .... यह कदम प्रशासनिक दृष्टि से सर्वथा गलत हो सकता है किंतु मानवीय दृष्टि से बहुत ही ज़रूरी . यही है आध्यात्म. बस अगले दिन पूरे स्टाफ़ को बुलाया पिछले दिन के बर्ताव के लिये बे हिचक राजु से कहा:-”भाई, मुझे माफ़ करना, सच कल मैने तुम्हारे लिये जिस वाक्य का प्रयोग किया वो अमानवीय था,इसमें  इंसानियत तनिक भी न थी जाने क्यों मन निर्दयी हो गया जो मैने तुम्हारे लिये कहा कि - सर ही दु:ख रहा था न ? मर नही जाते तुम नौकरी करो तमीज़ से करो”इस बात के लिये मुझे तुमसे माफ़ी चाहिये 
राजु सहित सारे लोग अवाक मुझे टकट्की लगाये देख रहे थे,..... राजु की आंखें मैं नमीं थी, और मेरी आंखो में हल्का पन राजु ने कहा:-सा’ब, आप से इतना सुन के ही मन का मैल धुल गया. आप माफ़ी न मांगिये ...! 
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इस घटना के बाद पिछले दिनों शास्त्री जी ने अपने ब्लाग ललित भाई के ब्लागिंग छोड़ने के ऐलान के दूसरे दिन ही फ़ोटो पर माला डाल के जो किया मेरा मन बहुत दु:खी था. लगा शास्त्री जी से कह दूं.  अनिता कुमार जी से हुई पाडकास्ट चिट्ठाचर्चा में इसका ज़िक्र भी किया किंतु आज़ जब कडुवा सचपर  श्याम भाई की पोस्ट देखी तो लगा कि साहसी है श्याम कोरी उदय जी ............. उससे ज़्यादा खुशी हुई तब जब आदरणीय शास्त्री जी ने टिप्पणी में कहा :-

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक April 25, 2010 9:56 AM   श्याम कोरी "उदय" जी ईश्वर जानता है कि इस पोस्ट को लगाने के पीछे मरी कोई दुर्भावना नही थी!
मुझे नही पता था कि आप इसको इतना तूल देंगे! अब तो मैंने वो सब पोस्ट हटा दीं है! आप सब ही तो मेरी ऊर्जा हैं! सादर सद्भावी!
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक April 25, 2010 9:58 AM   यदि कहीं जाने-अनजाने में कोई भूल हुई हो तो उसके लिए तो एक ही शब्द है "क्षमा"
अंत भला सो सब भला 

25.4.10

पाडकास्ट चिट्ठाचर्चा के बाद.... ऑन लाइन ''अन्त्याक्षरी''का प्रयोग ?

ब्लॉग 4 वार्ता पर आपने अनिता कुमार जी से हुई   प्रथम पाडकास्ट चिट्ठा चर्चा के प्रयोग को जो स्नेह दिया उसके लिए आभारी हूं  यह पाडकास्ट मूल स्वरुप में पेश किया है अत: तकनीकी कमियां हैं जिसे सुधार ने के जुगाड़ में हूं शीघ्र ही सारी कमियां दूर हों इस हेतु आप सुधि जन भी मुझे युक्ति शुझा सकतें हैं.... अत: कल आन लाइन अन्त्याक्षरी वाला प्रयोग करने जा रहा था कुछ  समय के लिए स्थगित कर रहा हूं

आप के सुझाव सादर आमंत्रित हैं
चलते चलते दीपक 'मशाल',महाशक्ति ,महफूज़  मियाँ  ,मिथलेश दुबे सहित सभी ''बेचारे-कुंवारों    को स्नेह सहित समर्पित गीत सुनिए यहां

21.4.10

कवयत्रि अर्चना की पहली कविता प्रस्तुत है पाडकास्ट पर

कवयत्रि अर्चना की पहली  कविता प्रस्तुत है पाडकास्ट  पर . हिन्दी कविता और उसके लिए समर्पित अर्चना  जी की एक बेहतरीन कविता ''टुकड़ों में बंटी मैं '' उत्कृष्ट बन पडी है . अच्छी कविता के लिएउनका ब्लॉग ''मेरे मन की '' अवश्य देखिये

खेल-खेल मे....mp3


साथ ही साथ ये गीत भी सुनिये
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19.4.10

माचिस की तीली के ऊपर बिटिया की पलती आग:भाग तीन [पाड्कास्ट में]

सुधि  श्रोतागण एवम पाठक/पाठिका गिरीश का हार्दिक अभिवादन स्वीकारिये आज़ मैने किसी का साक्षात्कार रिकार्ड नहीं किया अपनी ही आवाज़ में अपने सबसे लम्बे गीत के वे अंश प्रस्तुत कर रहा हूं जो बाह्य और अंतस की आग को चित्रिर करतें हैं सफ़ल हूं या असफ़ल फ़ैसला आप सुधिजनों के हाथ है...........
इसे सुनिये =>


अथवा पढिये =>
माचिस की तीली के ऊपर बिटिया की से पलती आग
यौवन की दहलीज़ को पाके बनती संज्ञा जलती आग .
********
एक शहर एक दावानल ने निगला नाते चूर हुए
मिलने वाले दिल बेबस थे अगुओं से मज़बूर हुए
झुलसा नगर खाक हुए दिल रोयाँ रोयाँ छलकी आग !
********
युगदृष्टा से पूछ बावरे, पल-परिणाम युगों ने भोगा
महारथी भी बाद युद्ध के शोक हीन कहाँ तक होगा
हाँ अशोक भी शोकमग्न था,बुद्धं शरणम हलकी आग !
********
सुनो सियासी हथकंडे सब, जान रहे पहचान रहे
इतना मत करना धरती पे , ज़िंदा न-ईमान रहे !
अपने दिल में बस इस भय की सुनो सियासी-पलती आग ?
********
तुमने मेरे मन में बस के , जीवन को इक मोड़ दिया.
मेरा नाता चुभन तपन से , अनजाने ही जोड़ दिया
तुलना कुंठा वृत्ति धाय से, इर्षा पलती बनती आग !
********
रेत भरी चलनी में उसने,चला सपन का महल बनाने
अंजुरी भर तालाब हाथ ले,कोशिश देखो कँवल उगा लें
दोष ज़हाँ पर डाल रही अंगुली आज उगलती आग !!

उफ़्फ़ शरद कोकास भीषण गर्मी को भी एन्जोय करते है ?

http://www.bhaskar.com/2009/05/01/images/demo_6499267300420091111.gifइस बात में कोई दो राय नहीं प्यासे पाखी-और पेड पानी पियॆं इसके लिये सजग हमको रहना है बस हमें जो करना है कि उनके लिये छत आंगन में पानी और  सूखते झुलसते पेडों पौधौं को पानी पिलाना है जी हां यही तो कह रहें हैं शरद कोकास जीसुनिये क्या कहा है उनने

18.4.10

पारे की उछाल :बवाल हुये लाल

जी आज अखबारों ने बताया कि पारा 45 डिग्री को छू रहा है . ब्लॉगर मित्र मियाँ बवाल सवा नौ बजे पधारे कहने लगे गिरीश भाई बाहर तो खूब गरम है "आल इज़ नॉट वैल"..... गरमी से बेहाल हुए "लाल” को लस्सी पिला के पाडकास्ट रिकार्ड किया पेश ए ख़िदमत है :- मज़ेदार बात चीत


इसे इधर भी सुना जाये

17.4.10

ब्लाग वाणी का शुक्रिया

ब्लागवाणी द्वारा  नये शामिल किये चिट्ठों को साइड बार में  दिखाना चालू किया है ये ब्लाग लम्बी अवधि के लिए
देखिये शायद कोई रचनाकार आपको मोह ले........ मित्रो इनकी सराहना उत्साहवर्धन ज़रूरी है बगैर यह जाने की ये ब्लाग कहां का है किसका है काले रंग के व्यक्ति ने लिखा या गोरे ने हिन्दू का है कि मोमिन का यानि जब मन इन से उपर उठ के बात हो तो फ़िर क्या कहना  ये रहे कुछ लिंक ब्लागवाणी से साभार
बुरांस बात बेबात अजनबी दुनिया राष्ट्र जागरण JOLLY UNCLE's Jokes & Article's उल्लू वाणी अनकही... गणतंत्र दस रुपया एक दिन नास्तिकों का ब्लॉग JANTA KI FIR Rosa Centrifolia :) :) :) शब्द-शब्द अनमोल भारत-भाग्य honestyprojectrealdemocracy छत्तीसगढ़ ख़बर इधर - उधर की एक बात ... anjana Mere Yatra ki kahaniyan मेरी यात्रा की कहानियाँ Guldasta Awadhesh Pandey ( अवधेश पाण्डेय )
 साथियो आज से नई-सुबह की शुरुआत हो इस आकांक्षा के साथ


 

15.4.10

वापस आ जाओ आस्तीन में

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh5AIB7rLBa2E8MO_z8NFHRD5tOoB4u5SChNbi1x2SklOjsHQdnrDw4nEba3ZllUyDxrz_Qdi5enNTk28zPoB7jfPf2AJU1jptRYsApbo4gz7nyGXSam4hyphenhyphenYh47GcyKKqAh3Onf0v2oJYw/s320/cobra.jpgप्रिय तुमने जबसे मेरी आस्तीन छोड़ी तबसे मुझे अकेलापन खाए जा रहा है । तुम क्या जानो तुम्हारे बिना मुझे ये अकेला पन कितना सालता है । हर कोई ऐरा-गैरा केंचुआ भी डरा देता है।

भैये.....साफ-साफ सुन लो- "दुनियाँ में तुम से बड़े वाले हैं खुले आम घूम रहें हैं तुम्हारा तो विष वमन का एक अनुशासन है इनका....?"जिनका कोई अनुशासन है ही नहीं ,यार शहर में गाँव में गली में कूचों में जितना भी विष फैला है , धर्म-स्थल पे , कार्य स्थल पे , और-तो-और सीमा पार से ये बड़े वाले लगातार विष उगलतें हैं....मित्र मैं इसी लिए केवल तुमसे संबंध बनाए रखना चाहता हूँ ताकि मेरे शरीर में प्रतिरक्षक-तत्व उत्पन्न  विकसित हो सके.
जीवन भर तुम्हारे साथ रह कर कम से कम मुझे इन सपोलों को प्रतिकारात्मक फुंकारने का अभ्यास तो हों ही गया है।भाई मुझे छोड़ के कहीं बाहर मत जाना । तुम्हें मेरे अलावा कोई नहीं बचा सकता मेरी आस्तीनों में मैनें कईयों को महफूज़ रखा है। तुम मेरी आस्तीन छोड़ के अब कहीं न जाना भाई.... । देखो न आज़ कल तुम्हारे विष के महत्व को बहु राष्ट्रीय कम्पनीयां महत्व दे रहीं हैं.वे  तुम्हारे विष को डालर में बदलने के लिए लोग तैयार खड़े हैं जी । सुना है तुम्हारे विष की बडी कीमत है । तुम्हारी खाल भी उतार लेंगें ये लोग , देखो न हथियार लिए लोग तुम्हारी हत्या करने घूम हैं । नाग राज़ जी अब तो समझ जाओ । मैं और तुम मिल कर एक क्रांति सूत्र पात करेंगें । मेरी आस्तीन छोड़ के मत जाओ मेरे भाई।
मुझे गिरीश कहतें हैं कदाचित शिव का पर्याय है जो गले में आभूषण की तरह तुमको गले में सजाये रहते हैं हम तो बस तुमको आस्तीन में बसा लेना चाहतें हैं. ताकि वक्त ज़रूरत अपनी उपलब्धियों के वास्ते ‘पक्के-वाले‘ मित्रों के सीनों पर लोटने तुमको भेज सकूं . ये पता नहीं किस किस को सीने पे लोटने की अनुमति दे रहे हैं आज़कल ?
प्रिय विषधर, अब बताओ तुम्हारे बिना मेरा रहना कितना मुश्किल है.  कई दिनों से कुछ दो-पाया विषधर मुझे हडकाए पडे हैं मारे डर के कांप रहा हूं. अकेला जो हूं ..... हम तुम मिलकर शक्ति का भय दिखायेंगे . तुम्हारा विष ओर मेरा दिमाग मिल कर निपट लेंगें दुनियां से इसी लिये तो दोस्त तुमसे अनुरोध कर रहा हूं दोस्त ज़ल्द खत मिलते ही चले आओ ......वरना मुझे तुमको वापस लाने के सारे तरीके मालूम हैं.
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सुनिए भी
       

                       
   
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