साथियो, एक दिन मेरे अधीनस्त चपरासी राजू का स्वास्थ्य खराब हो जाने एवम ,एक क्लर्क लापरवाही से ,एक सरकारी काम अनावश्यक बाधा उत्पन्न हुई.सारे काम को अगले एक घंटे में पूरा करना था .मेरा पारा सातवें आकाश पर था . जो जी में आया वो बोल रहा था, चपरासी को गुस्से में यह कह दिया :- सर ही दु:ख रहा था न ? मर नही जाते तुम नौकरी करो तमीज़ से करो.
बात आई गई हो गई. किंतु मन में कुछ चल रहा था, क्रोध और उतावला पन बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है, राजू पर मेरा अनावश्यक क्रोध व्यक्त करना मुझे ही सालने लगा, मन खिन्न था अगले दिन . रात भर सोचता रहा राजू के जीवन से ज़्यादा जरूरी काम तो न था बस फ़िर तय किया कि कल चपरासी से माफ़ी मागूंगा. वो भी अकेले में नहीं सारे स्टाफ़ के सामने .... यह कदम प्रशासनिक दृष्टि से सर्वथा गलत हो सकता है किंतु मानवीय दृष्टि से बहुत ही ज़रूरी . यही है आध्यात्म. बस अगले दिन पूरे स्टाफ़ को बुलाया पिछले दिन के बर्ताव के लिये बे हिचक राजु से कहा:-”भाई, मुझे माफ़ करना, सच कल मैने तुम्हारे लिये जिस वाक्य का प्रयोग किया वो अमानवीय था,इसमें इंसानियत तनिक भी न थी जाने क्यों मन निर्दयी हो गया जो मैने तुम्हारे लिये कहा कि - सर ही दु:ख रहा था न ? मर नही जाते तुम नौकरी करो तमीज़ से करो”इस बात के लिये मुझे तुमसे माफ़ी चाहिये
राजु सहित सारे लोग अवाक मुझे टकट्की लगाये देख रहे थे,..... राजु की आंखें मैं नमीं थी, और मेरी आंखो में हल्का पन राजु ने कहा:-सा’ब, आप से इतना सुन के ही मन का मैल धुल गया. आप माफ़ी न मांगिये ...!
____________________________________________________ इस घटना के बाद पिछले दिनों शास्त्री जी ने अपने ब्लाग ललित भाई के ब्लागिंग छोड़ने के ऐलान के दूसरे दिन ही फ़ोटो पर माला डाल के जो किया मेरा मन बहुत दु:खी था. लगा शास्त्री जी से कह दूं. अनिता कुमार जी से हुई पाडकास्ट चिट्ठाचर्चा में इसका ज़िक्र भी किया किंतु आज़ जब कडुवा सचपर श्याम भाई की पोस्ट देखी तो लगा कि साहसी है श्याम कोरी उदय जी ............. उससे ज़्यादा खुशी हुई तब जब आदरणीय शास्त्री जी ने टिप्पणी में कहा :-
- मुझे नही पता था कि आप इसको इतना तूल देंगे! अब तो मैंने वो सब पोस्ट हटा दीं है! आप सब ही तो मेरी ऊर्जा हैं! सादर सद्भावी!