माचिस की तीली के ऊपर बिटिया की पलती आग:भाग तीन [पाड्कास्ट में]

सुधि  श्रोतागण एवम पाठक/पाठिका गिरीश का हार्दिक अभिवादन स्वीकारिये आज़ मैने किसी का साक्षात्कार रिकार्ड नहीं किया अपनी ही आवाज़ में अपने सबसे लम्बे गीत के वे अंश प्रस्तुत कर रहा हूं जो बाह्य और अंतस की आग को चित्रिर करतें हैं सफ़ल हूं या असफ़ल फ़ैसला आप सुधिजनों के हाथ है...........
इसे सुनिये =>


अथवा पढिये =>
माचिस की तीली के ऊपर बिटिया की से पलती आग
यौवन की दहलीज़ को पाके बनती संज्ञा जलती आग .
********
एक शहर एक दावानल ने निगला नाते चूर हुए
मिलने वाले दिल बेबस थे अगुओं से मज़बूर हुए
झुलसा नगर खाक हुए दिल रोयाँ रोयाँ छलकी आग !
********
युगदृष्टा से पूछ बावरे, पल-परिणाम युगों ने भोगा
महारथी भी बाद युद्ध के शोक हीन कहाँ तक होगा
हाँ अशोक भी शोकमग्न था,बुद्धं शरणम हलकी आग !
********
सुनो सियासी हथकंडे सब, जान रहे पहचान रहे
इतना मत करना धरती पे , ज़िंदा न-ईमान रहे !
अपने दिल में बस इस भय की सुनो सियासी-पलती आग ?
********
तुमने मेरे मन में बस के , जीवन को इक मोड़ दिया.
मेरा नाता चुभन तपन से , अनजाने ही जोड़ दिया
तुलना कुंठा वृत्ति धाय से, इर्षा पलती बनती आग !
********
रेत भरी चलनी में उसने,चला सपन का महल बनाने
अंजुरी भर तालाब हाथ ले,कोशिश देखो कँवल उगा लें
दोष ज़हाँ पर डाल रही अंगुली आज उगलती आग !!

टिप्पणियाँ

हर्षिता ने कहा…
रेत भरी चलनी में उसने,चला सपन का महल बनाने
अंजुरी भर तालाब हाथ ले,कोशिश देखो कँवल उगा लें
दोष ज़हाँ पर डाल रही अंगुली आज उगलती आग !!

अच्छी अभिव्यक्ति है,विपरीत परिस्थितियों में भी अनुकूल वातावरण बनाने वाला इंसान ही वास्तविक इंसान होता है।
SACCHAI ने कहा…
सुनो सियासी हथकंडे सब, जान रहे पहचान रहे
इतना मत करना धरती पे , ज़िंदा न-ईमान रहे !
अपने दिल में बस इस भय की सुनो ‘सियासी-पलती आग ?

bahut hi badhiya aur dilchasp baat kahe di aapne

badhai

----- eksacchai { aawaz }

http://eksacchai.blogspot.com
Gautam RK ने कहा…
अच्छी अभिव्यक्ति है||||





"RAMKRISHNA"
Mayur Malhar ने कहा…
बहुत सुंदर मज़ा आ गया.
akelahoon ने कहा…
this is best one i have ever heard. congrates for this
शुक्रिया रामकृष्ण जी आपका तो हम कितना अभार कहें कम है
मयूर आप दौनो एक दिन आईये स्वागत है
M VERMA ने कहा…
युगदृष्टा से पूछ बावरे, पल-परिणाम युगों ने भोगा
महारथी भी बाद युद्ध के शोक हीन कहाँ तक होगा
हाँ अशोक भी शोकमग्न था,बुद्धं शरणम हलकी आग !
अद्भुत और फिर आपका स्वर
मिसाल तो है ही नहीं
दीपक 'मशाल' ने कहा…
kahne me zara bhi kanjoosi nahin karoonga ki aapne bade bhaavpravan aur manbhaavan tareeke se paath kiya hai kavita ka.
बेनामी ने कहा…
भावप्रवण अभिव्यक्ति

आभार
बेनामी ने कहा…
सुनो सियासी हथकंडे सब, जान रहे पहचान रहे
इतना मत करना धरती पे , ज़िंदा न-ईमान रहे !
ye lines mujhe bahut hi acchi lagi. aapne bahut hi acche se kavita paath kiya hai.
Udan Tashtari ने कहा…
आनन्द आ गया सुनकर...बहुत सुन्दर रचना!!
Gautam RK ने कहा…
@गिरीश जी, मुझे "आभार" की नहीं, आपके "आशीष" की आवश्यकता है|



"रामकृष्ण"
Anita kumar ने कहा…
एक शहर एक दावानल ने निगला नाते चूर हुए
मिलने वाले दिल बेबस थे अगुओं से मज़बूर हुए
झुलसा नगर खाक हुए दिल रोयाँ रोयाँ छलकी आग !

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

क्यों लिखते हैं दीवारों पर - "आस्तिक मुनि की दुहाई है"

विमर्श

सावन के तीज त्यौहारों में छिपे सन्देश भाग 01