21.4.10

कवयत्रि अर्चना की पहली कविता प्रस्तुत है पाडकास्ट पर

कवयत्रि अर्चना की पहली  कविता प्रस्तुत है पाडकास्ट  पर . हिन्दी कविता और उसके लिए समर्पित अर्चना  जी की एक बेहतरीन कविता ''टुकड़ों में बंटी मैं '' उत्कृष्ट बन पडी है . अच्छी कविता के लिएउनका ब्लॉग ''मेरे मन की '' अवश्य देखिये

खेल-खेल मे....mp3


साथ ही साथ ये गीत भी सुनिये
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19.4.10

माचिस की तीली के ऊपर बिटिया की पलती आग:भाग तीन [पाड्कास्ट में]

सुधि  श्रोतागण एवम पाठक/पाठिका गिरीश का हार्दिक अभिवादन स्वीकारिये आज़ मैने किसी का साक्षात्कार रिकार्ड नहीं किया अपनी ही आवाज़ में अपने सबसे लम्बे गीत के वे अंश प्रस्तुत कर रहा हूं जो बाह्य और अंतस की आग को चित्रिर करतें हैं सफ़ल हूं या असफ़ल फ़ैसला आप सुधिजनों के हाथ है...........
इसे सुनिये =>


अथवा पढिये =>
माचिस की तीली के ऊपर बिटिया की से पलती आग
यौवन की दहलीज़ को पाके बनती संज्ञा जलती आग .
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एक शहर एक दावानल ने निगला नाते चूर हुए
मिलने वाले दिल बेबस थे अगुओं से मज़बूर हुए
झुलसा नगर खाक हुए दिल रोयाँ रोयाँ छलकी आग !
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युगदृष्टा से पूछ बावरे, पल-परिणाम युगों ने भोगा
महारथी भी बाद युद्ध के शोक हीन कहाँ तक होगा
हाँ अशोक भी शोकमग्न था,बुद्धं शरणम हलकी आग !
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सुनो सियासी हथकंडे सब, जान रहे पहचान रहे
इतना मत करना धरती पे , ज़िंदा न-ईमान रहे !
अपने दिल में बस इस भय की सुनो सियासी-पलती आग ?
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तुमने मेरे मन में बस के , जीवन को इक मोड़ दिया.
मेरा नाता चुभन तपन से , अनजाने ही जोड़ दिया
तुलना कुंठा वृत्ति धाय से, इर्षा पलती बनती आग !
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रेत भरी चलनी में उसने,चला सपन का महल बनाने
अंजुरी भर तालाब हाथ ले,कोशिश देखो कँवल उगा लें
दोष ज़हाँ पर डाल रही अंगुली आज उगलती आग !!

उफ़्फ़ शरद कोकास भीषण गर्मी को भी एन्जोय करते है ?

http://www.bhaskar.com/2009/05/01/images/demo_6499267300420091111.gifइस बात में कोई दो राय नहीं प्यासे पाखी-और पेड पानी पियॆं इसके लिये सजग हमको रहना है बस हमें जो करना है कि उनके लिये छत आंगन में पानी और  सूखते झुलसते पेडों पौधौं को पानी पिलाना है जी हां यही तो कह रहें हैं शरद कोकास जीसुनिये क्या कहा है उनने

18.4.10

पारे की उछाल :बवाल हुये लाल

जी आज अखबारों ने बताया कि पारा 45 डिग्री को छू रहा है . ब्लॉगर मित्र मियाँ बवाल सवा नौ बजे पधारे कहने लगे गिरीश भाई बाहर तो खूब गरम है "आल इज़ नॉट वैल"..... गरमी से बेहाल हुए "लाल” को लस्सी पिला के पाडकास्ट रिकार्ड किया पेश ए ख़िदमत है :- मज़ेदार बात चीत


इसे इधर भी सुना जाये

17.4.10

ब्लाग वाणी का शुक्रिया

ब्लागवाणी द्वारा  नये शामिल किये चिट्ठों को साइड बार में  दिखाना चालू किया है ये ब्लाग लम्बी अवधि के लिए
देखिये शायद कोई रचनाकार आपको मोह ले........ मित्रो इनकी सराहना उत्साहवर्धन ज़रूरी है बगैर यह जाने की ये ब्लाग कहां का है किसका है काले रंग के व्यक्ति ने लिखा या गोरे ने हिन्दू का है कि मोमिन का यानि जब मन इन से उपर उठ के बात हो तो फ़िर क्या कहना  ये रहे कुछ लिंक ब्लागवाणी से साभार
बुरांस बात बेबात अजनबी दुनिया राष्ट्र जागरण JOLLY UNCLE's Jokes & Article's उल्लू वाणी अनकही... गणतंत्र दस रुपया एक दिन नास्तिकों का ब्लॉग JANTA KI FIR Rosa Centrifolia :) :) :) शब्द-शब्द अनमोल भारत-भाग्य honestyprojectrealdemocracy छत्तीसगढ़ ख़बर इधर - उधर की एक बात ... anjana Mere Yatra ki kahaniyan मेरी यात्रा की कहानियाँ Guldasta Awadhesh Pandey ( अवधेश पाण्डेय )
 साथियो आज से नई-सुबह की शुरुआत हो इस आकांक्षा के साथ


 

15.4.10

वापस आ जाओ आस्तीन में

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh5AIB7rLBa2E8MO_z8NFHRD5tOoB4u5SChNbi1x2SklOjsHQdnrDw4nEba3ZllUyDxrz_Qdi5enNTk28zPoB7jfPf2AJU1jptRYsApbo4gz7nyGXSam4hyphenhyphenYh47GcyKKqAh3Onf0v2oJYw/s320/cobra.jpgप्रिय तुमने जबसे मेरी आस्तीन छोड़ी तबसे मुझे अकेलापन खाए जा रहा है । तुम क्या जानो तुम्हारे बिना मुझे ये अकेला पन कितना सालता है । हर कोई ऐरा-गैरा केंचुआ भी डरा देता है।

भैये.....साफ-साफ सुन लो- "दुनियाँ में तुम से बड़े वाले हैं खुले आम घूम रहें हैं तुम्हारा तो विष वमन का एक अनुशासन है इनका....?"जिनका कोई अनुशासन है ही नहीं ,यार शहर में गाँव में गली में कूचों में जितना भी विष फैला है , धर्म-स्थल पे , कार्य स्थल पे , और-तो-और सीमा पार से ये बड़े वाले लगातार विष उगलतें हैं....मित्र मैं इसी लिए केवल तुमसे संबंध बनाए रखना चाहता हूँ ताकि मेरे शरीर में प्रतिरक्षक-तत्व उत्पन्न  विकसित हो सके.
जीवन भर तुम्हारे साथ रह कर कम से कम मुझे इन सपोलों को प्रतिकारात्मक फुंकारने का अभ्यास तो हों ही गया है।भाई मुझे छोड़ के कहीं बाहर मत जाना । तुम्हें मेरे अलावा कोई नहीं बचा सकता मेरी आस्तीनों में मैनें कईयों को महफूज़ रखा है। तुम मेरी आस्तीन छोड़ के अब कहीं न जाना भाई.... । देखो न आज़ कल तुम्हारे विष के महत्व को बहु राष्ट्रीय कम्पनीयां महत्व दे रहीं हैं.वे  तुम्हारे विष को डालर में बदलने के लिए लोग तैयार खड़े हैं जी । सुना है तुम्हारे विष की बडी कीमत है । तुम्हारी खाल भी उतार लेंगें ये लोग , देखो न हथियार लिए लोग तुम्हारी हत्या करने घूम हैं । नाग राज़ जी अब तो समझ जाओ । मैं और तुम मिल कर एक क्रांति सूत्र पात करेंगें । मेरी आस्तीन छोड़ के मत जाओ मेरे भाई।
मुझे गिरीश कहतें हैं कदाचित शिव का पर्याय है जो गले में आभूषण की तरह तुमको गले में सजाये रहते हैं हम तो बस तुमको आस्तीन में बसा लेना चाहतें हैं. ताकि वक्त ज़रूरत अपनी उपलब्धियों के वास्ते ‘पक्के-वाले‘ मित्रों के सीनों पर लोटने तुमको भेज सकूं . ये पता नहीं किस किस को सीने पे लोटने की अनुमति दे रहे हैं आज़कल ?
प्रिय विषधर, अब बताओ तुम्हारे बिना मेरा रहना कितना मुश्किल है.  कई दिनों से कुछ दो-पाया विषधर मुझे हडकाए पडे हैं मारे डर के कांप रहा हूं. अकेला जो हूं ..... हम तुम मिलकर शक्ति का भय दिखायेंगे . तुम्हारा विष ओर मेरा दिमाग मिल कर निपट लेंगें दुनियां से इसी लिये तो दोस्त तुमसे अनुरोध कर रहा हूं दोस्त ज़ल्द खत मिलते ही चले आओ ......वरना मुझे तुमको वापस लाने के सारे तरीके मालूम हैं.
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