9.10.08
ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी
मूवी मेकर से आज पहली वीडियो टेस्ट पोस्ट तैयार की है स्टिल फोटो कलेक्शन से तैयार कराने की कोशिश की है
आपका आशीर्वाद ज़रूरी है । इस पोस्ट पर मार्गदर्शन सुधार के लिए ज़रूरी है सनाम टिप्पणियाँ स्वागत योग्य होंगीं
8.10.08
: फ़िल्म आज फ़िर जीने की तमन्ना है में आभास जोशी
7.10.08
गेट नंबर चार जबलपुर
''दादा,हम इमदाद का इंतजाम तो कर देंगे पर इस बच्चे को काम पे रखने के लिए लछमन पे एक्शन भी लेना चाहतें हैं बच्चे के बाप को भी........!''
शाम को बच्चे के पिता को बुलवाया गया जो मारे डर के पेश न हुआ . मैंने शहर के बालविकास परियोजना अधिकारी मित्र को कहा की मेरे निवास क्षेत्र की एक चाय की दूकान में बाल श्रमिक है जो आपका क्षेत्र में है वैसे मैं काउंसलिंग से मामला सुलझा दूंगा यदि वो समझाने पे न माना तो फ़िर आप कारर्वाई करदेंगे मैं गवाही दूंगा ।
मेरे मित्र मनीष भाई राजी थे । "एक जुलाई"करीब थी सो एक रविवार मैं पूरे सरकारी रौब-दाब के साथ पहुंचा लछमन की दूकान पे, जहाँ लछमन ने मुझे देखते ही कहा:सा'ब, ये आज जा रहा है , काय रे आज से मत आना, !
बारह साल का बालक हाँ का संकेत करके मुझे फेस न कराने की गरज से पतली गली से निकल पडा जो चाय वाले की समझदारी थी जो उसकी बेवकूफी थी मेरी नज़र में । जब मैंने धौंस देकर उस बच्चे से बात कराने की बात कही और ये भी कहा :-"लछमन,मोहल्ले के नाते तुम को छोड़ दूंगा अगर तुम बच्चे से मिलवा दो तो...!" निशाना सटीक लगा आनन् फानन किसी चिलम ची के ज़रिए बालक वापस बुलाया गया।
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क्यों भाई होटल में कप-प्लेट क्यों धोते हो ?
"तो,क्या करें...?सा'ब जी "
''स्कूल जाओ...!
स्कूल के लिए तो कप-बसी धोते हैं
झूठ बोल रहे हो ?
नईं साहब ये सही कह रहा है पास खड़े आदमी का ज़बाब मुझे झूठा लगा तो मैंने उसे घूर के देखा उसने कहा ''हजूर, ये सही बोल रहा है। बात की पुष्ठी कुछ लोगों ने और की बस मेरी अफसरी धरी की धरी रह गयी और मन का कवि जाग उठा मर्म तक जाने को । उस बच्चे की आँख में निर्भीक बचपन जो सुनहरे सपने देखा रहा था मुझ को भी साफ़ दिखाई देने लगे ।
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दसेक बरस पहले महानद्दा मदन महल क्षेत्र की किसी सरदार की आरा मशीन पे काम करते समय अपनी अंगुली गवाने वाला कामता प्रसाद ही रितेश का पिता है जो अब रिक्शा चलाता है । जबलपुर में मेट्रो के पहले और अभी भी मज़दूरी का साधन रिक्शा ही है गाँव से आया इंसान यहाँ रात तक १००-१५० रूपए आराम से कमा लेता है . पास के सिवनी जिले की घन्सोर तहसील के गाँव किन्दरई का बासिन्दा कामता पाटवेकर पत्थरों से अटी ज़मीन से क्या कमाता सो शहर आ गया । बूडे-माँ बाप भी यही चाहते थे । कामता को आरा मशीन पे काम करते हुए रोज़गार मिला और मिली विकलांगता । उसके तीन बेटे और दो बेटियाँ हैं रीतेश सबसे बड़ा उसकी आंखों में सफल भविष्य के सपने तैर रहे हैं जीवन को गढ़ता उसका बचपन हर लंबी छुट्टियों में पिता के पास जबलपुर आता छुट्टियों में चाय ठेले पे काम करता पैसा जोड़ता वापस गाँव जाकर बूढ़ी दादी की सेवा और पढाई साथ-साथ करता है। कामता अपने बाकी बच्चों के साथ शहर में शास्त्री ब्रिज के पास झोपड़ पटटी में रहता है ।
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रीतेश से जब मैं पहली बार मिला था तब वो सात वीं पास कर के आठवें दर्जे में दाखिले की तैयारी में था । इस साल फर्स्ट क्लास में आठवीं पास की है उसने गाँव के पास के स्कूल में नवमीं में दाखिला लिया है इस बरस वो चौराहे पे आया है लोगों के झूठे कप-प्लेट धोने नहीं बल्कि सभी से मिलने जुलने । आज ही आया जबलपुर का दशहरा देखने मुझे मिलने भी पूछ रहा था :-"साहब जी , आपने जो मदद की उसे कैसे चुकाउंगा ?"
मेरी पत्नी ने उसे समझाया:"बेटे जब कभी किसी की मदद करने लायक हो जाना तो एक और रीतेश की मदद ज़रूर करना "
चित्र:साभार बीबीसी:www.bbc.co.uk/hindi/
6.10.08
गुजरात का गरबा अब शेष भारत और विश्व का हो गया
जबलपुर का गरबा फोटो अरविंद यादव जबलपुर |
जबलपुर का गरबा फोटो अरविंद यादव जबलपुर |
गुजरात के व्यापारियों एवं
प्रवासियों ने सम्पूर्ण भारत ही नहीं
बल्कि विश्व को अपनी संस्कृति से परिचित
कराया इतना ही नहीं उसे सर्व प्रिय भी बना दिया.
गरबा गुजरात से निकल कर भारत के सुदूर
प्रान्तों तथा विश्व के उन देशों तक जा पहुंचा है जहाँ भी गुजराती परिवार जा बसे
हैं , एक महिला मित्र
प्रीती गुजरात सूरत से हैं उनको मैंने कभी न तो देखा किंतु मेरे कला रुझान को परख
कर पहले आरकुट फिर फेसबुक पर मित्र बन
गयीं हैं ,जो मुझसे अक्सर गुजरात के सूरत, गांधीनगर, भरूच, आदि के बारे में अच्छी जानकारियाँ देतीं है . मेरे आज विशेष आग्रह
पर मुझे सूरत में आज हुए गरबे का फोटो सहजता से भेज दिए .
लेखिका गायत्री शर्मा बतातीं हैं कि "गरबों की शान पारंपरिक पोशाकों से चार-गुनी हो जाती है. इनमें महिलाओं के लिए चणिया-चोली
और पुरुषों के लिए केडि़या" गरबा
आयोजनों में देखी जा सकती है।
आवारा बंजारा ब्लॉग पर
प्रकाशित पोस्ट गरबा का
जलवा में लेखक ने स्पष्ट किया है :-" गुजरात
नौवीं शताब्दी में चार भागों में बंटा हुआ था, सौराष्ट्र,
कच्छ, आनर्ता (उत्तरी गुजरात) और लाट (
दक्षिणी गुजरात)। इन सभी हिस्सों के अलग अलग लोकनृत्य लोक नृत्यों गरबा, लास्या, रासलीला, डाँडिया रास, दीपक
नृत्य, पणिहारी, टिप्पनी और झकोलिया की
मौजूदगी गुजरात के सांस्कृतिक वैभव को मज़बूती प्रदान करती है ।
अब सवाल यह उठता है कि करीब करीब मिलती
जुलती शैली के बावजूद सिर्फ़ गरबा या
डांडिया की ही नेशनल या इंटरनेशनल छवि क्यों बनी। शायद इसके पीछे इसका – गरबे के
आकर्षक परिधान एवं नवरात्री पूजा-पर्व है।"
एक दूसरा सच यह भी है कि- व्यवसायिता का तत्व गरबा को
प्रसिद्द कर रहा है. फिल्मों में गरबे को , एवं चणिया-चोली केडि़या के आकर्षक उत्सवी
परिधान की मार्केटिंग रणनीति ने गरबे को वैश्विक
बना दिया है. "
दूसरी ओर अंधाधुंध व्यवसायिकता से नाराज
ब्लॉग लेखक संजीत भाई की पोस्ट में गरबे
की व्यावसायिकता से दूर रखने की वकालत की गई है. ,इस पर भाई संजय पटेल की
टिप्पणी उल्लेखनीय है कि "संजीत भाई;गरबा अपनी गरिमा और लोक-संवेदना खो चुका है । मैने तक़रीबन बीस बरस तक
मेरे शहर के दो प्रीमियम आयोजनो में बतौर एंकर शिरक़त की . अब दिल खट्टा हो गया
है. सारा तामझाम कमर्शियल दायरों में है. पैसे का बोलबाला है इस पूरे खेल में और
धंधे साधे जा रहे हैं.''
संजय जी की टिप्पणी एक हद तक सही किंतु
मैं थोडा सा अलग सोच रहा हूँ कि
व्यवसायिकता में बुराई क्या अगर गुजराती परिधान लोकप्रिय हो रहें है , और यदि
सोचा जाए तो गरबा ही नहीं गिद्दा,भांगडा,बिहू,लावनी,सभी को सम्पूर्ण
भारत ने सामूहिक रूप से स्वीकारा है केवल गरबा ही नहीं ये अलग बात है कि गरबा
व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के सहारे सबसे आगे हो गया ।
इन दिनों अखबार समूहों ने
भी गरबे को गुजरात से बाहर अन्य प्रान्तों
तक ले जाने की सफल-कोशिश की हैं ।
इंदौर
का गरबा दल
, मस्कट
में 2008 छा गया था. अब कनाडा, बेल्जियम, यूएसए, सहित विश्व के कई देशों में
लोकप्रिय हुआ तो यह भारत के लिए गर्व की
बात है ।
ये अलग बात है कि गरबे के
लिए महिला साथी भी किराए , उपलब्ध होने जैसे समाचार आने
लगे हैं ।
संजय पटेल जी की शिकायत जायज है. वे
गुजराती हैं पर गरबे के बदले स्वरुप से नाराज
हैं क्योंकि - "चौराहों
पर लगे प्लास्टिक के बेतहाशा फ़्लैक्स, गर्ल फ़्रैण्डस को चणिया-चोली की ख़रीददारी
करवाते नौजवान, देर रात को गरबे के बाद
(तक़रीबन एक से दो बजे के बीच) मोटरसायकलों की आवाज़ोंके साथ जुगलबंदी करते
चिल्लाते नौजवान, घर में माँ-बाप से गरबे में जाने की ज़िद करती जवान बेटियाँ और
के नाम पर लाखों रूपयों की चंदा वसूली, इवेंट मैनेजमेंट के चोचले रोज़ अख़बारों
में छपती गरबा कर रही लड़के-लड़कियों की रंगीन तस्वीरें, देर रात गरबे से लौटी
नौजवान पीढी न कॉलेज जा रही,न दफ़्तर,
उस पर डीजे की कानफ़ोडू आवाज़ें जिनमें से गुजराती लोकगीतों की मधुरता गुम है. मुम्बईया फ़िल्मी स्टाइल का संगीत, बेसुरा संगीत संजय पटेल जी की नाराज़गी की मूल
वज़ह है.
आयोजनों के नाम पर बेतहाशा भीड़...शरीफ़
आदमी की दुर्दशारिहायशी इलाक़ों के मजमें धूल,ध्वनि और
प्रकाश का प्रदूषण बीमारों, शिशुओं,नव-प्रसूताओं
को तकलीफ़ देता है. उस पर नेतागिरी के जलवे ।
मानों जनसमर्थन जुटाने के लिये एक राह खुल गई हो
नवरात्रों में देवी की आराधना ...वह
भक्ति जिसके लिये गरबा पर्व गुजरात से चल कर पूरे देश में अपनी पहचान बना रहा है
गायब है ।
देवी माँ उदास हैं कि उसके बच्चों को ये
क्या हो गया है....गुम हो रही है गरिमा,मर्यादा,अपनापन,लोक-संगीत।माँ तुम ही कुछ करो तो करो...बाक़ी
हम सब तो बेबस हैं !
न्यूयार्क के ब्लॉगर भाई चंद्रेश जी ने इसे अपने ब्लॉग Chandresh's IACAW Blog (The Original Chandresh), गरबा शीर्षक से पोष्ट छापी है जो देखने लायक है कि न्यूयार्क के भारत वंशी गरबा के लिए कितने उत्साही हैं
5.10.08
चिट्ठा-चर्चा" के बहाने :एक चर्चा और !
- 1. फुरसतिया
- 2. मोहल्ला
- 3. मानसिक हलचल
- 4. उडन तश्तरी ....
- 5. मेरा पन्ना
- 6. हिन्द-युग्म
- 7. Raviratlami Ka Hindi Blog
- 8. अज़दक
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- 11. भड़ास
- 12. रचनाकार
- 13. कस्बा qasba
- 14. यूनुस ख़ान का हिंदी ब्लॉग : रेडियो वाणी ----yunus khan ka hindi blog RADIOVANI
- 15. शब्दों का सफर
- 16. आलोक पुराणिक की अगड़म बगड़म
- 17. मसिजीवी
- 18. शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लॉग
- 19. कबाड़खाना
- 20. जोगलिखी
- 21. चिट्ठा चर्चा
- 22. प्रत्यक्षा
- 23. आईना
- 24. आवारा बंजारा
- 25. दीपक भारतदीप की शब्द- पत्रिका
- 26. महाशक्ति
- 27. ॥दस्तक॥
- 28. एक शाम मेरे नाम
- 29. समाजवादी जनपरिषद
- 30. आरंभ Aarambha
- 31. mamta t .v.
- 32. दुनिया मेरी नज़र से - world from my eyes!!
- 33. कुछ मेरी कलम से kuch meri kalam se **
- 34. उन्मुक्त
- 35. दीपक भारतदीप की शब्दलेख-पत्रिका
- 36. महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar)
- 37. चोखेर बाली
- 38. अनामदास का चिट्ठा
- 39. नौ दो ग्यारह
- 40. नारी
पद
कविता
वाचक्नवी
mamta
PREETI BARTHWAL
उडन तश्तरी ....
vijay gaur/विजय गौड़ ,
इरफ़ान
संजीव तिवारी
वर्षा
sidharth
रजनीश के झा (Rajneesh K Jha)
Ambesh Kumar सिसोदिया
- काकेश
- pukhraj chopra
- राजीव जैन Rajeev Jain
- .विक्की
- सुजाता
- कुकू
- सिद्धार्थ जोशी
- डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर अशोक
- www.swasamvad.blogspot.कॉम
- Advocate Rashmi saurana,
- उमेश चतुर्वेदी
- Beji
- सहित सभी ब्लॉगर जिनका नाम इस पोस्ट में नहीं ला पा रहा हूँ साधुवाद की पात्रता रखतें है,सभी ब्लागर्स को हार्दिक बधाइयां
4.10.08
बन्दर और चश्मा
चाहे अनचाहे
जीने के लिऐ
जी हाँ इन्हीं साँसों के साथ
अंतस मे मिल जाती है
विषैली हवाओं में पल रहे विषाणु
उगा देते हैं शरीर में रोग
इसे विकास कहते हैं
जो जितना करीब है पर्यावरण से
उतना सुरक्षित है कम-अस-कम
बीमार देह लेकर नहीं मरता
पूरी उम्र मिलती है उसे
मान के सीने से चिपका बंदरिया का बेटा
कल मैंने उसे चूसते देखा है
"मुनगे की फली "
बेटी ने कहा :-"पापा,आज पिज्जा खाना है...!"
मैंने कहा :-"ज़रूर पर बताओ बन्दर का बेटा,
क्या खा रहा है ? "
झट जबाब मिला:-"मुनगा "
आप को पसंद नहीं है॥?
न
तो आपने मुझे चश्मा लगाए देखा है न ?
हाँ,पापा देखा है.....!पर ये सवाल क्यों..........?
मेरे अगले सवाल पे हंस पडी बिटिया
''बन्दर,को कभी चश्मा लगाऐ देखा बेटे...?''
पापा.ये कैसा सवाल है
बेटे,जो प्रकृति के जितना पास है उतना ही सुरक्षित है ।
इसका अर्थ बिटिया कब समझेगी
इस सच से बेखबर चल पङता हूँ ,
बाज़ार से पिज्जा लेने
[ कविता:मुकुल/चित्र:प्रीती]
2.10.08
फतवा:बाबू बाल किशन के लिए जो ब्लॉग नहीं लिखा रहे हैं.....!!
कई दिनों से टिप्पणी तैयार किए बैठे अपुन को सनक चढ़ ही गई की बाबू बालकिशन अगर इस हफ्ते नई पोस्ट न लाएं तो हम सब ब्लॉगर मिल कर इनके विरोध में mamtaजी के नेतृत्त्व में सिंगूर की तरह मोर्चा खोल देंगे ?आपको यकीं हो न हो जबलपुर से महेंद्र मिश्रा,और अपुन एन पूजा पर्व के दौरान मोर्चा निकालेंगे। बात फिट हो या मिसफिट ,इस इस हफ्ते अपन को मोर्चा निकालाना ही होगा चाहे जित्ती -परेशानी, हो । ब्लागिंग करना को नैनो चलाना नहीं है ऊंट पे बैठाना है जब ऊंट की सवारी करते हो भैये तो जान लो की जब जब समय विपरीत हो तो ऊंट पे बैठो तो भी कुत्ता कट लेता है ,सो हे बाबू बाल किशन आप एक ठोऊ ताज़ा पोस्ट छाप काहे नहीं देते । बता दीजिए आप किस दिन किस रंग के कागज पर लिखना चाहते हैं ? सो हम अपनी मोर्चे बाजी को पोस्ट पोंड कर देंगे वर्ना भाई साहब ये तय है कि लफडा तो जाएगा । चलो इस नोटिस के छपने के बाद हमको उम्मीद है कि बाबू जी लिख मारेंगे । समीर भैया आपने तो दसेक टिप्पणी रेडी रखीं ही होंगी। अगर आप गूगल बाबा को देने वाला आइडिया सोच रहे हैं तो सोचना छोड़ दीजिए क्योंकि ,हिंदी के ब्लॉगरों ने गुगल को एक से बढकर एक आइडिये आलरेडी भेज दी हैं । आपका नंबर लगना सम्भव नहीं है "बाबू बालकिशन जी ये पोस्ट केवल एक विनोद हैं बुरा मत मानिए और कहा-न-खास्ता बुरा लग ही जाए तो भैया एक टिप्पणी अपन भी टांक देवेंगे .............सही बात तो ये है की सोए ब्लागर्स को जगाने की कोशिश में हूँ "
आज तो एक कमाल हो गया मत-विमत पर एक ज़बरजस्त पोस्ट वामपंथ और महिलाएं ने उथल-पुथल मचा दी वैसे तो उनके पोस्ट सभी स्तरीय हैं
वामपंथ और महिलाएं
...मगर अक्ल उन्हें नहीं आती
मकबूल फिदा हुसैनः चित्रकार या हुस्नप्रेमी!
बाढ़, बम और करार का नशा
एकता कपूर की धार्मिक और यथास्थितिवादी स्त्रियां
ब्लॉगिंग से शेयर बाजार तक
सुंदरता और स्त्री
अब तो हर आती हुई सुबह और गुजरती हुई रात डराने-सी ल...
लड़की के जन्म पर मातम, नहीं खुशियां मनाएं
विवाहः समाज, परिवार और जात-बिरादरी का क्या काम?
...क्योंकि तुम औरत हो
रूणियों का टूटना जरूरी है क्योंकि...
भूल जाओ, यह दुनिया कभी खत्म होगी
असमानता की विभाजन रेखा को मिटाना होगा
आखिर स्त्री ईश्वर की सत्ता को चुनौती क्यों नहीं दे...
बिहार में इंसानियत जीती है, भगवान हारा है
असहमतियां भी जरूरी हैं
फोर्ब्स पत्रिका में आम-मजदूर महिलाएं जगह क्यों नही...
Wow.....New
आखिरी काफ़िर: हिंदुकुश के कलश
"आखिरी काफ़िर : हिंदूकुश के कलश" The last infidel. : Kalash of Hindukush"" ऐतिहासिक सत्य है कि हिंदूकुश प...
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सांपों से बचने के लिए घर की दीवारों पर आस्तिक मुनि की दुहाई है क्यों लिखा जाता है घर की दीवारों पर....! आस्तिक मुनि वासुकी नाम के पौरा...
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संदेह को सत्य समझ के न्यायाधीश बनने का पाठ हमारी . "पुलिस " को अघोषित रूप से मिला है भारत / राज्य सरकार को चा...
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मध्य प्रदेश के मालवा निमाड़ एवम भुवाणा क्षेत्रों सावन में दो त्यौहार ऐसे हैं जिनका सीधा संबंध महिलाओं बालिकाओं बेटियों के आत्मसम्मान की रक...