2.10.08

फतवा:बाबू बाल किशन के लिए जो ब्लॉग नहीं लिखा रहे हैं.....!!

कई दिनों से टिप्पणी तैयार किए बैठे अपुन को सनक चढ़ ही गई की बाबू बालकिशन अगर इस हफ्ते नई पोस्ट न लाएं तो हम सब ब्लॉगर मिल कर इनके विरोध में mamtaजी के नेतृत्त्व में सिंगूर की तरह मोर्चा खोल देंगे ?आपको यकीं हो न हो जबलपुर से महेंद्र मिश्रा,और अपुन एन पूजा पर्व के दौरान मोर्चा निकालेंगे। बात फिट हो या मिसफिट ,इस इस हफ्ते अपन को मोर्चा निकालाना ही होगा चाहे जित्ती -परेशानी, हो । ब्लागिंग करना को नैनो चलाना नहीं है ऊंट पे बैठाना है जब ऊंट की सवारी करते हो भैये तो जान लो की जब जब समय विपरीत हो तो ऊंट पे बैठो तो भी कुत्ता कट लेता है ,सो हे बाबू बाल किशन आप एक ठोऊ ताज़ा पोस्ट छाप काहे नहीं देते । बता दीजिए आप किस दिन किस रंग के कागज पर लिखना चाहते हैं ? सो हम अपनी मोर्चे बाजी को पोस्ट पोंड कर देंगे वर्ना भाई साहब ये तय है कि लफडा तो जाएगा । चलो इस नोटिस के छपने के बाद हमको उम्मीद है कि बाबू जी लिख मारेंगे । समीर भैया आपने तो दसेक टिप्पणी रेडी रखीं ही होंगी। अगर आप गूगल बाबा को देने वाला आइडिया सोच रहे हैं तो सोचना छोड़ दीजिए क्योंकि ,हिंदी के ब्लॉगरों ने गुगल को एक से बढकर एक आइडिये आलरेडी भेज दी हैं । आपका नंबर लगना सम्भव नहीं है "बाबू बालकिशन जी ये पोस्ट केवल एक विनोद हैं बुरा मत मानिए और कहा-न-खास्ता बुरा लग ही जाए तो भैया एक टिप्पणी अपन भी टांक देवेंगे .............सही बात तो ये है की सोए ब्लागर्स को जगाने की कोशिश में हूँ "

आज तो एक कमाल हो गया मत-विमत पर एक ज़बरजस्त पोस्ट वामपंथ और महिलाएं ने उथल-पुथल मचा दी वैसे तो उनके पोस्ट सभी स्तरीय हैं


वामपंथ और महिलाएं
...मगर अक्ल उन्हें नहीं आती
मकबूल फिदा हुसैनः चित्रकार या हुस्नप्रेमी!
बाढ़, बम और करार का नशा
एकता कपूर की धार्मिक और यथास्थितिवादी स्त्रियां
ब्लॉगिंग से शेयर बाजार तक
सुंदरता और स्त्री
अब तो हर आती हुई सुबह और गुजरती हुई रात डराने-सी ल...
लड़की के जन्म पर मातम, नहीं खुशियां मनाएं
विवाहः समाज, परिवार और जात-बिरादरी का क्या काम?
...क्योंकि तुम औरत हो
रूणियों का टूटना जरूरी है क्योंकि...
भूल जाओ, यह दुनिया कभी खत्म होगी
असमानता की विभाजन रेखा को मिटाना होगा
आखिर स्त्री ईश्वर की सत्ता को चुनौती क्यों नहीं दे...
बिहार में इंसानियत जीती है, भगवान हारा है
असहमतियां भी जरूरी हैं
फोर्ब्स पत्रिका में आम-मजदूर महिलाएं जगह क्यों नही...

5 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बढिया!!

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत बढिया,
धन्यवाद

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

Dr. Amar Jyoti said...

प्रिय गिरीश जी,
आपने अपनी टिप्पणी में मेरे नाम व टिप्पणी का उल्लेख करते हुए कहा है कि मैने बचाव की मुद्रा अपनाते हुए टिप्पणी की है। इसी कारण उत्तर देना आवश्यक लगा। आपका ब्लॉग मिला नहीं अतः अनुजा जी से क्षमायाचना सहित उन्हीं के कमेंट-बॉक्स का प्रयोग कर रहा हूं।
मेरी मुद्रा बचाव की नहीं वस्तुगत यथार्थ को स्वीकारने की है। एक स्वस्थ चर्चा में आक्रमण या बचाव का क्या मतलब? मेरा यह भी विश्वास है कि बिना पर्याप्त अध्ययन किये किसी भी पंथ या विचारधारा को अंगीकार करना अथवा अस्वीकार करना दोनों ही अँधविश्वास के बराबर हैं।
सादर,
अमर
October 2, 2008 1:30 PM

बालकिशन ने कहा…

सर आपके फतवा की ख़बर सुनकर डर के मारे बुरा हाल हुआ जाता है.
इसलिए कुछ देर के लिए फ़िर हाजिर हुआ था.
फ़िर जाना पड़ेगा.
पर वापस भी आऊंगा.

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

बाबू बाल किशन जी
एक बात कान खोल के सुन लीजिए
मुझे आप प्रिय हैं थे रहेंगे यदि आप
अच्छी सी पोस्ट अपने ब्लॉग पे टांकते रहेंगे
आपकी पोस्ट के प्रवाह से मैं प्रभावित हूँ इस लिए फैन [पंखा-नहीं]
मुरीद हूँ और
आपकी इस हरकत ने मुझे पीडा पहुंचाई
कि लंबी ,अवधि तक आपकी पोस्ट ?
भाई आपको यदि गिरीश यानी शिव के
क्रोध से है बचना
तो रोज़िन्ना एक पोस्ट
बिलानागा है करना !!
पूजा-पर्व की बधाइयों के साथ
मुकुल

Wow.....New

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