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30.4.24
विश्व का सबसे खतरनाक बुजुर्ग : जॉर्ज सोरोस
29.4.24
आखिरी काफ़िर: हिंदुकुश के कलश
The last infidel. : Kalash of Hindukush""
ہندوکش کے آخری کافر کالاشی لوگ
ऐतिहासिक सत्य है कि हिंदूकुश पर्वत श्रृंखला में रहने वाले हिंदुओं के खात्मे की वजह से इस पर्वत श्रृंखला का नाम हिंदू कुश पड़ा।
हिंदूकुश पर्वतमाला पाकिस्तान अफ़गानिस्तान बॉर्डर पर स्थित है। इस पर्वतमाला की ऊंचाई 7708 मीटर, अर्थात 25000 589 फीट है। इस पर्वत श्रृंखला में सबसे ऊंची चोटी तिरिचमीर है । संस्कृत में इसे #ऊपरासेना कहा गया है जबकि यूनानी इस पर्वतमाला को #कौकासोस_इन्दिकोस नाम से जानते थे। इसी पर्वत श्रृंखला में एक जनजाति भी रहती है। जिसे कालाश कैलाश या कलश कहा जाता है।
7000 साल पुरानी कलश या कैलाश संस्कृति. पाकिस्तान की इस्लामिक सांप्रदायिक विस्तारवादी कोशिशों से अपनी एथेनिक पहचान एवं संस्कृति को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
प्रकृति और मानवता के पुजारी कैलाशी या कलश ऋग्वैदिक परंपराओं का निर्वाह करते प्रतीत होते हैं !
कलश समुदाय के बारे में जब हमारी चर्चा चर्चित विद्वान आदरणीय श्रीयुत विनय चतुर्वेदी साहब से हुई, तब उन्होंने बताया कि - "मूलत: ये लोग दरद कहलाते हैं, महाभारत काल से इनका गहरा रिश्ता है। योद्धा के रूप में महाभारत काल में कौरवों की ओर से युद्ध में सम्मिलित थे।
*कलाश या कलश लोगों में महिलाओं की स्थिति*
पाकिस्तान में महिला अधिकारों को लेकर हम सब केवल इतना जानते हैं कि वहां महिलाओं को कोई खास अधिकार प्राप्त नहीं है। परंतु संपूर्ण पाकिस्तान ऐसा होगा यह अर्ध सत्य है। हिंदू कुश पर्वत श्रृंखला में निवास करने वाली ऐसी जनजाति में महिलाओं को अपेक्षाकृत अधिक अधिकार और खुलापन दिया गया है। कलश महिलाओं के अधिकारों के प्रति अधिक संवेदनशील और जिम्मेदार होने से भी पाकिस्तानी सामाजिक व्यवस्था इसे अस्वीकार करती है।
कलस जनजाति महिला प्रधान जनजाति है। कैलाश जाति में बेटी के जन्म होने पर उत्सव मनाया जाता है। इस जनजाति के लोग मानते हैं कि नारी ही सृष्टि की सृजन का कारण है।
*कलश जनजाति की जनसंख्या*
हिंदूकुश पर्वत माला में निवास कर रही कलश जनजाति की जनसंख्या आजादी के पहले 22000 थी।
वर्ष 2018 की जनगणना से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक केवल 4000 थी जो अब घटकर लगभग 3000 हो चुकी है। यही कारण है कि यूनेस्को ने इस जनजाति को संरक्षित की जाने वाली जनजातियों की सूची में शामिल किया है।
कलस जन जाति में महिलाओं की स्थिति पाकिस्तान के अन्य स्थानों की अपेक्षा बेहतर होने के बावजूद इनकी मात्र 18% महिला आबादी एजुकेशन से जुड़ी है। 25% पुरुष शिक्षित माने गए हैं। वैसे भी पाकिस्तान का संपूर्ण शैक्षिक सूचकांक अन्य विकासशील देशों के सापेक्ष सामान्य से निचले स्तर पर है तो ऐसा होना स्वाभाविक है। यह जनजाति अफगानिस्तान पाकिस्तान सीमा पर कैलाश या कलश वैली के नाम से प्रसिद्ध है।
*कलश जनजाति की कहां रहती है!*
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा राज्य के चितराल जिले बुमबरेत, रूमबुर, बिरर, नामक स्थानों में यह जनजाति निवास करती है। पाकिस्तान के लोग इसे काफिरिस्तान कहते हैं। इन्हें आखिरी का फिर माना जाता है।
कलश जनजाति पाकिस्तान के अलावा के अफगानिस्तान में नूरिस्तान प्रोविंस में रहते हैं।
कलश जनजाति भी इसी जनजाति की एक शाखा है।
।
कैलाश जनजाति के लोग अपने आप को इस्लामी नहीं मानते। वे अपने धर्म के अपना कल्चर कहते हैं, तथा अपनी कलर के विस्तार के लिए किसी भी तरह के कन्वर्जन या तब्दीली पर भरोसा नहीं करते।
यहां किसी की मृत्यु पर एक अजीबो गरीब रस्म भी अदा की जाती है दावत दी जाती है तथा लोग लोक गीत एवम नृत्य करते हैं।
कलश लोगों का मानना है कि उनके देवता सियांग में रहते हैं।
यद्यपि वे अपने देवता के स्थान के बारे में बहुत कुछ जानकारी नहीं रखतेहैं।
इस जनजाति में मृत्यु के समय मृत्यु भोज के रूप में बकरियों की बलि देकर देवता (ईश्वर) को अर्पित करते हैं। मृत्यु भोज में हजारों लोगों का शामिल होना आम बात है।
जनजाति के लोगों का मानना है कि वे मृतकों को मेहमानों की तरह खुशनुमा माहौल के साथ विदा करने पर विश्वास रखते हैं।
कुछ विद्वान लोगों का मानना है कि यह जनजाति सिकंदर के साथ आए उन सैनिकों के वंशज हैं जो थकान एवम बीमारियों के कारण वापस यूनान नहीं गए। तथा उन्होंने स्थानीय महिलाओं के साथ विवाह कर इस जनजाति को विस्तार दिया है ।
कुछ विद्वानों ने पर्शिया से अखंड भारत में आई जातियों की श्रेणी में रखा है।
तो कुछ लोग यह भी मानते हैं कि डीएनए के हिसाब से वह हिंदुस्तान से पलायन करके पहाड़ियों पर निवास करने लगी है।
एक अन्य थ्योरी यह भी कहती है कि कलश लोग इंडो आर्यन लोग हैं।
मेरा मानना है कि आर्य मूलरूप से भारतीय हैं, ऋग्वेद अनुसार आर्य उन्हें कहा गया है जो विद्वान और जीवन शैली में उच्च गुणवत्ता वाले लोग होते हैं । अत: इनका ऋग्वेदीय सामाजिक व्यवस्था से गहरा रिश्ता स्पष्ट और सिद्ध होता है। इन्हें ऋग्वेदीय सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा मानने का यह भी कारण है कि यह लोग आज भी प्रकृति पूजक हैं। उनकी मान्यता है की प्रकृति के विरुद्ध कोई भी कार्य करना दुष्परिणाम जैसे ग्लोबल वार्मिंग, संक्रामक रोग महामारी का कारण होता है। ऋग्वेदी व्यवस्था में भी इसी कांसेप्ट को हम पाते हैं। इस जनजाति को यूनेस्को ने संरक्षण योग्य जनजाति की सूची में शामिल किया है।
*अब तक आपने जाना कि पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में रहने वाले कलश लोग भारतीय ऋगवैदिक सभ्यता के कितने करीब हैं। अब जानिए इनकी परंपराओं एवं सांस्कृतिक विशेषताओं के बारे में..
*विशेष बिंदु*
एक पॉडकास्ट में गुल कलश कहती हैं कि - "14वीं से 16वीं शताब्दी में हुए आक्रमणों में इन के धार्मिक रीति रिवाज से संबंधित किताबों को जला दिया गया था। अब जो इनके पास एथेनिक पहचान के दस्तावेज मौजूद है वे केवल उनकी स्मृतियों पर आधारित है। गुल कलश यह भी कहती है कि वे"हम प्रकृति पूजक हैं। कलश जनजाति के लोग कर्म वाद के सिद्धांतों को भी स्वीकारते हैं। वे इस्लामी तब्दीली से असहमत रहते हैं।
पूर्व में उल्लिखित तथ्य के लिए जिसमें महिला अधिकारों का जिक्र किया है ... की पुष्टि की एक पॉडकास्ट से होती .. एक कलश महिला गुल कलश का दावा है कि कलाश की महिलाएं पूरी तरह अधिकार संपन्न होती हैं।
कन्या जन्म पर बेहद खुशी महसूस करते हैं। उनका मानना है कि लड़की के जन्म पर उनके क्षेत्र के हर पेड़ पौधे जश्न मनाते हैं।
*तीज-त्यौहार*
इस जनजाति के चार त्यौहार होते हैं, एक त्योहार शीत ऋतु प्रारंभ होने के पहले मनाया जाता है जिसमें अपने आराध्य से यह आव्हान किया जाता है कि यह शीत ऋतु उन्हें सुख प्रदान करें। यह त्यौहार जोशी त्यौहार कहलाता है। दूसरा त्यौहार शीत ऋतु के उपरांत मनाया जाता है जिसे उचाव कहते हैं, यह शीत ऋतु के समाप्त होने के उपरांत मनाया जाता है और ईश्वर को इस त्यौहार के माध्यम से उत्सव मना कर धन्यवाद दिया जाता है और यह कहा जाता है कि आपने इस शीत ऋतु में हमें सुरक्षा दी हम आपके आभारी हैं। एक अन्य त्यौहार जिसे कैमोस कहते हैं यह 14 दिनों तक मनाया जाता है। यह त्यौहार युवाओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
कलश जनजाति में युवा लड़कियां अपना मनपसंद पति चुनती हैं। उसके घर चली जाती है।
उसके कुछ दिनों के बाद कन्या पक्ष केवर पक्ष के घर जाते हैं। जब इस बात से सुनिश्चित हो जाते हैं कि युवा कन्या किसी दबाव से उसे घर में नहीं गई है तब वह विवाह के लिए सहमति प्रदान करते हैं।
इस सहमति के बाद वर पक्ष की ओर से वधु के घर उपहार भेज कर विवाह की पुष्टि की जाती है।
पसंदीदा पुरुष के साथ उनके घर जाने के बावजूद युवक- युवती के बीच कोई शारीरिक संबंध स्थापित नहीं होता है।
*फ्रायड के अनुसार विपरीत लिङ्गियों के बीच यौन संबंध स्वाभाविक माने जाते हैं, इस जनजाति के संबंध में यह कह देना केवल काल्पनिक है। इसका कोई आधार नहीं है।
मैं इस जनजाति के मामले में फ्रायड के विचारों के आधार पर सोचने वालों के विचारों का खंडन करता हूं ।
क्योंकि ये लोग कर्म फल के सिद्धांत को मानते हैं । अतः मैं अपने विवेक के अनुसार कलश जनजाति के बारे विवाह पूर्व यौन संबंध की अफवाह को खारिज करता हूं । भले ही लड़की पसंदीदा वर्ग के घर चली जाए परंतु दांपत्य रिश्ते विधिवत विवाह की प्रक्रिया पूर्ण होने के उपरांत ही स्थापित होते हैं*
भारत के पश्चिम मध्य प्रदेश के भगोरिया उत्सव में यही विशेषता है।
*प्रसूताओं एवं राजसवालाओं के लिए विशेष व्यवस्था*
प्रकृति पूजा कलश समुदाय में महिलाओं के स्वास्थ्य का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है।
सुरक्षित प्रसव के लिए बस्ती में एक स्थान पृथक स्थान का निर्धारण करना प्राचीन ऐतिहासिक चिकित्सालय के महत्व को रेखांकित करता है।
इसी तरह किशोरियों में मेंसुरेशन (रजस्वला काल) के समय कन्याओं को गांव के बाहर बने एक भवन में मेंसुरेशन पीरियड में रखा जाता है।
प्रचूताओं के लिए यह अवधि 14 से 15 दिन होती है।
इस स्थान पर किसी भी पुरुष का प्रवेश पूरी तरह वर्जित है।
ये लड़कियां प्रसूता की सेवा भी करती है और प्रसव प्रक्रिया की जानकारी भी इस बहाने हासिल करती हैं।
गुल कलश एक YouTuber इमरान को दिए अपने पॉडकास्ट में कहती है कि हम अपनी संस्कृति और धर्म के विस्तार को आधार नहीं मानते।
कलस जनजाति के परिवार ताजा फल सूखे मेवे तथा अनाज में गेहूं आधारित व्यंजन उपयोग में लाते हैं।
कलस जनजाति के परिवारों में औसत उम्र पाकिस्तान की आबादी की औसत उम्र से अधिक होती है।
इस संबंध में अपनी बात कहते हुए जनजाति की एक लड़की ने बताया कि हम प्रकृति से प्राप्त भोजन ग्रहण करते हैं तथा हमेशा प्रसन्न रहने की कोशिश करते हैं साथ ही हम किसी का अपमान नहीं करते इस कारण ही हम सुंदर और लंबी उम्र पाते हैं।
कलस जनजाति के लोग अपने लिए कपड़े स्वयं बनाते हैं यहां महिलाओं की पोशाक बहुत सुंदर तरीके से डिजाइन की जाती है। कलस जनजाति की महिलाएं चितराल जिले के चितराल नगर बाजार से कपड़े खरीद अपनी पोशाक तैयार करती हैं।
पाकिस्तान के लोग इन्हें अपवित्र मानते हैं , वे इन लोगों को काफिरिस्तान से आए लोग मानते हैं।
क्योंकि यहां के लोग शराब का सेवन करते हैं तथा महिलाओं को अधिक अधिकार प्राप्त हुए हैं तथा ये लोग कर्मवाद एवं प्रकृति पूजा के साथ-साथ एकेश्वरवाद को मानते हैं। पैग़म्बर वाद को नहीं।
यह सब कुछ पाकिस्तानी संस्कृति एवं परंपरा के विरुद्ध है अत: कलस इन्हें नापाक माना जाता है तथा इनको फोर्सली कन्वर्जन के लिए प्रयास भी किए जाते हैं।
पाकिस्तानियों की यह धारणा है कि - इस जनजाति में महिलाएं स्वच्छंद यौनाचार में संलिप्त है। इस तरह की अफवाह एवं असमानता को देखते हुए जनजाति के लोग पाकिस्तान से आने वाले सैलानियों से नाराज हैं।
पाकिस्तान में जनजाति विकास के लिए कोई सरकारी कार्यक्रम के बारे में अब तक कोई जानकारी प्राप्त नहीं हुई।
कलस जनजाति का धर्म- इनका धर्म हिंद-ईरानी धर्मों से मिलता जुलता है।
पाकिस्तान जैसे राष्ट्र में इनकी संख्या कम होना स्वभाविक है परंतु संस्कृति बची हुई है यह चकित कर देने वाला तथ्य है।
गुल कलर्स ने यह भी आपत्ति दर्ज की कि वे एक सरकारी माह में काम करती हैं। उनके दफ्तर में आए एक सरकारी अधिकारी ने जो मुसलमान था ने उन्हें कलमा पढ़ने के लिए मजबूर करने की कोशिश की थी।
गुल कलश को इस बात की भी आपत्ति है कि उनके त्योहारों में पाकिस्तानी टूरिस्ट खलल पहुंचते हैं।
गुल का यह मानना है कि हमारी स्वतंत्रता में हस्तक्षेप हमें तकलीफ देता है।
इस्लाम के विस्तार के कारण अखंड भारत में ऐसी कई संस्कृतियों को नकारात्मक रूप से प्रभावित हुईं हैं जैसे कलश।
*यहां स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि हिंदू कुश का अर्थ ही है यहां से हिंदुओं का अंत किया गया है*
एक रोचक तथ्य यह भी है कि - कलश जनजाति के लोग सिकंदर यानी सिकंदर के वंशज नहीं है। इस बात की पुष्टि में गुल का कहना है कि - "सिकंदर कभी भी खैबर को पार न कर सका था।"गुल कलश के इस कथन से आदरणीय विनय चतुर्वेदी जी के तथ्य की पुष्टि होती है।
कलश जनजाति की अधिकांश जीवन शैली भारतीय जीवन शैली के नजदीक नजर आती है। कलश जाति को सभ्य, विकसित और अपनी ऐतिहासिक एथेनिक पहचान को बचाने वाला समूह कहा जा सकता है।
*हिंदुकुश पहाड़ियां हिंदुओं के सामूहिक नरसंहार के लिए बदनाम है,, और अगर यहां कोई ऐसी जाति समूह निवासरत है तो वह पाकिस्तानियों की नजरों में आखिरी काफिर के रूप में पहचानी जाती है!*
मित्रों कलश जनजाति जीववाद, और प्रकृति से प्रेम के अलावा, महादय शायद महादेव, एवम कृति एवम प्रकृति व्यवस्थापक इंद्र के प्रति भी अपने आप को कृतज्ञ मानते हैं। अर्थात कलश जाति के लोग कुल मिलाकर वैदिक संस्कृति के करीब हैं।
@yutube
🔗 https://youtu.be/F2XtqJOXxRc?si=ULeLsaom5H0x2wEh
#रिसर्च
https://youtu.be/lenUC5hexGA?si=MsWfQAMll8tesIOR
https://youtu.be/YrIT_g_AJA8?si=8qjhjmhy5JzuGKQ-
27.4.24
Is everything predestined ? Dr. Salil Samadhia
17.4.24
धर्म और संप्रदाय
What is the difference Thebetween Dharm & Religion ?
English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficulty in deriving the meaning of words from other languages. English is the weakest language for the meaning of words from other languages. But it is simple enough that people feel comfortable accepting it as a communication language.
To understand the poverty of English, we need to understand its linguistic ability to define Dharma and religion.
According to various Indian scripts Dharma is not religion.
In my opinion Dharma does not mean religion.
Because dharma is an eternal ongoing practice.
People who believe in Dharma believe in the power of ब्रह्म or God.
According to my study, there are many religions in Sanatan Dharma including Shaiva, Vaishnava, Shakt, Aarsh, Etcetera. All these religions are part of Sanatan.
The basic content of Dharm is the belief in purity and divine elements. Whereas rituals and procedures are present in religion and sect.
Dharma says that we should worship God, Religions and sects tell us which method we should adopt for worship.
Nobody has established Dharma.
On the contrary, every religion or sect is founded by some great thinkers.
Tell me in the comment box whether you agree with my views or not.
Wow.....New
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