30.9.21

दलित एक अमानवीय शब्द है

    
बाबा भीमराव अंबेडकर और बाबू जगजीवन राम को देखकर लगता है कि यह हमारे देश के जीवंत नायक हैं। संविधान ने जाति और ट्राईबल को शेड्यूल में रखकर उन्हें शेड्यूल्ड कास्ट शेड्यूल्ड ट्राइब की श्रेणी में विभाजित किया है। सुप्रीम कोर्ट भी यह चाहता है कि ऐसे अपमान कारी शब्दों का प्रयोग ना किया जाए जिससे किसी वर्ग को लज्जा भाव का एहसास हो। मैं भी इस तथ्य का पुरजोर समर्थन करता हूं। स्पष्ट रूप से बताना चाहता हूं कि दलित शब्द एक ऐसी भावना को जन्म देता है जो बदलते भारत की सुखद तस्वीर को घृणा में परिवर्तित कर देती है। इतना ही नहीं दलित शब्द का इस्तेमाल कर सियासत का पारा गर्म या ठंडा करने वाले लोगों के लिए भी यह सर्वथा अनुचित कदम है। 
यहां यह समझने की जरूरत है कि एट्रोसिटी एक्ट प्रभावशाली है और इसका प्रयोग करते हुए इस दलित शब्द को किसी या किन्ही जाति वर्ग को संबोधित करना सामंतवादी प्रकृति का परिचय है। संपूर्ण विशेष जातियों को जिन्हें शेड्यूल्ड कर रखा है को दलित शब्द कहकर उन संवर्ग के लोगों के मन को दुख पहुंचाने वाली बात है। महा मना भीमराव अंबेडकर जी एवं बाबू जगजीवन राम जी के व्यक्तित्व एवं उनके कृतित्व के अलावा बहुत सारे ऐसे व्यक्तित्व हैं जो वाकई हमारे आईकान है और हमें ऐसे  व्यक्तियों की जरूरत होगी भारत को महान बनाने के लिए। मैं जातीय व्यवस्था के बहुत सारे पहलुओं पर निरापद मार्ग का पक्षधर हूं। वैसे बहुत इंतजार नहीं करना होगा मध्यकाल एवं उसके उपरांत बनाई गई है जाति व्यवस्था बहुत शीघ्र समाप्त हो जाएगी। 


दलित एक अमानवीय शब्द है इसे भाषा से ही पथक करना होगा प्रत्येक विशेष वर्ग का व्यक्ति मानव है ना कि वह दलित है या सवर्ण है बल्कि वह भारतीय है

इस आर्टिकल में अभी इतना ही विस्तार से अगले आर्टिकल की प्रतीक्षा कीजिए

27.9.21

एमबीए चायवाला प्रफुल्ल बिल्लोरे

        MBA CHAIWALA 
  प्रफुल्ल बिल्लोरे एक ऐसा नाम है जिन्होंने जिंदगी को शर्तों पर जीने का इरादा तय कर लिया था। 1996 में धार जिले के एक कस्बे में जन्मे प्रफुल्ल ने वो कर दिखाया जो देख कर तो अच्छा लगेगा पर उसे कर पाने हौसला कुछ लोगों में ही मिलेगा। एमबीए में एडमिशन के लिए परेशान प्रफुल्ल ने अपनी यायावरी इस वजह से शुरू की किस गोरा उन्हें कोई एक मुकम्मल मंजिल हासिल हो जाए। जी हां मैं अहमदाबाद के एमबीए चायवाला प्रफुल्ल की बात कर रहा हूं। यहां एमबीए का अर्थ  डिग्री नहीं है बल्कि मिस्टर बिल्लोरे अहमदाबाद है। इस युवक की जिंदगी बड़ी रोचक है असफलताओं पर निराश होना मानव प्रवृत्ति है परंतु असफलताओं से सीख कर सफल हो जाना एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी उदाहरण ही कहे जाएंगे।
   यूं ही मेरी मुलाकात थी प्रफुल्ल से ट्विटर पर हुई मैंने पूछा आर यू एन डी उत्तर मिला धार से हूं।
एमबीए चायवाला एक ब्रांड एक सोच एक सफलता की चाबी एक इच्छा शक्ति हां यही है प्रफुल्ल का जीवन परिचय और पहचान।
    प्रफुल्ल कहते हैं कि अपनी सफलता के लिए पेरेंट्स और परिस्थिति को दोष नहीं देना चाहिए बल्कि परिस्थितियों पर काबू कर लेना चाहिए। लगभग 5 से 6 करोड़ के टर्नओवर वाले उनके एमबीए चायवाला का मतलब ही शून्य से शिखर की यात्रा है।
    प्रफुल्ल एक आईकॉनिक चाय वाले बन गए हैं उनका सपना है कि विश्व में इनका ब्रांड कमाल करे। 
    प्रफुल्ल बिना संकोच स्वीकारते हैं कि- उन्हें अहमदाबाद में चाय बेचने का धंधा परिवार से 6 माह तक छुपा के रखना पड़ा। प्रफुल्ल जानते थे कि जीत के मायने क्या होते हैं और जीत कैसे हासिल की जाती है। एक कंजरवेटिव एनवायरमेंट प्रोग्रेसिव टैलेंट को रोकता है यह सच है सारा समाज यही करता है। एमबीए की तैयारी करने वाला लड़का अगर चाय का ठेला लगा ले सदमा तो लगेगा ही। माता-पिता को इस बात का भय होगा कि समाज क्या कहेगा चार लोग क्या कहेंगे।
   सच बताऊं मैं तो उन चार लोगों को चार दशक से तलाश रहा हूं जो कुछ कहते हैं और उनके डर से कुछ लोग अपने रास्ते बदल देते हैं या हार जाते हैं यह थक जाते हैं। 
मुझे लगता है कि प्रफुल्ल बिल्लोरे ने उन चार लोगों को कहीं काल कोठरी में कैद करके गोया रख दिया हो। उन चार लोगों की बात प्रफुल्ल को सुनाई नहीं देती और प्रफुल्ल ने इंदौर दिल्ली गुड़गांव और जाने कहां कहां की यात्रा की पर ठहराव के लिए गुजरात का अहमदाबाद शहर चुना। आपको आश्चर्य होगा कि जिस कॉलेज में एमबीए चाय वाले को एडमिशन चाहिए था और वह क्वालीफाई नहीं कर पाए उसी कॉलेज में नितिन गडकरी साहब के साथ मंच शेयर करते हुए प्रफुल्ल में मोटिवेशनल स्पीच दी मैं भी हतप्रभ हूं आश्चर्यचकित होने का कारण है अपनी आईडियोलॉजी को शिखर तक पहुंचाने की हुनर !
आईआईएम और कई संस्थान अब तो प्रफुल्ल को बुलाते हैं ताकि उनके स्टूडेंट सीख सकते हैं इस सफलता की चाबी है तो पर उसे सफलता का ताला खुलता कहते हैं। अपमान और अभाव सब का सामना करना पड़ा था प्रफुल्ल बिल्लोरे को पर संकल्प बड़े थे और प्रफुल्ल भी तो सपने पूरे करने पर अड़े थे। यह तो प्रफुल्ल की शुरुआत है आगे आगे देखिए क्या उनका आने वाला कल उनके जीवन में कितने सुनहरी सुबह उगाए का इसे मालूम शुभकामनाओं सहित 
Quality and Billore containing 7 letters ok it means another name of quality...👌 
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25.9.21

विश्व में भारत के बढ़ते हुए प्रभाव के प्रमाण मिल रहे हैं..!

*विश्व में भारत के बढ़ते हुए प्रभाव के प्रमाण मिल रहे हैं..!*
           प्रधान सेवक की 23 सितंबर 2021 से प्रारंभ हुई अमेरिका यात्रा भारत के लिए जितनी महत्वपूर्ण एवं जरूरी थी  उससे ज्यादा ग्लोबल ट्रस्टीशिप के कांसेप्ट को बढ़ावा देने की दिशा में एक प्रभावी कदम है। एक और विस्तार वादी चीन और आतंकवाद के पनाहगाह राष्ट्रों के लिए खतरे की घंटी अवश्य साबित होगा इन पंक्तियों के लिखे जाने तक दिनांक 25 सितंबर 2021 को मध्य रात्रि भारतीय समय अनुसार लगभग 2:00 क्वाड मीटिंग समाप्त हो गई । मुख्य तौर पर इस बैठक में इंडो प्रशांत सागर में क्वाड ने अपनी दखलअंदाजी को सैद्धांतिक सहमति दे दी है। अब रोनाल्ड रिगन सामरिक जहाज की मौजूदगी  दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में रहेगी। बैठक के पूर्व चीन ने स्पष्ट कर दिया था कि क्वाड को अन्य देशों के महत्व का ध्यान रखना चाहिए। चीन का आशय स्पष्ट रूप से अपनी स्वेच्छाचारिता को सुरक्षित रखने के लिए वैश्विक धमकी के रूप में समझा जा सकता है। कुल मिलाकर यह बैठक अर्थ चीन के नकारात्मक चिंतन के विरुद्ध एकजुटता का संदेश जारी करना रहा है।
  दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में अमेरिकी नेवल  वार शिप की मौजूदगी चीन के अस्तित्व पर बहुत बड़ा सवालिया निशान बन जाएगी। पाकिस्तान मूल के कैनेडियन पत्रकार अनीस फारुकी रोनाल्ड रिगन की तैनाती को ऐतिहासिक मानते हैं। 
  दक्षिण चीन सागर का सामरिक दुरुपयोग करने वाला चीन आश्चर्यचकित जरूर रहेगा। मेरा व्यक्तिगत अनुमान है कि बैठक के पूर्व जो वाइडन एवं क्वाड सदस्यों ने इसमें पर पूर्व में ही आम सहमति बना ली होगी। अमेरिकी नेवल फ्लीट डिक्लेरेशन से चीन पाकिस्तान तालिबान का चिंतित होना स्वाभाविक है। रोनाल्ड रिगन में लगभग 6000 के आसपास नेवल और एयर फोर्स के सैनिक मौजूद होते हैं। रोनाल्ड रिगन एयरक्राफ्ट कैरियर एक तरह से आर्मी बेस माना जा सकता है।  पूर्व राजनयिक विष्णु प्रकाश कहते हैं कि यह आने वाले दशक के लिए बड़ी महत्वपूर्ण तैयारी है। परंतु अमेरिका की प्राथमिकताएं अक्सर बदलती रहती है परंतु अगर अमेरिका रोनाल्ड रिगन को स्थाई रूप से स्थापित कर दिया जाता है तो दीर्घकालीन सकारात्मक परिणाम अवश्य देखने को मिलेंगे। दूसरी ओर पाकिस्तानी पत्रकार फखर यूसुफजई सीपैक को लेकर चिंतित नजर आए उनका मानना है कि सी पैक पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए कतई भी सहयोगी नहीं है इसका समर्थन पूर्व राजनयिक विष्णु प्रकाश भी करते हैं वास्तव में सीपैक केवल पाकिस्तान के दोहन का साधन है। भारत  उपमहाद्वीप में चीन का बढ़ता हुआ दबाव निकट भविष्य में तरल होने की संभावना है। 
   रात्रि 2:48 कॉल विदेश मंत्रालय ने प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी हर्षवर्धन श्रन्गला ने भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के प्रथम दो दिवस ऑफिशियल ब्रीफिंग देते हुए पीएम मोदी के साथ उपराष्ट्रपति कमला हैरिस एवं राष्ट्रपति जो वाइडन के बीच हुई वार्ताओं का ब्यौरा दिया । दोनों राष्ट्राध्यक्ष की कोविड-19 के के संदर्भ में एक साथ काम करने अफगानिस्तान के संदर्भ में भी बातचीत की गई इसके साथ-साथ आर्थिक मुद्दों द्विपक्षीय वार्ता जिसमें व्यापार बढ़ाने पर भारतीयों के लिए H1B वीजा के संदर्भ में भी विस्तृत बातचीत की गई। जो वायडन ने भारत के लिए सुरक्षा परिषद में सीट बढ़ाने एवं स्थाई सदस्यता का खुलकर समर्थन करने के समाचार भी इस यात्रा के दौरान मिले हैं। आतंकवाद के मुद्दे पर काउंटरटेररिज्म ग्रुप के गठन को भी दोनों नेताओं ने मंजूरी दी है। कुल मिलाकर यह वार्ता बहुत महत्वपूर्ण एवं भारत के वैश्विक प्रभाव में इजाफे की प्रथम सूचना है। इस बैठक के पूर्व जलवायु परिवर्तन के मसले पर मोदी जी ने सोलर एनर्जी बनाने वाली कंपनी के सीईओ से विस्तार से चर्चा की थी और जलवायु परिवर्तन मुद्दे पर बैठक में सकारात्मक बिंदु उभर कर आए हैं। कम से कम दक्षिण एशिया में अगर पर्यावरण सुरक्षा एवं जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को हल कर लिया जाता है तो यह है उपलब्धि ही होगी
गिरीश बिल्लोरे मुकुल

22.9.21

Will Pakistan be partitioned again?


पाकिस्तान की गले की फांस बने दो आंदोलन उसकी अस्थिरता का सबसे मुख्य कारण है इन दिनों । जब से सोशल मीडिया पर आवाज़ बुलंद करने का अवसर मिला है आम आदमी को तबसे वैचारिक आंदोलनों को बल मिला है । सिंधु स्वतंत्रता की लहर 1967 में  जी एम सैयद की कल्पना से उभरी है। यह आंदोलन एक साहित्यिक भाषाई आंदोलन था जब पाकिस्तान में उर्दू भाषा राष्ट्रभाषा बनाने का निर्णय लिया गया, इस आंदोलन में आगे चलकर पीर अली मोहम्मद राशिद का भी बहुत अधिक योगदान जीएम सैयद के साथ देखा गया था। वर्तमान में इस आंदोलन का नेतृत्व अल्ताफ हुसैन के हाथों में है । 
  सिंधी देश जिसे सिंधु देश के रूप में वहां के लोग समर्थन दे रही है उनकी आबादी 7 करोड़ है। नक्शे में आप ध्यान दें तो पाएंगे कि उसकी पूर्वी एक सीमा भारत से मिलती है।

इस आंदोलन की एक और वजह थी औद्योगिक एवं व्यापारिक रूप से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का 70% हिस्सा सिंध प्रांत से पाकिस्तान को हासिल होता है। परंतु इसके विपरीत उनका महत्व इस भागीदारी पाकिस्तान की राजनीतिक गतिविधियों प्रशासनिक सेवाओं सुविधाओं के मामले में लगभग नगण्य है। इसके विपरीत सत्ता का पाकिस्तान की प्रो आर्मी डेमोक्रेसी में पाकिस्तानी पंजाब का दबदबा है।
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता आतंकवाद तथा तालिबानी चिंतन पर आधारित टीटीके जैसे संगठनों से नकारात्मक रूप से प्रभावित एवं पीड़ित जनता अब शांति चाहती है। यह आंदोलन बलोच आंदोलन से कुछ अलग  है। इस आंदोलन में पाकिस्तानी सेना आईएसआई और राजनीतिक पार्टियों ने घुसपैठ कर रखी है। यह अपने इस सूबे के मुख्यमंत्रियों पर भी खुलकर  नाराजगी व्यक्त करते हैं यहां तक की प्रोविंशियल गवर्नमेंट के प्रतिनिधियों से भी उनकी नाराजगी उनकी बातों से झलकती है। कुल मिलाकर आंदोलन एक बेहतरीन नेतृत्व चाहता है परंतु वर्तमान में सिंध आंदोलन के अल्ताफ हुसैन वर्तमान में अत्यधिक शुद्र नजर नहीं आ रहे। आंदोलनकारियों का दावा है कि अगर उन्हें एक ऐसा बिंदु मिल जाए जहां से आंदोलन निर्णायक हो सके आजाद होने से सिंधु देश नहीं कुछ दिन या कुछ घंटे लगेंगे। इस वीडियो में आप पाकिस्तानी सिंधी आंदोलनकारी को सुन रहे हैं। आपने यह  सुना होगा कि आंदोलनकारी जिस बिंदु की कल्पना कर रहे हैं उस बिंदु को भारत का खुला सामरिक समर्थन के रूप में पहचाना जा सकता है। परंतु भारत के विरुद्ध पाकिस्तान अब कभी भी कन्वेंशनल युद्ध नहीं कर सकता। पाकिस्तान  आर्मी नियंत्रित डेमोक्रेसी आई एस आई तथा आर्मी सभी जानते हैं कि अगर अब भारत से युद्ध हुआ तो पाकिस्तान सिंधु देश से हाथ धो बैठेगा।

    उधर बलूचिस्तान अपनी आजादी के लिए पूरी तरह से   बिसात बिछा रहा है . 
   विश्व के सभी महत्वपूर्ण देश चीन और टर्की को छोड़कर पाकिस्तान के प्रति सकारात्मक रुझान नहीं रखते। यही है भारत की कूटनीतिक सफलता। आपको याद होगा कि सन 1971 में पूर्वी पाकिस्तान का बांग्लादेश के रूप में बदलना पाकिस्तान की सियासत में पंजाब के दबदबे एवं संस्कृति विविधता थी जैसे पाकिस्तान की प्रो आर्मी डेमोक्रेटिक सरकार अब तक नहीं समझ पाई है।





14.9.21

भारतीय भाषाओं के उन्नयन के साथ हिंदी का विकास संभव है

*हिंदी अमिय रसधार*
अमिय रसधार भाषा प्रांजल प्रवासी मोहित कर लेती है। इस भाषा में देशज और विदेशी शब्दों का सम्मिश्रण की भाषा के प्रवाह को विचलित नहीं करता। देशज भाषाएं बोलियां हिंदी का कलेवर मजबूत और उसके सौंदर्य वृद्धि कारक होते हैं। हिंदी का विरोध इन दिनों दक्षिण भारतीय भाषा के बोलने वालों द्वारा किया जा रहा है। जबकि हिंदी 1950 के बात से उपेक्षा का शिकार रही है। यह सब राजनीतिक कारण है जो साहित्य के विरुद्ध जाते हैं। भाषाओं में आपसी विरोध पैदा करना भारत के लिए एक सबसे दुखद पहलू है विघटन के आधार में जाति संप्रदाय और भाषा क्षेत्रवाद का योगदान होता है। जबकि भारत को समझने के लिए हमें हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को समृद्ध करना होगा। कल रात्रि अर्थात 13 सितंबर 2021 को एक सामूहिक चर्चा में मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि हिंदी भाषा किसी भाषा का विरोध नहीं करती बल्कि हिंदी भाषा का निर्माण ही सभी भाषाओं के सम्मान के लिए किया गया है। आज मुझे व्यवहार राजेंद्र सिंह याद आ रहे हैं आज उनका जन्मदिन है राजभाषा का दर्जा दिलाने उनके योगदान को भुलाना बहुत मुश्किल है। वह जबलपुर से थे और जबलपुर की परिभाषा एक शब्द संस्कारधानी में निहित है। राजभाषा हिंदी अब रोटी की भाषा भी है ऐसी स्थिति में तमिल भाषी स्नेही भाइयों का हिंदी भाषा के विरुद्ध झंडा बरदारी करना केवल राजनीतिक विद्रूपता का परिचायक है। अब हिंदी में इतना साहित्य लिखा जा चुका है कि वह विश्व की सर्वाधिक प्रतिष्ठित भाषाओं में अपना स्थान नियत कर चुकी है। सभी भारतीय भाषाओं का सम्मान आज के दौर की जरूरत है। कल रात्रि ट्विटर पर भोजपुरी बोली को आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करने की बात की जा रही थी। 1973 से जारी यह आंदोलन मंथर गति से चल रहा है। मेरा मत यह था कि -" मालवी बुंदेली निमाड़ी बघेली छत्तीसगढ़ी ऐसी कई बोलियां हैं जिसके पास अपने टेक्स्ट उपलब्ध है। इन्हें भी आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए" 
भारतीय भाषाओं के उन्नयन के साथ हिंदी का विकास संभव है यह भी मेरा
अभिमत है । किसी एक भाषा को जो वर्तमान में बोली के स्वरूप में है आगे लाना और उसके लिए आंदोलन करना उतना प्रभावी नहीं होगा जितना की समस्त भारतीय भाषाओं को जो छूट गई है उन्हें आठवीं अनुसूची में सम्मिलित कराने के लिए इस आधार पर प्रयास करना चाहिए। सरकार का ध्यान इस ओर आकृष्ट करना चाहिए कि वर्तमान में नवीन शिक्षा नीति में शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा है और सबसे प्रभावशाली भाषाएं जैसा ऊपर मैंने सूची दी है के हिसाब से उन्हें आठवीं अनुसूची में शामिल कर लेना चाहिए। भोजपुरी भाषा को आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करने के आंदोलन का मुख्य आधार है कि मारीशस में जब भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता प्राप्त है तो क्यों नहीं भारत में भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता आठवीं अनुसूची में शामिल कर दिया जाए। मांग अपनी जगह ठीक है लेकिन शेष सभी भाषाओं को शैक्षणिक संदर्भ में विशेष रूप से आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करने की प्रार्थना करनी चाहिए ना की ऐसा कोई मुद्दा बढ़ाना चाहिए ताकि भाषाई विवाद पर कोई राजनीतिक फसाद खड़ा हो जाए हिंदी दिवस पर सभी हिंदी प्रेमियों को शुभकामनाओं सहित भारतीय भाषाओं के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए जय हिंदी जय हिंदुस्तान का नारा बुलंद करने की जरूरत है।

*Dismantle Hinduism : सनातन के विरुद्ध आधारहीन वैश्विक अभियान ... भारतीय दार्शनिक और चिंतक शुतुरमुर्ग बने !* आर्टिकल 01

*Dismantle Hinduism : सनातन के विरुद्ध आधारहीन वैश्विक अभियान ... भारतीय दार्शनिक और चिंतक शुतुरमुर्ग बने !*
     इन दिनों सनातन के खिलाफ अमेरिका में लगभग 40 यूनिवर्सिटीज मिलकर एक बहुत बड़ा आयोजन कर रही है जो सनातन धर्म या हिंदुत्व के विरुद्ध एक नैरेटिव सेट करने का प्रयास है। मैं इस प्रयास की घोर निंदा करता हूं और भारतीय समाज को आगाह कर देना चाहता हूं कि अगर यही परिस्थितियां बनी रही तो प्रत्येक भारतीय को शस्त्र उठाना आवश्यक हो जाएगा। भारत विस्तार वादी धर्म का प्रवर्तक भूभाग नहीं है। भारत सनातन मान्यताओं को आत्मसात करने के लिए किसी पर दबाव नहीं डालता। फिर तथाकथित आयातित विचारक भारत के खिलाफ उसके चिंतन के विरुद्ध इतना बड़ा अभियान क्यों चला रहे हैं और हमारे बुद्धिजीवी शुतुरमुर्ग क्यों है।
इन सब बातों को समझने के लिए सबसे पहले हम भारतीय सनातन व्यवस्था और धर्म के विभिन्न पहलू उजागर करते हैं और यह भी कोशिश करते हैं कि आप तक हम सनातन के मूल तत्व को संप्रेषित कर सकें।
भारतीय दर्शन का आधार सनातन क्या है यह सबसे पहले समझना जरूरी है। सनातन धर्म व्यवस्था है जो आदि से अनंत तक विस्तारित है परिवर्तनशील है। कुछ लोगों का मत है कि सनातन धर्म नहीं एक परंपरा या सटीक व्यवस्था है।
आइए सबसे पहले  हम धर्म को समझ लेते हैं
धर्म क्या है...?

      इतिहास में धर्म  का विवरण रखने का औचित्य क्या है ? यह प्रश्न मैंने अपने आप से भी लिखने के पूर्व किया। लेकिन ऐसा प्रतीत हुआ कि मानव कुछ ना कुछ विशेष गुण धर्म के साथ विकसित होता है। जब विज्ञान की ओर मनुष्य का ध्यान ही नहीं था पाषाण से लौह, और फिर लौह से अन्य धातु युग तक की यात्रा बिना किसी अनुशासनिक प्रणाली के संभव नहीं है। चाहे वह सामाजिक व्यवस्था हो या फिर कबीले में रहने की व्यवस्था। और यही जीवन व्यवस्था उसे यानी मनुष्य जाति को आवश्यकता और उसकी पूर्ति के लिए अन्वेषण एवं अविष्कार की प्रेरणा देती है। अति आवश्यक है कि हम धर्म के इस बिंदु को अवश्य पढ़ें। और जाने कि किन परिस्थितियों में मनुष्य ने अपने आप को आदिम युग से सभ्य मानव के रूप में विकसित कर दिया…?

    

धर्म की परिभाषाओं को आपने देखा भी होगा । यहां फिर से लिखने की जरूरत नहीं है। फिर भी मैं अपने नजरिए से धर्म को क्या समझता हूं वह बता देता हूं मौजूदा परिभाषा भी प्रस्तुत हैं । 

   मेरे नजरिए से धर्म-"ईश्वरीय आस्था युक्त परिवर्तनशील वैज्ञानिक प्रक्रिया है..!°
• धर्म में जड़त्व तो नहीं बल्कि प्रगति शीलता के बिंदुओं का समावेश होता है और ये बिंदु रिचुअल्स और मानवतावादी दृष्टिकोण के साथ सिंक्रोनाइज होते हैं, ऐसा व्यक्ति ही धार्मिक कहलाता है जो स्वयं से पृथक एक शक्ति को स्वीकार करता है उस शक्ति को ब्रह्म अथवा ईश्वर तत्व की संज्ञा दी जाती है।

• धर्म देश काल परिस्थिति के अनुसार लागू होता है, क्योंकि उसकी प्रकृति ही परिवर्तनशील है।
• ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार ने वाला धर्म की परिभाषा को समझ सकता है । 
• जो ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करता है वह कुछ प्रक्रियाओं का पालन करता है।
• केवल पूजा प्रणाली ही धर्म नहीं है। किंतु पूजा प्रणाली धर्म का एक हिस्सा है। ऋग्वेद इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। जहां जो देता है अर्थात वह देवता है और ऋग्वेद के मंत्रों जिसे हम ऋचा कहते हैं अर्थ को समझना होगा। हवन या यज्ञ एक और वायुमंडल की शुद्धता का प्रयोग है तो दूसरी ओर जीवन यापन के लिए प्राप्त होने वाले संसाधनों के लिए उन देने वाले यानी देवताओं के प्रति कृतज्ञता का ज्ञापन भी है। वेद में उस सरस्वती नदी का जिक्र आया है, जो वर्तमान में विलुप्त है उसी देवता माना है तो उसे यज्ञ के माध्यम से आहुतियां देने का अनुमान लगाया गया जबकि वेदों में जिस सरस्वती का देवी स्वरूप आह्वान किया गया है वह बुद्धि के दाता सरस्वती यानी शारदा है ना कि सरस्वती। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि नदियां जीवित होती हैं ना कि देव स्वरूप। इसकी पुष्टि में विद्वान आचार्य मृगेंद्र विनोद जी द्वारा प्रस्तुत विवरणों को देखा जाए तो पता चलता है कि सरस्वती नदी का यज्ञ नदी के तट पर जाकर ही किया जाता था और यह लगभग 18 वर्ष में पूर्ण होता था ना कि यज्ञ आहुति के द्वारा सरस्वती नदी का आह्वान किया जाता था।

• धर्म में मान्यताओं को देश काल परिस्थितियों के अनुसार  बदलाव की सुविधा मौजूद है ।

• धर्म किसी संस्थान का डॉक्ट्रिन नहीं होता। आप सोचते होंगे कि ईश्वर की आराधना करने की प्रक्रिया डॉक्ट्रिन नहीं है ..? प्रक्रिया डॉक्ट्रिन है पर धर्म डॉक्ट्रिन नहीं है। जैसे आपके शरीर में बहुत सारे अंग है परंतु अंग आप नहीं है बल्कि आप अपने अंगों का समुच्चय हैं। धर्म क्योंकि प्रक्रिया नहीं है घर एक अवधारणा है और उस अवधारणा को करने समझने देखने के लिए प्रक्रियाओं की जरूरत होती है अतः केवल प्रक्रिया ही धर्म नहीं हो सकती।                            

सबसे पहले हम  विचार करतें हैं कि हम  सनातनी है अर्थात हम  हिंदू धर्म के मानने वाले हैं । इसका अर्थ यह है कि सनातन व्यवस्था में एक व्यवस्था जो आस्था के साथ ईश्वर पर विश्वास करती है उस तक (ईश्वर तक) पहुंचने के प्रयत्नों को बल देती है ।

   अंततः यह यह कहना और मानना ही होगा कि :- "धर्म एक व्यवस्था है जो आस्था के साथ नैसर्गिक है। सनातन है अर्थात कंटीन्यूअस है और इसमें मानवता के घटक देश काल परिस्थिति के अनुसार समावेशित होते रहते हैं ।"

     सनातन में रूढ़िवाद मौजूद नहीं है । सनातन का बड़ी नदी का प्रांजल प्रवाह है जिसमें कई छोटी नदियां क्रमशः शामिल होती जाती हैं और मुख्य नदी किसी भी सहायक नदी का विरोध नहीं करती। 

    रूढ़ियां सनातन धर्म में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं, अतः सनातन में विमर्श या वार्ताएं होती हैं यही वार्ताएं अंतिम निर्णय पर पहुंचती है ऐसे निर्णय बाधाओं को तोड़ते हैं।

         ऐसा लगता है यहां रूढ़ियों की परिभाषा देने की जरूरत नहीं है आप जानते हैं रूढ़ियाँ क्या होतीं हैं ? 

सनातन रूढ़ियों को तोड़ता है। सनातन  विकल्प की मौजूदगी को स्वीकारता है। उदाहरण के तौर पर एक कहावत है- फूल नहीं तो फूल की पत्ती चढ़ा दीजिए प्रभु प्रसन्न हो जाएंगे। इस कथन का अर्थ है कि विकल्पों को उपयोग में लाया जाए।

 मनु स्मृति के अनुसार धर्म की परिभाषा

 धार्यते इति धर्म:" अर्थात जो धारण किया जाये वह धर्म हैं अथवा लोक परलोक के सुखों की सिद्धि के हेतु सार्वजानिक पवित्र गुणों और कर्मों का धारण व सेवन करना धर्म हैं। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं की मनुष्य जीवन को उच्च व पवित्र बनाने वाली ज्ञानानुकुल जो शुद्ध सार्वजानिक मर्यादा पद्यति हैं वह धर्म हैं। 

चलिए अब धर्म की कुछ परिभाषाओं को देखते हैं-"धर्म का परिभाषा क्या हैं?"

धर्म संस्कृत भाषा का शब्द हैं जोकि धारण करने वाली धृ धातु से बना हैं। "धार्यते इति धर्म:" अर्थात जो धारण किया जाये वह धर्म हैं। अथवा लोक परलोक के सुखों की सिद्धि के हेतु सार्वजानिक पवित्र गुणों और कर्मों का धारण व सेवन करना धर्म हैं। दूसरे शब्दों में यहभी कह सकते हैं की मनुष्य जीवन को उच्च व पवित्र बनाने वाली ज्ञानानुकुल जो शुद्ध सार्वजानिक मर्यादा पद्यति हैं वह धर्म हैं। यह भी ध्यान देने योग्य है कि-

 "धृति: क्षमा दमोअस्तेयं शोचं इन्द्रिय निग्रह:  धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणं (मनु स्मृति)

[  ] जैमिनी मीमांसा दर्शन के दूसरे सूत्र में धर्म का लक्षण हैं लोक परलोक के सुखों की सिद्धि के हेतु गुणों और कर्मों में प्रवृति की प्रेरणा धर्म के लक्षण  हैं।

[  ] वैदिक साहित्य में धर्म वस्तु व्यक्ति समष्टि  के स्वाभाविक गुण तथा कर्तव्यों के अर्थों में  जैसे जलाना और प्रकाश करना अग्नि जैसे बिंदुओं को धर्म माना हैं तो प्रजा का पालन और रक्षण राजा का धर्म तथा राजाज्ञा का पालन करना प्रजा का धर्म बताया गया है ।

[  ] आध्यात्मिक संदर्भों में व्यक्ति में अंतर्निहित भावों जैसे धैर्य,क्षमा, मन को प्राकृतिक प्रलोभनों बचाव, हरण का त्याग, शौच शुद्धता, इन्द्रिय निग्रह, बुद्धि एवम ज्ञान, विद्या, सत्य, अक्रोध आदि को धर्म के लक्षण के रूप में निरूपण किया है। सदाचार परम धर्म हैं

[  ] महाभारत में कहा है कि-

  "धारणाद धर्ममित्याहु:,धर्मो धार्यते प्रजा:..!

    अर्थात जो धारण योग्य है फलतः 

    जिसे प्रजाएँ धारण करती हैं- धर्म हैं।"

[  ]  कणाद ने धर्म का लक्षण यह किया हैं- "यतोअभयुद्य निश्रेयस सिद्धि: स धर्म:"

    अर्थात सामष्टिक रुप से सामाजिक अभ्युदय यानी विकास जिसे अंग्रेजी में डेवलपमेंट कहां गया है । वह धर्म है और आराधना योग आदि प्रणालियों को अपनाकर आत्मोत्तथान करने की प्रक्रिया धर्म का लक्षण है।

[  ]  स्वामी दयानंद के अनुसार धर्म की परिभाषा -जो पक्षपात रहित न्याय सत्य का ग्रहण, असत्य का सर्वथा परित्याग रूप आचार हैं उसी का नाम धर्म और उससे विपरीत का अधर्म हैं।-

[  ] स्वामी जी कहते हैं कि "पक्षपात रहित न्याय आचरण सत्य भाषण आदि युक्त जो ईश्वर आज्ञा वेदों से अ-विरुद्ध हैं, उसको धर्म मानता हूँ !

महर्षि दयानंद धर्म के पालन के लिए किए गए कार्यों और कृत कार्य के लिए प्राण उत्सर्ग तक प्रस्तुत रहने के धर्म को स्वीकार करने का आग्रह करते हैं।

           कार्ल मार्क्स ने  सनातन धर्म के दार्शनिक पक्ष यहां तक कि लाक्षणिक पक्ष को पढ़ा ही नहीं था। कार्ल मार्क्स वे नास्तिक थे । जो उनकी च्वाइस थी। वे चर्च के राजनीतिक प्रभाव एवम हस्तक्षेप के विरुद्ध थे। वे संप्रदाय के डाक्ट्रिनस के नजदीक ज्यादा रहे हैं, इसलिए उन्होंने धर्म को अफीम की संज्ञा दी है। अगर कार्ल मार्क्स भारतीय दर्शन को समझ ही लेते तो इस वाक्य का जन्म ना होता जिस का दुरुपयोग आयातित विचारधारा के पैरोकार वामपंथ द्वारा भारत में किया जाता है ।

धर्म की परिभाषाएं लाक्षणिक  हैं । धर्म को लक्षणों एवम उसमें शामिल सात्विक प्रक्रियाओं के जरिए पहचाना जा सकता है। 

    सुधि पाठकों धर्म Dharm एक वह शब्द है जो Religion से अलग है । 

  Oxford dictionary एवम हिंदी डिक्शनरी  में से धर्म Dharma शब्द को religion अर्थात संप्रदाय के रूप में नहीं रखना चाहिए। धर्म और संप्रदाय शब्द मूल रूप से प्रथक प्रथक हैं । 
संप्रदाय का तात्पर्य क्या है..?

अब तक आपने जाना कि डिक्शनरी में तो सम्प्रदाय को धर्म कहा जाता है ।परंतु एक तथ्य यह भी है कि भारत में मौजूद सनातन धर्म के व्यापक विश्लेषण के साथ साथ धर्म की परिभाषा को उसके स्वरूप एवम लक्षण के आधार या एंगल से  समझने के बावजूद ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में उसे रिलीजन ही लिखा है !

       धर्म की परिभाषा महर्षि गौतम / महाभारत में भी दी है, इस एक पंक्ति की परिभाषा को पुन: देखें- “जो धारण करने योग्य हो वह धर्म है !” 

   क्या इस परिभाषा को समग्र रूप से स्वीकृति नहीं मिलनी चाहिए ? अवश्य मिलनी चाहिए क्योंकि यह परिभाषा सुनिश्चित करने के लिए सुव्यवस्थित  तथा स्थापित सारभूत सार्वकालिक एवं सार्वभौमिक सत्य एवं तथ्य है ।

  मूल रूप से धर्म की परिभाषा  का और अधिक गहराई से  अध्ययन कर विश्लेषण किया जाए तो ज्ञात होता है कि

[ 1 ] भौतिक रूप से प्राप्त शरीर और उसको संचालित करने वाली ऊर्जा जिसे प्राण कहा जा सकता है के द्वारा...

[ 2 ] धारण करने योग्य को ही धारण किया जाता है। उदाहरणार्थ नित्य प्रातः उठना प्राणी का भौतिक धर्म है, परंतु यह ऐसी प्रक्रिया है जो शरीर के सोने और जागने की अवधि को सुनिश्चित करती है । जागते ही शरीर के अंदर जीवंत भाव धरती से उस पर अपने पैर रखने के लिए अनुमति चाहते हैं तथा उसे प्रणाम करते हैं यह क्रिया संस्कार है । शरीर को भौतिक रूप से एक धर्म का निर्वहन करना है वह धर्म है दैनंदिन कर्मशील रहना।

[3] पिता,माता, गुरु, भाई, बहन , पत्नी, अधिकारी, सिपाही, सेवक, आदि के रूप में जो धारण करने योग्य हो को धर्म कहा जाना एक स्थापित नैरेटिव है, जो कि एक   सनातन प्रक्रिया है सामान्य  रूप से जब हम में वाणी समझ भाव का विकास नहीं हुआ था तब भी हम शरीर को सुलाते थे और जगाते भी रहे होंगे...! फिर हम जागृत अवस्था में आहार के लिए भटकते भी होंगे आहार हासिल करने के लिए शरीर कुछ कार्य अवश्य करता होगा। यहां आहार की उम्मीद करना कामना है और आहार के लिए श्रम करना पुरुषार्थ है। यह व्यवस्था ही रही थी, जब हमारा धर्म कामना और अर्जन पर केंद्रित रहा ।

[4] आदि काल से अब तक यानी सनातन जारी यह व्यवस्था शनै: शनै: विकास के बावजूद हमारी व्यवस्था और हमारे डीएनए में मौजूद है। हम रात को सोना नहीं भूलते और सुबह जागना नहीं भूलते विशेष परिस्थितियों को छोड़कर शरीर अपना धर्म निभाता है । फिर धीरे-धीरे विकास के साथ शारीरिक संरचना में सूक्ष्म शरीर का एहसास मनुष्य ने किया अर्थात मनुष्य सोचने लगा और फिर उसी सोच के आधार नियमों को धारित या उन से विरत रहने लगा । सनातन यानी प्रारंभ से ही तय हो गया कि क्या धारित करना है और क्या धारित नहीं है ।

       धारित करने और ना करने का मूलभूत कारण जीवन क्रम को सुव्यवस्थित स्थापित करना था।

    धर्म यानी जीवन की व्यवस्था को चलाने के लिए क्या धारण करना है क्या धारण नहीं करना है के बारे में आत्म विमर्श या अगर वह समूह में रहने लगा होगा तो सामूहिक विमर्श अवश्य किया होगा। मनुष्य ने तब ही तय कर लिया होगा कि क्या खाना है क्या नहीं खाना है कैसे रहना है स्वयं की अथवा अपने समूह की रक्षा किस प्रविधि से करना है समूह में आपसी व्यवहार कैसे  करना है ?

    एक लंबी मानसिक मंत्रणा के बाद तय किया होगा। धर्म का प्रारंभ यहीं से होता है।

    आप एक कुत्ता पालते हैं अथवा अन्य कोई पशु पालते हैं आपका उनके लालन-पालन का उद्देश्य सर्वथा धर्म सम्मत होता है। अगर उस पालतू पशु को आप घर में छोड़कर जाते हैं तो आप चिंतित रहते हैं कि उसे भोजन कराना है अब आप उस पशु के लिए कमिटेड हैं और आप  निश्चित समय सीमा में लौटते हैं ऐसी व्यवस्था करते हैं कि आपके पालतू पशु को समय पर भोजन मिल जाए । और आप इसके लिए प्रतिबद्ध है स्वामी के रूप में यही आपका धर्म है। जब आप पशु के लिए इतना कमिटेड है तो आप अपनी पत्नी और संतानों के लिए भी कमिटेड होंगे ही पति के रुप में आपका यह कमिटमेंट आपका धर्म है।

    अपने कमिटमेंटस को पूरा करने के लिए आपके यत्न प्रयत्न अर्थ का उपार्जन अब करने लगे हैं पहले हम-आप जब आदिमानव थे तब आप क्या करते रहे होंगे ?

तभी आप अगर ऐसी व्यवस्था में रह रहे होंगे तो भी अपने धर्म का निर्वाह जरूर कर रहे थे। क्योंकि तब आपका धर्म था जन की संख्या में वृद्धि करना।  उसके लिए आपके पुरुषार्थ का द्वितीय तत्व काम यानी कामना यानी उम्मीद जो आवश्यकता अनुसार  जुटानी होती थीं पर अपना श्रम और सामर्थ्य लगाते थे।

ईश्वर अथवा ब्रह्म की कल्पना ईश उपनिषद में कुछ इस तरह से की है

"पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् , पूर्ण मुदच्यते, ।

पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवा वशिष्यते।।

    !!ॐ शांति: शांति: शांतिः !!

  ब्रह्म जो अदृश्य है, वह अनंत और पूर्ण है। उसी पूर्ण यानी ब्रह्म से पूर्ण जगत की  उत्पत्ति होती है। यह दृश्यमान जगत भी अनंत है। उस अनंत से विश्व विस्तारित हुआ है। और यही विस्तार अनंत के होने का प्रमाण है। 

    अलौकिक ब्रह्म की कल्पना यानी निर्गुण ब्रह्म की कल्पना के साथ साथ सगुण ब्रह्म की कल्पना सनातन इसलिए करता है ताकि उस क्रिया का अभ्यास किया जा सके जिसे साधना अथवा अनुष्ठान और सीधे शब्द में कहें तो योग कहते हैं।
   योग ध्यान सगुण ब्रह्म से निर्गुण ब्रह्म तक पहुंचने का सरपट मार्ग है।  यह किसी परम ब्रह्म परमात्मा का आदेश नहीं है क्योंकि ब्रह्म में निहित तत्व ऊर्जा के अतिरिक्त कुछ नहीं है। ब्रह्म निरंकार है। अनंत है इस अनंत में ऊर्जा का अकूत भंडार है।
   निर्गुण ब्रह्म की पूजा बहुत सारे लोग करते हैं और यह दावा करते हैं कि वे ही मात्र ब्रह्म के संदेशवाहक हैं । वास्तव में यह एक सतत परा भौतिक क्रिया है ब्रह्म को एक ओर स्वयं आकारहीन माना जाता है वही लोग यह कहते हैं कि ईश्वर ने मुझे यह कहने के लिए जमीन पर भेजा है कि दुनिया के नीति नियमों का संचालन करने के लिए नियमों का निर्धारण करो । वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है अगर यह सत्य है तो आप और हम रोज ब्रह्म से साक्षात्कार करते हैं हजारों हजार विचार मस्तिष्क में संचालित होते हैं ।
हमको मस्तिष्क में प्राप्त होने वाले ये बेतार से संदेश  कौन भेजता है ?
    मैं आस्तिक हूं तो मैं मानता हूं कि ईश्वर यह संदेश मुझे भेज रहे हैं। फल:स्वरूप मैं स्वयं का और हम सब स्वयं के देवदूत हैं  ऐसा मेरा मत है और यही मैं मानता हूं । 
क्रमशः जारी
     

9.9.21

युवा कृषि वैज्ञानिक डॉ आकाश पारे राजकीय सम्मान के साथ तमिलनाडु सरकार ने विदा किया



   तमिलनाडु  के तंजौर में पदस्थ जबलपुर मूल के कृषि वैज्ञानिक डॉ आकाश पारे जिनका बचपन जबलपुर में बीता था निधन दिनांक 7 सितंबर 2021 को तंजौर में हो गया  । पंडित लज्जा शंकर झा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के सेवानिवृत्त स्वर्गीय शिक्षक श्री प्रकाश चंद्र पारे एवं हितकारिणी विद्यालय परिवार की शिक्षिका श्रीमती लीला पारे के कनिष्ठ पुत्र श्री आकाश पारे बचपन से ही मेधावी छात्र रहें है ।
वेब पंडित लज्जा शंकर झा मॉडल हाई स्कूल के छात्र थे। उनकी, शिक्षा जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय से स्नातक एवं स्नातकोत्तर डिग्री  , तथा  डॉक्ट्रेट की डिग्री , तदोपरांत तंजावुर से एक और विषय में डॉक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त करने वाले डॉ आकाश ने कम समय में ही कृषि उत्पादन एवं अनुसंधान के क्षेत्र में अपनी वैज्ञानिक प्रतिभा दिखानी प्रारंभ कर दी थी। तंजावुर यूनिवर्सिटी में बतौर सहायक प्राध्यापक और फिर प्राध्यापक के पद पर नियुक्त हुए। बड़े भाई विकास एवं डॉ आकाश ने बचपन से ही  अपने लक्ष्य निर्धारित कर लिए थे। डॉ आकाश की रिसर्च आधारित पुस्तकें विभिन्न विश्वविद्यालयों में प्रमुखता से पढ़ी जाती हैं। कृषि विज्ञान एवं अनुसंधान के लिए उन्हें राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित होने का गौरव भी प्राप्त हुआ। उनका बेहद कम उम्र में जाना भारतीय कृषि विज्ञान अनुसंधान एवं कृषि विकास के क्षेत्र में एक अध्याय का रुक जाना है। डॉ आकाश ना केवल तमिलनाडु सरकार के लिए बल्कि संपूर्ण भारत के लिए वह अति महत्वपूर्ण युवा कृषि वैज्ञानिक के रूप में जाने पहचाने जाते रहे हैं। 40 वर्षीय डॉक्टर आकाश विगत 3 माह से लंगस कैंसर से पीड़ित रहे तथा उनका निधन 7 सितंबर 2021 को तंजावूर में इलाज के दौरान हो गया। डॉ आकाश का जाना हमारी एवं राष्ट्र की अपूरणीय क्षति है।
   डॉ आकाश अपने पीछे अपनी मां पत्नी श्रीमती अदिति एवं दो बच्चों को छोड़ गए हैं। नार्मदेय ब्राह्मण समाज जबलपुर शोकाकुल परिवार को इस गहन दुख को सहने की शक्ति के लिए प्रभु से प्रार्थनारत हैं । 

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धर्म और संप्रदाय

What is the difference The between Dharm & Religion ?     English language has its own compulsions.. This language has a lot of difficu...