कल एक आलेख पढ़ा है न आपने अपने कुछ खास मित्रों के लिये लिखा आलेख आज इस गीत में उतर आया है अजित गुप्ता जी ने आलेख को देख कर कहा था नेपथ्य से बहुत कुछ कहा गया है। सच !! कहा भी ऐसा ही था.अजित जी
नेपथ्य की ध्वनियां उन तक पहुंच भी जाएं तो शायद ही मित्र गण खुद को आगे के लिये बदल पाएं. आज़ सोचा कि शायद उनको विश्वास दिलाने में सफ़ल हो जाऊं कदाचित जो मेरे साथ किया आगे से किसी और के साथ न करेंगें !! जो भी हो लिखना था लिख मारा
2 टिप्पणियां:
"न मैं कंटक व्यस्त-पथ का न मैं पहिया पार्थ रथ का"
इस कविता की तो जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है। इतनी श्रेष्ठ रचना ब्लाग जगत में पढ़ने को मिली, यह तो जैसे चमत्कार है। ऐसे ही सृजन करते रहें, विवाद तो हमें बहुत कुछ सिखाते हैं,
इनसे सीखे और इन्हें अपने ऊपर हावी न होने दें।
अहाहा...अप्रतिम रचना...बधाई स्वीकारें
नीरज
एक टिप्पणी भेजें