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गुरुवार, अक्टूबर 20, 2011

न मैं कंटक व्यस्त-पथ का न मैं पहिया पार्थ रथ का


कल एक आलेख पढ़ा है न आपने अपने कुछ खास मित्रों के लिये लिखा आलेख आज इस गीत में उतर आया है अजित गुप्ता जी ने आलेख को देख कर कहा था नेपथ्‍य से बहुत कुछ कहा गया है। सच !! कहा भी ऐसा ही था.अजित जी  
नेपथ्य की ध्वनियां उन तक पहुंच भी जाएं तो शायद ही मित्र गण खुद को आगे के लिये बदल पाएं. आज़ सोचा कि शायद उनको विश्वास दिलाने में सफ़ल हो जाऊं कदाचित जो मेरे साथ किया आगे से किसी और के साथ न करेंगें !! जो भी हो लिखना था लिख मारा

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