एक बाल गीत पेश है इस गीत में श्लेष-अलंकार का अनुप्रयोग है
तोता बोला मैं न मौन, बात मेरी बूझेगा कौन ?
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एक अनजाना एक अनजानी राह पकड़ के चला गया
कैसे नाचे ठुमुक बंदरिया बंदर लड़ के चला गया
अपना ही जब रूठा हो तो औरों से जूझेगा कौन ?
तोता बोला मैं न मौन, बात मेरी बूझेगा कौन ?
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बूढ़े बंदर ने समझाया काहे बंदरिया रोती है
देह से छोटी होय चदरिया, किचकिच हर घर होती है
मनातपा ले आ घर पर, बिन जोड़ी पूछेगा कौन ?
तोता बोला मैं न मौन, बात मेरी बूझेगा कौन ?
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6 टिप्पणियां:
सुबह सुबह बहुत ही सुन्दर दो कविताएँ। अहा! क्या कहना मुकुल जी। बहुत आनंददायी।
बहुत सुन्दर रचना!
बन्दर ने सही सलाह दी!
SUNDAR GEET
बहुत सुंदर कविता
shiva12877.blogspot.com
kauaa,cheel,gadaha,billi kutte ki bhi kavita bhejo.
हा हा हा मनीष भाई
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