भारतीय-व्यवस्था में ब्यूरोक्रेटिक सिस्टम की सबसे बड़ी खामी उसकी संचार प्रणाली है जो जैसी दिखाई जाती है वैसी होती नहीं है. सिस्टम में जिन शब्दों का प्रयोग होता है वे भी जितना अर्थ हीन हो रहें हैं उससे व्यवस्था की लड़खड़ाहट को रोका जाना भी सम्भव नहीं है. यानी कहा जाए तो ब्यूरोक्रेटिक सिस्टम अब अधिक लापरवाह और गैर-जवाबदेह साबित होता दिखाई दे रहा है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो भार को अंतरित कर देने की प्रवृत्ति के चलते एक दूसरे के पाले में गेंद खिसकाते छोटे बाबू से बड़े बाबू के ज़रिये पास होती छोटे अफ़सर से मझौले अफ़सर के हाथों से पुश की गई गेंद की तरह फ़ाईल जिसे नस्ती कहा जाता है अनुमोदन की प्रत्याशा में पड़ी रहती है. और फ़िर आग लगने पानी की व्यवस्था न कर पाते अफ़सर अक्सर नोटशीट के नोट्स जो बहुधा गैर ज़रूरी ही होतें हैं मुंह छिपाए फ़िरतें हैं. वास्तव में जिस गति से काम होना चाहिये उस गति से काम का न होना सबसे बड़ी समस्या है कारण जो भी हो व्यवस्था और भारत दौनों के हित में नहीं.इन सबके पीछे कारणों पर गौर किया जावे तो हम पातें हैं कि व्यवस्था के संचालन के लिये तैयार खड़ी फ़ौज के पास असलहे नहीं हैं हैं भी तो उनको चलाने वालों की संवेदन शीलता पर पुरानी प्रणाली का अत्यधिक प्रभाव है. कई बार तो देखा गया की ऊपर वालों का दबाव नीचे वालों पर इतना होता है कि सही रास्ते पर चलता काम दिशा ही बदल देता है. आज़कल फ़ाइलों पर चर्चा करें जैसे शब्दों का अनुप्रयोग बढ़ता जा रहा है. इसके क्या अर्थ हैं समझ से परे हैं. इसी तरह की कार्य-प्रणाली फ़ाइलों में
भोला राम के जीव आज भी फ़ंसते हैं अगर यक़ीन न हो तो अदालतों में जाके देखिये. आज़ भी
राग दरबारी का लंगड़ नकल के लिये भटकता आपको मिल ही जावेगा. यदि दिल्ली कामन वेल्थ की तैयारी में
लेटलतीफ़ी और अव्यवस्था हुई है तो उपरोक्त कारण भी अन्य कारणों में से एक है. मेरी दृष्टि में ब्यूरोक्रेसी को अब अपनी कार्य प्रणाली में अधिक बदलाव लाने होंगें वरना सरकती फ़ाइलें व्यवस्था के अर्रा के टूट कर बिखरने में सहायक साबित होंगी.
15 टिप्पणियां:
भैया इस ब्युरोक्रेसी ने सारी बेवस्था को ही लंगड़दीन बना दिया है।
एक आई ए एस को राष्ट्रपति ही रिमुव कर सकते हैं। बाकी किसी के बस की बात नहीं। प्रजातंत्र को घुन की तरह चाटते जा रहे हैं।
बेहतरीन लेखन के बधाई
हम तो आपके इसी लेखन के कायल हैं।
दादा आज तो आपने घायल कर दिया।
पदम सिंग जी से कहुंगा की आपके लिए पदम पुरस्कार की घोषणा करे अबके होली में।
बधाईयां जी बधाईयाँ
गिरिश भाई , यही तो यक्ष प्रश्न है कि बदलाव लाया कैसे जाए इस तथाकथित ब्यूरोक्रेसी में और लाएगा कौन ????
बात तो सही है
अजय भैया
गिरीश भाई!
लाल फीताशाही के इस फ़ाइल रूपी शास्त्र की काट नहीं है. अफसर और बाबू दोनों इसे अपनी-अपनी तरह से इस्तेमाल करते है. बाबू सन्दर्भ और कानून के बहाने कुछ न करने देगा तो अफसर का अस्त्र चर्चा करें है. हम-आप की तरह बीचवाला बली का बकरा बनने को मजबूर है.
सरकारी तंत्र का तो साहब अब क्या कहे हर जगह देख लो यही हाल है ..... तू मेरी खुजा तो मैं तेरी खुजाता हूँ ! चमचागिरी जोरो पर है बाबु लोग साहब की चमचागिरी में लगे रहते है और यही उम्मीद जनता से करते है कि जनता उनकी जी हुजूरी किया करे ! आम आदमी सरकारी दफ्तर में जाने से घबराता है ! सुनवाई कोई है नहीं ... और फिर सुनवाई करे भी कौन ? क्या नेता क्या बाबु सब है तो एक ही थाली के चट्टे बट्टे !
दमदार बात - सीधी बात.
मेरी दृष्टि में ब्यूरोक्रेसी को अब अपनी कार्य प्रणाली में अधिक बदलाव लाने होंगें वरना सरकती फ़ाइलें व्यवस्था के अर्रा के टूट कर बिखरने में सहायक साबित होंगी.
-दुआ ही कर सकते हैं कि बदलाव आये,,,
दीपक जी,समीर जी,शिवम् मिश्रा ,सलिल जी,अजय भैया,ललित जी सभी का शुक्रिया आलेख वास्तव में भोगा यथार्थ है.
सादर अभिवादन
thanks for comment bhai girishji
कुछ कहने को बचा ही नही। व्यवस्था? हम तो इसका अर्थ ही भूल चुके हैं। अच्छा लगा आलेख। आभार।
baat aapkee sahee hai....
Thanks shaifali ji
निश्चित तौर पर इस पुरानी कार्य प्रणाली में अधिक बदलाव होने चाहिए
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