मेरे अज़ीज़ मित्र इस वक़्त मध्य-प्रदेश सरकार के राजस्व महक़मे में तहसीलदार का ओहदा रखते हैं. तमाम सरकारी कामकाज़ के साथ हज़ूर के दिल में छिपा शायर नोट शीट, आर्डरशीट से इतर बहुत उम्दा काम ये कर रहें हैं कि अपने दिल में बसे शायर को सरकारी मसरूफ़ियत का हवाला देकर रुलाते नहीं. बाक़ायदा ग़ज़ल लिखते हैं. मौज़ूदा हालातों से जुड़े रहतें हैं. रौबदार विभाग के नाजुक़ ख्याल अफ़सर की ग़ज़ल की बानगी नीचे स्कैन कर पेश है. पसंद आयेगी ज़रूर मुझे यक़ीन है. कौमी एकता के इर्दर्गिर्द घूमते विचारों को करीने से संजोता है शायर प्रशांत और बुन लेता है एक गज़ल
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16 टिप्पणियां:
गज़ल के माहिर तो आज बाहर गये हैं, मैं सिर्फ इतना कह सकती हूं कि भावनायें बहुत ऊंची हैं
आपको लिखते रहना चाहिये
हम तो बस अपने मादरे वतन का ख्याल रखते हैं .... बहुत ख़ूबसूरत रचना....
हम तो बस अपने मादरे वतन का ख्याल रखते हैं .... बहुत ख़ूबसूरत रचना....
सुमन जी, महेन्द्र भैया,अल्का जी
आपका हार्दिक आभार
कौमी एकता पर बहुत सुंदर गजल है
कभी अल्लामा इकबाल भी ऐसा ही लिखते थे।
...behatreen gajal, badhaai !!!
शुक्रिया गिरिशजी, अच्छा कलाम पढवाया, वक़्त की ज़रूरत है, खुदा करे एसी ही सोच हम सब की हो जाये और हमारा वतन फलता-फूलता रहे.प्रशांतजी को भी बधाई और धन्यवाद.
--mansoorali हाश्मी
http://aatm-manthan.com
shukriyaa zanaab
मन को मन से जोड़ती रचना हेतु साधुवाद.
बढ़िया गज़ल है ये अब तक कहाँ थे भाई ?
सुन्दर सन्देश देती गज़ल के लिये बधाई व धन्यवाद।
मरें अर्जे वतन में ये दुआ मांगते हैं, बहुत ही खूब, बहुत ही सुन्दर, हर पंक्ति लाजवाब ।
आपकी ग़ज़ल वाकई काबिले तारीफ़ है़...बधाई।
Bade oonche vichar aur umda Gazal ke bol ke liye Shukriya.
ये जनाब अब तक कहा थें. बहुत उम्दा शेर है.
नमस्कार आज पहले बार आपके ब्लॉग पर विसित किया है. और ये शेर भी अच्छा है.
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