आज ये कविता ललित शर्मा जी के ब्लॉग से ---जितनी मुश्किल गाने में हुई ,उतनी ही पोस्ट लगाने में भी ......
आदरणीय ललित जी से क्षमा माँगते हुए सुना रही हू क्योकि इसे गाने के लिए थोडा बदलना पडा मुझे .....
इसे पढ़िए यहाँ --------शिल्पकार के मुख से ...
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7 टिप्पणियां:
अर्चना जी!
ललित शर्मा जी की सुन्दर कविता को
आपने बहुत ही मधुर स्वर में गाया है!
अर्चना जी की आवाज में ललितजी का गीत बहुत बढ़िया लगा. .. ..पहले शीर्षक से लगा की गीत आपके मुख से गाया गाया है .... प्रस्तुति के लिए आभार
ललित जी को बधाई और आपका आभार.. गीत तो सुन्दर है ही.. मगर आपने सोने पर सुहागा रख दिया..
सुन्दर गीत..गायन
वाह-वाह,बहुत बढिया गाया है-अर्चना जी ने
आभार
खोली नम्बर 36......!-पधारें
दादा और अर्चना जी, क्षमा करेंगें, नेट से दूर रहने के कारण सुन नहीं पाया था।
अब सुना है।साधुवाद-साधुवाद
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